Thursday, November 24, 2016

नोट बन्दी: 28 नवंबर को संयुक्त रूप से सडकों पर उतरेंगे सभी वामदल

लखनऊ- 24 नवंबर, उत्तर प्रदेश में संयुक्त रूप से कार्यरत 6 वामपंथी दलों की एक बैठक यहाँ माकपा के कार्यालय पर भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में संपन्न हुयी. बैठक में विपक्षी दलों द्वारा नोट बन्दी द्वारा पैदा हुयी भयावह स्थिति के खिलाफ 28 नवंबर को आयोजित किये जा रहे राष्ट्रव्यापी आक्रोश दिवस को उत्तर प्रदेश में सफल बनाने पर गंभीर विचार विमर्श किया गया. ज्ञात हो कि कल दिल्ली में संपन्न 6 वाम दलों की बैठक में नोट बन्दी से उपजे हालातों और इससे जनता को होरहे अपार कष्टों पर चर्चा की गयी थी और जनता के हित में 28 नवंबर को देश भर में आक्रोश दिवस मनाने का निर्णय लिया था. हर्ष की बात है कि अन्य कई विपक्षी दलों ने भी इसी दिन आक्रोश दिवस आयोजित करने का फैसला लिया है. वाम दलों की राज्य स्तरीय बैठक में तय पाया गया कि 28 नवंबर को वामपंथी दल जिलों में जिला स्तर, विधान सभा क्षेत्र स्तर, कस्बों यहाँ तक ग्राम स्तर पर आक्रोश प्रदर्शन संगठित करेंगे. वामपंथ के मित्रों, आम जनता, किसानों, कामगारों, दस्तकारों, आशा आँगनबाडी मिड डे मील वर्करों, कल कारखानों में काम करने वालों, लघु उद्यमियों तथा व्यापारियों से वामपंथी दल पुरजोर अपील कर रहे हैं कि आज़ादी के बाद से अब तक आम नागरिकों पर सरकार द्वारा बोले गए इस सबसे तीखे हमले का पुरजोर विरोध करें. वाम दलों ने अपनी समस्त जिला इकाइयों को निर्देशित किया है कि वे तत्काल अपने जनपद में वामपंथी दलों की संयुक्त बैठक बुलाएं और आक्रोश दिवस को कामयाब बनाने की तैयारियों में जुट जाएँ. बड़े पैमाने पर पर्चे प्रकाशित कर वितरित किये जाएँ. वाम बैठक में वक्ताओं ने इस बात पर गहरा अफसोस जताया कि कारपोरेट समर्थक और 30 महीने के कार्यकाल में काले धन के स्वामियों पर कार्यवाही करने से बचती रही मोदी सरकार ने अचानक बड़े नोटों को वापस लेने की घोषणा करदी जिससे देश के 99 प्रतिशत लोग सड़क पर आगये और जीवनयापन करने में भारी कठिनाइयां झेल रहे हैं. अब तक लगभग 75 लोगों की जानें जाचुकी हैं. किसान खेत मजदूर, मछुआरे, मनरेगा कर्मी, रोज कमाकर खाने वाले और बड़े पैमाने पर ग्रामीण जो रोजमर्रा का काम नकदी से चलाते हैं वे अभाव और कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. इलाज के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे हैं, शादी- विवाह वाले परिवार संकट में हैं, कोआपरेटिव को बैंकिंग प्रक्रिया से बाहर कर देने के कारण खेती का काम चौपट पडा है. नित नए फरमान आने और मुद्रा के पर्याप्त मात्रा में न आने से आम जनता और बैंक कर्मी हतप्रभ हैं. रोज रोज लाइनों में लगने के बावजूद नकदी न मिल पाने से हताश जनता ने अब धीरे धीरे लाइनों में लगना बंद कर दिया है. कई जगह वे आक्रोश प्रकट करने को सड़कों पर उतर रहे हैं और उत्तर प्रदेश पुलिस के दमन का शिकार बन रहे हैं. वाम नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने यह कदम बिना पूरी तैयारी और योजना के कर डाला. दो हफ्ते पूरे होने को हैं लेकिन बैंकों के पास जमा मुद्रा का दस प्रतिशत भी जनता को वितरण के लिए नहीं पहुंचा. जबकि भारत के करोड़ों लोग अपना रोज ब रोज का काम नकदी से चलाते हैं. अतएव वामपंथी दल सरकार से मांग करते हैं कि 500 तथा 1,000 के नोट 30 दिसंबर अथवा नई मुद्रा के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध्द होने तक जारी रखे जाएँ. कोआपरेटिव बैंक जो ग्रामीण जनता की जीवनदायिनी हैं उन्हें अन्य बैंकों की तरह सभी सेवायें प्रदान की जाएँ. नोटबन्दी की प्रताड़ना से मरे तथा रोजगार गँवा बैठे लोगों के परिवारों को पर्याप्त मुआबजा दिया जाए तथा 2,000 के नोट की अप्रासंगिकता को देखते हुए इसे वापस लिया जाए. वामपंथी दल किसानों के सभी कर्जे माफ़ करने, 11 लाख करोड़ के बैंकों के एनपीए के बकायेदारों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने और उनकी संपत्तियां जब्त करने, सहारा- बिरला पेपर्स के खुलासे की जांच करने तथा देश के अन्दर तथा बाहर जमा काले धन के धारकों के नाम उजागर कर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की भी मांग करते हैं. वामदलों ने उम्मीद जताई है कि आम जनता की भागीदारी से आक्रोश दिवस व्यापक असर छोड़ेगा और हठी तथा ढीठ मोदी सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर देगा. बैठक में माकपा राज्य सचिव का. हीरालाल, का. दीनानाथ सिंह, का. प्रदीप शर्मा, भाकपा के का. अरविन्द राज स्वरूप, का. आशा मिश्रा एवं फूलचंद यादव, माले के का. रामजी राय, का. ताहिरा हसन एवं का. रमेश सिंह सेंगर, एसयूसीआई-सी के का. जगन्नाथ वर्मा व जयप्रकाश मौर्य ने भाग लिया. डा. गिरीश

Tuesday, November 15, 2016

Action on Black Money: View of CPI

वास्तविक काले धन वालों पर ठोस कार्यवाही करो: आम जनता को राहत दो- भाकपा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय सचिव मंडल के वक्तव्य के परिप्रेक्ष्य में भाकपा के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मंडल ने निम्नलिखित बयान जारी किया है— लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भ्रष्टाचार, काले धन और नकली मुद्रा के खिलाफ संघर्ष के अपने संकल्प को दोहराते हुये महसूस करती है कि श्री मोदी सरकार द्वारा अचानक बड़े नोटों को प्रचलन से बाहर कर देने के आदेश ने आम जनता खास कर खोमचे वालों, रोज कमा कर खाने वालों, वेतनभोगियों, खुदरा कारोबारियों, छोटे किसानों, खेत मजदूरों तथा दस्तकारों के सामने बड़ी कठिनाइयां खड़ी कर दी हैं. सरकार को विमुद्रीकरण की इस कार्यवाही पर तत्काल पुनर्विचार करना चाहिये. राजनैतिक उद्देश्यों से बिना तैयारी के की गयी इस कार्यवाही के बाद से आम लोगों की जेबें खाली हैं. अधिकतर को एटीम अथवा बैंकों से धन मिल नहीं पा रहा है अथवा बहुत कम मिल पारहा है. अतएव अर्थाभाव में बीमार दम तोड़ रहे हैं, तमाम लोग भूखों मर रहे हैं, लंबे समय तक लाइनों में खड़े लोगों की दिल के दौरे पडने से मौतें होरही हैं, अनेक आत्महत्या कर चुके हैं और असहाय लोग आपस में लड़ रहे हैं, पुलिस से लड़ रहे हैं, बैंकों पर तोड़ फोड़ कर रहे हैं अथवा बैंककर्मियों पर गुस्सा उतार रहे हैं. काम के भारी बोझ के चलते बैंक कर्मी बीमार पड़ रहे हैं और कई की मौत तक हो चुकी है. शादी विवाह वाले परिवारों को भारी कठिनाइयां आरही हैं. पर लोगों की समस्याओं का निदान करने के बजाय प्रधानमंत्री जनता को इमोशनली ब्लैकमैल कर रहे हैं. मुद्रा के अभाव में तमाम औद्योगिक व्यापारिक और कृषि संबंधी गतिविधियां ठप पड़ी हैं. उद्योगों में उत्पादन ठप है. निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र ओंधे मुहं पड़ा है, ट्रान्सपोर्ट और परिवहन पंगु होचुका है और पर्यटन उद्योग जाम की स्थिति में है. किसान बुआई के लिये खाद बीज नहीं खरीद पारहे और उनके अनाज फल सब्जियां बिक नहीं पारहे. मनरेगा तक ठप पड़ी हैं. शहरी मजदूर पलायन कर रहे हैं और तमाम मजदूर उधार पर काम करने को मजबूर हैं. विकास और अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. दो हजार के नोट के कारण भारी कठिनाइयां खड़ी होरही हैं क्योंकि इसको छुट्टा करने को छोटे नोट उपलब्ध नहीं है. अतएव 50, 100, 1000, के नोटों को ज्यादा प्रचलन में लाने की जरूरत है. दो हजार के नोट से तो काले धन को संरक्षित करने में और अधिक सुविधा होगी. जिस तरह का यह नोट छपा है उसका डुप्लीकेट भी आसानी से छापा जा सकता है. अतएव दो हजार के नोट को प्रचलन से वापस लेना चाहिये. यदि सरकार को कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करने को वाकई संजीदा प्रयास करना था तो उसे सबसे पहले विदेशों में जमा 80 हजार करोड़ के उस धन को वापस लाना था जिसे लाने का ढिंढोरा भाजपा लोकसभा के चुनाव अभियान में पीटती रही. विक्की लीक्स द्वारा विदेशों में जमा धन और पनामा पेपर्स लीक के अनुसार विदेशों में निवेशकर्ताओं के खुलासे के आधार पर सरकार को ठोस कार्यवाही करनी चाहिये थी. नकली नोटों के करोबारी, हवाला वालों तथा काले धन के 7 करोड़ सरगनाओं पर कार्यवाही करने के बजाय सरकार ने 118 करोड़ निरीह जनता के खिलाफ युध्द छेड़ दिया. इसके अलावा सरकार को उन बड़े धन्ना सेठों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिये जिन्होने बैंकों से लिये कर्ज को हड़प लिया और बैंकों ने उसे बट्टे खाते में डाल दिया. सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गयी जानकारी के अनुसार 87 व्यक्तियों जिन पर 500 करोड़ से अधिक बकाया है पर कुल 85 हजार करोड़ बकाया है. यदि इस सूची में 100 करोड़ तक के बकायेदारों को भी शामिल कर लिया जाये तो यह बकाया राशि एक लाख करोड़ से अधिक बैठेगी. इसके अलावा 100 करोड़ से कम वाले भी बहुत सारे हैं. सरकार को इन गैर उत्पादित परिसंपत्तियों ( एनपीए ) की बसूली के लिये शीघ्र ठोस कदम उठाने चाहिये तथा इन कर्जदारों की संपत्तियों को जब्त करना चाहिये. इस तरह की रिपोर्ट्स भी मिल रही हैं कि बहुत सारे लोगों, राजनैतिक दलों के नेताओं, भाजपा समर्थक उद्योगपतियों और भाजपा ने करोड़ों करोड़ रुपये पिछले महीनों में बैंकों में डाल दिया और काले धन को सुरक्षित व्यवसायों में निवेशित कर दिया क्योंकि उन्हें विमुद्रीकरण की इस कार्यवाही के बारे में पता था. सभी पूंजीवादी दलों की धड़ल्ले से चल रही गतिविधियां इसका जीता जागता प्रमाण हैं. सबसे आगे भाजपा है जिसकी 75 रथयात्रायें उत्तर प्रदेश/ उत्तराखंड में चल रही हैं और मोदी – शाह की बेहद खर्चीली रैलियां आयोजित की जारही हैं. बैंकों को ऐसे जमाकर्ताओं की सूची जारी करनी चाहिये. भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने पार्टी की समस्त शाखाओं एवं कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे काले धन से संबंधित मांगों, विदेशों में जमा धन और निवेशित धन तथा एनपीए की बसूली तथा दो हजार के नोट को वापस लेने व 50, 100, 500 और एक हजार के नोट को ज्यादा से ज्यादा प्रचलन में लाने की मांग को लेकर केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, खासकर आयकर कार्यालयों और बैंकों के समक्ष मार्च, धरने और प्रदर्शन करें. जनता और बैंक कर्मियों की राहत के लिये ठोस कदम उठाने की मांग भी केंद्र सरकार से की जानी चाहिये. भाकपा कार्यकर्ताओं को कठिनाइयां झेल रहे लोगों की भी हर संभव मदद आगे बढ कर करनी चाहिये. डा. गिरीश

Thursday, September 8, 2016

रेल किराये में बढोत्तरी आम जनता पर हमला.: भाकपा

लखनऊ- 8 सितंबर, 2016 – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने रेल मंत्रालय द्वारा कुछ ट्रेनों के किराये को बुकिंग के आधार पर बढाते चले जाने के कदम को जनविरोधी बताते हुये उसकी कड़े शब्दों में आलोचना की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गत 27 महीनों में केंद्र सरकार ने कई बार रेल और माल भाडे में बढोत्तरी की है, आरक्षण रद्द कराने में भारी कटौती लागू कर दी है, सफाई के नाम पर अतिरिक्त कर लगाया है तथा प्लेटफार्म टिकिट रु. 10/- का कर दिया है और अब शताब्दी और राजधानी जैसी ट्रेनों के आरक्षण बढते जाने पर किराया दर बढाते जाने की व्यवस्था लागू की है. मजे की बात यह है कि यह व्यवस्था इन ट्रेनों की सर्वोच्च श्रेणियों में लागू नहीं की गयी जिनमें कि धनबान लोग यात्रा करते हैं. डा. गिरीश ने कहा कि सरकार रेल यात्रा को निरंतर महंगी बना कर आम आदमी के लिये कठिनाइयां खडी कर रही है और महंगाई की मार झेल रही जनता के ऊपर और भी भार बढा रही है. भाकपा की उत्तर प्रदेश इकाई इन बढोत्तरियों को तत्काल रद्द करने की मांग करती है. डा. गिरीश

Wednesday, August 24, 2016

भाकपा ने बाढ़ की विभीषिका पर गहरी चिंता जताई

भाकपा ने बाढ़ से तबाही पर गहरी चिंता जताई: सरकारों से फौरी कदम उठाने की मांग की लखनऊ- 24 अगस्त 16, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि में बाढ़ की भीषण तबाही से धन और जन हानि पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुये केंद्र और राज्य सरकारों से लोगों की जान बचाने और तबाही से निपटने को ठोस कदम उठाने की मांग की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग 25 जिले आज भयंकर बाढ़ की त्रासदी का सामना कर रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास खतरे और तबाही के मुकाबले काफी कम दिखाई देरहे हैं. अधिकतर राहत और बचाव का काम साधन रहित चंद कर्मचारियों व अधिकारियों के हवाले है. अतएव जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. यही हाल पड़ौसी राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान का है. भाकपा ने कहाकि केंद्र की और राज्यों की सरकारों ने बाढ़ की बिभीषिका से निपटने को यदि समग्र नीति अपनाई होती तो तबाही काफी कम होती. गंगा में जहाज चलाने से ज्यादा उसकी सिल्ट निकाले जाने के काम को प्राथमिकता दी जानी चाहिये थी. अब जरूरत है कि फौरी कदम तेजी से उठाये जायें और आधुनिक साधनों से लैस बचाव दलों को तबाही क्षेत्रों में भेजा जाये. भाकपा राज्य सचिव मंडल ने प्रभावित इलाकों और उसके इर्द गिर्द की अपनी शाखाओं को निर्देश दिया कि वे पीढ़ित जनता की मदद करें, और शासन प्रशासन के समक्ष जनता की समस्याओं को पेश करें. डा. गिरीश ने बताया कि उन समेत भाकपा का एक राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडल चार दिन की पूर्वी उत्तर प्रदेश की यात्रा पर कल रबाना होरहा है. डा.गिरीश

राजनीतिजन्य है खेती, किसान और गांव का संकट: राजनीति में ही छिपा है उपचार; डा. गिरीश

