रायपुरः अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन यहां 15, 16 और 17 अक्टूबर को बिरसामुंडा नगर (विप्र सांस्कृतिक भवन) में शहीद वीर नारायण सिंह कांफ्रेंस हाल में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का प्रारंभ 15 अक्टूबर, 2011 को एक अत्यंत शानदार रैली के साथ हुआ। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और बस्तर जिलों के आदिवासियों ने अपनी परम्परागत पोशाकों में और अपने जनजातीय सांस्कृतिक जत्थों के साथ नाचते-गाते हुए इस विशाल रैली में भाग लिया। रैली छततीसगढ़ की राजधानी रायपुर के प्रमुख रास्तों से होकर गुजरी।
गांधी मैदान में पहुंचकर यह रंगारंग रैली एक विशाल आमसभा में बदल गयी जिसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ए0बी0 बर्धन के अलावा भारत जन आंदोलन के नेता डा0 बी0डी0 शर्मा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, जनक लाल ठाकुर, सुधा भारद्वाज, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो0 नंदिनी सुंदर, स्वतंत्रता सेनानी और रायुपर के पूर्व संसद सदस्य केयूर भूषण और मनीष कुंजाम ने संबोधित किया। रैली और आमसभा में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, मजदूर कार्यकर्ता समिति, भारत जन आंदोलन, जनशक्ति संगठन, जनाधिकार संगठन, एकता परिषद आदि अन्य कई आदिवासी संगठनों और एनजीओ ने भी हिस्सा लिया। वास्तव में यह छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी संगठनों का एक संयुक्त कार्यक्रम था जो ”छत्तीसगढ़ बचाओं आंदोलन“ नाम से संघर्षरत जनसंगठनों को हाल ही में एक मंच बनाकर अधिकाधिक एकजुट होकर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। आदिवासी महासभा के झंडे के तले उड़ीसा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से भी जनजाति रैलियां इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहंुची। केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गंुजरात से सम्मेलन में भाग लेने आये लगभग 400 डेलीगेटों ने इस रैली में हिस्सा लिया। रैली रेलवे स्टेशन से शुरू हुई और रायपुर के प्रमुख रास्तों से गुजरती हुई 6 किलोमीटर चलकर गांधी मैदान पहंॅुची।
इस चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन के डेलीगेटों, पर्यवेक्षकों, अतिथियों एवं आमंत्रितों को संबोधित करते हुए अपने उद्घाटन भाषण में भाकपा महासचिव ए0बी0 बर्धन ने आदिवासी नौजवानों की युवा पीढ़ी का आह्वान किया कि वह जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकारों के लिए जनजातियों, आदिवासियों के आंदोलन को अपना सर्वोच्च कार्य- दायित्व समझकर आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लें ताकि आदिवासी लोगों के हितों पर कुठाराघात करने वाली नवदारवादी आर्थिक नीतियों के समर्थकों को करारा जवाब दिया जा सके। का0 बर्धन 1957 में इस अखिल भारतीय महासभा की स्थापना सम्मेलन केे मार्गदर्शकों में से हैं।
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का यह चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन हर लिहाज से अत्यंत सफल रहा। भाकपा महासचिव ए0बी0 बर्धन, लोकसभा के पूर्व स्पीकर पी0ए0 संगमा, जन आंदोलन के नेता, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो0 नंदिनी सुंदर, एडवोकेट सुधा भारद्वाज, हीरा सिंह मरकम, नेताजी राजगडकर, छत्रपति साही मुंडा, बीपीएस नेताम, जी0आर0 राणा, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी, छत्तीसगढ़ के राज्य सभा संसद सदस्य नंदकुमार साई सम्मेलन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। विभिन्न सामाजिक आर्थिक समझ और संगठनात्मक हितों के बावजूद उनका सबका इस मामले में एक समान दृष्टिकोण था कि देश के दस करोड़ के लगभग आदिवासियों को उनकी दासता से मुक्ति के लिए और उनके विकास के लिए उनका संघर्ष एकताबद्ध तरीके से और निर्णायक तौर पर चलाया जाना चाहिए। ए0बी0 बर्धन ने आदिवासियों के हितों एवं ध्येय के लिए संघर्षरत सभी लोगों का आह्वान किया कि वे आदिवासियों द्वारा एक अखिल भारतीय कार्रवाई के लिए एक संयुक्त एवं एकताबद्ध कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक अखिल भारतीय संयुक्त संघर्ष समिति का निर्माण करें।
