भूमंडलीकरण के इस दौर में केन्द्र एवं राज्यों में सत्तारूढ़ पूंजीवादी
राजनैतिक दल आर्थिक नवउदारवाद की राह पर चल रहे हैं। इससे जनता का संकट बढ़
रहा है। यही वजह है कि जिन दलों को जनता चुन कर सत्ता सौंपती है, वे जल्दी
ही उसकी नजरों में गिरने लगते हैं।
वर्ष 2007 के विधान सभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी को सत्ता से हटा कर बसपा को पूर्ण बहुमत सौंपा था। लेकिन बसपा सरकार ने भी अपनी पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों को ही और तीखे ढंग से लागू किया और उससे भी जनता का मोहभंग हो गया। परिणामस्वरूप गत विधान सभा चुनावों में बसपा को सत्ता से हटा कर सपा को संपूर्ण बहुमत के साथ जनता ने सत्ता सौंप दी। इस सत्ता परिवर्तन की व्यापक समीक्षा ‘चुनाव समीक्षा’ सम्बंधी रिपोर्ट में की जा चुकी है।
यद्यपि चुनाव परिणाम 6 मार्च 2012 को ही आ चुके थे लेकिन गृह-नक्षत्रों की अनुकूलता का ध्यान रखते हुये 15 मार्च को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया। उत्साहित सपा नेतृत्व ने इसे ‘पॉप एंड शो’ के साथ आयोजित किया। भारी पैमाने पर जुटी भीड़ ने शपथ ग्रहण समारोह की सारी मर्यादायें तोड़ दीं। यहां तक कि समारोह के मंच पर चढ़ कर भारी हंगामा काटा। यह सत्ता मद में चूर सपा कार्यकर्ताओं की प्रदेश की जनता को पहली सलामी थी।
यद्यपि मात्र डेढ़ माह का समय किसी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन के लिये काफी नहीं है पर कहावत है कि ‘पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं’। सो इस डेढ़ माह के बीच मौजूदा सरकार के काम-काज को उदारतापूर्वक ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ अंक ही प्रदान किये जा सकते हैं।
युवा मुख्यमंत्री काफी उत्साहित हैं; कुछ कर गुजरने की ललक भी उनमें है। हो भी क्यों नहीं देश के सबसे बड़े सूबे का मात्र 39 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनने का उन्हें अवसर प्राप्त हुआ है और वह भी सम्पूर्ण बहुमत के साथ। बेहद अनुभवी पिता, चाचा तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं का संरक्षण और मार्गदर्शन उन्हें हासिल है वह अलग। लेकिन यह भी सच है कि वे पूंजीवादी पार्टी के मुख्यमंत्री हैं, जिसकी अपनी राजनैतिक तहजीब है और राजनैतिक निहित स्वार्थ हैं। अतएव यह सरकार भी उसी राह पर चल पड़ी है जिस पर 2007 से पूर्व की सपा सरकार चल रही थी।
कानून-व्यवस्था का मुद्दा इस दरम्यान सबसे पेचीदा मुद्दा बन कर उभरा है। चुनाव नतीजे आते ही बदले की भावना से कारगुजारियां शुरू हो गईं। दलितों और अन्य कमजोरों को खास तौर पर निशाना बनाया गया है। हत्या, लूट, उनकी सम्पत्तियों की आगजनी, उनको आबंटित प्लाटों से बेदखल करना, उनको दलित कोटे के तहत दी गई राशन की दुकानों को निरस्त कराना या अटैच कराना आदि वारदातें आम हो गई हैं। अन्य अपराधों की आई बाढ़ के परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री को 18 मई को प्रदेश भर के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की लखनऊ में बैठक तलब करनी पड़ी है। देखना है कि उसका क्या परिणाम निकलता है। आम धारणा है कि सपा की सरकार बनते ही अपराधी, माफिया और दबंग शरारती तत्व बेखौफ हो जाते हैं और आम जन-जीवन पर ही नहीं शासन और प्रशासन पर भी भारी पड़ते हैं।