देश के किसान आज गहरे संकट से गुजर रहे हैं. गत दो वर्षों में देश के साठ फीसदी किसान सूखे की चपेट में थे, तो आज वे भीषण बाढ की तबाही को झेल रहे हैं. आपदा प्रबंधन हो या राहत आबंटन, सरकारी फायलों में अधिक जमीन पर कम दिखाई देते हैं. पिछले 25 सालों से जारी आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने उनकी माली हालत को खोखला बना कर रख दिया है. आत्महत्या और पलायन उनकी नियति बन गये हैं. खेती और किसान की यह नियति ही आज गांव की नियति भी बन गयी है. केन्द्र और राज्यों में सरकारें बदलती रहीं, लेकिन किसान और कृषि उनकी चिंता के केन्द्र में कभी नहीं रहा. अपने चुनाव अभियान में भाजपा और श्री मोदी ने उनकी उपज पर 50 प्रतिशत लाभ बढा कर दिलाने का वायदा किया था. पर लाभ तो दूर उसे खेती में लगायी हुयी लागत भी पलट कर नहीं मिल रही. हालत यह है कि देश के किसानों की औसत आय घट कर 6426 रुपये रह गयी है. जबकि कृषक परिवारों का औसत बकाया कर्ज 47,000 रुपये होगया है. आय की दर घटी है और कर्ज का औसत बढा है. श्री मोदी जी ने जब वाराणसी से लोक सभा का चुनाव लडने का फैसला लिया था तो गंगा यमुना के दोआब वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश के किसानों में एक आशा की किरण जागी थी. उन्हें लगा था कि अब उनके संकट के दिन बीते जमाने की बात होने जा रहे हैं. लेकिन आज उनकी औसत आय घट कर 4923 रुपये रह गयी है. यानी नीचे से चौथे पायदान पर. उत्तर प्रदेश की सरकार भी अखबार और टी. वी. चैनलों पर विज्ञापनों के द्वारा ही किसान हित साधती नजर आरही है. सालों पहले हुयी ओलावृष्टि की याद उसे तब आयी जब चुनाव सिर पर हैं. यदि अनुपूरक बजट में की गयी राहत राशि का आबंटन पहले कर दिया होता तो शायद कई किसान आत्महत्या न किये होते. आज भी जो व्यवस्था की गई है वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है. केंद्र और राज्य सरकारें कितने भी दाबे करें पर यह सच्चाई है कि चीनी मिलों पर किसानों का सैकड़ों करोड़ रुपया बकाया है. पडौस में जब लाभ की नींव पड़ती दिखती है तो पडोसी भी लाभ की उम्मीद लगाता है. पर उम्मीदों के प्रदेश के पडोसी राज्य बिहार के किसानों की औसत आय सबसे नीचे के पायदान पर पहुंच कर 3558 रुपये रह गयी है. वर्तमान में वहां आयी बाढ से उनकी हालत और भी खराब होने जारही है. औसत आय के ग्राफ पर बंगाल नीचे से दूसरे और उत्तराखंड तीसरे पायदान पर है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की इस रिपोर्ट ने सरकारों द्वारा किये जारहे दाबों की कलई खोल कर रख दी है. एक नई कृषि नीति और नई कृषि प्रणाली पर चर्चा शुरू करने की जरूरत आन पडी है. आज खेती का सबसे बढा संकट यह है कि वह हर तरह से पूंजीवाद की जकड में है. आत्मनिर्भर गांव और खेती का हमारा परंपरागत ढांचा पूरी तरह ढह चुका है. आधुनिक खेती के सारे उपादान- खाद, बीज, बिजली, डीजल, उपकरण और कीटनाशक किसानों को भारी कीमत देकर खरीदने होते हैं. लेकिन अपने उद्पादों को वह लागत और लाभ की गणना करके निकाले गये मूल्य पर नहीं बेच सकता. अपने उद्पादों को बेचने के लिये उसे पूंजीवादी संस्थानों की शरण में जाना पढता है, जहाँ कीमतें किसान अथवा किसान संगठन नहीं बाज़ार तय करता है. किसानों के हित में किसान संगठनों ने जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली( MSP) को लागू कराया था पूंजीवादी सरकारों ने उसे भी किसानों की उपज की कीमतों को सीमित करने का माध्यम बना दिया है. यह अक्सर ही होता है कि जब अनाज, सब्जी या फलों की फसल पैदा होती है तो इनकी कीमतें नीचे ला दी जाती हैं और जब किसान अपना उत्पादन बेच चुका होता है तो ये कीमतें बढने लगती हैं. किसान की माली हालत ऐसी नहीं होती कि वो अपने उत्पादों को कीमतें चढने तक रोक सके. उसकी इस हालत का पूरा लाभ वे तत्व उठाते हैं जो उत्पादन प्रक्रिया के अंग नहीं हैं और अपने पैसे के बल पर किसानों की मेहनत को लूट कर मालामाल होरहे हैं. परिवार के विभाजन के साथ साथ कृषि भूमि का विभाजन लगातार होरहा है. अधिकतर किसान आज या तो हाशिये के किसान बन गये हैं या फिर वे लगभग भूमिहीनता की स्थिति में पहुंच गये हैं. इस स्थिति ने एक नये किसान समूह को जन्म दिया है जो इन हाशिये के किसानों की जमीनों को खरीद कर बडा जोतदार बन गया है. सीलिंग कानून के निष्प्रभावी बना दिये जाने के चलते पहले से भी कई बडे जोतदार मौजूद हैं. ये सभी संसाधनों से लैस हैं. बैंक और सरकारों की सुविधाओं का लाभ भी अधिकतर ये लोग ही उठाते हैं. हाशिये के किसानों की जमीन को किराये या बटाई पर लेकर कैश क्रोप पैदा करते हैं. कार्पोरेट कृषि का प्रारंभ यहीं से होता है. उन्नत उपकरणों के चलते इन बड़े किसानों की उपजों का लागत मूल्य कम आता है. वे अपनी पैदावारों को स्टोर करने या कोल्ड स्टोरेज में रखने में सक्षम हैं और उन्हें तभी बेचते हैं जब बाज़ार में कीमतें बढ जाती हैं. इनमें से अधिकतर नेता, अधिकारी, उद्योगपति अथवा दूसरे माफिया समूह हैं. ये शहर अथवा कस्बों में रह कर खेती का संचालन करते हैं. इस तरह की खेती ने ग्रामीण रोजगार की दर को न्यूनतम स्तर पर पहुंचा दिया है. गांवों से रोजगार के लिये पलायन तो बढा ही है, नवोदित उन्नत किसानों के गांव में न रहने से वहाँ की कृषि की कमाई शहरों में व्यय होरही है और गांव कंगाल होरहे हैं. इस स्थिति का प्रमुख कारण यह है कि छोटी जोत वाला किसान न तो ट्रेक्टर खरीद पाता है न ट्यूवबेल लगा सकता है. बैल पालना भी अब भारी महंगा होगया है. जुताई सिंचाई और ओसाई आदि उसे ज्यादा किराया देकर बडे किसानों के उपकरणों से करानी होती है. अतएव उसकी लागत बड़ जाती है. लागत के सापेक्ष वह निरंतर घाटे में जा रहा है और महाजनों और बैंकों के कर्ज के जाल में फंसता जा रहा है. यही कर्ज अनेकों की जान पर भारी पड रहा है. किसानों के जो युवक पढ़ लिख कर अच्छे रोजगार में चले जाते हैं वे पहले अपने हिस्से की जमीनें किराये पर उठा कर धन को शहरों में ले जाते हैं और बाद में जमीन को बेच कर रकम को भी शहरों में ले जाते हैं. गांव की कंगाली और बदहाली में उनका बढा योगदान है. खेती नहीं तो भूमि नहीं का फार्मूला हमारे यहाँ लागू नहीं है. औसत किसान की बदहाली का सीधा असर खेतिहर मजदूरों और ग्रामीण दस्तकारों पर पड़ रहा है. वे आर्थिक मार तो झेल ही रहे हैं, दबंगों के हमलों को भी उन्हें झेलना होता है. गांव में न अच्छे स्कूल हैं न अच्छे अस्पताल. खराब सडकें, बदहाल संपर्क मार्ग, पंगु बनी यातायात व्यवस्था और बिजली की नाममात्र की मौजूदगी किसानों कामगारों के लिये अभिशाप बने हुये हैं. कुटीर और छोटे धंधे टिक नहीं पा रहे हैं. किसानों और अन्य ग्रामीण तबकों की इस स्थिति में बदलाव तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकार की नीतियां हाशिये के किसान को केंद्र में रख कर बनाई जायें. पर जाति धर्म के नाम पर वोट हथिया कर पूंजीवाद की गोद में जा बैठने वाली सरकारों से यह उम्मीद लगाना व्यर्थ है. यह तभी संभव है जब किसान और ग्रामीण मतदाता ऐसी पार्टियों को मौका दें जो किसानों, ग्रामीण मजदूर और दस्तकारों के हित में काम करती हैं और जो जाति, धर्म, भ्रष्टाचार और मौकापरस्ती से कोसों दूर हैं. कम्युनिस्ट पार्टियां और अन्य वामपंथी समूह ही इस योग्यता को पूरा करते हैं, सत्ता के खेल में रनर- बिनर बनी पार्टियां नहीं. ये कम्युनिस्ट पार्टियां ही हैं जिनके पास किसानों और खेती की कायापलट का ठोस कार्यक्रम है. वे सीलिंग लागू करने, जमीनों के वितरण और भूमि सुधार, कृषि उपादानों को कम कीमत पर दिलाने, उत्पादन और भंडारण के लिये ब्याजमुक्त ऋण दिलाने, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव और उसकी त्वरित भरपाई किये जाने, कृषि भूमि का कम से कम अधिग्रहण और उसके बदले भूमि, रोजगार और उचित मुआबजा दिलाने, सचल विपणन केंद्र बनाने, ग्रामों में शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन की सुविधा और रोजगार के अवसर बढाने और सभी को कानूनी सरंक्षण प्रदान करने को प्रतिबध्द हैं. जाति और सांप्रदायिक विद्वेष खेत्ती किसान और गांव की प्रगति में बाधक हैं. कम्युनिस्ट पार्टियां और वामपंथी शक्तियां उसको समूल उखाड फेंकने को प्रतिबध्द हैं. किसानों का संकट राजनीतिजन्य है तो इसका निदान भी राजनीतिक ही होगा. वामपंथी किसान संगठनों को भी नये संकटों और नयी परिस्थितियों का आकलन कर नये तरीकों से किसानों को संगठित करना होगा. ट्रेड यूनियन मार्का नारेबाजी और पूंजीवादी दलों के पिट्ठू किसान संगठनों द्वारा उछाले गये सबका साथ सबका विकास जैसे छलावों से किसानों का कोई हित होने वाला नहीं. भ्रष्टाचार से मुक्त और सरकार द्वारा सरंक्षित सामूहिक खेत्ती भी हाशिये के किसानों को संकट से निकाल सकती है, अतएव इस दिशा में भी काम किया जाना चहिये. डा. गिरीश

Wednesday, August 17, 2016

महंगाई और एफडीआई, दलितों अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ भाकपा ने जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किये

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के आह्वान और राज्य कमेटी के निर्देश पर आज समूचे उत्तर प्रदेश के अधिकतर जनपदों में जहां भाकपा की जिला कमेटियां कार्यरत हैं, धरने और प्रदर्शनों का आयोजन किया गया. कई जिलों में तो भारी वारिश होरही थी फिर भी कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. केंद्र सरकार की नीतियों के चलते जनता पर पड़ रही महंगाई की मार, रक्षा सहित तमाम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) को बढावा देने, युवाओं को रोजगार देने के वायदे से मुकरने, शिक्षा को व्यापार बना कर आम और गरीब लोगों की पहुंच से बाहर कर देने, देश भर में और उत्तर प्रदेश में दलितों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर होरहे नृशंस हमलों, राशन की दुकानों पर वस्तुओं के निर्धारित मूल्यों से अधिक दाम बसूलने, कम माल देने, सभी पात्रों को राशन कार्ड न देने तथा फसल बीमा कंपनियों द्वारा किसानों के साथ की जारही धोखाधड़ी आदि सवालों पर आंदोलन किया गया. सूखा ग्रस्त जिलों में सूखा राहत दिलाने, गन्ना उत्पादक किसानों के मिलों पर बकायों का शीघ्र भुगतान कराने और स्थानीय सवालों को भी ज्ञापनों में शामिल किया गया. सभी जगह सभायें की गयीं तथा महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारियों को सौंपे गये. भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि प्रेस नोट जारी करने तक जिलों जिलों से आंदोलन की खबरें लगातार राज्य केंद्र को प्राप्त होरही हैं. लखनऊ में पार्टी कार्यालय से हज़रत गंज स्थित डा. अंबेडकर प्रतिमा तक जुलूस निकाला गया और वहां आम सभा की गयी. मैनपुरी में भारी वारिश के बावजूद प्रभावशाली प्रदर्शन किया गया. गाज़ियाबाद में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया गया. कानपुर देहात में मूसलाधार वारिश के बावजूद माती स्थित जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया. बरेली में कलक्ट्रेट पर विशाल धरना दिया गया. इसी तरह गाज़ीपुर में अपर जिलाधिकारी कार्यालय पर विशाल धरना हुआ तो इलाहाबाद में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया गया. मुरादाबाद में कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन हुआ तो जालौन जिले के उरई स्थित मुख्यालय पर भारी वारिश के मध्य विशाल और शानदार प्रदर्शन किया गया. हाथरस में जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया गया. मथुरा में जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया. आज़मगढ में कलेक्ट्रेट एरिया में प्रदर्शन किया गया. फैज़ाबाद में गुलाब बाड़ी से विकास भवन तक जुलूस निकाला गया. मऊ में शहर से कलेक्ट्रेट तक प्रदर्शन किया गया तो कानपुर में राम आस्ररे पार्क में धरना और सभा हुयी. बुलंदशहर, आगरा, मेरठ, अमरोहा, शाहजहांपुर, सीतापुर, सहारनपुर, बिजनौर, गोंडा, बलरामपुर, कुशी नगर, देवरिया, गोरखपुर, बलिया, बनारस, भदोही, फतेहपुर, सोनभद्र, कौशांबी, बांदा, चित्रकूट, झांसी, औरय्या, बदायूं, पीलीभीत, हरदोई, आदि जनपदों से कार्यक्रम संपन्न होने की सूचना मिल चुकी है. डा. गिरीश

Tuesday, August 16, 2016

स्वतंत्रता दिवस, मोदी जी मीडिया और मैं

कल लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के भाषण पर मीडिया में खूब सराहना उंडेली गयी है. क्यों न उंडेली जाय. आखिर मीडिया भी तो उनका है जिनके श्री मोदी जी हैं. कार्पोरेट्स और धन कुबेरों के. लेकिन श्री मोदीजी ने यह नहीं बताया कि कश्मीर में शांति बहाली के लिये उनकी सरकार क्या कदम उठाने जा रही है. सरकार कश्मीर में तनाव खत्म करने, लोगों का विश्वास जीतने और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिये क्या कर रही है? न हीं उन्होने कश्मीर में भाजपा की सहभागी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस आरोप का जबाव दिया कि कश्मीर में पूर्व का और आज का राष्ट्रीय नेत्रत्व विफल रहा है. मोदी जी! आपने पाक अधिकृत कश्मीर, बलूचिस्तान और गिलगिट पर जुमले फेंक खूब वाह वाही बटोरी है. पर क्या इसका यह कारण नहीं कि कश्मीर और पाकिस्तान के संबंध में आपकी विफल नीति और कथित गोरक्षकों पर आपकी टिप्पणी से बौखलाये संघियों को आप पुन: प्रशन्न करना चाहते थे. और वे प्रशन्न हो भी गये हैं. मोदी जी, आपसे बेहतर कौन जानता है कि फिल्म शोले गब्बर की वजह से देखी जाती है, तीन सुपर स्टारों और एक सुपर हीरोइन की वजह से नहीं. मोदी जी, जब आप लाल किले की प्राचीर से दहाड़ रहे थे, आपके ही राज्य गुजरात के ऊना में दलितों पर आग्नेयास्त्रों से नृशंस हमले हो रहे थे. आपके मात्र संगठन द्वारा बोयी गयी विष बेल का रस पान कर मदमत्त लोग दलितों और अल्पसंख्यकों पर अमानुषिक हमलों का सिलसिला लगातार चलाये हुये हैं लेकिन आपने अपने संबोधन में उनके लिये एक भी शब्द नहीं बोला. पीड़ितों को अन्याय से छुटकारा कैसे मिलेगा, आप मौन ही रहे. ‘मौनं स्वीकृति लक्षणम’ यह शास्त्रों में विहित है, कोई मार्क्सवादी अवस्थापना नहीं. आपने ठीक कहा मोदी जी कि आपकी सरकार अपेक्षाओं की सरकार है, पर यह नहीं बताया कि गत 27 महीनों में आपने कौनसी अपेक्षाओं को पूरा कर दिया. कोई एक भी की हो तो बताइये जरूर. आपने मुद्रास्फीति 6 फीसदी के भीतर रखने का कीर्तिमान बनाने का दाबा किया है, पर हमें तो दाल रु.- 200 प्रति किलो मिल रही है उसका जिम्मेदार कौन? बेरोजगारों को हर वर्ष दो करोड़ रोजगार और किसानों को पचास फीसदी लाभ देने का क्या हुआ मोदी जी. गन्ना किसानों को सौ फीसद भुगतान दिलाने और हाथरस के ग्राम‌- फतेला में बिजली दौड़ाने के आपके दाबों की सच्चाई तो आपने अपने परमप्रिय मीडिया पर देख ही ली होगी. और भी कुछ लिखना चाहता था. पर आपके स्वच्छता अभियान का शिकार हुआ बैठा हूँ. लखनऊ में थोडी सी वारिश होगयी है, और हमारे 22, केसरबाग स्थित कार्यालय में हर रोज की तरह जल प्लावन होगया है. मेज के पायदान पर पैर रख कर टिप टिप कर रहा हूँ. बिजली भी नहीं है, लेपटाप के स्क्रीन की रोशनी का सहारा मिला हुआ है. बिजली की रोशनी के लिये तो मान लेता हूँ कि अखिलेश बाबू जिम्मेदार हैं. पर यह जलप्लावन तो आपके ही चहेतों की देन है. लखनऊ के मेयर तो सौ प्रतिशत आपके हैं पर आपके स्वच्छता हो या कोई और अभियान. आपके ही लोग पलीता लगा रहे हैं. इससे पहले कि बैटरी भी जबाव देजाय- भवं भवानी, सहितं नमामि, डा. गिरीश, राज्य सचिव भाकपा , उत्तर प्रदेश

ऊना में दलितों पर हमले बंद करो, दोषियों को कड़ी सजा दो: भाकपा

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल गुजरात के ऊना में दलितों और अल्पसंख्यकों की संयुक्त रैली में उमडी भारी भीड़ से बौखलाये सामंती और संघी सोच वाले तत्वों द्वारा दलितों पर किये गये जानलेवा हमलों की कठोर शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने गुजरात और समूचे देश में अपने भयावह उत्पीड़न के खिलाफ और आर्थिक और सामाजिक आज़ादी पाने के लिये संघर्षरत दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों के आंदोलनों के प्रति पूर्ण एकजुटता प्रदर्शित की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि गुजरात और देश के दूसरे भागों में गौहत्या और अन्य बहानों से दलितों और अल्पसंख्यकों पर होरहे निर्मम हमलों के खिलाफ गुजरात के अहमदाबाद से यात्रा निकाली गयी थी जिसका कल स्वतंत्रता दिवस पर ऊना में समापन होना था. इस रैली में भाग लेने को दलितों के भीतर भारी आक्रोशजनित उत्साह था. अल्पसंख्यकों की इसमें शिरकत की खबरों से यह उत्साह और भी बढ गया था. इससे पहले से ही हमलाबर सामंती और संघी तत्व पूरी तरह बौखला गये. रैली में आने से पूर्व दलितों को गांव गांव में न केवल धमकाया गया अपितु कई जगह तो उन्हें गांवों से बाहर निकलने तक नहीं दिया गया. पुलिस और सामंती तत्व मिल कर उन्हें रैली की ओर जाने वाले रास्तों पर रोक रहे थे. पूरा ऊना शहर छावनी बना दिया गया था ताकि दहशत के मारे दलित रैली में शामिल न हों. लेकिन फिर भी रैली में जब भारी भीड़ जुट गयी तो इन्हीं तत्वों ने रैली से लौट रहे दलितों पर गोलियां बरसाईं और उनके वाहनों में आग लगा दी. सैकडों की तादाद में दलित जख्मी हुये हैं और सरकारी तथा गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. आज भी गांवों में दलितों पर हमले होने की खबर है. इतना ही नहीं इस रैली में भाग लेने पहुंचे जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और दलित नेताओं की अहमदाबाद में होने वाली प्रेस कांफ्रेंस को सरकार ने रद्द करा दिया जबकि उसकी पहले से अनुमति थी. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर शर्मनाक हमला है. डा. गिरीश ने कहा कि यह सब उस समय होरहा है जब कल ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने दलितों पर अनाचार को लेकर कठोर टिप्पणियां की हैं और कडी कार्यवाही किये जाने पर बल दिया है. इससे श्री मोदी के गुजरात माडल और संघ के कथित हिंदू राष्ट्र का मुखौटा उतर गया है. सवाल उठता है कि ये कठोर कार्यवाही कब होगी. भाकपा का स्पष्ट मत है कि गुजरात सरकार से पीड़ितों को न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती. अतएव इस समूचे प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत न्यायधीश से कराई जानी चाहिये. डा. गिरीश

Friday, August 12, 2016

आगामी चुनावों में मुद्दों को दरकिनार करने की साजिश को काम्याब नहीं होने दिया जायेगा- भाकपा