पी0ए0 संगमा ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी युवा अपने आपको किसी भी दूसरे से नीचा या कम न समझें उन्हें अपनी आदिवासी पहचान और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि आदिवासी लोग अधिकाधिक शिक्षित हो जैसे कि मिजोरम में हुआ है।
नंदकुमार सांई ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए सवाल किया कि मुख्य धारा के लोग किस बात में अपने आपको आदिवासी लोगों की पहचान और संस्कृति से बेहतर समझते हैं जबकि हम देखते हैं कि आज शहरी समाज अपराध, भ्रष्टाचार और भ्रष्ट संस्कृति का इतना अधिक शिकार हो चुका है। उनके मुकाबले हम आदिवासी लोग अपनी ग्रामीण बस्तियों में अपनी आदिवासी दुनिया में इस तरह के प्रदूषित वातावरण से आज भी मुक्त हैं। हमारी परेशानी तो गरीबी और अशिक्षा है जिसके विरूद्ध हमें संघर्ष करना होगा और एकताबद्ध होकर कोशिश करनी होगी।
16 और 17 अक्टूबर को सम्मेलन के डेलीगेट सभा को ए0बी0 बर्धन के अलावा पी0ए0 संगमा, डा0 बी0डी0 शर्मा, गोडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरा सिंह मरकम और नंदकुमार साई ने भी संबोधित किया। मनीष कुंजाम ने कार्य रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके बाद विभिन्न राज्यों के 25 डेलीगेटों ने कार्य रिपोर्ट पर अपनी राय जाहिर करने के अलावा पिछले पांच सालों के दौरान अपने राज्यों में चलाये गये संघर्षों के बारे में बताया। कई डेलीगेटों ने बताया कि किस तरह राज्य सरकारों के समर्थन से कार्पोरेट घराने आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और वनों को बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने रिपोर्ट की कि दलितों के पक्ष में संसद द्वारा बनाये गये कानूनों द्वारा आदिवासी लोगों को मिली अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है और आदिवासी इलाकांे के प्राकृतिक संसाधनों का बुरी तरह दोहन किया जा रहा है।
सम्मेलन ने 9 से अधिक प्रस्ताव पारित किये जिनमें से एक प्रस्ताव का नाम है ”रायपुर घोषणा पत्र“। ”रायपुर घोषण पत्र“ में जागरूक आदिवासी संगठनों का आह्वान किया गया है कि वे एक मांग पत्र के आधार पर आदिवासियों द्वारा संघर्ष का एक राष्ट्रीय मंच बनाने के लिए आगे आयें और मिलकर काम करें। सम्मेलन ने तय किया कि मांग पत्र के सम्बन्ध में एक संयुक्त राष्ट्रीय अभियान खड़ा किया जाये और 2012 के अंत तक संसद के सामने आदिवासियों की एक विशाल रैली का आयोजन किया जाये।
देश के विभिन्न भागों से आये 386 डेलीगेटों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। उनमें 167 डेलीगेट छत्तीसगढ़ से, 29 मध्य प्रदेश से, 13 राजस्थान से, 24 केरल से, 48 आंध्र प्रदेश से, 13 झारखंड से, 3 हिमाचल प्रदेश से, 4 गुजरात से, 12 महाराष्ट्र से, 43 पश्चिम बंगाल से और 30 ओड़िसा से थे। कुछ राज्यों से 17 पर्यवेक्षक भी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आये। सम्मेलन ने अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के निम्न नये पदाधिकारियों का चुनाव किया।
अध्यक्ष - मनीष कुंजाम;
महासचिव - छत्रपति साही मुंडा
वरिष्ठ उपाध्यक्ष - सी0आर0 बख्शी;
उपाध्यक्ष - मेघराज तावड़, जी0 डेमुडु, रामनाथ सर्फे, महावीर मांझी
उप महासचिव - शंकर नायक, सुखलाल गोडे
सचिव - एन0 राजन, शिव चरण मुंडा