इस बीच स्वच्छ प्रशासन देने की गरज से बड़ी संख्या में आईएएस, पीसीएस, आईपीएस तथा पीपीएस अधिकारियों के तबादले किये जा चुके हैं। तबादलों का यह क्रम अब भी जारी है और जून अंत तक जारी रहने की संभावना है। लेकिन अभी भी लाभ के तमाम स्थानों पर बसपा सरकार के अफसर जमे बैठे हैं और मंत्रीगण तक इस पर खुला विरोध जताते रहे हैं। पूर्व सरकार में मजे लूटने वाले तमाम अफसरों को पहले कम महत्वपूर्ण जगहों पर भेजा गया और फिर चन्द दिनों के भीतर ही उनको अच्छे पदों पर पुनः बैठा दिया गया। अन्य विभागों में भी तबादलें की मारामारी मची है तथा निहित स्वार्थों के चलते मंत्रियों और संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव के बीच रस्साकशी चल रही है। नीचे से ऊपर तक प्रशासन में कोई सुधार दिखाई नहीं देता। इसके पीछे जरूर ही कोई कारण है।
सपा के घोषणापत्र में तथा चुनाव अभियान के दौरान किसानों से तमाम लुभावने वायदे किये गये थे। लेकिन किसानों के सम्बंध में पहले इम्तिहान में सपा सरकार अनुत्तीर्ण हो गई। इस बार प्रदेश के किसानों ने गेहूं की बम्पर फसल पैदा की है और न्यूनतम निर्धारित मूल्य भी 1285 रूपये प्रति क्विंटल है। सरकार ने गेहूं खरीद की पर्याप्त व्यवस्थाओं की घोषणायें की थी लेकिन साथ-ही-साथ व्यापारियों के माध्यम से भी खरीद कराने का निर्णय भी ले डाला। सरकार के तमाम दावों और वायदों के बावजूद तमाम सरकारी खरीद केन्द्रों पर ताले लटके हैं। यदि खरीद केन्द्र खुल भी गया है तो उस पर बोरे नहीं हैं। यों तो बोरों की कमी राष्ट्रीय स्तर पर है परन्तु उत्तर प्रदेश में सरकारी मशीनरी ने तमाम बोरे निजी व्यापारियों को सौंप दिये हैं। निजी व्यापारी किसानों से 1100 रूपये से लेकर 1150 रूपये के बीच प्रति क्विंटल गेहूं खरीद रहे हैं और 1285 रूपये क्विंटल में सरकार को दे रहे हैं। बीच के धन का बंदरबांट व्यापारी और अफसरों के बीच हो रहा है। जो किसान खरीद केन्द्रों पर गेहूं लेकर पहुंचे उनका गेहूं तौल तो लिया गया लेकिन बोरों की अनुपलब्धता बताकर खुले में डाल दिया गया। किसान दिन रात उसकी चौकीदारी कर रहे हैं। उन्हें भुगतान भी नहीं किया जा रहा। सपा के तमाम कार्यकर्ताओं पर से मुकदमें हटाये जा रहे हैं पर पूर्ववर्ती सरकार के शासनकाल में जमीन बचाने के लिये आन्दोलन करने वाले तमाम किसानों पर से अभी मुकदमें वापस नहीं लिये गये। यहां तक कि भट्टा-पारसौल के किसान अभी तक जेल में बन्द हैं। अब मुख्यमंत्री ने उनकी रिहाई का वायदा किया है। खेती के लिये 18 घंटे बिजली देने का वायदा भी पूरा नहीं हो पा रहा। खराब पड़े नलकूपों की मरम्मत और नहर-बंबों की सफाई का काम भी अभी तक प्रारम्भ नहीं हुआ। 6 किसान तथा बुनकर इस बीच आत्महत्यायें कर चुके हैं।
हम और हमारे छात्र-युवा संगठन ‘समस्त बेरोजगारों को रोजगार या बेरोजगारी भत्ता दिलाने’ को आन्दोलन करते रहे हैं। सपा ने भी अपने घोषणापत्र में भत्ता देने का वायदा किया था। लेकिन अब इस वायदे को काट-छांट कर सीमित किया जा रहा है। पहले 35 वर्ष के ऊपर की उम्र वालों को भत्ता देने की बात कही तो इसका विरोध हुआ। अब तीस वर्ष तक के उन बेरोजगारों को भत्ता देने की बात की जा रही है जिनके नाम 15 मार्च 2012 तक रोजगार कार्यालय में दर्ज हो चुके थे। अन्य कई प्राविधानों के जरिये कम से कम बेरोजगारों को भत्ता देने की रणनीति पर सरकार चल रही है। यही हाल छात्रों को लैपटाप और टैबलेट देने के मामले में चल रहा है। सरकारी विभागों में हजारों स्थान रिक्त हैं जिन्हें भरे जाने को कदम उठाने चाहिये।