लखनऊ-12 अगस, 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने प्रदेश में सत्ता की दौड में शामिल प्रमुख दलों पर आरोप लगाया है कि वे आगामी विधान सभा चुनाव को जनता के सवालों से भटकाने और मतदाता को एक बटन दबाने वाले रोबोट की हैसियत में पहुंचाने की कवायद में जुटे हैं. दल- बदल और पाला बदल कराने की ताजा कोशिशें इसी उद्देश्य से प्रेरित है. भाकपा इस पर कडी नजर बनाये हुये है और पूंजीवादी, सांप्रदायिक और जातिवादी दलों की इस करतूत को जनता के बीच ले जायेगी और प्रदेश के आगामी चुनाव जनता के बुनियादी सवालों पर लडे जायें इसके लिये हर संभव प्रयास करेगी. भाकपा के राज्य सचिव मंडल ने एक बैठक कर प्रदेश के मौजूदा हालातों का संज्ञान लिया. पार्टी के प्रदेश सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में संपन्न इस बैठक में शामिल सचिवमंडल के सदस्यों में इस सवाल पर एकमत था कि गत ढाई दशक से अधिक समय से प्रदेश में सपा, बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों और सांप्रदायिक भाजपा का शासन रहा है, और इस बीच प्रदेश का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है. प्रदेश की जनता गहरे सामाजिक आर्थिक संकटों से गुजर रही है और इन दलों से उसका मोहभंग हुआ है. यही वजह है कि किसी दल को आगामी विधान सभा चुनावों में जीत का भरोसा नहीं है. अतएव इन दलों में कई किस्म के अंतर्विरोध पैदा होगये हैं और उनमें भगदड मची है. पिछले कुछ दिनो में उत्तर प्रदेश में कई विधायकों, पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों ने जिस तरह से पाला बदल किया है इसका जनहित, राजनैतिक विचारधारा और सिध्दांतों से कोई लेना देना नहीं है अपितु यह अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ठा है और हर कोई सुरक्षित घर की तलाश में है. विधान सभा चुनावों से छह माह पहले ही चल पडे इस घृणित खेल ने दल बदल कानून को भी प्रभावहीन बना डाला है. इस आवाजाही के आने वाले दिनों में और गति पकडने की प्रबल संभावनायें हैं. जनता खुली आंखों से देख रही है कि इस खेल में अपने को ‘औरों से अलग’ पार्टी बताने वाली भाजपा सबसे आगे है. केंद्र की उसकी सरकार की नीतियों और कारगुजारियों का पूरी तरह भंडाफोड होजाने और उसके नेताओं में भी मची भगदड के चलते उसने सारी मर्यादायें ताक पर रख दी हैं और केंद्र की सता का लाभ उठा कर उसने दल बदल को ही मुख्य औजार बना लिया है. अरुणांचल और उत्तराखंड में न्यायालय के हस्तक्षेप के चलते अपने मंसूबों को पूरा करने में विफल रही भाजपा अब उत्तर प्रदेश मे सत्ता हथियाने को बडे पैमाने पर दल बदल का खेल खेल रही है. खराब कानून व्यवस्था और सत्ता विरोधी रुझान से हतप्रभ सपा भरपाई करने को किसी को भी पार्टी में लाने को उतारु है. उसने कई ऐसे लोगों को शामिल किया है जो सीधे आर.एस.एस. से जुडे हैं और जिन पर दंगा फसाद कराने के संगीन आरोप लगे हैं. बहुजन समाज के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव के सपनों से खिलवाड करते हुये सत्ता के लिये पूरी तरह सामंतवाद और पूंजीवाद के सामने घुटने टेक देने की बसपा की नीति अब पूरी तरह उजागर हो चुकी है और वह सर्वाधिक भगदड का शिकार बनी हुयी है. इससे उबरने को बसपा भी दल बदल के काम में जुटी है. इस सबके जरिये प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य से जनता के मुद्दों को पूरी तरह से पृष्ठभूमि में धकेला जारहा है. भाकपा ने जनता के मुद्दों पर जन लामबंदी पर गहनता से विचार किया और तात्कालिक और दूरगामी कदमों पर चर्चा की. डा. गिरीश ने बताया है कि आगामी 17 अगस्त को महंगाई, एफडीआई, बेरोजगारी, महंगी और दोहरी शिक्षा प्रणाली, सूखा और बाढ की तबाही, दलितॉ, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर होरहे हमलों जैसे प्रमुख सवालों पर जिला केंद्रों पर प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे. सांप्रदायिकता के खिलाफ तथा उपर्युक्त सवालों पर प्रदेश के छह वामपंथी दलों के साथ मिल कर कई क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किये जायेंगे. वाराणसी में 28 अगस्त, मुरादाबाद में 4 सितंबर तथा मथुरा में 10 सितंबर को संयुक्त सम्मेलन होंगे. प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनावों को जनता के ज्वलंत सवालों के इर्द-गिर्द रखने की हर संभव कोशिश की जायेगी, भाकपा राज्य सचिव मंडल ने संकल्प व्यक्त किया है. डा. गिरीश

Friday, July 29, 2016

दलित उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन करेगी भा क पा

लखनऊ 29 जुलाई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश में दलितों के उत्पीड़न की वारदातों पर गहरा रोष जताया है। भाकपा ने इन घटनाओं की निंदा करते हुये राज्य सरकार से कठोर कदम उठाने की मांग की है। कल जनपद मैनपुरी में एक दलित दंपति की मात्र रु. 15 उधारी न चुका पाने के कारण कुल्हाड़ी से काट कर की गई हत्या, जनपद फतेहपुर में बेगार करने से मना करने पर दबंगों द्वारा खंभे से बांध कर की गई पिटाई जैसी प्रदेश भर से आ रही दलित उत्पीड़न की खबरों पर गंभीर चिन्ता जताते हुए भाकपा के राज्य सचिव मंडल ने राज्य सरकार से दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग करते हुए मृतक आश्रितों को 10 लाख का मुआवजा देने और इस तरह की घटनाओं पर पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी तय करके उन्हें दंडित करने की भी मांग की है। भाकपा राज्य सचिव मंडल ने नोटिस लिया है कि प्रदेश में दलितों ही नहीं अल्पसंख्यकों, महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों पर अत्याचारों की वारदातें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। इन सवालों पर विचार कर आंदोलन की रणनीति बनाने को भाकपा की राज्य कार्यकारिणी और काउंसिल की बैठकें दिनांक 30 एवं 31 जुलाई को राज्य कार्यालय पर बुलाई गयीं हैं।

Tuesday, July 26, 2016

गौरक्षा के नाम पर पशु व्यापारियों का उत्पीडन करने वालों पर राज्य सरकार कडी कार्यवाही करे: भाकपा ने उठायी आवाज

लखनऊ- 26 जुलाई 20016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने उत्तर प्रदेश में गौरक्षा के नाम पर होरहे पशु व्यापारियों के भारी उत्पीडन और उनके आर्थिक शोषण की कडे से कडे शब्दों में निंदा की है. पार्टी ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह पशु व्यापारियों की सुरक्षा करे और गौरक्षा के नाम पर लूट मचाने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ कडी से कडी कार्यवाही करे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि समूचे उत्तर प्रदेश में ऐसे अनेक गिरोह काम कर रहे हैं जो स्थानीय पुलिस के साथ साठ- गांठ करके पशु व्यापारियों के पशु लदे वाहनों को जबरिया रोक लेते हैं और उन्हें मार पीट कर, डरा धमका कर, और पुलिस कार्यवाही का भय दिखा कर उनसे धन की उगाही करते हैं. व्यापारियों के द्वारा मना करने पर उनके पशु धन को छीनने से लेकर उन्हें मार-पीट कर जख्मी कर देने की वारदातें आये दिन की बात होगयी है. प्रदेश में यह सारा गोरखधंधा गोरक्षा के नाम पर चल रहा है. वाहनों मे कोई भी पशु ले जाया जारहा हो, भगवा ध्वजधारी और भगवा ब्रिगेड द्वारा संरक्षित ये गिरोह उन्हें वध के लिये लेजायी जारही गाय के नाम पर रोक लेते हैं और फिर उनसे मनमानी वसूली करते हैं. चूंकि ये व्यापारी अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय के होते हैं अत: इन कथित गौरक्षकों को स्थानीय जनता का समर्थन भी मिल जाता है. और व्यापारी क्योंकि परदेशी होते हैं, कम तादाद में होते हैं, अतएव स्थानीय गुंडों और पुलिस के दबाव में आजाते हैं. मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में डा. गिरीश ने बताया है कि कल ही जनपद मथुरा के कोसीकलां की पेंठ (स्थानीय पशु बाज़ार) से भेंस के पड्डे लेकर अलीगढ जारहे व्यापारियों को इन माफियाओं ने रोक लिया और पैसे न देने पर उनमें से कई को बुरी तरह जख्मी कर दिया. पुलिस तब पहुंची जब गुंडे अपना काम निपटा के चले गये. ऐसी घटनायें प्रदेश में हर रोज हर क्षेत्र में घटित होरही हैं लेकिन अपने गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी में प्रताडित और भयभीत व्यापारी कोई कार्यवाही भी नहीं कर पाते. डा. गिरीश ने प्रश्न किये हैं कि अल्पसंख्यक व्यापारियों द्वारा ले जाया जारहा क्या हर पशु गाय है? उत्तर प्रदेश में गोवध पर पाबंदी है या गायों के लाने लेजाने पर? यदि गाय भी ले जायी जारही है तो कथित गोरक्षकों को उन्हें रोकने अथवा वसूली करने का कानूनी अधिकार किसने दिया है? अथवा पैसे वसूलने के बाद वही पशु लेजाने वाला वैध कैसे होजाता है? ये सवाल हैं जिसका जबाव सरकार को देना है. मुख्यमंत्री को लिखे गये पत्र में भाकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा है कि यूं तो उत्तर प्रदेश में यह गोरखधंधा दशकों से चल रहा है लेकिन गुजरात में हुयी दलितों की पिटाई से पैदा हुये हालात के बाद यह बेहद जरूरी होगया है कि इस नाजायज कारगुजारी पर प्रदेश में फौरन रोक लगे. वरना यहां भी यह कृत्य कोई भी बडी वारदात का कारण बन सकता है. अतएव भाकपा आपसे मांग करती है कि इसकी जांच और शीघ्र समुचित कार्यवाही के लिये ग्रह मंत्रालय के अधीन एक विशेष जांच दल गठित करें और पशु व्यापारियों को न्याय दिलायें. यदि इससे भी कोई बडी कार्यवाही संभव हो तो भाकपा उसका स्वागत करेगी. डा. गिरीश

Thursday, July 21, 2016

दलित उत्पीडन और भाजपा की दबंगई के खिलाफ उत्तर प्रदेश में भाकपा का अभियान शुरु

लखनऊ/ हाथरस- 21 जुलाई 2016— गुजरात और देश के अन्य भागों में दलितों के प्रति बढ रही हिंसा, शाब्दिक हिंसा और भाजपा के एक प्रादेशिक नेता द्वारा सुश्री मायावती के बारे में की गयी बेहद घिनौनी टिप्पणी के विरुध्द उत्तर प्रदेश में आज भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कई जनपदों में विरोध प्रदर्शन किये. हाथरस में भी आज भाकपा के कार्यकर्ताओं ने जलेसर बस अड्डे से जुलूस निकाला और चामड गेट चौराहे पर पहुंच कर प्रधान मंत्री श्री मोदी, गुजरात की मुख्यमंत्री और भाजपा नेताओं के पुतले फूंके. प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे- भाजपाइयो शर्म करो, दलितों का दमन बंद करो; दलितों महिलाओं का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान; दलितों की हिंसा और शाब्दिक हिंसा के दोषियों को जेल भेजो, भाजपा के वाचाल नेताओं को लगाम दो; दयाशंकर सिंह को गिरफ्तार करो तथा भाजपा मोदी होश में आओ दलित शक्ति से ना टकराओ आदि. चामड गेट चौराहे पर उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि केंद्र और कई राज्यों की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपाइयों और संघियों का गुरूर सातवें आसमान पर है और गुजरात सहित समूचे देश में वे दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, आदिवासियों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के विरुध्द हिंसा और घृणा का अभियान चलाये हुये हैं. भाजपा नेत्रत्व और प्रधानमंत्री से उन्हें शह मिली हुयी है. कल भाजपा के प्रांतीय उपाध्यक्ष द्वारा सुश्री मायावती के खिलाफ की गयी अभद्र टिप्पणी दलितों, महिलाओं और समाज के वंचित वर्गों के प्रति भाजपा/ आरएसएस की दूषित मानसिकता और कुत्सित नीति का प्रतीक है. वह वही सब कुछ कर रहे हैं जो कुछ उन्हें संघ की शाखाओं में सिखाया पढाया गया है. ऐसा कर वे दमन और लूट की पर्याय सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं. भाकपा इस सब की कठोर शब्दों में भर्त्सना करती है. वह घृणित बयान देने वाले नेता की अविलंब गिरफ्तारी और देश भर में दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और अन्य कमजोर तबकों के खिलाफ चल रही हिंसा की कार्यवाहियों को रोके जाने की मांग करती है. डा. गिरीश ने बताया कि भाकपा के ये विरोध प्रदर्शन लगातार जारी रहेंगे. जिन जिलों में आज प्रदर्शन नहीं होसके वे कल अथवा आगे प्रदर्शनों का आयोजन करेंगे. उन्होने सहयोगी संगठनों से भी इस अभियान को सहयोग की अपील की. भाकपा की राज्य कमेटी के आह्वान पर किये गये इस विरोध प्रदर्शन में जिला सचिव चरन सिंह बघेल, राज्य परिषद सदस्य बाबूसिंह थंबार, सह सचिव सत्यपाल रावल व आर.डी.आर्य के अलावा जगदीश आर्य,द्रुगपाल सिंह,संजय खान,पपेंद्र कुमार,गौरीशंकर बघेल,महेंद्रसिंह,ओमप्रकाश सविता, चोबसिंह,किशनस्वरुप सविता,विजयकुमार कुशवाहा,विपिन कुमार तथा ईश्वरी पहलवान आदि प्रमुख रुप से मौजूद थे. डा. गिरीश

Wednesday, July 20, 2016

मायावती के खिलाफ घृणित टिप्पणी करने वाले भाजपा नेता को जेल भेजो: दलितों पर हिंसा और शाब्दिक हिंसा बंद करो--- भाकपा, उत्तर प्रदेश

लखनऊ/अलीगढ- 20 जुलाई, 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह द्वारा बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती के विषय में की गयी घृणित टिप्पणी की कडे से कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह इन महानुभाव के खिलाफ माकूल दफाओं में मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाये. भाकपा के राज्य सचिव मंडल की ओर से जारी बयान में राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अपनी स्थापना के समय से ही संघ परिवार अपने कार्यकर्ताओं में ‘बौध्दिक’ के नाम पर दलितों, अल्पसंख्यकों, पिछडों, आदिवासियों एवं महिलाओं आदि समाज के सभी कमजोर तबकों के विरुध्द नफरत का जहर घोलता रहा है. आज केंद्र की सत्ता पर एकाधिकार होजाने के बाद उनके मन मस्तिष्क में भरा यह जहर अंगडाई ले रहा है और देश भर में तमाम संघी इन तबकों के विरुध्द हिंसा और शाब्दिक हिंसा का अभियान चलाये हुये हैं. मोदी के गुजरात में पशुओं की खाल उतारने वाले दलितों पर कातिलाना हमला बोला गया. बंबई में डा. भीमराव अंबेडकर प्रतिष्ठान की इमारत को ढहा दिया गय, संघ द्वारा निर्मित घृणा के वातावरण के चलते देश भर में दलितों अल्पसंख्यकों और अन्य कमजोर तबकों के खिलाफ हिंसा और शाब्दिक हिंसा की कारगुजारियां बढी हैं. राज्य की मशीनरी हर जगह उत्पीडकों की हिमायत में खडी हैं. ताजा मामला सुश्री मायावती के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के प्रयोग का है जो संघ परिवार की घृणित सोच और उसकी नस्लवादी थीसिस का पर्दाफाश कर देता है. भाकपा और वामपंथ इन सभी कार्यवाहियों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. अंबेडकर भवन तोडे जाने के विरुध्द कल बंबई में हुयी विशाल रैली में भाकपा और वामपंथ ने ना केवल भारी भीड जुटाई थी बल्कि रैली को कन्हैया कुमार और का. सीताराम येचुरी ने भी संबोधित किया. संसद में भी कल यह मामला सबसे पहले वामपंथी सदस्यों ने ही उठाया था. हम गुजरात के दलितों के आंदोलन के साथ हैं और कश्मीर के पीडितों की पीडा को साझा करते हैं. एटा के शराब कांड से लेकर उत्पीडन की हर घटना में हम कमजोर तबकों के साथ खडे हैं. डा. गिरीश ने भाकपा की सभी जिला इकाइयों का आह्वान किया कि वे भाजपा नेता के खिलाफ कडी कार्यवाही की मांग को लेकर और दलित कमजोरों और अल्पसंख्यकों पर होरहे हमलों के खिलाफ स्वयं आवाज उठायें या इस तरह की आवाज उठाने वालों का साथ दें. उन्होने यह भी बताया कि 24 जुलाई को फैज़ाबाद में होने जारहे वामदलों के क्षेत्रीय सन्युक्त सम्मेलन में भी मामले पर गौर किया जायेगा और 30 व 31 जुलाई को लखनऊ में होने जारही भाकपा की राज्य काउंसिल की बैठक में भी इस मामले पर गंभीरता से विचार किया जायेगा. डा.गिरीश

Tuesday, July 19, 2016

अलीगंज (एटा) में जहरीली शराब से हुयी मौतोंं की राज्य सरकार जिम्मेदारी ले, सीबीआई से जांच कराई जाये: भाकपा

