Friday, June 15, 2012

नगर निकाय चुनाव - वामपंथी दलों में बनी आपसी सहयोग की सहमति

लखनऊ 16 जून। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भाकपा (माले), आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक एवं रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने फैसला लिया है कि वे उत्तर प्रदेश में चार चरणों में होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनावों में एक दूसरे के प्रत्याशियों का समर्थन करेंगे।
यहां सम्पन्न एक बैठक के बाद एक संयुक्त बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश, भाकपा (माले) की राज्य स्थाई समिति के सदस्य अरूण कुमार, फारवर्ड ब्लाक के प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर तथा आरएसपी के प्रदेश सचिव संतोष गुप्ता ने कहा कि चारों वामपंथी दल यद्यपि प्रदेश में सीमित सीटों पर ही चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन वे वामपंथी दल ही हैं जो निकायों को भ्रष्टाचार से निजात दिलाने तथा वहां जनहितों को पूरा कराने में सक्षम हैं। अब तक विजयी होते रहे पूंजीवादी दलों के पदाधिकारियों ने इन निकायों में भारी भ्रष्टाचार किया है और जनता के अधिकारों का हनन किया है। अतएव ऐसे प्रत्याशियों से जनता का मोहभंग हो रहा है और वह वामपंथ को एक सहयोगी की भूमिका में देख रही है।
वामपंथी दलों ने जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु ही अपने प्रभाव के क्षेत्रों में नगर निगम के मेयर, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष एवं नगर पंचायतों के चेयरमैन के पदों पर तथा अन्य अनेक वार्डों में सदस्यों के लिए प्रत्याशी उतारे हैं। चारों वामदलों के नेताओं ने अपनी जिला कमेटियों और कार्यकर्ताओं का आह्वान किया है कि वे एक दूसरे दलों के प्रत्याशियों का पुरजोर समर्थन करें।
चारों वाम दलों ने प्रदेश के मतदाताओं से भी अपील की है कि वे इन निकाय चुनावों में वामदलों के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान कर इन निकायों में स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने तथा जनता के हितों की बहाली के लिए मार्ग प्रशस्त करें।
(डा. गिरीश)
राज्य सचिव
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी  
 (अरूण कुमार)
सदस्य, राज्य स्थाई समिति
भाकपा (माले) 
  (राम किशोर)
अध्यक्ष
फारवर्ड ब्लाक, उ.प्र.  
 (संतोष गुप्ता)
सचिव
आरएसपी, उ.प्र.

Thursday, June 14, 2012

तीसरे और चौथे दौर के निकाय चुनावों में भाकपा ने प्रत्याशी उतारे

    लखनऊ 14 जून। तीसरे और चौथे चरण के निकाय चुनावों में भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कई प्रत्याशी नगर पालिका परिषद एवं नगर पंचायत के अध्यक्ष/चेयरमैन के पद हेतु चुनाव मैदान में उतरे हैं। इसके अलावा सैकड़ों वार्डों में भी भाकपा प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।

उपर्युक्त जानकारी देते हुए भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि नगर पालिका परिषद शाहजहांपुर के अध्यक्ष पद हेतु श्रीमती अंजू, धनौरा से नरेश चन्द्रा, बछराऊं से जाकिर कुरैशी, जलाली से शशि देवी, अतर्रा से शोभा देवी कुरील, तिन्दवारी से रमाकान्त पटेल, मंटौंज से महावीर प्रजापति, गुरूसराय से भागीरथ श्रीवास, प्रतापगढ़ से शीतला प्रसाद सुजान, बांगरमऊ से मास्टर हामिद अली तथा खड्डा नगर पंचायत से शैलेश उपाध्याय चुनाव मैदान में हैं। इसके अलावा पहले दो दौर की सूची पूर्व में ही जारी कर दी गई है।

भाकपा राज्य सचिव ने दावा किया कि नगर निकायों में अब तक चुने जाते रहे पूंजीवादी दलों के प्रत्याशी भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं और उन्होंने निकाय संस्थाओं को खोखला करके रख दिया है। इसलिये जहां भी भाकपा के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जनता भी उनके साथ लामबंद हो रही है।