इस बीच प्रदेश में तमाम नये-पुराने घोटालों की परतें उघड़ रहीं हैं। खाद्यान्न घोटाला, जिसको हमारी पार्टी ने उजागर किया था, की सीबीआई जांच चल रही है और तमाम अफसर-कर्मचारी जेल जा रहे हैं। एनआरएचएम घोटाले की जांच में भी मंत्री और अफसर जेल जा चुके हैं और अन्य अनेकों के जाने की संभावना है। सपा सरकार के पूर्व खाद्य एवं रसद मंत्री और वर्तमान सरकार के जेल मंत्री पर भी खाद्यान्न घोटाले में लिप्त होने के आरोपों के बावजूद उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया है। कई अन्य मौजूदा मंत्री खाद्यान्न घोटाले की जद में आ रहे हैं। आयुर्वेद घोटाले में भी एक मंत्री के लिप्त होने की खबर सभी को है। पुलिस भर्ती घोटाले में तो मुख्य मंत्री के परिवार के तमाम लोगों पर ही घोटाले के आरोप लगे थे।
अब बसपा शासन में हुये तमाम घपले-घोटालों और भ्रष्टाचार के खुलासे हो रहे हैं। 21 चीनी मिलों की बिक्री में हो रही धांधली का हमने खुद अक्टूबर 2010 में खुलासा किया था। अब सीएजी रिपोर्ट से इस महाघोटाले की पुष्टि हो चुकी है। मीडिया से लेकर राजनैतिक हलकों में इस मसले पर तूफान खड़ा हो गया है। यहां तक कि मामला उच्च न्यायालय में पहुंच गया है।हमने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इन चीनी मिलों की बिक्री निरस्त करने और घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है लेकिन सरकार अभी तक कोरी बयानबाजी कर रही है। इसका एक खास कारण यह है कि ये सारी मिलें कई कंपनियों के नाम से उद्योगपति पोंटी चढ्ढा ने खरीदी हैं और पोंटी चढ्ढा सपा सुप्रीमो के खासमखास रहे हैं। बसपा के शासनकाल में वे बसपा सुप्रीमो के खासमखास हो गये थे। अब वे पुनः सपा सरकार के सबसे करीबी उद्योगपतियों में गिने जाते हैं। शराब का थोक और खुदरा कारोबार आज फिर से उन्हीं के हाथों पहुंच गया है। चीनी मिल बिक्री में धांधली पर त्वरित कार्यवाही में सरकार की ऊहापोह का यही कारण है।
सपा ने अपने घोषणापत्र और चुनाव अभियान के दरम्यान भ्रष्टाचार पर कारगर अंकुश लगाने और लोकायुक्त संस्था को मजबूत करने के तमाम वायदे किये थे और आज भी इसके मुख्यमंत्री एवं प्रमुख मंत्रीगण भ्रष्टाचारियों, यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री को दोषी पाये जाने पर जेल के सीखचों के पीछे पहुंचाने की बात कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में लोकायुक्त ने बसपा सरकार के पांच पूर्व मंत्रियों की आय से अधिक सम्पत्ति मामले की जांच की और उन्हें दोषी पाया। लोकायुक्त ने उनकी जांच सीबीआई तथा प्रवर्तन निदेशालय से कराने की अनुशंसा सरकार से की है। लेकिन उनकी इस अनुशंसा पर अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है। पूर्व ऊर्जा मंत्री ने तो लोकायुक्त को ही सार्वजनिक तौर पर धमकी दे डाली और सरकार ने उनके खिलाफ कोई कानूनी कदम नहीं उठाया।
इसी तरह छात्रवृत्ति एवं शिक्षण शुल्क प्रतिपूर्ति घोटाला, नहरों के निर्माण का घोटाला, मनरेगा घोटाला, मिड डे मील, शौचालय निर्माण घोटाला, वाणसागर परियोजना घोटाला, सड़क और पुल निर्माण के घोटाले, नोएडा प्लाट आबंटन घोटाला और अब पूर्व मुख्यमंत्री के आवास की सजधज पर खर्च किये 86 करोड़ रूपये की बात उजागर हो चुकी है। अभी दर्जनों घोटाले हैं जिन्हें खोला जाना बाकी है। सरकार की सदाशयता की परीक्षा होने वाली है।