लखनऊ- 19 जुलाई 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने एटा जनपद के अलीगंज में जहरीली शराब काण्ड में मृतकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है तथा अस्वस्थ बने हुये लोगों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की है. सचिव मंडल ने घटना में मृतकों के आश्रितों को रु. 10.00 लाख मुआबजा तथा इलाज करा रहे बीमारों को कम से कम रु. 2.00 लाख की आर्थिक सहायता दिये जाने की मांग की है. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अलीगंज में 15 जुलाई को हुयी इस घटना जिसमें कि अब तक अलीगंज और फरुखाबाद जनपद के कायमगंज के 40 लोगों की मौत होचुकी है और एक सौ से भी अधिक लोग गंभीर हालत के चलते सैफई, आगरा और अलीगढ में इलाज करा रहे हैं, राज्य सरकार, प्रशासन और राजनेताओं के सरंक्षण में इस क्षेत्र में दशकों से निर्वाध रुप से चल रहे अवैध शराब के धंधे का परिणाम है. मथुरा के जवाहरबाग कांड से भी अधिक जिन्दगियां निगलने वाला यह कांड उत्तर प्रदेश की सरकार के माथे पर कलंक है और उसे इसकी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिये. भाकपा राज्य सचिव ने बताया कि अवैध शराब का यह धंधा एटा, मैनपुरी, फरुखाबाद, हाथरस, कासगंज और फिरोजाबाद जनपद के विभिन्न हिस्सों में दशकों से चल रहा है. सरकार भले ही भाजपा की रही हो, बसपा की अथवा सपा की शराब माफिया का जादू हरेक के सिर पर चढ कर बोलता रहा है. आज जबकि प्रदेश में सपा की सरकार है गरीबों के घर उजाडने वाला यह धंधा उसके स्थानीय नेताओं के सरंक्षण में फलफूल रहा है. डा. गिरीश ने कहा कि यह क्षेत्र उद्योगविहीन क्षेत्र है और नकली शराब और अवैध हथियारों का निर्माण तथा अपहरण और फिरौती उद्योग यहाँ माफिया, राजनेताओं और पुलिस प्रशासन की अवैध आय के स्रोत बने हुये हैं. किसी भी दल की सरकार ने यहाँ विकास और औद्योगीकरण पर ध्यान नहीं दिया. उन्होने कहा कि जिस तरह प्रशासन ने इन दो दिनों में कार्यवाही कर बडे पैमाने पर अवैध शराब और उसे बनाने में प्रयुक्त होने वाला लेहन पकडा है, यदि ऐसी ही कठोर कार्यवाही पहले की जाती तो इन दर्जनों लोगों की जानें न जाती और सैकडों बच्चे और परिवार अनाथ न होते. लेकिन पहले या तो कार्यवाही हुयी नहीं और यदि हुयी भी तो अवैध शराब माफिया को नेताओं ने छुडवा दिया और अलीगंज, आजमगढ, लखनऊ और उन्नाव जैसी बडी घटनायें होने पर आबकारी विभाग और पुलिस के कुछ ओहदेदारों को कुछ समय के लिये सस्पेंड करा दिया. एटा क्यूंकि प्रदेश के वर्तमान में सत्ताधारी परिवार का निजी क्षेत्र है अतएव इस दौरान वहाँ के चार चार जिलाधिकारियों और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को बदला गया. भाकपा की स्पष्ट राय है कि यह मामला सामान्य कानून व्यवस्था का मामला नहीं, राज्य सरकार और उसकी मशीनरी का गरीबों की जान की कीमत पर अपनी तिजौरियां भरने का मामला है. यदि इस कांड और उत्तर प्रदेश में चल रहे अवैध शराब के कारोबार की दो दशकों की जांच होगयी तो शासक दल और विपक्षी दलों से जुडे तमाम राजनेता और अधिकारी जेल के सींखचों के पीछे होंगे. अतएव गरीबों के हित में भाकपा इस प्रकरण और उत्तर प्रदेश में चल रहे अवैध शराब के कारोबार की सीबीआई से जांच कराये जाने की मांग करती है. डा. गिरीश

Wednesday, June 29, 2016

मेडम बिन्ह की आत्मकथा से

वियतनाम की क्रांति की योध्दा न्गुऐन थि बिन्ह जो मेडम बिन्ह नाम से प्रसिध्द हैं ने अपनी बहुत ही दिलचस्प आत्मकथा लिखी है. इस आत्मकथा में उन्होंने वियतनाम की क्रांति के दौरान भारत सरकार और भारतीय जनता द्वारा दिये गये सहयोग की कई जगह चर्चा की है. वह स्वाभाविक ही है क्योंकि उस समय हमारा देश साम्राज्यवाद विरोध और गुटनिरपेक्षता की नीति पर दृढता से काम करता था और भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वियतनाम पर अमेरिकी हमलों की खुल कर निंदा की थी. भारत की जनता जिनमें कम्युनिस्ट पार्टियां अग्रणी थीं, ने अपनी आजादी, देश के एकीकरण और शांति की स्थापना के लिये सघर्षरत वियतनाम की जनता के प्रति गहरी एकजुटता का इजहार किया था. मेडम बिन्ह ने अपनी इस आत्मकथा में इस योगदान को कृतज्ञता के साथ रेखांकित किया है. पर एक स्थान पर भारत के संबंध में अपने अनुभव साझा करते हुये उन्होंने जो कुछ लिखा है वह बहुत ही रोचक और प्रासंगिक है. मुझे लगा कि इसे आप सबके साथ शेयर करना चाहिये. अत: मेडम बिन्ह द्वारा लिखित उनकी आत्मकथा- 'परिवार, दोस्त और देश' के पृष्ठ- 186 के पहले और दूसरे पैरों का अविकल पाठ प्रस्तुत है- "समाजवादी चीन के अलावा मुझे एशिया के अनेक देशों की यात्रा का मौका मिला. भारत ने मेरे ऊपर गहरी छाप छोडी. हो ची मिन्ह की भारत में जबरदस्त प्रतिष्ठा और सम्मान है, विशेषकर कोलकता और बंगाल में जहां कम्युनिस्ट पार्टी प्रभावशाली थी. भारत के लोगों को वियतनाम के संघर्ष के प्रति विशेष सहानुभूति थी. परंतु भारत में मुझे अमीर और गरीब के बीच में बहुत अधिक अंतर देखने को मिला. एकतरफ जहां राज्यपाल एक खूबसूरत महल में रहता है जिसके चारों तरफ पार्क हैं या ऐसा वन है जिसमें हिरन विचरण करते रहते हैं; तो दूसरी तरफ नजदीक ही ऐसे लोग हैं जो बेहद गरीब थे. मैं हैरान थी: ऐसी स्थिति क्यों है? क्या यह जातीय व्यवस्था की लंबी चली आरही विरासत के कारण है? क्या यह धर्म के कारण है? राजनीतिक रुझानों के कारण है? लगभग दो सदी के ब्रिटिश आधिपत्य का नकारात्मक परिणाम है? भारत के पास एक अतीत और शानदार संस्कृति है. आज उनके पास विशेषज्ञों की सबसे बडी संख्या है. यह असामान्य है, परंतु भारत में दो कम्युनिस्ट पार्टियां हैं. मुझे यह लगता है कि भारत के लोग यदि अपनी जनता को और अधिक मजबूती से एकताबध्द कर लें और अपने नागरिकों की क्षमताओं एवं अपने प्राकृतिक संसाधनों का पूरा फायदा उठायें, तो वह एक प्रमुख राजनीतिक एवं आर्थिक ताकत बन जायेंगे." दिसंबर 2015 में प्रकाशित इस आत्मकथा का उपर्युक्त अंश अपने आप ही बहुत कुछ कह जाता है और किसी टिप्पणी अथवा व्याख्या का मुहंताज नहीं है. लेकिन में अपनी ओर से केवल इतना जोडना चाहता हूँ कि भारत में आज दो नहीं कई कम्युनिस्ट पार्टियां हैं जो अपने जन्म के वक्त मातृ पार्टी को संशोधनवादी बता कर अलग पार्टी गठित कर लेती हैं लेकिन कुछ दशकों बाद या तो वाम संकीर्णता का शिकार होकर दम तोड देती हैं अथवा उसी रास्ते पर चल पडती हैं जिसकी आलोचना कर वे मातृ पार्टी से अलग हुयी थीं.( गिरीश)

Wednesday, June 15, 2016

कैराना- कांधला प्रकरण पर भाकपा ने भाजपा को कठघरे में खडा किया

लखनऊ- 15 जून 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मंडल ने आरोप लगाया है कि भाजपा एवं संघ परिवार उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों से पहले मुजफ्फर नगर दंगों की तर्ज पर जनता को सांप्रादायिक तौर पर विभाजित करना चाहती है ताकि जनता को एक बार फिर से छला जा सके और लोकसभा की तरह विधानसभा पर भी कब्जा जमाया जा सके. कैराना और कांधला से हिंदुओं के पलायन का कथित शिगूफा इसी उद्देश्य से छेडा गया है. कैराना में कथित जांच दल भेजे जाने की भाजपा की कवायद को भाकपा ने लोगों की आंख में धूल झोंकने वाला और प्रकरण में बेनकाव हुये अपने सांसद को बचाने की चेष्टा बताया. यह ठीक ऐसे ही है जैसे अपने गिरोह के एक गुंडे के कुकर्मों पर पर्दा डालने को एक गुंडा गिरोह जांच करने जाये. भाकपा ने मीडिया और कैराना की जनता को बधाई दी कि उसने भाजपा और संघ परिवार की इस साजिश को परवान चढने से पहले ही उसका पर्दाफाश कर दिया है. लेकिन भाजपा चुप बैठने वाली नहीं है और 2017 के विधान सभा चुनावों तक वह इसी तरह के तमाम हथकंडे जारी रखेगी, भाकपा ने खुला आरोप लगाया है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि मोदी सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में हर मोर्चे पर पूरी तरह विफल साबित हुयी है. हर तरह की उत्पादन दर घटी है, डालर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती ही जारही है, अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम कीमतें होने के बावजूद महंगाई कुलांचें भर रही है, देश का बडा भाग सूखे की चपेट में है और केंद्र सरकार राहतकारी कदम उठा नहीं पारही है, दो करोड रोजगार देने का वायदा छलावा साबित हुआ है और रोजगार सृजन में कमी आयी है, काला धन वापस आना तो दूर माल्या जैसे भाजपा के दोस्त पूंजीपति माल हडप कर विदेशों में गुलछर्रे उडा रहे हैं तथा उनमें से अनेक बैंकों का कर्जा हडप किये जारहे हैं. इतना ही नहीं दो साल पूरे होते होते भाजपा के कई घपले घोटाले उजागर हो चुके हैं और महाराष्ट्र में तो उसे अपने एक महत्त्वपूर्ण मंत्री को हठाना भी पडा है. विकास का मोदी का वायदा भी पूरी तरह विफल रहा है. इसके अलाबा उत्तर प्रदेश में भाजपा अनेक जातीय और निहित स्वार्थी खांचों में बंटी है और तमाम कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री पद हेतु एक सर्वसम्मत चेहरा पेश नहीं कर पारही है. ऐसे में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से जनता को संदेश देने को भाजपा की झोली में कुछ था ही नहीं अतएव अपनी पूर्व निर्धारित योजना के तहत उसने अपने सांसद के माध्यम से कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उछलवाया और उसे कश्मीर के पलायन की तरह बताया. जहाँ तक पलायन की बात है, बुंदेलखंड से लगभग 70 फीसदी लोग सूखे की चपेट में आने से पलायन कर चुके हैं. केंद्र और उत्तर प्रदेश में रही सरकारों की गलत नीतियों के चलते हर गांव से तमाम लोग रोजगार के लिये अपनी जन्म और कर्मभूमियों को छोड रहे हैं और गांव गांव घरों पर ताले लटके हुये हैं. जब जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आयी तमाम अल्पसन्ख्यकों को सुरक्षित स्थानों को पलायन करना पडा. हुकुम सिंह, बाल्यान और संगीत सोम जैसे नेताओं के प्रभाव क्षेत्रों से तमाम दलितों को बलपूर्वक खदेड कर उनकी संपत्तियों को हडप लिया गया. भाजपा में हिम्मत है तो इन पलायनों पर भी श्वेतपत्र जारी करे. भाकपा राज्य सरकार से मांग करती है कि वह सांप्रदायिकता भडकाने, अफवाह फैलाने और जान बूझ कर तथ्यों को तोड मरोड कर पेश करने जैसी माकूल दफाओं में हुकुम सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेजे और उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शांति- सौहार्द की रक्षा करे. इस मोर्चे पर कोई भी ढिलाई अखिलेश सरकार को कठघरे में खडी करेगी, भाकपा ने चेतावनी दी है. डा. गिरीश

Tuesday, June 14, 2016

भाकपा ने मुद्राराक्षस को श्रध्दांदांजलि अर्पित की

लखनऊ- 14 जून 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने प्रसिध्द लेखक, आलोचक और समाजसेवी श्री मुद्राराक्षस को विनम्र श्रध्दांजलि अर्पित की है और उनके शोक संतप्त परिवार और अभिन्न मित्रों के प्रति सहानुभूति जताते हुये दुख की इस घडी में उनके साथ खडे रहने का मंतव्य जताया है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा कि मुद्राराक्षस समाज के यथास्थितिवाद, संप्रदायवाद और शोषण की हर पृवृत्ति के विरुध्द न केवल लेखनी के माध्यम से अपितु अनेक आन्दोलनों में भागीदारी के जरिये आजीवन संघर्ष करते रहे. उन्हें जो कुछ गलत लगा उसके खिलाफ कलम उठाने में उन्होने कोई परहेज नहीं किया. उनका संपूर्ण संघर्ष मानवता, बंधुता, समानता और न्याय के पक्ष में खडा है. वे भाकपा के संघर्षों में भी भागीदार बने और जहाँ भी उन्हें लगा कि कम्युनिस्ट आंदोलन की आलोचना होनी चाहिये उन्होने खुल कर आलोचना की. हम अपने एक मित्र, सहयोगी और आलोचक के रूप में उन्हें सम्मान देते रहे और हमारा यही भाव हमेशा उनके प्रति बना रहेगा, भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है. आज जब देश की आम और मेहनतकश जनता एक कट्टरपंथी, षडयंत्रकारी और कारपोरेट्स की लूट को बढावा देने वाली सरकार के हमलों को झेल रही है, मुद्राराक्षस जैसी शख्सियत का विदा होजाना देश समाज और आमजनों के हितों के लिये बडी क्षति है. अपेक्षा है कि अवश्य ही नये और युवा साथी आगे आयेंगे और मुद्राराक्षस द्वारा खडे किये गये संघर्ष के प्रतिमानों को आगे बढायेंगे. यही उनके प्रति व्यवहारिक श्रध्दांजलि होगी. डा. गिरीश,

Friday, June 3, 2016

मथुरा प्रकरण बेहद दुर्भाग्यपूर्ण : न्यायिक जांच हो : भाकपा

लखनऊ- 3 जून - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कल मथुरा में जयगुरुदेव समर्थकों और पुलिस के बीच हुयी मुठभेड़ जिसमें कि दो पुलिस अफसरों को जान गंवानी पड़ी, गहरी चिंता व्यक्त की है. पार्टी ने दोनों शहीद अफसरों के प्रति अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की है. पार्टी ने उनके परिवारों के प्रति संपूर्ण संवेदना का इजहार करते हुए उनकी हर संभव मदद किये जाने की मांग राज्य सरकार से की है. भाकपा की राय है कि मृतक सत्याग्राहियों में कई ऐसे भोले भाले लोग रहे होंगे जिन्हें अपने नेताओं के कुत्सित इरादों का दूर दूर तक पता नहीं रहा होगा. ऐसे लोगों के परिवार भी सहानुभूति के पात्र हैं. पार्टी चाहती है कि इस संगीन मामले की जांच ऐसी संस्था से कराई जाये जो राज्य सरकार के प्रभाव में न हो. मथुरा काण्ड पर जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहाकि यह सारा प्रकरण सत्ता, धर्म के नाम पर चल रहे पाखण्ड, पाखण्ड के जरिये धनार्जन और इस सबके जरिये वोट की राजनीति के नापाक घालमेल का परिणाम है. बाबा जयगुरुदेव की मृत्यु के बाद प्रदेश के सत्ताधारी परिवार द्वारा इस मामले को जिस तरह डील किया गया उसका यही परिणाम हो सकता था. गुरुदेव की विरासत के लिये जूझ रहे एक ग्रुप को सत्तारूढ़ करा दिया गया तो असंतुष्ट ग्रुप की अराजक कारगुजारियों को नजरंदाज किया गया. यहाँ तक कि प्रशासन को भी निर्देश थे कि बिना कठोर कार्यवाही के जवाहर बाग़ को कब्जामुक्त कराया जाए. अब जब मुख्यमंत्री चारों तरफ से घिरे नजर आरहे हैं, सारी जिम्मेदारी प्रशासन और पुलिस पर डाल रहे हैं. मथुरा में बड़े पैमाने पर गोला बारूद जमा होते रहे और केंद्र व राज्य की खुफिया एजेंसियां सोती रहीं. यह संपूर्ण प्रशासनिक विफलता का मामला है जिस पर गंभीरता से विचार किये जाने की जरुरत है, राजनैतिक रोटियाँ सेंकने की नहीं अतएव भाकपा मांग करती है कि समूचे प्रकरण की जांच उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायधीश से कराई जाये. डा. गिरीश

Wednesday, June 1, 2016

अखलाक हत्या कांड को लेकर सांप्रदायिकता भडकाने पर आमादा संघ परिवार: भाकपा ने राज्य सरकार को चेताया

लखनऊ- 1जून 2016: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने दादरी के अखलाक हत्याकांड के संबंध में फोरेंसिक लैब की एक कथित रिपोर्ट को लेकर भाजपा और संघ परिवार द्वारा फिर से घृणित सांप्रदायिक राजनीति शुरू करने की कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने राज्य सरकार से भी मांग की है कि वह इस जांच के संबंध में भ्रम की स्थिति समाप्त करे और संघ परिवार द्वारा फिर से सांप्रदायिकता फैलाने और न्याय की प्रक्रिया को उलटने की साजिश को विफल करे. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अखलाक के घर/ फ्रिज में मिले मीट के बारे में पहले ही एक रिपोर्ट आचुकी है जिसमें उसे गोमांस नहीं, बकरे का मांस बताया गया है. अब यह कथित नई रिपोर्ट को लेकर भाजपा और संघ परिवार ने नया वितंडा खडा कर दिया है. ये वो लोग हैं जो दंगे कराने को मंदिरों में गोमांस और मस्जिदों में सूअर का गोश्त फैंकने की घृणित कार्यवाहियों को अंजाम देते रहे हैं. आज जब वे केंद्रीय सत्ता में हैं तो कुछ भी करने, कोई भी षडयंत्र रचने की स्थिति में हैं. और आये दिन यही किया भी जारहा है. डा. गिरीश ने कहा कि नोएडा की एसएसपी किरन एस ने बीबीसी को दिये इंटर्व्यू में कहा है कि मथुरा की फोरेंसिक लैब ने जिस मीट की रिपोर्ट दी है वह अखलाक के घर से नहीं, घर से दूर ट्रांसफार्मर्स के पास से कलेक्ट किया गया था जहाँ से अखलाक का शव बरामद किया गया था. इसका क्या यह मतलब नहीं कि यदि यह रिपोर्ट सही भी है तो हत्यारों ने षडयंत्र के तहत यह गोमांस वहां प्रायोजित किया. राज्य सरकार को पहेलियां बुझाने के बजाय पूरे मसले पर साफ राय व्यक्त करनी चाहिये ताकि सांप्रदायिक तत्व अपने षडयंत्रों में कामयाब न होपायें. भाकपा राज्य सचिव मंडल ने इस बात को गंभीरता से नोट किया कि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही भाजपा और संघ के दसों मुख खुल गये हैं और वह अखलाक की सांप्रदयिकता फैलाने और बिहार के चुनाव में उसका लाभ उठाने की गरज से की गयी हत्या को जायज ठहराने में जुट गये हैं. इतना ही नहीं वे अखलाक परिवार पर मुकदमा दर्ज कराने और पीडित परिवार को दी गयी राहत को लौटाने जैसी घृणित बातें कर रहे हैं. वे असहिष्णुता की सारी हदें पार कर रहे हैं. सनातन भारतीय संस्कृति में इसका कोई स्थान नहीं है. यह हिंदुत्त्व के लबादे में लपेटी गयी संघ परिवार की अपनी संस्कृति है जो हिंसा और अंतत: सत्ता तक पहुंचने की उसकी भूख मिटाने के लिये गढी गयी है. सवाल यह भी उठता है कि यदि अखलाक के घर में बीफ पकने का संदेह कुछेक लोगों को था, तो उन्हें कानून के हवाले करने को कदम उठाना चाहिये था. हत्या कर कानून हाथ में लेने का अधिकार उन्हें किसने सौंपा? भाकपा की दृढ राय है कि यह राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित दर्दनाक हत्या का मामला है और उसे इसी रूप में देखा जायेगा. पूरा मसला कमरतोड महंगाई से ध्यान हठाने में भी भाजपा की मदद कर रहा है, यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिये. डा. गिरीश, राज्य सचिव

