Sunday, December 26, 2010

”हमें तुम्हारे स्विस बैंक खाते का हिसाब चाहिए“

लखनऊ 26 दिसम्बर। लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों - राजनीति, नौकरशाही और न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार की कटु भर्त्सना के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ तथा व्यापक चुनाव सुधारों के लिए व्यापक जनसंघर्ष के संकल्प के साथ आज भाकपा के 85वें स्थापना दिवस पर यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की लखनऊ जिला कौंसिल द्वारा ”हमें तुम्हारे स्विस बैंक खाते का हिसाब चाहिए“ शीर्षक से आयोजित परिचर्चा सम्पन्न हुई।



परिचर्चा शुरू करते हुए भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने मुंडरा काण्ड से लेकर 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले तक के तमाम घोटालों की चर्चा करते हुए कहा कि पूंजीवाद ने जिस भ्रष्टाचार को पिछले बीस सालों में फैलाया है, उसके खिलाफ व्यापक जन-संघर्ष के बिना लोकतंत्र को बचाया नहीं जा सकता और इसके लिए शहरी मध्यमवर्ग को अगुवा दस्ते की भूमिका अदा करनी होगी। उन्होंने पंचायत चुनावों तक फैल गये भ्रष्टाचार पर चिन्ता जाहिर करते हुए कहा कि आश्चर्य होता है कि ग्राम प्रधान और ब्लाक प्रमुख तक के प्रत्याशियों ने करोड़ों रूपये खर्च किये हैं। उन्होंने कहा कि आज भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करने वाले राजनीतिक दल - भाजपा, सपा, राजग, बसपा आदि सभी जिस पैसे से चुनाव लड़ते हैं, वह भ्रष्टाचार के जरिए ही पैदा किया गया होता है। उन्होंने व्यापक चुनाव सुधारों पर भी बल दिया जिसमें अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और वापसी के अधिकार का उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया।



परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए भाकपा के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान ने कहा कि तेलगी काण्ड से शुरू हुए तमाम घोटालों ने देश में एक आवारा पूंजी को जन्म दिया है जो देश में हर चीज को अवारा बना रही है। उन्होंने कहा इस अवारा पूंजी द्वारा पैदा किए गए अवारा भ्रष्टाचार के खिलाफ समाज के सजग लोगों को निकलना ही होगा। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हमें परिपक्व इरादों की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि स्विस बैंक जमा अरबों करोड़ रूपये के मामले को भाकपा के सांसद गुरूदास दासगुप्ता ने संसद में उठाया था तब भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी बिलकुल चुपचाप बैठे रहे थे और उन्होंने स्वर नहीं उठाया था। उन्होंने कहा कि भाकपा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ क्षेत्रीय सम्मेलनों का फैसला लिया है और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही योजना बनाई जायेगी।



विख्यात आरटीआई कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में अगर स्विस बैंक में जमा अरबों करोड़ रूपये अगर वापस आ भी गये तो भ्रष्टाचार के जरिए वे दुबारा स्विस बैंक या किसी दूसरे देश के बैंकों में पहुंच जायेंगे। उन्होंने एक ऐसी एकीकृत एजेंसी के गठन पर बल दिया जिसके पास राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों तथा न्यायाधीशों के सभी खिलाफ जांच करने और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का अधिकार हो।