उपाध्यक्ष के एक पद को खाली रखा गया है जिसे तमिलनाडु से भरा जायेगा। तमिलनाडु में स्थानीय निकायों के चुनाव के कारण वहां से सम्मेलन में डेलीगेट नहीं आये। सचिव का एक पद भी खाली रखा गया है जिसे महाराष्ट्र आदिवासी महासभा के शीघ्र होने वाले राज्य सम्मेलन के बाद महाराष्ट्र से भरा जायेगा।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में केरल से श्रीमती ईश्वरी रेसान और पी0 प्रसाद, आंध्र प्रदेश से रवीन्द्र कुमार, पी0 वेंकटेश्वर और कुंजा सिनू, मध्य प्रदेश से जानकी बाई और बैराग सिंह टेकस, राजस्थान से साधना मीणा और बाबूलाल कलसुआ, उड़ीसा से हलधर पुजारी और वासुदेव भोई, झारखंड से लक्ष्मी लोहारा, अनिल असुर और भूतनाथ सोरेन, महाराष्ट्र से गंगाधर नामदेव गेडाम और नामदेव कन्नाके, पश्चिम बंगाल से जीतू सोरेन, कोमल सरदार, सनातन किस्कू और विष्णु पाहन, गुजरात से धारूबाई शामाभाई वलावी, छत्तीसगढ़ रमा सोडी, नंदराम सोडी, श्रीमती कुसुम और रमेश गावडे और दिल्ली से प्रकाशचंद झा को शामिल किया गया।
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए हरेक के लिए एक स्थान खाली रखा गया है जो बाद में भरा जायेगा। असम, मणिपुर और त्रिपुरा से बाद में तीन नाम और शामिल करने के लिए तय किया गया।
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के नव निर्वाचित महासचिव छत्रपति साही मंुडा ने घोषणा की कि महासभा का अगला सम्मेलन तीन वर्ष बाद झारखंड में किया जायेगा। प्रतिनिधियों ने इसका स्वागत किया।
सम्मेलन के दौरान निम्न विषयों पर सेमिनारों का आयोजन भी किया गया -
1. आदिवासी समुदायों के संवैधानिक अधिकारों का दमन;
2. आर्थिक नीतियों का उदारीकरण और आदिवासी समुदायों पर इसका प्रभाव
इन सेमिनारों के पी0ए0 संगमा, डॉ0 बी0बी0 शर्मा, अरविंद नेताम, बीपीएस नेताम, छत्रपति साही मुंडा, नंदकुमार साई, संजय पराटे और मुमताज भारती ने संबोधित किया। सेमिनार अत्यंत सफल रहे।
डेलीगेट सत्रों का संचालन मीनष कुंजाम, श्रीमती ईश्वरी रेसान, मेघराज तावड़, जी0 डेमुडु, नामदेव कन्नाके, श्रीमती जानकी देवी, जीतू सोरेन और हलधर पुजारी ने किया। सभी डेलीगेट और आमंत्रित नये उत्साह और संघर्षों के लिए दृढ़ संकल्प के साथ अपने- अपने राज्यों को वापस गये।
गांधी मैदान में पहुंचकर यह रंगारंग रैली एक विशाल आमसभा में बदल गयी जिसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ए0बी0 बर्धन के अलावा भारत जन आंदोलन के नेता डा0 बी0डी0 शर्मा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, जनक लाल ठाकुर, सुधा भारद्वाज, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो0 नंदिनी सुंदर, स्वतंत्रता सेनानी और रायुपर के पूर्व संसद सदस्य केयूर भूषण और मनीष कुंजाम ने संबोधित किया। रैली और आमसभा में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, मजदूर कार्यकर्ता समिति, भारत जन आंदोलन, जनशक्ति संगठन, जनाधिकार संगठन, एकता परिषद आदि अन्य कई आदिवासी संगठनों और एनजीओ ने भी हिस्सा लिया। वास्तव में यह छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी संगठनों का एक संयुक्त कार्यक्रम था जो ”छत्तीसगढ़ बचाओं आंदोलन“ नाम से संघर्षरत जनसंगठनों को हाल ही में एक मंच बनाकर अधिकाधिक एकजुट होकर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। आदिवासी महासभा के झंडे के तले उड़ीसा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से भी जनजाति रैलियां इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहंुची। केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गंुजरात से सम्मेलन में भाग लेने आये लगभग 400 डेलीगेटों ने इस रैली में हिस्सा लिया। रैली रेलवे स्टेशन से शुरू हुई और रायपुर के प्रमुख रास्तों से गुजरती हुई 6 किलोमीटर चलकर गांधी मैदान पहंॅुची।