Wednesday, May 25, 2016

बजरंग दल के हथियार चलाने की ट्रैनिंग देने वाले शिविरों को उचित ठहराने पर भाकपा ने की उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की निंदा

लखनऊ/अलीगढ: 25 मई, 2016- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा.गिरीश ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक के उस बयान पर गहरी चिंता और आक्रोश व्यक्त किया है जिसमें उन्होने उत्तर प्रदेश में बजरंग दल द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को आग्नेयास्त्रों सहित तमाम हथियारों की ट्रेनिंग देने को चलाये जारहे शिविरों को जायज ठहराया है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि राज्यपाल महोदय अपना कार्यभार संभालने के दिन से ही सांप्रदायिक बयानबाजी करते रहे हैं और हर वह काम करते रहे हैं जो संघ परिवार के एजेंडे को आगे बढाने वाला है. पर कल अलीगढ के अतरौली में दिया गया उनका बयान कानून और संविधान की धज्जियां बिखेरने वाला है. यह मामला इसलिये और गंभीर होजाता है कि यह बयान उस व्यक्ति ने दिया है जो संविधान और कानून की रक्षा करने वाले पद पर आसीन है. प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स आफ इंडिया’ के अनुसार श्री नाईक ने कहा कि “उन्हें इन शिविरों के आयोजन पर कोई एतराज नहीं है.” उन्होने यह भी कहा कि “इन केम्प्स को आयोजित करने का उद्देश्य ‘हिंदुओं की अन्य धर्मावलम्बियों से रक्षा करना है’.” इससे भी आगे बढ कर राज्यपाल ने कहा कि “ आत्मरक्षा करना कोई गलत बात नहीं है. यदि लोग अपनी रक्षा नहीं कर पायेंगे तो वे अपने समाज की रक्षा कैसे कर पायेंगे? हमें इस तरह की ट्रेनिंग जारी रखनी चाहिये. आपको इस ट्रेनिंग के इरादे को समझना चाहिये. .............. मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं.” आदि. सवाल खडे होते हैं कि क्या अल्पसंखकों, दलितों, आदिवासियों आदि को भी इस तरह के केम्प आयोजित करने की छूट राज्यपाल महोदय देंगे जो संघ परिवार और उसकी विचारधारा के हमलों के शिकार बनते हैं? क्या फिर कश्मीर, पूर्वोत्तर और वामपंथी उग्रवादियों के शिविरों को भी जायज नहीं माना जाना चाहिये? क्या राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को इस तरह का बयान देना चाहिये? भाकपा ने माननीय राष्ट्रपति महोदय से अपील की कि वे इस प्रकरण पर शीघ्र संविधान सम्मत कदम उठायें ताकि संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से संविधान की रक्षा की जासके. डा. गिरीश ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की कि वह अयोध्या, सुल्तानपुर, गोरखपुर, पीलीभीत, नोएडा एवं फतेहपुर आदि में बजरंग दल द्वारा रायफल, तलवार और लाठी की ट्रेनिंग देने वाले शिविरों पर फौरन रोक लगाये और इसके आयोजकों पर देशद्रोह का अभियोग पंजीकृत कर उन्हें गिरफ्तार करे. डा. गिरीश

Tuesday, May 24, 2016

AISF Conference

ए.आई.एस.एफ. का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कार्यकर्ता सम्मेलन संपन्न सम्मेलन में झूठे देशभक्तों और पूंजीवादी ताकतों से लडने का लिया संकल्प: सबको एक समान शिक्षा, शैक्षिक कलेंडर लागू करने, छात्र संघों के चुनाव कराये जाने और सबको रोजगार दिये जाने की मांगों के लिये संघर्ष का किया आह्वान अलीगढ: आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक क्षेत्रीय सम्मेलन यहां उत्साह और गर्मजोशी के माहौल में संपन्न हुआ. बेहद गर्म मौसम के बावजूद सम्मेलन में आठ जिलों के 60 प्रतिनिधि शामिल हुये. सम्मेलन की अध्यक्षता ए.एम.यू. की एआईएसएफ की संयोजक कु. दूना मारिया भार्गवी भार्गवी ने की तथा संचालन एआईएसएफ अलीगढ के संयोजक अनीश कुमार ने किया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एआईएसएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वलीउल्लाह खादरी ने शिक्षा पर बढते हमले, शिक्षा के बजट में की जारही कटौती, फीस में की जारही भारी वृध्दि, शिक्षा के निजीकरण और व्यापारीकरण तथा शिक्षा के भगवाकरण के प्रयासों पर सवाल खडे किये. उन्होने कहा कि केंद्र हो या राज्यों की सरकारें जन समुदाय को अपढ बना कर रखना चाहती हैं इसीलिये शिक्षा का बजट घटा रही हैं, विद्यार्थियों की फेलोशिप छीन रही है, जहां छात्र इसका विरोध कर रहे हैं उनको हर तरह से दबाया जारहा है. उन्होने सभी छात्रों से शिक्षा को बचाने और छात्रों के बुनियादी अधिकरों की रक्षा के लिये संघर्ष का आह्वान किया. कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और संगठन के महासचिव विश्वजीत कुमार ने कहा कि जिन्होने अब तक देश व देशवासियों के साथ गद्दारी की है, वे आज देशभक्त होने का प्रमाण बांट रहे हैं. देश व प्रदेश में शिक्षा की हालत बद से बदतर होती जारही है. एकतरफ जहां छात्रों को उपयुक्त शिक्षा व रोजगार नहीं मिल रहे हैं वहीं उनके अधिकारों को कुचला जारहा है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जे एन यू एवं रोहित वेमूला प्रकरण इसके उदाहरण हैं. इसलिये सभी को मुफ्त व समान शिक्षा , छात्रसंघों के चुनाव और रोजगार के लिये छात्रों का एकजुट संघर्ष ही छात्रों के भविष्य की रक्षा करेगा. एआईएसएफ इस संघर्ष के लिये सबसे उपयुक्त मंच है. सम्मेलन में प्रमुख वक्ता भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि यह गौरव केवल एक छात्र संगठन- 'एआईएसएफ' को ही हासिल है कि उसका जन्म आज़ादी के आंदोलन की कोख से हुआ और उसने आज़ादी की लडाई में हिस्सा लिया. उस दौर में यह आंदोलन की सभी प्रमुख धाराओं- कांग्रेस, सोशलिस्ट तथा कम्युनिस्ट विचारधारा के छात्रों का संयुक्त मंच था. छात्र आंदोलन के हितों और शिक्षा की उपादेयता को देखते हुये एआईएसएफ को छात्रों का संयुक्त मंच ही रहना चाहिये था लेकिन छात्रों को दलगत स्वार्थों की पूर्ति का मौहरा बनाने के लिये कांग्रेस ने एनएसयूआई तथा सोशलिस्टों ने समाजवादी युवजन सभा बनाली. आरएसएस जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी हुकूमत को बचाने के काम में लगा था, ने आज़ादी आने के बाद जनसंघ/ भाजपा बनाली तथा एबीवीपी नामक छात्र संगठन बना लिया. जिसका उद्देश्य छात्रों को केवल सांप्रदायिकता और जाति के नाम पर बांटना है. छात्रों और समाज के बुनियादी सवालों से उसका कोई लेना देना नहीं. केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद केंद्र सरकार ने छात्रों के खिलाफ युध्द छेड रखा है और विद्यार्थी परिषद उसके सह्योग में छात्रों के खिलाफ षडयंत्र कर रही है. जगह जगह वामपंथी और अंबेडकरवादी छात्र संगठनो पर हमले बोले जा रहे हैं. छात्रों को अपने शैक्षिक हितों के साथ साथ विद्यार्थी परिषद के छात्र विरोधी कुकृत्यों का भी जबाव देना होगा. भाकपा के राज्य सहसचिव का. अरविंदराज स्वरुप ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों की शिक्षा और छात्रों को तबाह करने वाली नीतियों के खिलाफ जगह जगह जुझारू छात्र आंदोलन उग रहे हैं और अपने संघर्षो से कई जगह छात्रों ने सफलतायें हासिल की हैं. जेएनयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के संघर्ष इसका उदाहरण हैं. आने वाले दिनों में छात्रों, शिक्षा और उसके संस्थानो पर और तीव्र हमले होंगे और छात्रों को उसका जबाव भी मजबूती से देना होगा. छात्र आंदोलन को उचित दिशा देने का काम केवल एआईएसएफ कर सकता है अतएव उसे मजबूत बनाने की जरूरत है. भाकपा के जिला सचिव प्रोफेसर सुहेव शेरवानी ने कहा कि अलीगढ और उत्तर प्रदेश में एआईएसएफ तेजी से कदम बढा रही है. भाकपा हर तरह से उनका साथ देने को प्रतिबध्द है. उन्होने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह सभी को समान शिक्षा देने की व्यवस्था करे लेकिन राज्य सरकार ने इस ओर कोई कदम नहीं बढाया. हम सबको मिल कर सरकार पर दबाव बढाना चाहिये. प्रोफेसर शमीम अख्तर ने मोदी सरकार के फासिस्ट्वादी कदमों पर विस्तार से प्रकाश डाला. सम्मेलन को प्रदेश उपाध्यक्ष उत्कर्ष चतुर्वेदी, कु. फसलीन, यशपाल सिंह, देवेंद्र कुमार, गौरव सक्सेना, विनीत कुमार, पंकज सागर, अतुल, रवि शर्मा, अश्वनी कुमार, अभिषेक पचौरी, संतोष, यतेंद्र बघेल और हर्ष पालीवाल विवेक त्रिपाठी आदि ने भी संबोधित किया.

Tuesday, May 17, 2016

आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कार्यकर्ता सम्मेलन अलीगढ में 23 मई में: छात्रों की बुनियादी समस्याओं और संगठन के विकास पर होगी चर्चा

अलीगढ- आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का क्षेत्रीय सम्मेलन 23मई, सोमवार को अलीगढ में संपन्न होने जारहा है. इस सम्मेलन में छात्रों और शिक्षा से जुडी बुनियादी समस्याओं पर गहनता से चर्चा होगी. इन समस्याओं से कैसे निपटा जाये और आम छात्रों को सस्ती, अच्छी और रोजगारपरक शिक्षा दिलाने को क्या कदम उठाये जायें इस पर भी विस्तार से चर्चा होगी. देश की आज़ादी की लडाई के दौरान पैदा हुये और देश के छात्रों का सबसे पहला संगठन होने का गौरव प्राप्त इस संगठन के आज की चुनौतियों से निपटने योग्य ढांचे के निर्माण पर भी चर्चा होगी. सम्मेलन की तैयारियों आदि के संबंध में जानकारी देते हुये एआईएसएफ अलीगढ के संयोजक अनीश कुमार तथा इसकी एएमयू इकाई की संयोजक कु. दूना मारिया भार्गवी ने बताया कि यह सम्मेलन 23 मई को सुबह 10:30 बजे से एआईएसएफ के पान दरीबा (निकट रेलवे स्टेशन) स्थित कार्यालय पर संपन्न होगा. सम्मेलन की सारी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. स्वागत समिति का अध्यक्ष एआईएसएफ के पूर्व कार्यकर्ता और वर्तमान में भाकपा के जिला सचिव का. सुहेव शेरवानी को बनाया गया है. नेताद्वय ने बताया कि इस सम्मेलन के मुख्य वक्ता संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सय्यद वली उल्लाह खादरी एवं राष्ट्रीय महासचिव विश्वजीत कुमार होंगे. मुख्य अतिथि एआईएसएफ के पूर्व प्रांतीय सचिव और वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश और भाकपा के राज्य सहसचिव अरविंद राज स्वरुप होंगे. कई राज्य स्तरीय नेताओं के भी इस सम्मेलन में आने की संभावना है. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के अलीगढ आगमन को लेकर आये दिन प्रकाशित होरहे समाचारों को बेबुनियाद बताते हुये दोनों छात्र नेताओं ने कहा कि अलीगढ एआईएसएफ अपना ध्यान पूरी तरह से छात्र हितों पर केंद्रित किये हुये है. कन्हैया कुमार के यहां आगमन का फिलहाल कोई कार्यक्रम नहीं है. अनीश कुमार और दूना मारिया भार्गवी ने एआईएसएफ के सभी कार्यकर्ताओं से समय पर पहुंच कर सम्मेलन में भाग लेने की अपील की है. अनीश कुमार, अलीगढ संयोजक दूना मारिया भार्गवी, एएमयू संयोजक

Friday, May 13, 2016

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र आंदोलन और भाकपा/ ए.आई.एस.एफ.

अपनी एकजुटता और संघर्ष के बल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक बढी जंग जीत ली है. करीब हफ्ते भर तक चले इस आंदोलन के द्वारा छात्र अपनी मांगों को मनबाने में पूरी तरह कामयाब रहे हैं. उन्होने मानव संसाधन मंत्रालय को अपने तानाशाहीपूर्ण कदमों को वापस लेने को बाध्य किया है. मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के शिक्षण संस्थाओं में हस्तक्षेप न करने के दाबों की इस आंदोलन ने कलई खोल कर रख दी है. संदेश साफ है कि छात्र भगवा ब्रिगेड के शिक्षा विरोधी और छात्र विरोधी कामों को सहेंगे नहीं. वे लडेंगे भी और जीतेंगे भी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ छात्रों- नौजवानों के हर बुनियादी संघर्षों में उनके साथ खडे हुये हैं और साथ खडे रहने को संकल्पबध्द हैं. वे मन वाणी और कर्म से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं के साथ खडे रहे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एआईएसएफ के एक राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने गत 8 मई को इलाहाबाद पहुंच कर वहां अपनी समस्याओं के लिये छात्र संघ भवन में अनशन कर रहे छात्र- छात्राओं से भेंट की और उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता का इजहार किया. भाकपा उत्तर प्रदेश के सचिव डा. गिरीश के नेत्रत्व में पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में पार्टी के राज्य सहसचिव का. अरविंदराज स्वरुप एवं एआईएसएफ उत्तर प्रदेश के संयुक्त सचिव मयंक चक्रवर्ती भी शामिल थे. इलाहाबाद में पार्टी के जिला सह सचिव का. नसीम अंसारी, वरिष्ठ नेता का. गिरिधर गोपाल त्रिपाठी एडवोकेट, एटक लीडर का. मुस्तकीम एवं एआईएसएफ के अमितांशु गौर भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल होगये. केंद्रीय एवं राज्य की प्रशासनिक सेवाओं के लिये मानव संसाधन मुहैया कराने के लिये प्रसिध्द इस विश्वविद्यालय का छात्रसंघ भी उतना ही प्रसिध्द रहा है और इसके पदों पर चुने गये तमाम लोग राजनीतिक, सामाजिक और अन्य कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन कई दशकों से पूंजीवादी दलों द्वारा पोषित राजनीति में आई गिरावट का ग्रहण शिक्षण संस्थाओं को भी लगा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शैक्षिक स्तर और उसका छात्रसंघ भी उससे प्रभावित हुआ. लेकिन इस बार वहाँ के छात्र- छात्राओं ने पहली बार एक छात्रा ऋचा सिंह को विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना जो वहां चुने गये पदाधिकारियों में एक मात्र गैर भाजपा पदाधिकारी थीं. उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि तमाम दबावों और घेराबंदियों के बावजूद उन्होने भयंकर सांप्रदायिक एवं हिंदू कट्टरपंथी गोरखपुर के भाजपा सांसद श्री आदित्यनाथ को विश्वविद्यालय परिसर में आने से रोक दिया था. उसके बाद से ही वह संघ परिवार के निशाने पर थीं और केंद्र सरकार और स्थानीय भाजपाइयों के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें तरह तरह से परेशान कर रहा था. भाकपा और एआईएसएफ ने इस समूची जद्दोजहद में हमेशा उनका मनोबल बढाया. पिछले दिनों विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र संगठनों ने ऋचा सिंह के नेत्रत्व में कुलपति श्री रतनलाल हाँगलू को एक सात सूत्रीय ज्ञापन संयुक्त रुप से सौंपा था जिसमें उन्होने कहा था कि विश्वविद्यालय के ग्रामीण अंचल के छात्रों की बहुलता को देखते हुये परास्नातक सहित सभी प्रवेश परीक्षाओं में 'आफ लाइन' का विकल्प भी दिया जाये, पिछले दिनों जिन 17 छात्रों का निलंबन किया गया है उसे वापस लिया जाये, आनलाइन आवेदनों में वेवसाइट की गडबडी के कारण छात्रों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड रहा है, उसे तत्काल सुधारा जाये. प्रवेश परीक्षाओं का बढा हुआ शुल्क जो कि पिछले से लगभग दोगुना है वापस किया जाये, डबल एम.ए. करने हेतु 80 प्रतिशत अंक की अपरिहार्यता और अव्यवहारिकता को वापस लिया जाये, प्रवेश हेतु जमा होने वाला चालान एस. बी.आई. के माध्यम से भी जमा करने का विकल्प हो. ज्ञापन में यह भी कहा गया कि प्रवेश परीक्षाओं का टेंडर पारदर्शी तरीके से न होना प्रवेश प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खडे करता है. मात्र टी.सी.एस के आवेदन के बाद उसका टेंडर देना अनुचित है. आंदोलनकारी छात्र- छात्रायें जब इन मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिसर में पुलिस को बुलबा भेजा. तमाम छात्रो को पीटा गया और वे लहू लुहान होगये, उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर गिरफ्तार किया गया. पर रिहाई के बाद वे यूनियन हाल में अध्यक्ष ऋचा सिंह के नेत्रत्व में आमरण अनशन पर बैठ गये. वे कुलपति कार्यालय के समक्ष अनशन करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उन्हें वहां बैठने से रोक दिया. भाकपा और एआईएसएफ ने अलग अलग बयान जारी कर इस पुलिसिया कार्यवाही की निंदा की और छात्रों की मांगों का समर्थन किया. आंदोलन का नेत्रत्व कर रही ऋचा सिंह को फोन कर छात्रों का मनोबल भी बढाया गया. छात्र छात्राओं पड रहे चहुंतरफा दबाव और उनके स्वास्थ्य में आरही गिरावट के समाचार भाकपा और एआईएसएफ के राज्य केंद्र को मिल रहे थे अतएव पार्टी नेत्रत्व ने वहाँ पहुंच कर छात्रों के इस आंदोलन को सक्रिय समर्थन प्रदान करने का फैसला लिया. प्रतिनिधिमंडल जिस दिन वहां पहुंचा, आमरण अनशन का छठवां दिन था. चूंकि वहां पहुंचने का समाचार समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था तो सभी आंदोलनकारी छात्र इस प्रतिनिधिमंडल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. प्रतिनिधिमंडल ने ऋचा सिंह से बात की और उनका साहस बढाया. वहीं पता लगा कि पूर्व की रात को पुलिस ने अनशनकारियों को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी लेकिन छात्रों ने अपने को यूनियन हाल में बंद कर लिया. यू.पी. सरकार के पुलिस और प्रशासन का यह रवैया समझ से परे था. ऋचा सिंह ने छात्रो के बीच ले जाकर प्रतिनिधिमंडल से विचार व्यक्त करने का आग्रह किया. उपस्थित छात्र समुदाय को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि आफलाइन विकल्प के अभाव में ग्रामीण और गरीब तबके के छात्र शिक्षा से वंचित रह जायेंगे इसलिये आम छात्रों के हित में आफलाइन का विकल्प भी खुला रहना चाहिये. उन्होने छात्रों की न्यायोचित मांगों के प्रति केंद्र सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन की हठवादिता और छात्रों पर पुलिस/प्रशासन द्वारा किये जारहे बल प्रयोग की कडे शब्दों में निंदा की और छात्रों के इस न्याययुध्द में हर संभव मदद का भरोसा उन्हें दिलाया. उन्होने घोषणा की कि लखनऊ लौटने पर भाकपा महामहिम राज्यपाल से भेंट कर छात्रों को न्याय दिलाने की मांग करेगी. छात्रों ने बढी ही गर्मजोशी से प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया. यद्यपि वहां अन्य कई प्रतिनिधिमंडल भी आये हुये थे पर भाकपा और एआईएसएफ के प्रतिनिधिमंडल के वहां पहुंचने से भाजपा और सपा के खीमों में काफी हलचल दिखाई दी. अगले दिन मीडिया ने भी प्रतिनिधिमंडल की खबरों को प्रमुखता से छापा. सत्ताधारियो का सिंहासन हिला और 48 घंटे के भीतर ही छात्रों की प्रमुख मांगों को मान लिया गया और अनशन समाप्त करा दिया गया. समझौते के अनुसार अब विश्वविद्यालय में प्रवेश में आफ लाइन का विकल्प खोला गया है, डबल एम.ए. के प्रवेश में अब 80 के बजाय 60 प्रतिशत अंक ही आवश्यक होंगे तथा छात्रों के निलंबन की कार्यवाही पर पुनर्विचार किया जायेगा. इस सफलता के बाद ऋचा सिंह और कई छात्रों ने भाकपा नेत्रत्व को न केवल इसकी सूचना दी अपितु उनके प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित की. भाकपा नेत्रत्व ने भी उन्हे बधाई दी. एआईएसएफ इलाहाबाद के एक प्रतिनिधिमंडल ने सन्योजक अजीत सिंह के नेत्रत्व में ऋचा सिंह एवं अन्य आंदोलनकारी छात्रों से छात्रसंघ भवन में जाकर इस सफलता के लिये उन्हें पुरजोर तरीके से बधाई दी. प्रतिनिधिमंडल में अमितांशु गौर, मो.खालिद, सर्वेश मिश्रा, गौरीशंकर, विमर्श एवं संकर्ष भी शामिल थे. ऋचा सिंह ने सहयोग और समर्थन के लिये धन्यवाद दिया और कृतज्ञता ज्ञापित की. यह छात्रों के संघर्षों का ही नतीजा है कि मानव संसाधन मंत्रालय को घुटने टेकने पडे हैं. केंद्र सरकार के पलटी मारने से कल तक उसके यस मैन बने कुलपति हाँगलू आहत महसूस कर रहे हैं. उन्होने स्मृति ईरानी और भाजपा पर विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप का आरोप जडा है. यह तो जग जाहिर ही था, पर पहली बार किसी कुलपति ने भी इस सच पर से पर्दा उठाया है. यह भी उल्लेखनीय है कि जो विद्यार्थी परिषद ऋचा सिंह के खून का प्यासा बना हुआ था, छात्रों के दबाव में और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये उसे भी सबके साथ अनशन पर बैठना पडा. डा. गिरीश

