Friday, August 2, 2013
कर्मठ आइएस के निलम्बन पर भी वोट की राजनीति कर रहे हैं श्री अखिलेश यादव.
दल-दल में छलांग लगाने का एक ही मतलब है उसमें और भी फंसते जाना. ऐसा ही उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के साथ हो रहा है. बेचारे अंडर ट्रेनी मुख्यमन्त्री एक कर्मठ अंडर ट्रेनी महिला आइएस को अब्बा,चाचा,मौसी के कहने पर निलम्बित तो कर बैठे पर अब मामला संभाले नहीं संभल रहा. जांचे-परखे मुस्लिम कार्ड को खेला तो चच्चा मियां ने यह कह कर हवा निकाल दी कि उन्हें इस अफसर को निलम्बित कराने में ४१ मिनट भी नहीं लगे. वैसे कादरपुर गाँव के निवासियों और नोइडा के जिलाधिकारी दोनों के कथन ने कि मस्जिद के नाम पर वहां कोई तनाव नहीं था मुख्यमन्त्री के दाबों को पहले ही झुठला दिया था.
अखिलेश यादव समझ लें कि वे दिन कब के हवा हो चुके हैं जब उनको उज्ज्वल छवि वाला नौजवान राजनेता माना जाता था और उनके कतिपय कामों को परिवारवाद में फंसे एक नौसिखिये की बेबसी मान कर लोग नजरंदाज कर देते थे. लेकिन बाबूसिंह कुशवाहा जैसे दागी नेता को पार्टी में शामिल करने, एक से बड कर एक महाभ्रष्ट अफसरों को महिमामंडित करने और कई दागियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने वाले अखिलेश निलम्बित अफसर पर जिस तरह अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों के चलते सांप्रदायिकता भड़काने का आरोप जड़ रहे हैं उससे उनका असली चेहरा सामने आगया है.
बात यहीं खत्म नहीं होजाती. वे आइएस एसोसिएशन तक को धमका रहे हैं. वे उसको याद दिला रहे हैं कि उन्होंने ही इस एसोसिएशन को जिन्दा किया था. सवाल उठता है कि क्या अब श्री अखिलेश इस अहसान की कीमत बसूलना चाहते हैं? यदि ऐसा है तो इससे घटिया और क्या होसकता है एक मुख्यमन्त्री के पार्ट पर.
डॉ.गिरीश.
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