फारवर्ड ब्लाक के सचिव वीरेन्द्र कुमार ने भाकपा द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किए अभियान में फारवर्ड ब्लाक द्वारा शिरकत की घोषणा करते हुए कहा कि निमंत्रण भेजे जाने के बावजूद बाकी राजनीतिक दलों का परिचर्चा में भाग न लेना यह दर्शाता है कि वे भ्रष्टाचार में कितने तल्लीन हैं। इंडियन एसोसिएशन ऑफ लॉयर्स के महासचिव शास्त्री प्रसाद त्रिपाठी, एडवोकेट ने जहां न्यायपालिका के अन्दर ही व्याप्त भ्रष्टाचार पर चल रहे आत्ममंथन और चिन्ता की चर्चा की वहीं वाई.एस.लोहित एडवोकेट ने संस्थागत भ्रष्टाचार और छोटे स्तर के भ्रष्टाचार में अंतर करने की बात कही। महिला फेडरेशन की कान्ती मिश्रा ने भ्रष्टाचार के कारण महिलाओं पर पड़ रहे कुप्रभावों की चर्चा करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ जनान्दोलन को महिलाओं को आगे आने का आह्वान किया। यू.पी. बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के मंत्री आर.के.अग्रवाल ने कहा कि हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के पहले खुद से लड़ना होगा। एलआईसी कर्मचारियों के नेता लालता शाह ने कहा कि हमें परेशानियों से बचने के लिए और निजी नुकसान की आशंका से भ्रष्टाचार से समझौता करने की प्रवृत्ति के खिलाफ भी संघर्ष करना होगा।



परिचर्चा की शुरूआत में विषय प्रवर्तन करते हुए ”पार्टी जीवन“ के कार्यकारी सम्पादक प्रदीप तिवारी ने कहा कि पूंजीवाद में पूंजी अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए जिन बुराईयों को जन्म देती है उनके प्रमुख है राजनीति में भ्रष्टाचार फैलाना। पिछले 20 साल पहले देश में आर्थिक उदारीकरण का जो दौर शुरू हुआ था, उसमें पूंजी ने मुनाफे के बरक्स अगर कुछ बढ़ना शुरू हुआ तो वह था भ्रष्टाचार और खाद्य पदार्थों की कीमतें। इन दोनों ने मिल कर देश की 95 प्रतिशत जनता का जीवन दुश्वार कर दिया है। उन्होंने इतिहास में जाते हुए कहा कि 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर चुनाव जीतने के लिए भ्रष्ट तरीकों का इस्तेमाल करने के लिए उंगली क्या उठा दी थी कि उसके फलस्वरूप आपात काल घोषित हुआ और 1977 में कांग्रेस को पहली बार केन्द्र में सत्ता से बेदखल होना पड़ा। 1988 में फिर बोफोर्स दलाली का मुद्दा चुनावी मुद्दा बना और सत्ता परिवर्तन हो गया।



प्रदीप तिवारी ने कहा कि 1993 में नरसिम्हाराव ने अपनी सरकार बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को ही खरीद लिया। उसके बाद से अगर संयुक्त मोर्चा सरकार के छोटे-से कार्यकाल को छोड़ दिया जाये तो कांग्रेस नीत संप्रग या भाजपा नीत राजग ही केन्द्र सरकार में सत्तासीन रहे। कहने को दो महा-ईमानदार - अटल बिहारी बाजपेई और मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री रहे पर ये दोनों भ्रष्टों के पालनहार की भूमिका में ही नजर आए। प्रदीप तिवारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा अदल-बदल कर सत्ता चलाते रहे और इनके भ्रष्टाचार ने पंचायत चुनावों तक को भ्रष्टाचार की दलदल में ढ़केल दिया है। उन्होंने परिचर्चा में भाग ले रही जनता का आह्वान करते हुए कहा कि इस माहौल में संघर्ष के लिए जनता को खड़ा करना जरूरी हो गया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष एक फौरी जरूरत बन गया है। भ्रष्टाचार के मुद्देनजर वर्तमान चुनावी व्यवस्था सड़ चुकी है और चुनाव सुधारों के लिए संघर्ष भी फौरी जरूरत बन गया है।



परिचर्चा के पहले वयोवृद्ध कम्युनिस्ट शिव प्रकाश तिवारी ने ध्वजारोहण किया। इप्टा के साथियों ने इस मुद्दे पर एक गीत प्रस्तुत किया। परिचर्चा की अध्यक्षता भाकपा जिला सचिव मो. खालिक ने की।

Wednesday, December 22, 2010

”हमें तुम्हारे स्विस बैंक खाते का हिसाब चाहिए“


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 85वें स्थापना दिवस पर लखनऊ भाकपा का आयोजन

“हमें तुम्हारे स्विस बैंक खाते का हिसाब चाहिए”


भ्रष्टाचार एवम् चुनाव सुधार पर परिचर्चा

रविवार, दिनांक 26 दिसम्बर 2010 सायं 3.00 बजे

स्थान: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कार्यालय,

22 - कैसरबाग (अमीरूद्दौला पुस्तकालय/ बारादरी के पीछे), लखनऊ

आप सभी सादर आमंत्रित हैं!