Saturday, May 7, 2016

ए आई एस एफ की विचारगोष्ठी में भगवा ताकतों और फासीवादियों का पर्दाफाश किया गया

अलीगढ- मजदूर दिवस के अवसर पर एक मई को अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एम्पलाईज यूनियन कार्यालय परिसर में ए.आई.एस.एफ. की ओर से एक सफल सेमिनार का आयोजन किया गया. गोष्ठी का विषय था " लोकतंत्र स्वंत्रता और संस्कृति को खतरा और छात्रों का संघर्ष". गोष्ठी का उद्घाटन करते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि देश की स्वतंत्रता लोकतंत्र और संस्कृति पर समय समय पर अलग अलग शक्तियों द्वारा हमले होते रहे हैं और देश की जनता उसका जबाव भी देती रही है. लेकिन पिछले दो साल में यह हमले तीव्र से तीव्रतर होगये हैं. केंद्र में सत्तारूढ मोदी सरकार ने जनता से किया एक भी वायदा पूरा नहीं किया अतएव जनता में इस सरकार के प्रति भारी असंतोष उमड रहा है. अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने, आक्रोश को दिग्भ्रमित करने और जनता के विरोध को मूर्त रूप देने वाली ताकतों को आतंकित करने के उद्देश्य से सरकार और सरकार समर्थक संगठनों ने उन पर बडे हमले बोल दिये हैं. हर विपन्न तबके को निशाना बनाया जारहा है. लेकिन ज्ञान के उद्गम स्थल शिक्षण संस्थानों और उसके छात्रों को खास निशाना बनाया जारहा है ताकि जहालत फैला कर जुल्म सितम का चक्का चलाया जाता रहे. डा. गिरीश ने कहाकि यह पहली ऐसी सरकार है जो सीमा के पार वाले दुश्मनों के समक्ष तो घुटने टेके हुये है मगर अपने ही देश के छात्र नौजवानों के खिलाफ इसने युध्द छेड दिया है. फिल्म इंस्टीट्यूट, आईआईटी, हैदराबाद यूनिवर्सिटी, एएमयू, इलाहाबाद और सबसे ज्यादा जेएनयू के छात्रों को निशाना बनाया गया और उन्हें जान गंवाने को बाध्य किया गया या देशद्रोही बता कर जेलों में ठूंसा गया. लेकिन हर जगह छात्र आंदोलन के जरिये जबाव दे रहे हैं. कन्हैया कुमार इस आंदोलन का प्रतीक बन चुके हैं. यह आंदोलन आने वाले दिनों में और गति पकडेगा और यही व्यवस्था परिवर्तन की जंग का आधार बनेगा. भाकपा छात्र नौजवानों के इस संघर्ष के हर कदम पर उनके साथ है. एआईएसएफ के अध्यक्ष वली उल्लाह खादरी ने कहा कि मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी एक्टिंग अच्छी कर लेती हैं, लेकिन शिक्षा के बारे में उन्हें जानकारी नहीं. शिक्षा के बजट में कटौती और छात्रों के हक को दबाने के सवाल पर उन्होंने प्रधानमंत्री पर भी जम कर निशाना साधा. उन्होने कहा कि देश भर में दहशत फैलाने का काम नागपुर से चल रहा है. तमाम महत्वपूर्ण संस्थाओं के साथ साथ फासीवादी ताकतों की नजर अल्पसंख्यक स्वरूप वाले एएमयू और जामिया मिलिया पर भी है. छात्र इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. जेएनयू एआईएसएफ की अध्यक्ष राहिला परवीन ने कहा कि यह देश गांधी के राम का है. आरएसएस के जय श्रीराम का नहीं. हम आरएसएस के जय श्री राम को नहीं आने देंगे. देशवासियों को राम और जय श्रीराम के अंतर को समझना होगा. उन्होने कन्हैया को आज़ादी की दूसरी लडाई का योध्दा बताया और कहा कि रोहित वेमुला प्रकरण को दबाने के लिये फासीवादी ताकतों ने जेएनयू प्रकरण को उछाल दिया. इसमें विद्यार्थी परिषद के साथ तथाकथित राष्ट्रवादी चेनल भी साथ थे. रोहित वेमुला का उदाहरण देते हुये उन्होने कहा कि हम उस मां की जय बोलेंगे जिसने जन्म देकर अपने लाल को अन्याय के खिलाफ लडने भेजा. शेर पर सवार हाथ में त्रिशूल और भगवा झंडा वाली आरएसएस की ब्रांडेड मां की जय हम नहीं बोलेंगे. उन्होने कहा कि सीमा पर लडने वाले फौजी के किसान पिता आत्महत्या कर रहे हैं. इसकी चिंता सरकार को नहीं. उन्होने कहा कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान सेनानी भारत माता की जय नहीं, वंदे मातरम और जय हिंद बोलते थे. लेकिन फासीवादी ताकतें हर चीज को मजहब में बांट कर अपनी कुर्सी बचाने में लगी हैं. प्रसिध्द इतिहासकार प्रो. इरफान हबीव ने एआईएसएफ के गौरवशाली इतिहास की स्मृतियों को ताजा करते हुये कहा कि यही संगठन था जो आज़ादी की लडाई में असंख्य छात्र युवाओं को खींच लाया. उन्होने इस संगठन में बिताये अपने जीवन के अनुभवों को उपस्थित छात्र युवाओं के साथ साझा किया. उन्होने कहाकि भाजपा जिन सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण करा रही है उन्होने आरएसएस के गोलवलकर को खत लिखा था कि संघ द्वारा फैलाये गये सांप्रदायिक जहर के कारण ही गांधी जी की हत्या हुयी. गांधी की हत्या पर संघ ने मिठाई बांटी थी और आरएसएस पर प्रतिबंध भी लगाया गया था. वह तभी हठा जब उनके गुरु ने लिख कर दे दिया कि संघ तो सांस्कृतिक संग्ठन है. पर हर कोई जानता है कि वह खुल कर राजनीति करता है, वह भी समाज को बांतने की. प्रो. इरफान हबीब ने एएमयू में छात्राओं के साथ होने वाले भेद्भाव की चर्चा की और उसे खत्म किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया. गोष्ठी को भाकपा जिला सचिव सुहेव शेरवानी, एआईएसएफ अलीगद के सन्योजक अनीश कुमार तथा ऐम्पलाईज यूनियन के अध्यक्ष वसी हैदर ने भी संबोधित किया. अध्यक्षता कु. फनस ने की. संचालन एआईएसएफ की एएमयू की सन्योजक कु. दूना मारिया भार्गवी ने किया. ऐम्पलायीज यूनियन के सैक्रेटरी शमीम अख्तर ने सभी को धन्यवाद दिया. कु. दूना एवं अनीश ने बताया कि आगामी 23 मई को एआईएसएफ के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन और एवं विचारगोष्ठी अलीगढ में होगी. हर जिले से कम से कम 5 छात्र साथियों को सुबह 10 बजे तक अलीगढ पहुंचना है.

Friday, May 6, 2016

भाकपा उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधिमंडल कल पहुंचेगा इलाहाबाद. आंदोलनरत छात्रों से करेगा मुलाकात

लखनऊ- 7 मई 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल कल इलाहाबाद पहुंचेगा. प्रतिनिधिमंडल वहाँ आफलाइन विकल्प के लिये संघर्षरत और अनशन कर रहे छात्र नेताओं और छात्रों से मिल कर उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता का इजहार करेगा. ज्ञात हो कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पदाधिकारी और अन्य छात्र दाखिले की प्रक्रिया में आनलाइन के साथ आफलाइन विकल्प की मांग को लेकर पिछले एक सप्ताह से आंदोलन कर रहे हैं. गत दिनों विश्वविद्यालय प्रशासन की पहल पर पुलिस ने छात्रों पर भारी लाठीचार्ज किया था, उन पर कई धाराओं में केस दर्ज किये गये थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. भाकपा ने तभी छात्रों पर हुये इस दमन की कडे शब्दों में निंदा की थी. रिहाई के बाद से ही ये छात्र अपनी मांगों को लेकर अनशन कर रहे हैं. भाकपा राज्य सचिव मंडल की ओर से जारी बयान में मांग की गयी है कि छात्रों की इस न्यायोचित मांग को अबिलंब पूरा किया जाये और उन पर दमनचक्र चलाने के लिये जिम्मेदार लोगों को चिन्हित कर दंडित किया जाये. बयान में बताया गया है कि इन आंदोलनकारी छात्रों के संघर्ष के प्रति एक्जुटता प्रकट करने को भाकपा का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल राज्य सचिव डा.गिरीश के नेत्रत्व में कल इलाहाबाद जायेगा. राज्य सहसचिव का. अरविन्दराज स्वरुप एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के नेतागण भी उनके साथ होंगे. डा.गिरीश

मौजूदा रेल आरक्शण टिकट की प्रक्रिया में बदलाव से बाज आये सरकार: भाकपा

लखनऊ- 6 मई 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरक्षण खिडकी से कराये गये रेलवे के आरक्षित टिकट को रद्द कराने की मौजूदा प्रक्रिया में प्रस्तावित बदलाव को जनता के लिये बहुत ही कष्टकारक और आर्थिक रुप से हानि पहुंचाने वाला बताया है. भाकपा ने आरक्षित टिकट की मौजूदा प्रणाली को ही बनाये रखने की मांग की है. ज्ञात हो कि मौजूदा व्यवस्था के अनुसार यात्री कहीं से खरीदे टिकट को देश में किसी भी स्टेशन से रद्द करा सकते हैं. लेकिन अब रेलवे इस मौजूदा प्रक्रिया में बदलाव कर यह व्यवस्था करने जारही है कि जो टिकट जहां से खरीदी गयी है उसको उसी स्टेशन से रद्द कराया जा सकेगा. रेल मंत्री को भेजे गये पत्र में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने इस पर कडी आपत्ति दर्ज कराई है. अपने इस पत्र में भाकपा राज्य सचिव ने कहा है कि इस प्रस्तावित नई प्रक्रिया से मुसाफिरों को भारी कठिनाई का सामना करना पडेगा और आर्थिक हानि भी उठानी पडेगी. इस संबंध में उदाहरण देते हुये डा.गिरीश ने कहा कि जब में लखनऊ से अपने घर हाथरस जाता हूं तो वहाँ से लौटने का टिकट भी यहीं से बनवा कर ले जाता हूँ ताकि प्रतीक्षा सूची में लटकने से बचा जा सके. पर यदि किसी कारण से मुझे अपनी यात्रा की तिथि आगे बढानी पड जाये तो मेरा लखनऊ से कटाया गया यह टिकिट हाथरस में रद्द नही हो सकेगा. इस तरह मेरा यह पैसा डूब जायेगा. ज्यादा यात्रा करने वालों और टूरिस्टों को तो इससे बहुत अधिक कठिनाई होगी. डा. गिरीश ने आरोप लगाया है कि गत दो वर्षों में रेलवे ने यात्री किराये और माल भाडे में बडी वृध्दि तो की ही है अन्य अनेक भार भी यात्रियों पर लाद दिये हैं. सफाई के नाम पर एक अलग कर लगाया गया है, बच्चों की आधी टिकट समाप्त कर उसे पूरा कर दिया गया है, टिकिट रद्द कराने में ज्यादा पैसे की कटौती कर दी गयी है और टिकिट रद्द कराने की अवधि भी कम कर दी गयी है. मजे की बात है कि यात्रियों पर यह सारी चोट यात्री सुविधा बढाने के नाम पर की जारही है. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि “ प्रभुजी! ये सब बंद करो वरना ये जनता तुम्हारी सरकार की राजनैतिक रेल को रोक देगी.” डा. गिरीश

आरक्षित रेल टिकिट को रद्द कराने की प्रक्रिया में बदलाव से बाज आये रेलवे: भाकपा

रेल के आरक्षित टिकट को रद्द कराने की प्रक्रिया में बदलाव से जनता को होगी भारी कठिनाई: भाकपा ने प्रस्तावित बदलाव को न करने की मांग की लखनऊ- 6 मई 2016, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आरक्षण खिडकी से कराये गये रेलवे के आरक्षित टिकट को रद्द कराने की मौजूदा प्रक्रिया में प्रस्तावित बदलाव को जनता के लिये बहुत ही कष्टकारक और आर्थिक रुप से हानि पहुंचाने वाला बताया है. भाकपा ने आरक्षित टिकट की मौजूदा प्रणाली को ही बनाये रखने की मांग की है. ज्ञात हो कि मौजूदा व्यवस्था के अनुसार यात्री कहीं से खरीदे टिकट को देश में किसी भी स्टेशन से रद्द करा सकते हैं. लेकिन अब रेलवे इस मौजूदा प्रक्रिया में बदलाव कर यह व्यवस्था करने जारही है कि जो टिकट जहां से खरीदी गयी है उसको उसी स्टेशन से रद्द कराया जा सकेगा. रेल मंत्री को भेजे गये पत्र में भाकपा के राज्य सचिव डा.गिरीश ने इस पर कडी आपत्ति दर्ज कराई है. अपने इस पत्र में भाकपा राज्य सचिव ने कहा है कि इस प्रस्तावित नई प्रक्रिया से मुसाफिरों को भारी कठिनाई का सामना करना पडेगा और आर्थिक हानि भी उठानी पडेगी. इस संबंध में उदाहरण देते हुये डा.गिरीश ने कहा कि जब में लखनऊ से अपने घर हाथरस जाता हूं तो वहाँ से लौटने का टिकट भी यहीं से बनवा कर ले जाता हूँ ताकि प्रतीक्षा सूची में लटकने से बचा जा सके. पर यदि किसी कारण से मुझे अपनी यात्रा की तिथि आगे बढानी पड जाये तो मेरा लखनऊ से कटाया गया यह टिकिट हाथरस में रद्द नही हो सकेगा. इस तरह मेरा यह पैसा डूब जायेगा. ज्यादा यात्रा करने वालों और टूरिस्टों को तो इससे बहुत अधिक कठिनाई होगी. डा. गिरीश ने आरोप लगाया है कि गत दो वर्षों में रेलवे ने यात्री किराये और माल भाडे में बडी वृध्दि तो की ही है अन्य अनेक भार भी यात्रियों पर लाद दिये हैं. सफाई के नाम पर एक अलग कर लगाया गया है, बच्चों की आधी टिकट समाप्त कर उसे पूरा कर दिया गया है, टिकिट रद्द कराने में ज्यादा पैसे की कटौती कर दी गयी है और टिकिट रद्द कराने की अवधि भी कम कर दी गयी है. मजे की बात है कि यात्रियों पर यह सारी चोट यात्री सुविधा बढाने के नाम पर की जारही है. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि “ प्रभुजी! ये सब बंद करो वरना ये जनता तुम्हारी सरकार की राजनैतिक रेल को रोक देगी.” डा. गिरीश

