Thursday, November 24, 2016
नोट बन्दी: 28 नवंबर को संयुक्त रूप से सडकों पर उतरेंगे सभी वामदल
लखनऊ- 24 नवंबर, उत्तर प्रदेश में संयुक्त रूप से कार्यरत 6 वामपंथी दलों की एक बैठक यहाँ माकपा के कार्यालय पर भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश की अध्यक्षता में संपन्न हुयी. बैठक में विपक्षी दलों द्वारा नोट बन्दी द्वारा पैदा हुयी भयावह स्थिति के खिलाफ 28 नवंबर को आयोजित किये जा रहे राष्ट्रव्यापी आक्रोश दिवस को उत्तर प्रदेश में सफल बनाने पर गंभीर विचार विमर्श किया गया.
ज्ञात हो कि कल दिल्ली में संपन्न 6 वाम दलों की बैठक में नोट बन्दी से उपजे हालातों और इससे जनता को होरहे अपार कष्टों पर चर्चा की गयी थी और जनता के हित में 28 नवंबर को देश भर में आक्रोश दिवस मनाने का निर्णय लिया था. हर्ष की बात है कि अन्य कई विपक्षी दलों ने भी इसी दिन आक्रोश दिवस आयोजित करने का फैसला लिया है.
वाम दलों की राज्य स्तरीय बैठक में तय पाया गया कि 28 नवंबर को वामपंथी दल जिलों में जिला स्तर, विधान सभा क्षेत्र स्तर, कस्बों यहाँ तक ग्राम स्तर पर आक्रोश प्रदर्शन संगठित करेंगे. वामपंथ के मित्रों, आम जनता, किसानों, कामगारों, दस्तकारों, आशा आँगनबाडी मिड डे मील वर्करों, कल कारखानों में काम करने वालों, लघु उद्यमियों तथा व्यापारियों से वामपंथी दल पुरजोर अपील कर रहे हैं कि आज़ादी के बाद से अब तक आम नागरिकों पर सरकार द्वारा बोले गए इस सबसे तीखे हमले का पुरजोर विरोध करें.
वाम दलों ने अपनी समस्त जिला इकाइयों को निर्देशित किया है कि वे तत्काल अपने जनपद में वामपंथी दलों की संयुक्त बैठक बुलाएं और आक्रोश दिवस को कामयाब बनाने की तैयारियों में जुट जाएँ. बड़े पैमाने पर पर्चे प्रकाशित कर वितरित किये जाएँ.
वाम बैठक में वक्ताओं ने इस बात पर गहरा अफसोस जताया कि कारपोरेट समर्थक और 30 महीने के कार्यकाल में काले धन के स्वामियों पर कार्यवाही करने से बचती रही मोदी सरकार ने अचानक बड़े नोटों को वापस लेने की घोषणा करदी जिससे देश के 99 प्रतिशत लोग सड़क पर आगये और जीवनयापन करने में भारी कठिनाइयां झेल रहे हैं. अब तक लगभग 75 लोगों की जानें जाचुकी हैं. किसान खेत मजदूर, मछुआरे, मनरेगा कर्मी, रोज कमाकर खाने वाले और बड़े पैमाने पर ग्रामीण जो रोजमर्रा का काम नकदी से चलाते हैं वे अभाव और कठिनाइयों से जूझ रहे हैं. इलाज के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे हैं, शादी- विवाह वाले परिवार संकट में हैं, कोआपरेटिव को बैंकिंग प्रक्रिया से बाहर कर देने के कारण खेती का काम चौपट पडा है. नित नए फरमान आने और मुद्रा के पर्याप्त मात्रा में न आने से आम जनता और बैंक कर्मी हतप्रभ हैं. रोज रोज लाइनों में लगने के बावजूद नकदी न मिल पाने से हताश जनता ने अब धीरे धीरे लाइनों में लगना बंद कर दिया है. कई जगह वे आक्रोश प्रकट करने को सड़कों पर उतर रहे हैं और उत्तर प्रदेश पुलिस के दमन का शिकार बन रहे हैं.
वाम नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने यह कदम बिना पूरी तैयारी और योजना के कर डाला. दो हफ्ते पूरे होने को हैं लेकिन बैंकों के पास जमा मुद्रा का दस प्रतिशत भी जनता को वितरण के लिए नहीं पहुंचा. जबकि भारत के करोड़ों लोग अपना रोज ब रोज का काम नकदी से चलाते हैं.
अतएव वामपंथी दल सरकार से मांग करते हैं कि 500 तथा 1,000 के नोट 30 दिसंबर अथवा नई मुद्रा के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध्द होने तक जारी रखे जाएँ. कोआपरेटिव बैंक जो ग्रामीण जनता की जीवनदायिनी हैं उन्हें अन्य बैंकों की तरह सभी सेवायें प्रदान की जाएँ. नोटबन्दी की प्रताड़ना से मरे तथा रोजगार गँवा बैठे लोगों के परिवारों को पर्याप्त मुआबजा दिया जाए तथा 2,000 के नोट की अप्रासंगिकता को देखते हुए इसे वापस लिया जाए.
वामपंथी दल किसानों के सभी कर्जे माफ़ करने, 11 लाख करोड़ के बैंकों के एनपीए के बकायेदारों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने और उनकी संपत्तियां जब्त करने, सहारा- बिरला पेपर्स के खुलासे की जांच करने तथा देश के अन्दर तथा बाहर जमा काले धन के धारकों के नाम उजागर कर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की भी मांग करते हैं.
वामदलों ने उम्मीद जताई है कि आम जनता की भागीदारी से आक्रोश दिवस व्यापक असर छोड़ेगा और हठी तथा ढीठ मोदी सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर देगा. बैठक में माकपा राज्य सचिव का. हीरालाल, का. दीनानाथ सिंह, का. प्रदीप शर्मा, भाकपा के का. अरविन्द राज स्वरूप, का. आशा मिश्रा एवं फूलचंद यादव, माले के का. रामजी राय, का. ताहिरा हसन एवं का. रमेश सिंह सेंगर, एसयूसीआई-सी के का. जगन्नाथ वर्मा व जयप्रकाश मौर्य ने भाग लिया.
डा. गिरीश
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