निवेदक:

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, लखनऊ जिला कौंसिल

सम्पर्क: 9336859512, 9452756969



कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन में बढ़ती महंगाई, रोता आम आदमी और भरोसा दिलाते प्रधानमंत्री


दो साल से ज्यादा हो गये जब वाम मोर्चा ने संप्रग-1 सरकार से समर्थन वापस लेते समय जो कारण गिनाये थे उनमें एक मुद्दा महंगाई का भी था। आजादी के बाद के इतिहास में महंगाई बढ़ने की अभूतपूर्व गति बरकरार है। कृषि मंत्री शरद पवार जब भी मुंह खोलते हैं, महंगाई और बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष इत्मीनान से बंसी बजा रहे हैं कि आने वाले तीन महीनों में महंगाई पर काबू पा लिया जायेगा लेकिन महंगाई बढ़ती जा रही है, आम आदमी रो रहा है और प्रधानमंत्री मार्च 2011 तक महंगाई पर काबू पाने का भरोसा दिला रहे हैं परन्तु कर ऐसा कुछ रहे नहीं हैं जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके।



कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक आम आदमी की चर्चा की है। वे मानते हैं कि ”आम आदमी“ वह है जिसका उनकी व्यवस्था से कोई सम्पर्क नहीं है। शायद यही कारण है कि उसके दर्द को भूमंडलीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की यह व्यवस्था समझने को तैयार नहीं है। इस आम आदमी का रेखाचित्र बनाते हुए एक काव्यात्मक अंदाज में कांग्रेस के युवराज ने कहा - ”वह गरीब हो या अमीर, शिक्षित हो या अशिक्षित, हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, अगर वह इस व्यवस्था से नहीं जुड़ा है तो वह ‘आम आदमी’ है। ..... यह आम आदमी नियमगिरि का वह आदिवासी बालक है, जिसे अपनी जमीन से बिना किसी कानून के बेदखल कर दिया जाता है। यह आम आदमी झांसी का वह दलित बालक है जिसे अपनी कक्षा में दलित होने के कारण सबसे पीछे बिठाया जाता है। वह बंगलुरू का वह युवा प्रोफेशनल है, जिसके बच्चे को ऊंची कैपिटेशन फीस न दे पाने के कारण अच्छे स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाया। वह शिलांग के विश्वविद्यालय का टॉपर है, जिसे इसलिए काम नहीं मिल सका, क्योंकि वह सही लोगों को नहीं जानता। वह अलीगढ़ का वह किसान है जिसे अपनी जमीन का उचित मुआवजा नहीं मिला है। वह हैदराबाद का बिजनेसमैन है जिसके अपने सम्पर्क नहीं हैं। यह ऐसा नौकरशाह है, जिसका भविष्य समझौता न करने की वजह से जोखिम में है। यह वह मेट्रो वर्कर है जिसने अपने खून-पसीने से उसे बनाया है, लेकिन जिसका उसे कोई श्रेय नहीं मिलता है। ...... वह जी-जान से इस देश को रोज बनाता है फिर भी हमारी व्यवस्था उसे हर कदम पर कुचलती है।“ आम आदमी को कुचलने का धमंड कांग्रेस में कूट-कूट कर भरा हुआ है।