कार्यालय सचिव

Saturday, June 9, 2012

होशियार! पेट्रोल कीमतों पर जनता की सहनशीलता को परखा है संप्रग ने

23 मई को जब संप्रग सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में साढ़े सात रूपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की घोषणा की, उस समय इतनी ज्यादा मूल्यवृद्धि का कोई आधार नहीं था। उसके बाद दो रूपये प्रति लीटर के करीब दामों में कमी की जा चुकी है और परसो 8 मई को वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने कलकत्ता में पेट्रोल की कीमतों में और कमी के संकेत दिये। कारण तो यही बताया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों के कम होने के कारण ऐसा होगा। बात दीगर है जब दाम बढ़ाये गये थे तब भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार कमी हो रही थी और इन पन्द्रह दिनों के दौरान सिंगापुर क्रूड की कीमतें 107 से 109 डालर के बीच चल रही हैं।
अगर पेट्रोल की कीमतें और कम होती हैं तो जनता को राहत ही मिलेगी। लेकिन मनमोहन और प्रणव जनता पर बढ़ते बोझ के प्रमुख कारण अमरीका के इशारों पर ईरान से सस्ता कच्चा तेल खरीदना कम करते जाने और डॉलर के सापेक्ष रूपये की गिरती कीमतों के बारे में खामोश हैं। अगर डालर के सामने रूपया इसी तरह गिरता रहा जैसाकि वह पिछले 21 सालों में गिरता रहा है, तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों का भी कोई असर नहीं हो पायेगा।
एक दूसरी बात, कल एक निजी टीवी चैनल को दिये गये साक्षात्मकार में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि ”अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यों को जोड़ने के राजग के फैसले को बदलकर संप्रग सरकार ने गलत किया है। सरकार को व्यापक राष्ट्रहित में कड़े फैसले लेने चाहिए भले ही वे जनता को न सुहाएं।“ जाने अनजाने शरद पवार कई बातें कह गये। एक तो यह कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों तथा अमरीकी डालर से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को जोड़ने यानी कीमतों को डीरेगुलेट करने का फैसला भाजपा नीत राजग सरकार ने लिया था। इसके साथ उन्होंने जो नहीं कहा, उसे भी समझ ही लिया जाये कि राजग सरकार के इस फैसले को संप्रग-1 की सरकार ने वाम दलों के दवाब में बदला था और वाम दलों की संसद में ताकत घटते ही बनी संप्रग-2 की सरकार ने एक बार फिर पेट्रोल की कीमतों को डीरेगुलेट कर दिया और बार-बार डीजल की कीमतों को भी डीरेगुलेट करने की बात की जा रही है। दूसरा, पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सहित देश की तमाम क्षेत्रीय पार्टियों (जिसमें सपा और बसपा दोनों शामिल हैं) के लिए देश हित वही है जो अमरीकी साम्राज्यवाद को सुहाता हो और उन्हें इसकी कतई कोई चिन्ता नहीं है कि जनता को वह सुहाता है कि नहीं। पवार ने इस तरह एक बार फिर यह साफ करने की कोशिश की कि उन्हें न किसानों की चिन्ता है, न ही महाराष्ट्र की और न ही दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र के लोक (जनता) की। इससे इन पार्टियों का वर्गीय चरित्र साफ हो जाता है।
वैसे अगर देखा जाये तो वास्तविक समस्या इस देश की जनता के साथ है। उसने ”जेहि विधि राखे राम, तेहि विधि रहिये“ की तर्ज पर अपने ऊपर होने वाले आक्रमणों को सहने की जबरदस्त शक्ति विकसित कर ली है। मंहगाई बढ़ रही है तो बढ़े, जनता सड़कों पर नहीं दिखाई देती। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है तो बढ़े उसे कोई चिन्ता नहीं है, वह सड़क पर नहीं आ सकती। पेट्रोल की कीमतों में साढ़े सात रूपये लीटर की थर्रा देने वाली बढ़ोतरी कर दी गयी लेकिन वह सड़क पर नहीं आई। वामपंथी दलों ने विरोध जताया, उनके कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे तो देखादेखी दूसरे राजनीतिक दलों ने भी फर्ज अदायगी में अपने कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारा लेकिन जनता तो सड़कों पर नहीं आई।
संप्रग-2 सरकार ने एसिड टेस्ट कर लिया कि जनता साढ़े सात रूपये लीटर तक भी बर्दाश्त कर लेती है यानी पूंजीवादी रणनीतिकारों के शब्दों में बर्दाश्त कर सकती है। जब बर्दाश्त कर सकती है तो निश्चित रूप से उसे बर्दाश्त कराया जायेगा, बार-बार बर्दाश्त कराया जायेगा और तब तक बर्दाश्त कराया जायेगा जब तक वह बर्दाश्त करती रहेगी।
हमारे विरोध के तरीके शायद पुराने पड़ चुके हैं। कहीं न कहीं हमारी रणनीतियों में कोई कमी है कि हम इतना जबरदस्त प्रहार होने पर भी जनता को बर्दाश्त न करने के लिए उद्वेलित नहीं कर पा रहे हैं। हम सबको मिल कर इस पर सोचना चाहिए और आन्दोलन के वे तरीके विकसित करने चाहिए जिससे बर्दाश्त करने की जनता की ताकत कम हो सके और वह एक बार फिर से सड़को पर उतरना सीखे जैसा कि वह पिछली शताब्दी के पहले 8 दशकों तक उतरा करती थी।
- प्रदीप तिवारी