इस चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन के डेलीगेटों, पर्यवेक्षकों, अतिथियों एवं आमंत्रितों को संबोधित करते हुए अपने उद्घाटन भाषण में भाकपा महासचिव ए0बी0 बर्धन ने आदिवासी नौजवानों की युवा पीढ़ी का आह्वान किया कि वह जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकारों के लिए जनजातियों, आदिवासियों के आंदोलन को अपना सर्वोच्च कार्य- दायित्व समझकर आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लें ताकि आदिवासी लोगों के हितों पर कुठाराघात करने वाली नवदारवादी आर्थिक नीतियों के समर्थकों को करारा जवाब दिया जा सके। का0 बर्धन 1957 में इस अखिल भारतीय महासभा की स्थापना सम्मेलन केे मार्गदर्शकों में से हैं।
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का यह चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन हर लिहाज से अत्यंत सफल रहा। भाकपा महासचिव ए0बी0 बर्धन, लोकसभा के पूर्व स्पीकर पी0ए0 संगमा, जन आंदोलन के नेता, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो0 नंदिनी सुंदर, एडवोकेट सुधा भारद्वाज, हीरा सिंह मरकम, नेताजी राजगडकर, छत्रपति साही मुंडा, बीपीएस नेताम, जी0आर0 राणा, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी, छत्तीसगढ़ के राज्य सभा संसद सदस्य नंदकुमार साई सम्मेलन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। विभिन्न सामाजिक आर्थिक समझ और संगठनात्मक हितों के बावजूद उनका सबका इस मामले में एक समान दृष्टिकोण था कि देश के दस करोड़ के लगभग आदिवासियों को उनकी दासता से मुक्ति के लिए और उनके विकास के लिए उनका संघर्ष एकताबद्ध तरीके से और निर्णायक तौर पर चलाया जाना चाहिए। ए0बी0 बर्धन ने आदिवासियों के हितों एवं ध्येय के लिए संघर्षरत सभी लोगों का आह्वान किया कि वे आदिवासियों द्वारा एक अखिल भारतीय कार्रवाई के लिए एक संयुक्त एवं एकताबद्ध कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक अखिल भारतीय संयुक्त संघर्ष समिति का निर्माण करें।
पी0ए0 संगमा ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी युवा अपने आपको किसी भी दूसरे से नीचा या कम न समझें उन्हें अपनी आदिवासी पहचान और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि आदिवासी लोग अधिकाधिक शिक्षित हो जैसे कि मिजोरम में हुआ है।
नंदकुमार सांई ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए सवाल किया कि मुख्य धारा के लोग किस बात में अपने आपको आदिवासी लोगों की पहचान और संस्कृति से बेहतर समझते हैं जबकि हम देखते हैं कि आज शहरी समाज अपराध, भ्रष्टाचार और भ्रष्ट संस्कृति का इतना अधिक शिकार हो चुका है। उनके मुकाबले हम आदिवासी लोग अपनी ग्रामीण बस्तियों में अपनी आदिवासी दुनिया में इस तरह के प्रदूषित वातावरण से आज भी मुक्त हैं। हमारी परेशानी तो गरीबी और अशिक्षा है जिसके विरूद्ध हमें संघर्ष करना होगा और एकताबद्ध होकर कोशिश करनी होगी।
16 और 17 अक्टूबर को सम्मेलन के डेलीगेट सभा को ए0बी0 बर्धन के अलावा पी0ए0 संगमा, डा0 बी0डी0 शर्मा, गोडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरा सिंह मरकम और नंदकुमार साई ने भी संबोधित किया। मनीष कुंजाम ने कार्य रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके बाद विभिन्न राज्यों के 25 डेलीगेटों ने कार्य रिपोर्ट पर अपनी राय जाहिर करने के अलावा पिछले पांच सालों के दौरान अपने राज्यों में चलाये गये संघर्षों के बारे में बताया। कई डेलीगेटों ने बताया कि किस तरह राज्य सरकारों के समर्थन से कार्पोरेट घराने आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और वनों को बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने रिपोर्ट की कि दलितों के पक्ष में संसद द्वारा बनाये गये कानूनों द्वारा आदिवासी लोगों को मिली अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है और आदिवासी इलाकांे के प्राकृतिक संसाधनों का बुरी तरह दोहन किया जा रहा है।
