आज कल में ढल गया
दिन हुआ तमाम
तू भी सो जा सो गई
रंग भरी शाम
साँस साँस का हिसाब ले रही है ज़िन्दगी
और बस दिलासे ही दे रही है ज़िन्दगी
रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम
तू भी सोजा ....
रोटियों-सा गोल-गोल चांद मुस्कुरा रहा
दूर अपने देश से मुझे-तुझे बुला रहा
नींद कह रही है चल, मेरी बाहें थाम
तू भी सोजा...
गर कठिन-कठिन है रात ये भी ढल ही जाएगी
आस का संदेशा लेके फिर सुबह तो आएगी
हाथ पैर ढूंढ लेंगे , फिर से कोई काम
तू भी सोजा...
- शंकर शैलेन्द्र
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य परिषद
1 comment:
इस गीत को मैं ने कोई 48 वर्ष पहले बेटी-बेटे फिल्म में सुना था। आपने बचपन की यादें ताजा कर दीं।
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