स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्त करने को सरकार ने कई कदम उठाये हैं। लेकिन अभी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को और चुस्त-दुरूस्त तथा व्यापक बनाने की जरूरत है ताकि प्राईवेट स्वास्थ्य सेवाओं से मरीजों की लूट को बचाया जा सके और उन्हें बेहतर इलाज सुलभ कराया जा सके। इस बीच रायबरेली में एम्स खोले जाने की बहस ने काफी जोर पकड़ा और नई राज्य सरकार ने जमीन मुहैया कराने को कदम उठाये हैं। परन्तु भाकपा ने मांग की है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को चार एम्स और मिलने चाहिये। पूर्वांचल, बुन्देलखंड, मध्य तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले इस विशालकाय सूबे को चार एम्स मिलने की मांग सर्वथा न्यायोचित है।
नई सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिये कुछ घोषणायें की हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन तमाम गरीबोंकी लड़कियों को भी आर्थिक सहायता तथा उनके श्मशानों की चहारदीवारी कराने का उचित निर्णय लेना ही होगा। गरीबों और असहायों के उत्थान के कार्यक्रमों में राजनीति नहीं हो तो बेहतर है।
धरनास्थल पुनः विधानसभा के समक्ष लाने के लिये सरकार साधुवाद की पात्र है। कालीदास मार्ग को आम जनता के लिये खोल देना भी उचित है। जनता दरबार की पुनर्वापसी की भी सराहना की जानी चाहिये। लेकिन इन दरबारों में उमड़ने वाली भीड़ जिनमें महिलाओं की तादाद भी अच्छी-खासी होती है, चौकाने वाली है। जिन समस्याओं से प्रदेशवासी जूझ रहे हैं और जनता दर्शन के माध्यम से जो खबरे बाहर आ रहीं हैं, वे काफी भयावह हैं। ये स्थितियां एक दो दिन में नहीं बनी हैं। गत कई सरकारों ने जनता के ज्वलंत सवालों पर घनघोर उदासीनता का रवैया अपनाया है। प्रशासनिक मशीनरी का जातिवादीकरण और राजनीतिकरण हो चुका है और प्रशासन में बैठे लोग बेहद संवेदनाहीन, स्वार्थी और भ्रष्ट हो चुके हैं। सरकार में परिवर्तन के साथ आस्था परिवर्तन भी हो जाता है। अतएव कार्य संस्कृति में कोई परिवर्तन नहीं होता। यदि स्थानीय तौर पर लोगों की समस्याओं का निदान हो जाता तो बेहद कष्ट और खर्च उठाकर निरीह जनता राजधानी का रूख शायद ही करती।
विगत सपा सरकार और गत बसपा सरकार की आर्थिक और औद्योगिक नीति समान थी जिसके अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र को बेचा जा रहा था और निजी क्षेत्र को पनपाया जा रहा था। इसके लिये पीपीपी मॉडल की ईजाद की गई थी। अब सरकार बड़े शहरों की बिजली आपूर्ति की व्यवस्था को निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी कर रही है। सड़कों और पुलों के निर्माण का काम भी पीपीपी मॉडल के तहत कराने का निर्णय लिया जा चुका है।
हम प्रदेश में उद्योग और कृषि के चौतरफा विकास के पक्षधर हैं। परन्तु हम मानते हैं कि प्रदेश का स्थाई विकास सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत ही हो सकता है। सरकार को औद्योगिक व कृषि विकास की योजनायें बनाते वक्त किसान, खेतिहर मजदूर, मजदूर और आम जनता के हितों को ध्यान में रखना चाहिये, चन्द उद्योगपति और औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने से समस्या का समाधान होने वाला नहीं है।