Friday, April 29, 2016

विचार गोष्ठी

ALL INDIA STUDENTS FEDERETION ( A.I.S.F.) A.M.U. Unit, Aligarh आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ( एआईएसएफ) ए.एम.यू. ब्रांच, अलीगढ दिनांक- 29 अप्रेल 2016 एआईएसएफ द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन दि. - 1 मई रविवार को अलीगढ- आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ( एआईएसएफ) की अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय इकाई द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन मजदूर वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय पर्व 'मई दिवस' पर दिनांक- 1 मई, रविवार को पूर्वान्ह 11 बजे से ए.एम.यू. एम्पलाईज यूनियन के कार्यालय (हबीब हाल के सामने) पर किया जा रहा है. गोष्ठी का विषय होगा - "लोकतंत्र स्वतंत्रता संस्कृति पर हमला और छात्रों का संघर्ष." ( Threat to Democracy Freedom and Culture and Struggle of Students). गोष्ठी में एआईएसएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद वलीउल्लाह खादरी एवं जेएनयू एआईएसएफ की अध्यक्ष कु. राहिला परवीन मुख्य वक्ता होंगे. इसके अलावा कई अन्य वक्ता भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करेंगे. एआईएसएफ ने सभी छात्रों और अन्य सहयोगियों से गोष्ठी में शामिल होने की अपील की है. दूना मारिया भार्गवी संयोजक, ए.आई.एस.एफ. ए.एम.यू. अलीगढ

Wednesday, April 6, 2016

एआईएसएफ नेताओं और कन्हैया कुमार को मिल रही धमकियों के विरुध्द उत्तर प्रदेश में सडकों पर उतरे छात्र

लखनऊ- आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (A.I.S.F.) के तत्वावधान में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार एवं एआईएसएफ के नेताओं को जान से मारने की धमकियों, देश भर में छात्रों खासकर कमजोर वर्ग के छात्रों के उत्पीडन के खिलाफ एवं छात्रों और शिक्षा से जुडे सवालों को लेकर आज समूचे उत्तर प्रदेश में धरने और प्रदर्शनों के आयोजन किये गये तथा महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिला प्रशासन के अधिकारियों को सौंपे गये. पूरे प्रदेश में लगभग एक ही विषयवस्तु वाले ज्ञापन सौंपे गये. इन ज्ञापनों में कहा गया है कि जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और छात्र संगठन- एआईएसएफ जो कि देश भर में छात्रों के ऊपर होरहे अत्याचारों और शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षण संस्थाओं पर सरकार की ओर से हो रहे हमलों के विरोध में समूचे देश में चल रहे छात्र आंदोलनों की आशा की किरण साबित होरहे हैं, फासीवादी, सांप्रदायिक और जनतंत्र विरोधी ताकतों की आंखों की किरकिरी बन गये हैं. उत्तर प्रदेश में ऐसे ही तत्वों द्वारा कन्हैया कुमार तथा एआईएसएफ के दूसरे नेताओं को तमाम तरह की धमकियां दी जारही हैं. मेरठ के किसी अमित जानी नामक शख्स जिसने 2012 में लखनऊ में पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की प्रतिमायें तोडी थीं और उससे पहले श्री राहुल गांधी की सभा में व्यवधान उत्पन्न किया था, पहले अपने फेसबुक एकाउंट पर पोस्ट डाल कर धमकी दी थी कि यदि कन्हैया कुमार और उमर खालिद ने 31 मार्च तक जेएनयू परिसर को नहीं छोडा तो वह और उसका संगठन जेएनयू में घुस कर दोनों को गोली से उडा देंगे. उसने फेसबुक पर दोबारा धमकी दी है कि उसके लोग मय हथियारों के जेएनयू में पहुंच गये हैं, और वे कभी भी दोनों की हत्या कर देंगे. कुछ तत्वों ने एआईएसएफ के केंद्रीय पदाधिकारियों और कन्हैया कुमार को ट्विटर पर धमकी दी है कि यदि उन्होने उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया तो उनका गला रेत दिया जायेगा. इससे पूर्व बदायूं के एक कुलदीप वार्ष्णेय नामक व्यक्ति ने खुले तौर पर धमकी दी थी कि कन्हैया की जीभ काटने वाले को पांच लाख रु. दिये जायेंगे. 18 फरवरी को एआईएसएफ व अन्य वामपंथी छात्र संगठनों के लोग जब बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के समीप कन्हैया कुमार की बिना शर्त रिहाई की मांग और कन्हैया कुमार व पत्रकारों पर पटियाला हाउस कोर्ट में भाजपा विधायक और उसके समर्थक वकीलों द्वारा किये गये शर्मनाक हमले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे तो विद्यार्थी परिषद से जुडे लोगों ने आपत्तिजनक नारे लगाते हुये उन पर हमला बोल दिया. स्थानीय पुलिस ने हमलावरों को निकल जाने में मदद की और एआईएसएफ तथा अन्य वाम छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. अब अलीगढ में कन्हैया कुमार के आगमन की चर्चा मात्र से बौखलाये विद्यार्थी परिषद के लोगों ने मीडिया के माध्यम से भडकावे और उकसाबेपूर्ण बयानबाजियां की हैं और वे खुले तौर पर कन्हैया कुमार और एआईएसएफ के नेताओं को देश द्रोही अथवा राष्ट्रद्रोही बतला रहे हैं जो कानूनन जुर्म है. विद्यार्थी परिषद को भय है कि कन्हैया कुमार और एआईएसएफ नेताओं के दौरों से छात्र समुदाय में उनके अधिकारों और समस्याओं के प्रति चेतना जाग्रत होगी और सरकारों की छात्र विरोधी एवं शिक्षा विरोधी कारगुजारियों का पर्दाफाश होगा. पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा समर्थक संगठन विद्यार्थी परिषद ने छात्र विरोधी अभियान छेड रखा है. वे अपनी दादागीरी से छात्रों के हित में संघर्ष करने वालों को प्रताडित कर रहे हैं तो राज्य सरकार उनकी अराजक कार्यवाहियों को रोकने से कतरा रही है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष कु. ऋचा सिंह को इसलिये हठाने की कोशिश की जा रही है कि उन्होंने कुख्यात सांप्रदायिक भाजपा सांसद आदियनाथ को इलाहाबाद विश्व विद्यालय में प्रवेश नहीं करने दिया था. वाराणसी में भी कई विपक्षी छात्रों को विद्यार्थी परिषद के दबाव में उनकी संस्थाओं से निष्कासित कर दिया गया है. जगह जगह ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये, दलितों, पिछडों, अल्पसंख्यकों, अन्य कमजोरों और पढाई- लिखाई से मतलब रखने वाले छात्रों को निशाना बनाया जारहा है. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और कई अन्य जगह रोहित वेमुला की जबरिया आत्महत्या का विरोध करने वाले छात्रों को डराया- धमकाया गया है. अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी (AKTU) के छात्रों की बाजिव मांगों को पूरा करने के स्थान पर उन पर दमन चक्र चलाया जा रहा है. विद्यालयों और विश्वविद्यालय परिसरों में विद्यार्थी परिषद द्वारा छात्रों को धमका कर सदस्य बनाया जारहा है और उन्हें आरएसएस की शाखाओं में भाग लेने को बाध्य किया जारहा है. विद्यार्थी परिषद कभी भी छात्र हित की राजनीति नहीं करता अपितु वह छात्रों के बीच आर.एस.एस. की कुत्सित विचारधारा के आधार पर घृणित कार्यवाहियों को अंजाम देने का औजार मात्र है. ज्ञापन में कश्मीर के श्री नगर में एनआईटी छात्रों पर भाजपा/ पीडीपी गठबंधन की सरकार द्वारा किये गये लाठीचार्ज जिसमें कई छात्र बुरी तरह घायल हुये हैं, की कडे शब्दों में निंदा की गयी है. ये छात्र अपनी बुनियादी समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन मीडिया के कतिपय हिस्सों में इसे सांप्रदायिक घटना करार दिया जारहा है. सच तो यह है कि केंद्र और उसके प्रभाव वाली राज्य सरकारें छात्रों की समस्याओं का निदान करने से मुहं चुरा रही हैं और एक के बाद एक कैम्पस छात्र आंदोलन का गवाह बनता जा रहा है. खेद की बात है कि इन संगीन मामलों में न तो केंद्र सरकार ने कोई कदम उठाया है और न ही उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने. शिक्षा के बजट में भारी कटौती की जा रही है. अकेले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) के बजट में ही 55 प्रतिशत की कटौती कर दी गयी है और इसे रु. 10,000 करोड से घटा कर लगभग रु. 45,00 करोड के आस पास पहुंचा दिया गया है. निजी संस्थाओं में तो भारी फीस देनी ही थी अब आई. आई. टी. जैसी सरकारी संस्थाओं की फीस को बढा कर समूचे कोर्स के लिये रु. 24 लाख कर दिया गया है. केंद्र सरकार पाठ्यक्रमों में सांप्रादायिक, तथ्यों से कोसों दूर और पाखंड्पूर्ण सामग्री को ठूंस रही है. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा सभी को समान शिक्षा दिये जाने का आदेश पारित करने के बावजूद राज्य सरकार ने इस दिशा में अभी तक कोई पहलकदमी नहीं की है. शिक्षा हर स्तर पर साधारण और निम्न वर्ग के छात्रों की पहुंच से तो बाहर जा ही रही है, मध्यम वर्ग भी इस महंगी शिक्षा के बोझ तले कराह उठा है. मध्यकाल की तर्ज पर लाई जा रही यह शिक्षा पध्दति भविष्य में अल्पज्ञता, समाज के प्रति उदासीनता और मानव संसाधन की भारी समस्या उत्पन्न करेगी और छात्रों की आवाज दबाने की कोशिश छात्र असंतोष को और अधिक बढायेगी ज्ञापन में कहा गया है. अतएव आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन दोनों महामहिमों से मांग करता है कि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष एवं एआईएसएफ के अन्य नेताओं को जान से मारने की धमकी देने वालों और उनका चरित्र हनन करने वालों के विरुध्द अभियोग पंजीकृत कर कडी से कडी कार्यवाही की जाये. शिक्षण संस्थाओं में कमजोर तबकों के छात्रों का उत्पीडन रोकने को रोहित वेमुला एक्ट बनाया जाये ताकि किसी भी होनहार छात्र की जान और सम्मान को आंच ना आये. अब्दुल कलाम टैक्नीकल यूनिवर्सिटी के छात्रों की न्याय संगत मांगों को पूरा किया जाये और उनका उत्पीडन बंद किया जाये. उत्तर प्रदेश में छात्रों के उत्पीडन की कार्यवाहियों को रोका जाये. उत्पीडन करने वालों के विरुध्द कडी से कडी कार्यवाही की जाये. विद्यालय और विश्व विद्यालय परिसरों में विद्यार्थी परिषद जैसे विद्यार्थी विरोधी संगठन की अवांच्छित कार्यवाहियों पर रोक लगायी जाये. छात्रों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिये छात्रसंघों के चुनाव कराये जायें, और चुनाव प्रणाली में इस तरह के सुधार किये जायें कि असामाजिक और अवांच्छित तत्व चुन कर न जायें.विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जाये. शिक्षा का हर स्तर पर बजट बढाया जाये. शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह सरकारी बनाया जाये. शिक्षा की फीस बढाने और उसे अन्य तरह से महंगा बनाने को रोका जाये. शिक्षा के पाठ्यक्रमों में प्रतिगामी बदलाव करना रोका जाये. शिक्षा उच्च उदात्त विचारों, वैज्ञानिक सोच के विकास, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष व जनवादी मूल्यों की वाहक बने, असहिष्णुता और विभाजन का औजार नहीं. उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्णय को अमलीजामा पहनाने को उत्तर प्रदेश में अगले सत्र से सभी को निशुल्क शिक्षा, समान शिक्षा एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जाये. उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, माध्यमिक विद्यालयों, जूनियर और बेसिक स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पडे सभी पदों पर योग्यतम शिक्षकों की नियुक्ति की जाये. समाचार बुलेटिन जारी किये जाने तक प्रदेश के तमाम जिलों से सफल धरना प्रदर्शन की खबर राज्य मुख्यालय को प्राप्त हुयी है. उरई(जालौन) से प्राप्त खबर के अनुसार यहां सैकडों छात्र- छात्राओं ने स्थानीय बस अड्डे के समीप मजदूर भवन से कलक्ट्रेट तक जुलूस निकाला. छात्र नारे लगा रहे थे- कितने कन्हैया पकडोगे, हर घर से कन्हैया निकलेगा, वेमूला के हत्यारों को फांसी दो, मोदी- अखिलेश होश में आओ, छात्रशक्ति की आवाज सुनो आदि. प्रदर्शन का नेत्रत्व पूर्णिमा चौरसिया संयोजक एवं नवीन प्रजापति ने किया. कलेक्ट्रेट परिसर में हुयी सभा को नौजवान सभा के प्रदेश अध्यक्ष विनय पाठक, एआईएसएफ के पूर्व नेता कैलाश पाठक एवं सुधीर अवस्थी आदि ने संबोधित किया. ज्ञापन नगर मजिस्ट्रेट को सौंपा गया. अलीगढ से प्राप्त समाचार के अनुसार पान दरीबा कार्यालय से छात्रों का एक जुलूस नगर संयोजक अनीस कुमार के नेत्रत्व में महंगी शिक्षा दोहरी शिक्षा नहीं चलेगी, छात्रों को देशद्रोही बताना बंद करो, छात्रों में जाति धर्म के नाम पर फूट डालना बंद करो, आदि नारे लगाता हुआ कलक्ट्रेट पहुंच. वहीं अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय यूनिट की संयोजक कु. दूना मारिया भार्गवी के नेत्रत्व में कुछ छात्र विश्व विद्यालयों की स्वयत्तता पर हमले बन्द करो, छात्रों की छात्रवृत्ति बहाल रखो, शिक्षा का बजट बढाओ घटाओ नही आदि नारे लगाते हुये वहां पहुंचे. वहाँ एक सभा का आयोजन किया गया जिसे एसएफ के पूर्व नेता सुहेब शेरवानी, शमीम अख्तर, रामबाबू तथा इकबाल मंद ने संबोधित किया. ज्ञापन भी दिया गया. प्रदर्शन में विनीत कुमार, यशपाल सिंह, प्रवेश कुमार, हर्ष पालीवाल, यतेंद्र बघेल, गौरव सक्सेना, बबलू सक्सेना, अजय कुमार भारत गुप्ता, कु. ससीम्न, इरफान, अनस, ज़िम्नीश, अकरम हुसैन एवं अंसारी आदि ने भी भाग लिया. बदायूं में जिलाध्यक्ष विक्रम सिंह एवं सचिव कामेश के नेत्रत्व में जिला कार्यालय से एक जुलूस निकाला गया जो शहर के मुख्य भागों से होता हुआ जिला मुख्यालय पहुंच कर सभा में तब्दील होगया. वे नारे लगा रहे थे कि एआईएसएफ नेताओं को धमकियां देना बंद करो, धमकियां देने वालों को जेल भेजो, छात्रों पर लगाये फर्जी मुकदमे वापस लो आदि. प्रदर्शन में सर्वेश कुमार, अवनीश शर्मा, सतीश कश्यप एवं शुभम की अहम भूमिका रही. पूर्व नेता रघुराज सिंह आदि ने संबोधित किया. आज़मगढ में अध्यक्ष दलीप कुमार मौर्य और सचिव मुजम्मिल आज़मी के नेत्रत्व में एडीएम प्रशासन को ज्ञापन सौंपा गया. मुहम्मद साजिद, रंजीत मौर्य, मुहम्मद हामिद, सूरज मिश्रा, रामनरेश यादव, आमिर अली आदि छात्र तथा पूर्व छात्र नेता जितेंद्रहरि पान्डे आदि मौजूद थे. बांदा में कार्यकर्ताओं ने जिला कार्यालय से संयोजक कु. पूनम रहकवार के नेत्रत्व में जुलूस निकाला और सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा. वे नारे लगा रहे थे कि सभी को समान शिक्षा दो, बुंदेलखंड को अकालग्रस्त घोषित करो, रोजगार दो और भुखमरी से बचाओ आदि. सभा को पंकज यादव हफीज खान और रामजी यादव आदि ने संबोधित किया. लखनऊ में भी शिवानी मौर्य, प्रवीन त्रिवेदी, अमित कुशवाहा और श्यामबाबू मौर्य के नेत्रत्व में एडीएम को ज्ञापन सौंपा गया. इस अवसर अशोक सेठ एवं बाल गोविंद आदि ने छात्रों का सहयोग किया. कानपुर में एआईएसएफ के अध्यक्ष अक्षय इमेनुअल सिंह और सचिव मयंक चक्रवर्ती के नेत्रत्व में नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा गया. हाथरस में बलवीर सिंह अध्यक्ष, चांद खां सचिव के नेत्रत्व में जितेंद्र कुमार, दिनेश कुमार, राज आदि कार्यकर्ताओं ने अपर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर चरनसिंह बघेल, सत्यपाल रावल एवं द्रुगपाल सिंह आदि भी मौजूद रहे. फैजाबाद में राज्य अध्यक्ष ओंकारनाथ पांडे एवं संयोजक अतुल सिंह, आशीष कुमार पान्डे, राजकुमार के नेत्रत्व में नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा गया. इस अवसर पर अशोक तिवारी एवं पवित्र साहनी आदि भी मौजूद रहे. जौनपुर में अध्यक्ष धीरेंद्र कुमार पटेल, सचिव अरविन्द कुमार पटेल, राजकुमार सिंह, दिनेश कुमार पाल संदीप कुमार आदि ने नगर मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर सुभाष पटेल, सुबाश गौतम, मुनीम पटेल और जयलाल सरोज भी मौजूद रहे. मथुरा में उत्कर्ष चतुर्वेदी सचिव एवं अतुल कुमार के नेत्रत्व में उप जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया. सोनभद्र में संयोजक रवि प्रकाश शर्मा के नेत्रत्व में एडीएम को ज्ञापन सौंपा गया. अन्य मांगों के अतिरिक्त वहां कैमूर विश्वविद्यालय खोलने तथा रेनुकूट तथा राबर्ट्सगंज से ओबरा पी.जी. कालेज तक बस चलवाने की मांग छात्र हित में की गयी. इस अवसर पर विवेक तिवारी, राजेश चौधरी, आलोक गौतम, अरुण कुमार, करमवीर, राहुल विश्वकर्मा, सुगम पाठक, रजनीश कुमार, रोशन खां एवं राहुल शर्मा आदि भी उपस्थित रहे. अभी अभी गौंडा, बरेली, मेरठ, चित्रकूट एवं आगरा से भी ज्ञापन दिये जाने की खबरें मिली हैं. गिरीश