इस रेखाचित्र में महंगाई और भ्रष्टाचार का मारा वह आम आदमी कहीं राहुल गांधी को नहीं दिखाई देता जिसके दुःख दर्दों के लिए उनकी तीन पीढ़ियां जिम्मेदार हैं। वे तीन पीढ़ियां जिन्होंने इस देश पर लम्बे समय तक शासन किया है। उनकी दादी इंदिरा गांधी के युग में इस आदमी के नाम का अखण्ड जाप कांग्रेस और सरकार रात-दिन करती रहती थी परन्तु उसके लिए करती कुछ नहीं थीं। उससे केवल वोट लेती थी। इस रेखाचित्र से कई सवाल उठते हैं, लेकिन एक सवाल को उठाना जरूरी है - आखिर कौन है जिम्मेदार जिसके कारण नियमगिरि का आदिवासी बालक अपनी जमीन से बेदखल होता है, दलित बालक को सबसे पीछे बैठना पड़ता है, पूरे देश के गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की संतानें शिक्षा से वंचित रह जा रही हैं, टॉपरों को रोजगार नहीं मिलता आदि आदि। क्या जिम्मेदार वे सरकारें नहीं जो केन्द्र में या राज्यों में कांग्रेस चला रही है? क्या जिम्मेदार वे नीतियां नहीं जिन्हें उनकी पार्टी ने इस देश में चलाना शुरू किया था? राहुल गांधी इस आम आदमी को एक बार फिर बेवकूफ बना कर वोट बटोरने की राजनीति खेल रहे हैं।



कांग्रेस के इसी अधिवेशन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि मार्च 2011 तक महंगाई दर गिर कर 5.5 प्रतिशत हो जायेगी। इसे पढ़ कर या सुनकर अजीब सी अनुभूति होती है। उनकी सरकार के अनुसार तो महंगाई दर गिर कर नवम्बर में 7.48 प्रतिशत आ गयी है लेकिन आज प्याज 70 रूपये किलो बिक रहा है। पेट्रोल के भाव पिछले पांच महीनों में पांच बार कीमतें बढ़ाकर 60 रूपये प्रति लीटर सरकार ने पहुंचा ही दिये हैं। डीजल, किरोसिन और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाने की तैयारी है। खाद्यान्न व्यापार में विदेशी पूंजी को अनुमति दी जा रही है, सट्टेबाजी कराई जा रही है और आयात-निर्यात का खेल चल रहा है। आम आदमी भूखों मरता है तो मरे। 87 करोड़ जनता 20 रूपये प्रतिदिन से कम आमदनी पर जीवित है, महंगाई के बावजूद गरीबी की इस रेखा में कोई परिवर्तन नहीं आया है। मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में कोई अन्तर नहीं आया है। उस आम आदमी की कोई पीड़ा उनके चेहरे पर नहीं झलकती।



कांग्रेस के इसी अधिवेशन में प्रस्तुत एक आर्थिक प्रस्ताव कहता है कि विकासशील देश में कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि उनकी आपूर्ति और मांग के मध्य असंतुलन होता है। कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि कई सेवाओं और वस्तुओं के निर्माताओं को ज्यादा कीमत दिये जाने की जरूरत होती है। कुछ कीमतें इसलिए बढ़ती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उनकी कीमतें ऊपर चली जाती हैं। इस प्रस्ताव में भी कहीं दर्द नहीं झलकता उस आम आदमी का। यानी सब कुछ किसी न किसी कारक का सहज परिणाम है क्योंकि मुक्त अर्थव्यवस्था में सब कुछ सरमाया करता है, सरकारें कुछ नहीं। सरकारें तो केवल घोटाले, घपले और भ्रष्टाचार के लिए बनाई जाती हैं जिनसे आम आदमी का कोई सम्पर्क नहीं है। शायद वह समय आ गया है जब यह सवाल भी खड़ा किया जाये कि सरकारों की फिर जरूरत क्या है?



कांग्रेस के बुरांड़ी अधिवेशन ने आम आदमी को एक बार फिर ललकारा है कि तेरा कोई वजूद नहीं, तेरा कोई महत्व नहीं, तेरी कोई जरूरत नहीं, तेरी कोई अस्मिता नहीं।



आम आदमी का खून अगर अब भी इस ललकार से नहीं खौलता तो शायद वह पानी ही है खून नहीं!



- प्रदीप तिवारी

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य परिषद