सम्मेलन ने 9 से अधिक प्रस्ताव पारित किये जिनमें से एक प्रस्ताव का नाम है ”रायपुर घोषणा पत्र“। ”रायपुर घोषण पत्र“ में जागरूक आदिवासी संगठनों का आह्वान किया गया है कि वे एक मांग पत्र के आधार पर आदिवासियों द्वारा संघर्ष का एक राष्ट्रीय मंच बनाने के लिए आगे आयें और मिलकर काम करें। सम्मेलन ने तय किया कि मांग पत्र के सम्बन्ध में एक संयुक्त राष्ट्रीय अभियान खड़ा किया जाये और 2012 के अंत तक संसद के सामने आदिवासियों की एक विशाल रैली का आयोजन किया जाये।
देश के विभिन्न भागों से आये 386 डेलीगेटों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। उनमें 167 डेलीगेट छत्तीसगढ़ से, 29 मध्य प्रदेश से, 13 राजस्थान से, 24 केरल से, 48 आंध्र प्रदेश से, 13 झारखंड से, 3 हिमाचल प्रदेश से, 4 गुजरात से, 12 महाराष्ट्र से, 43 पश्चिम बंगाल से और 30 ओड़िसा से थे। कुछ राज्यों से 17 पर्यवेक्षक भी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आये। सम्मेलन ने अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के निम्न नये पदाधिकारियों का चुनाव किया।
अध्यक्ष - मनीष कुंजाम;
महासचिव - छत्रपति साही मुंडा
वरिष्ठ उपाध्यक्ष - सी0आर0 बख्शी;
उपाध्यक्ष - मेघराज तावड़, जी0 डेमुडु, रामनाथ सर्फे, महावीर मांझी
उप महासचिव - शंकर नायक, सुखलाल गोडे
सचिव - एन0 राजन, शिव चरण मुंडा
उपाध्यक्ष के एक पद को खाली रखा गया है जिसे तमिलनाडु से भरा जायेगा। तमिलनाडु में स्थानीय निकायों के चुनाव के कारण वहां से सम्मेलन में डेलीगेट नहीं आये। सचिव का एक पद भी खाली रखा गया है जिसे महाराष्ट्र आदिवासी महासभा के शीघ्र होने वाले राज्य सम्मेलन के बाद महाराष्ट्र से भरा जायेगा।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में केरल से श्रीमती ईश्वरी रेसान और पी0 प्रसाद, आंध्र प्रदेश से रवीन्द्र कुमार, पी0 वेंकटेश्वर और कुंजा सिनू, मध्य प्रदेश से जानकी बाई और बैराग सिंह टेकस, राजस्थान से साधना मीणा और बाबूलाल कलसुआ, उड़ीसा से हलधर पुजारी और वासुदेव भोई, झारखंड से लक्ष्मी लोहारा, अनिल असुर और भूतनाथ सोरेन, महाराष्ट्र से गंगाधर नामदेव गेडाम और नामदेव कन्नाके, पश्चिम बंगाल से जीतू सोरेन, कोमल सरदार, सनातन किस्कू और विष्णु पाहन, गुजरात से धारूबाई शामाभाई वलावी, छत्तीसगढ़ रमा सोडी, नंदराम सोडी, श्रीमती कुसुम और रमेश गावडे और दिल्ली से प्रकाशचंद झा को शामिल किया गया।
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए हरेक के लिए एक स्थान खाली रखा गया है जो बाद में भरा जायेगा। असम, मणिपुर और त्रिपुरा से बाद में तीन नाम और शामिल करने के लिए तय किया गया।
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के नव निर्वाचित महासचिव छत्रपति साही मंुडा ने घोषणा की कि महासभा का अगला सम्मेलन तीन वर्ष बाद झारखंड में किया जायेगा। प्रतिनिधियों ने इसका स्वागत किया।
सम्मेलन के दौरान निम्न विषयों पर सेमिनारों का आयोजन भी किया गया -
1. आदिवासी समुदायों के संवैधानिक अधिकारों का दमन;
2. आर्थिक नीतियों का उदारीकरण और आदिवासी समुदायों पर इसका प्रभाव
इन सेमिनारों के पी0ए0 संगमा, डॉ0 बी0बी0 शर्मा, अरविंद नेताम, बीपीएस नेताम, छत्रपति साही मुंडा, नंदकुमार साई, संजय पराटे और मुमताज भारती ने संबोधित किया। सेमिनार अत्यंत सफल रहे।
डेलीगेट सत्रों का संचालन मीनष कुंजाम, श्रीमती ईश्वरी रेसान, मेघराज तावड़, जी0 डेमुडु, नामदेव कन्नाके, श्रीमती जानकी देवी, जीतू सोरेन और हलधर पुजारी ने किया। सभी डेलीगेट और आमंत्रित नये उत्साह और संघर्षों के लिए दृढ़ संकल्प के साथ अपने- अपने राज्यों को वापस गये।
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