Tuesday, April 5, 2016

उत्तर प्रदेश में ए.आई.एस. एफ. का आंदोलन 6 अप्रेल को

लखनऊ—5 अप्रेल 20016. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार एवं एआईएसएफ के अन्य नेताओं को मिल रही धमकियों के खिलाफ तथा विभिन्न संस्थाओं में शिक्षण शुल्क बढाये जाने, शिक्षा के लिये बजट में भारी कटौती किये जाने, शिक्षा के बाजारीकरण और उसके आम छात्रों की पकड से बाहर चले जाने, शिक्षा प्रणाली के सांप्रदायीकरण, कमजोर तबकों के छात्रों के खिलाफ होरहे अत्याचारों के खिलाफ तथा एकेटीयू छात्रों की मांगें मानने में की जारही हीला हवाली, सभी को समान शिक्षा, निशुल्क शिक्षा, अनिवार्य शिक्षा और रोहित वेमूला एक्ट बनाये जाने आदि मुद्दों को लेकर आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन उत्तर प्रदेश में 6 अप्रेल को जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन करेगा. उपर्युक्त जानकारी यहाँ एक प्रेस वक्तव्य में एआईएसएफ के राज्य अध्यक्ष ओंकारनाथ पांडे ने दी है. उन्होने बताया कि एआईएसएफ के कार्यकर्ता महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन संबंधित जनपद के जिलाधिकारी को सौंपेंगे. जिलों से मिल रही रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर जिलों में कार्यक्रम की तैयारियां पूरी कर ली गयीं हैं. उन्होने दाबा किया कि पिछले कई वर्षों में उत्तर प्रदेश में एआईएसएफ की यह एक बडी कार्यवाही होगी. उन्होने सभी छात्रों से अपील की कि इस कार्यवाही में बढ चढ कर भाग लें. जारी द्वारा ओंकार नाथ पांडे, अध्यक्ष आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन, उत्तर प्रदेश

Thursday, March 31, 2016

कन्हैया कुमार और एआईएसएफ के नेताओं को धमकी देने वालों तथा अलीगढ में राष्ट्रगान का अपमान करने वालों के विरुध्द कडी कार्यवाही करे उत्तर प्रदेश सरकार: भाकपा ने की मांग

लखनऊ- 31 मार्च 2016- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के अन्य नेताओं को जान से मारने की धमकी दिये जाने, उनकी जीभ काटने और गर्दन रेतने की धमकी दिये जाने, कन्हैया कुमार को अलीगढ अथवा यू. पी. में घुसने पर परिणाम भुगतने की धमकी दिये जाने तथा मीडिया के कतिपय हिस्सों में छप रहे बयानों और समाचारों में कन्हैया कुमार को बार बार देशद्रोही कहे जाने की कार्यवाहियों की कडे से कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने कल अलीगढ नगर निगम बोर्ड की बैठक में भाजपा के सभासदों द्वारा राष्ट्रगान और संविधान का अपमान किये जाने की भी भर्त्सना की है. भाकपा ने राज्य सरकार से मांग की है कि वे इन कुकृत्यों में लिप्त अपराधिक तत्वों और कथित देशभक्तों के खिलाफ माकूल दफाओं में अभियोग दर्ज कर इन्हें जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाये. भाकपा के राज्य सचिव मंडल की ओर से यहाँ जारी एक बयान में पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि अभी मेरठ के अमित जानी नामक शख्स ने जिसने विगत वर्ष सुश्री मायावती की प्रतिमाओं को क्षति पहुंचाई थी, कन्हैया कुमार और उमर खालिद को जान से मारने की धमकी दी है. भाकपा ने इसका संज्ञान लेते हुये राज्य सरकार से लिखित शिकायत कर उसे गिरफ्तार करने की मांग की है. कुछ लोगों ने ट्विटर के जरिये कन्हैया कुमार एवं एआईएसएफ के अध्यक्ष वलीउल्लाह खादरी को धमकी दी है कि यदि उन्होने उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया तो उनकी गर्दन काट दी जायेगी. अलीगढ के कुछ भगवा संगठन भी कन्हैया कुमार के अलीगढ आगमन को लेकर आपत्तिजनक और अशांति पैदा करने वाली बयानवाजी कर रहे हैं. बदायूं के एक कुलदीप वार्ष्णेय नामक तत्व जिसने कन्हैया कुमार की जीभ काटने वाले को पांच लाख का इनाम देने की घोषणा की थी, वह भी जगह जगह जाति की सभाओं में पहुंच कर विष वमन कर रहा है. डा. गिरीश ने उत्तर प्रदेश में छप रहे और वितरित होरहे कुछ समाचार पत्रों पर आरोप लगाया कि वे भाकपा, एआईएसएफ और कन्हैया कुमार की छवि धूमिल करने को जान बूझ कर लगातार कन्हैया कुमार को देश द्रोही लिख रहे हैं. ऐसे समाचार पत्रों पर प्रेस काउंसिल और सरकार को कानून सम्मत कार्यवाही करनी चाहिये. कल अलीगढ नगर निगम की बैठक में भाजपा के सभासदों द्वारा राष्ट्रगान की गरिमा तार तार करने पर गहरा अफसोस जताते हुये भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि भगवा गिरोह खुद नित रोज राष्ट्रगान, तिरंगा ध्वज और राष्ट्रीय मर्यादाओं को तहस नहस कर रहा है. किसी भी नागरिक के लिये बर्दाश्त के बाहर है. दूसरों पर झूठे देशद्रोह के आरोप लगाने वाले संघ परिवार की कथनी और करनी साफ जाहिर होगयी है. राज्य सरकार को इस संविधान विरोधी कृत्य के खिलाफ शीघ्र कडी कार्यवाही करनी चाहिये. भाकपा राज्य सचिव ने आशा जताई है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था, शांति व्यवस्था और जनतांत्रिक गतिविधियों को बनाये और बचाये रखने को वह स्वत: संज्ञान लेते हुये राज्य सरकार कडी से कडी कार्यवाही करे. गिरीश

Tuesday, March 29, 2016

उत्तराखंड सरकार की बर्खास्तगी के खिलाफ विपक्ष ने भरी हुंकार

हाथरस: 29 मार्च, जनपद के कई राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों की एक बैठक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में उन्हीं के आवास पर संपन्न हुयी. बैठक में केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की कडे से कडे शब्दों में निंदा की गयी और भाजपा सरकार के इस कदम को संविधान विरोधी और लोकतंत्र पर बडा हमला बताया गया. बैठक को संबोधित करते हुये भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि बहुमत साबित करने की तिथि से एक दिन पूर्व षड्यंत्र के तहत उत्तराखंड की सरकार को बर्खास्त किया जाना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि एस.आर. बोम्मई प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि बहुमत साबित करने की जगह सदन/ विधान सभा है ना कि राष्ट्रपति भवन अथवा राजभवन. लेकिन सत्ता की भूख में भाजपा सारी लोकतांत्रिक परंपराओं और मर्यादाओं का हनन करने पर आमादा है. डा. गिरीश ने कहाकि केंद्र सरकार अपने जनविरोधी कार्यों और वायदा खिलाफी के चलते जनता और मतदाताओं का पूरी तरह विश्वास खो बैठी है और दिल्ली तथा बिहार विधान सभा के चुनावों में उसे करारी पराजय का सामना करना पडा था. आगामी पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में भी उसकी करारी हार के लक्षण साफ नजर आने लगे हैं. वोट के जरिये सत्ता हासिल न कर पाने में विफल भाजपा अब सत्ता हरण के लिये तमाम अनैतिक हथकंडे अपना रही है. पहले उसने अरुणांचल में सत्ता हरण का घृणित खेल खेला और अब वही खेल उत्तराखंड में खेला जा रहा है. अगर इसका माकूल जबाव नहीं दिया गया तो विपक्ष की एक एक राज्य सरकार को हडपने की कोशिश की जायेगी. बैठक में सहमति बनी कि जल्दी ही दोबारा बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जायेगी. " लोक तंत्र बचाओ, संविधान बचाओ," "संविधान बचाओ, देश बचाओ" के उद्घोष के साथ अभियान चलाया जायेगा. बैठक में राष्ट्रीय लोक दल के जिलाध्यक्ष चौधरी रमेश ठैनुआं व मनोज चौधरी, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष करुणेश मोहन दीक्षित व नगर अध्यक्ष चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, समाजवादी पार्टी के जिला सचिव गौरीशंकर बघेल व अभयपाल सिंह तथा भाकपा के जिला सचिव का. चरनसिंह बघेल व सहसचिव सत्यपाल रावल आदि ने भी विचार व्यक्त किये. डा. गिरीश

Wednesday, March 16, 2016

जेएनयू प्रकरण और वामपंथ पर किये जा रहे हमलों को जनता के बीच ले जायेगी भाकपा

लखनऊ 16 मार्च। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य कौंसिल की दो दिवसीय बैठक आज यहां सम्पन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता सेवानिवृत्त अपर जिलाधिकारी का. बी. राम ने की।
बैठक में जेएनयू प्रकरण और उसके बाद के हालात, मुजफ्फरनगर दंगों की रिपोर्ट, आरक्षण आन्दोलन, रेल तथा आम बजट आदि राष्ट्रीय सवालों और उत्तर प्रदेश के हालातों पर विस्तार से चर्चा हुई।
चर्चा के बाद भाकपा ने अपने आगे के कामों का निरूपण भी किया। संघ परिवार द्वारा लादी जा रही तानाशाही और साम्प्रदायिकता का पूरी शिद्दत से जवाब देने के लिए शहीदे आजम भगत सिंह के बलिदान दिवस (23 मार्च) और डा. भीम राव अम्बेडकर के जन्म दिवस (14 अप्रैल) को समर्पित कार्यक्रम 20 मार्च से 20 अप्रैल तक सघन तरीके से चलाने का निर्णय लिया गया। इस अवसर पर ”संविधान की प्रस्तावना लागू करो“ और ”वर्गविहीन और जातिविहीन समाज का निर्माण और डा. अम्बेडकर“ विषय पर विचारगोष्ठियां आयोजित की जायेंगी। पूरे माह सभायें, नुक्कड़ सभायें, पर्चा वितरण करके कम्युनिस्टों और वामपंथी दलों को बदनाम करने की संघ परिवार की साजिश को बेनकाब किया जायेगा और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमलों का जवाब दिया जायेगा। जिला कमेटियों से अनुरोध किया गया है कि वे इन आयोजनों में वामपंथी दलों के अतिरिक्त अन्य जनवादी ताकतों को जोड़ने का भी प्रयास करें।
रेल बजट, आम बजट और सरकार की नीतियों को पूरी तरह से कारपोरेट घरानों के अनुकूल और देश के बहुमत किसानों, मजदूरों, दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रतिकूल बताते हुए पार्टी ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि विजय माल्या जैसे जनता के धन को लूटने वाले लोग देश छोड़ कर भाग जाते हैं और सरकार कुछ भी नहीं कर पाती है। भाकपा ने विजय माल्या को जल्दी से जल्दी देश में वापस लाने, उनकी समस्त परिसम्पत्तियों को जब्त करने और उन पर अभियोग चलाने की मांग की है तथा चेतावनी दी है कि धनिक वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए गरीबों के हितों पर कुल्हाड़ा चलाने से सरकार बाज आये। भाकपा इस दिशा में शीघ्र ही एक बड़े आन्दोलन की रूपरेखा बनाने जा रही है।
भाकपा की राज्य कौंसिल बैठक में भावी विधान सभा चुनावों की तैयारियों पर भी चर्चा की गयी और जिलों को निर्देश दिया गया कि वे लड़ने योग्य सीटों को तय करके सूची राज्य केन्द्र को शीघ्र से शीघ्र प्रेषित करें।
बैठक में 1 मई से 10 मई तक जनता से धन संग्रह अभियान चलाने का निर्णय भी लिया गया।
बैठक में राजनैतिक और कार्यों सम्बंधी रिपोर्ट राज्य सचिव डा. गिरीश ने प्रस्तुत की जिस पर 35 साथियों ने चर्चा में भाग लिया।

Thursday, February 25, 2016

भाजपा और संघ की फासिस्टी कार्यवाहियों के खिलाफ वामदल एकजुट होरहे हैं

वामदलों के लोकतंत्र बचाओ अभियान को व्यापक समर्थन उत्तर प्रदेश में ज्यादातर जिलों में बड़ी संख्या में सडकों पर उतरे वामपंथी कार्यकर्ता इलाहाबाद में आन्दोलनकारी वाम नेताओं पर किया गया कातिलाना हमला दोषी हमलावरों को गिरफ्तार करने की मांग लखनऊ 25 फरवरी: वामपंथी दलों के राष्ट्रीय आह्वान पर उत्तर प्रदेश में आयोजित लोकतंत्र बचाओ अभियान को जनता का व्यापक समर्थन मिला है. प्रदेश के ज्यादातर जिलों में मार्च निकाले गए अथवा धरने प्रदर्शन आयोजित किये गए. वाम दलों ने इस सफलता के लिए प्रदेश की जनता को बधाई दी है. ज्ञातव्य हो कि छः वामदलों ने 23 से 25 फरवरी तक पूरे देश में लोकतांत्रिक अधिकारों पर किये जारहे हमलों के खिलाफ, रोहित वेमुला को न्याय दिलाने, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कन्हैया कुमार को रिहा करने तथा उन पर एवं कई निर्दोष छात्रों पर लगे फर्जी मुकदमे वापस लेने आदि मांगों को लेकर तीन दिवसीय अभियान चलाने का निर्णय लिया था. अभियान के दौरान आज वामदलों के शान्तिपूर्ण तरीके से आन्दोलन कर रहे कार्यकर्ताओं पर कचहरी के अन्दर कातिलाना हमला किया गया. हमले में दर्जनों कार्यकर्ता हताहत हुए हैं. हमला करने वालों में भाजपा कार्यकर्ता तथा उनके पिट्ठू वकील थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश एवं भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) के राज्य सचिव मंडल सदस्य प्रेमनाथ राय ने यहाँ जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में इलाहाबाद की घटना की घोर निंदा करते हुए दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की है. डा. गिरीश

Friday, February 12, 2016

कन्हैया कुमार को तत्काल रिहा किया जाये : भाकपा

लखनऊ-12, फरवरी—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी( JNU) छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी की कडे शब्दों में निंदा की है. भाकपा ने कन्हैया की तत्काल बिना शर्त रिहाई तथा जे.एन.यू. कैम्पस से पुलिस हठाने की मांग की है. भाकपा ने लखनऊ में एसएफआई कार्यालय पर एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा किये गये हमले और तोड फोड की भी निंदा की है तथा इस घटना के दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि गत दिन जेएनयू में हुये कार्यक्रम के दौरान कुछ तत्वों ने अवांछित नारे लगाये थे जिनकी पहचान कर उनके खिलाफ कार्यवाही की जाने की जरूरत थी. कन्हैया ने कल रात ही टी. वी. चैनल्स पर साफ कर दिया था कि इस तरह के नारे लगाने वालों से उनका कोई संबंध नहीं और उन्होने ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्यवाही की मांग भी की थी. कन्हैया कुमार वामपंथी छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से संबधित हैं जिसकी आज़ादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है और सदैव ही यह संगठन छात्र एवं शैक्षिक हितों के लिये काम करता रहा है. गत दिनों इस संगठन ने अन्य छात्र संगठनों के साथ मिल कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पर तथा हैदराबाद के दलित छात्र रोहित वेमुला की हत्या के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाया है, जिससे केंद्र सरकार बौखलाई हुयी है. केंद्र सरकार और उसका जनक संघ परिवार वामपंथी, दलित, अल्पसंख्यक और अन्य मेहनतकश तबकों को तवाह कर कार्पोरेट्स के हितों को साधने में लगे है और उसके लिये वे प्रतिरोध की आवाज को दबाना चाहते हैं. इसीलिये पहले दाभोलकर, पंसारे और कालबुर्गी की हत्यायें की गयीं और अब जेऐनयू, ए.एम.यू., लखनऊ, हैदराबाद और इलाहाबाद जैसे विश्वविद्यालयों की स्वायत्त्तताको निशाना बनाया जारहा है. जो सरकार आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह विफल रही है वह ऐसे लोगों को देशद्रोही करार देने पर उतारु है जो आतंकवाद और सांप्रदायिकता से जूझते रहे हैं. वामपंथ पर यह हमला इस बात का संकेत दे रहा है कि फासीवाद पैर पसारने को मचल रहा है. भाकपा सभी जनवादी ताकतों से अपील करती है कि वे केंद्र सरकार के इन तानाशाहीपूर्ण कदमों के खिलाफ कडा प्रतिवाद दर्ज करायें. डा. गिरीश, राज्य सचिव

Sunday, February 7, 2016

केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ भाकपा का जिला केन्दों धरना प्रदर्शन 11 फरबरी को

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने अपनी समस्त जिला इकाइयों को निर्देशित किया है कि वे केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार के जन विरोधी कार्यों से जनता को राहत दिलाने को 11 फरबरी को जिला स्तर पर आन्दोलन करें. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहाकि केन्द्र की मोदी सरकार बेशर्मी के साथ आर्थिक नव उदारवाद के एजेंडे पर चल रही है, इसके चलते जनता की समस्यायें लगातार बढ़ रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट के बावजूद पेट्रोल डीजल के दाम काफी ऊँचे स्तर पर हैं, राशन खाद गैस आदि सभी पर सब्सिडी ख़त्म कर दी गयी है, महंगाई सातवें आसमान पर है, रेल आदि सभी सरकारी उपक्रमों में जनता को मिली सुविधायें छीनी जारही हैं तथा सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न का एजेंडा लगातार जारी है. उत्तर प्रदेश सरकार के विकास के दावों का खोखलापन तो इसीसे जाहिर होजाता है कि मौसम की मार से पीड़ित किसानों को कोई राहत नहीं मिल पा रही और बुंदेलखंड सहित प्रदेश के तमाम हिस्सों में किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं. गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर रु. ६५० करोड़ बकाया है, लागतों में भारी वृध्दि के बावजूद तीन वर्षों से गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया नहीं गया, किसान रु.350/- प्रति कुंतल की मांग कर रहे हैं, बिजली विभाग बसूली के नाम पर उपभोक्ताओं का उत्पीड़न कर रहा है- बिजली के कनेक्शन काटे जारहे हैं, बकायेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जारहीं हैं और रिश्वतें ली जारही हैं, बिजली मिल नहीं पारही, गरीबी की सीमा के नीचे वालों के राशन में कटौती कर दीगयी है, आये दिन महिलाओं और कमजोरों के उत्पीडन की बारदातें होरही हैं, क़ानून- व्यवस्था पंचर होगयी है, दलितों की जमीनों को हडपने का रास्ता खोल दिया गया है. आतंकवाद के नाम पर पूर्व में गिरफ्तार लोगों को अदालतें रिहा कर रही हैं, मगर अब तमाम लोगों को आतंकी बता कर गिरफ्तार किया जारहा है. उन्हें अदालतों द्वारा दोषी ठहराने से पहले ही आतंकवादी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. इन्हीं तमाम जनता से जुड़े सवालों पर भाकपा ने 11 फरबरी को जिलों में धरने, प्रदर्शन अथवा आम सभायें आयोजित करने का निश्चय किया है. जनता की इन समस्याओं के निराकरण के लिए प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के लिए ज्ञापन जिलाधिकारियों के माध्यम से भेजे जायेंगे. डा.गिरीश