Friday, June 1, 2012

कामरेड भानु प्रताप सिंह का निधन


लखनऊ 2 जून। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कौंसिल सदस्य कामरेड भानु प्रताप सिंह का 70 साल की आयु में 31 मई को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे लगभग एक दशक तक भाकपा की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य रहे थे। वे लगभग एक साल से हृदय रोग से ग्रस्त थे और पीजीआई लखनऊ में उनका दो बार आपरेशन हो चुका था। उनके निधन का समाचार मिलते ही भाकपा के राज्य कार्यालय पर पार्टी के ध्वज को उनके सम्मान में झुका दिया गया और एक संक्षिप्त शोक सभा में उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी।
आजमगढ़ जनपद के खरसहन कलां गांव में जन्में कामरेड भानु प्रताप सिंह की शिक्षा-दीक्षा आजमगढ़ जनपद में ही हुई। वहीं वे मार्क्सवाद के प्रति आकर्षित हुए। हिंडालको कारखाने में नौकरी पाने पर वे साठ के दशक में रेणूकूट चले गये। हिंडालको में मजदूरों के शोषण के फलस्वरूप उन्होंने हिंडालको प्रगतिशील मजदूर सभा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ट्रेड यूनियन के अपने कामों के साथ फैक्ट्री में भी अपने काम को पूर्ण तल्लीनता और लगन के साथ करने के कारण वे केवल हिंडालको के श्रमिकों बल्कि वहां के प्रबंधन द्वारा भी सम्मान की निगाहों से देखे जाते थे। वे ट्रेड यूनियन आन्दोलन के उन नेताओं की विरासत का प्रतिनिधित्व करते थे जिन्होंने अपना सर्वस्व मजदूर आन्दोलन में गंवा दिया। ट्रेड यूनियन कामों के कारण उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था।
लगभग एक दशक पहले उन्होंने सोनभद्र जनपद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कुलवक्ती कार्यकर्ता के रूप में अपनी पारी शुरू की और उन्होंने सोनभद्र के पठारों के गांव-गांव की खाक छानी और वहां रहने वाले किसानों, खेत मजदूरों तथा आदिवासियों के मध्य पार्टी के काम को शुरू किया और पार्टी संगठन को एक मजबूत आधार प्रदान किया। उन्होंने कभी अपने परिवार की चिन्ता की और ही अपने आराम या खाने की। कोई आय का जरिया होने के बावजूद वे पूरी लगन से सोनभद्र जनपद में जनता को संघर्षों में उतारने और उसे संगठित करने का प्रयास करते रहे। जहां रात हो जाती, वही जो कुछ मिल जाता खाकर सो जाते थे और अगली सुबह अपने अगले गंतव्य की ओर चल देते थे। जीवन की इन्हीं विषम परिस्थितियों में उन्हें कब हृदय रोग हो गया पता नहीं चला।
कामरेड भानु प्रताप सिंह के निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना एक लगनशील सिपाही खो दिया है तो सोनभद्र की गरीब जनता ने अपने संघर्षों के एक प्रणेता को। उनके निधन से उत्पन्न शून्य को कभी भरा नहीं जा सकेगा।
कल उनकी अंतेष्टि उनके पैत्रक गांव खरसहन कलां में कर दी गयी।

कार्यालय सचिव