प्रदेश की राजनीति में हो रही इस उथल-पुथल के बीच सरकारी पक्ष की ओर से तमाम बयान आ रहे हैं कि सरकार को 6 माह का समय दिया जाये और सरकार के कामकाज की समीक्षा अथवा आलोचना न की जाये। हम भी ऐसा ही चाहते हैं। परन्तु स्थितियां हमें मौन तोड़ने को बाध्य कर रही हैं। अतः अपने को राम मनोहर लोहिया के अनुयायी कहने वालों को हम लोहिया जी के इस कथन की याद दिलाना चाहते हैं - ‘जिन्दा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।’ अतएव जब किसान-कामगारों और आमजनों के तमाम सवालात उभर कर सतह पर आ गये हों तो परिस्थिति का तकाजा है कि हम जनता के सवालों पर जनता के बीच जायें।
वर्ष 2007 के विधान सभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी को सत्ता से हटा कर बसपा को पूर्ण बहुमत सौंपा था। लेकिन बसपा सरकार ने भी अपनी पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों को ही और तीखे ढंग से लागू किया और उससे भी जनता का मोहभंग हो गया। परिणामस्वरूप गत विधान सभा चुनावों में बसपा को सत्ता से हटा कर सपा को संपूर्ण बहुमत के साथ जनता ने सत्ता सौंप दी। इस सत्ता परिवर्तन की व्यापक समीक्षा ‘चुनाव समीक्षा’ सम्बंधी रिपोर्ट में की जा चुकी है।
यद्यपि चुनाव परिणाम 6 मार्च 2012 को ही आ चुके थे लेकिन गृह-नक्षत्रों की अनुकूलता का ध्यान रखते हुये 15 मार्च को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया। उत्साहित सपा नेतृत्व ने इसे ‘पॉप एंड शो’ के साथ आयोजित किया। भारी पैमाने पर जुटी भीड़ ने शपथ ग्रहण समारोह की सारी मर्यादायें तोड़ दीं। यहां तक कि समारोह के मंच पर चढ़ कर भारी हंगामा काटा। यह सत्ता मद में चूर सपा कार्यकर्ताओं की प्रदेश की जनता को पहली सलामी थी।
यद्यपि मात्र डेढ़ माह का समय किसी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन के लिये काफी नहीं है पर कहावत है कि ‘पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं’। सो इस डेढ़ माह के बीच मौजूदा सरकार के काम-काज को उदारतापूर्वक ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ अंक ही प्रदान किये जा सकते हैं।
युवा मुख्यमंत्री काफी उत्साहित हैं; कुछ कर गुजरने की ललक भी उनमें है। हो भी क्यों नहीं देश के सबसे बड़े सूबे का मात्र 39 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनने का उन्हें अवसर प्राप्त हुआ है और वह भी सम्पूर्ण बहुमत के साथ। बेहद अनुभवी पिता, चाचा तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं का संरक्षण और मार्गदर्शन उन्हें हासिल है वह अलग। लेकिन यह भी सच है कि वे पूंजीवादी पार्टी के मुख्यमंत्री हैं, जिसकी अपनी राजनैतिक तहजीब है और राजनैतिक निहित स्वार्थ हैं। अतएव यह सरकार भी उसी राह पर चल पड़ी है जिस पर 2007 से पूर्व की सपा सरकार चल रही थी।
कानून-व्यवस्था का मुद्दा इस दरम्यान सबसे पेचीदा मुद्दा बन कर उभरा है। चुनाव नतीजे आते ही बदले की भावना से कारगुजारियां शुरू हो गईं। दलितों और अन्य कमजोरों को खास तौर पर निशाना बनाया गया है। हत्या, लूट, उनकी सम्पत्तियों की आगजनी, उनको आबंटित प्लाटों से बेदखल करना, उनको दलित कोटे के तहत दी गई राशन की दुकानों को निरस्त कराना या अटैच कराना आदि वारदातें आम हो गई हैं। अन्य अपराधों की आई बाढ़ के परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री को 18 मई को प्रदेश भर के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की लखनऊ में बैठक तलब करनी पड़ी है। देखना है कि उसका क्या परिणाम निकलता है। आम धारणा है कि सपा की सरकार बनते ही अपराधी, माफिया और दबंग शरारती तत्व बेखौफ हो जाते हैं और आम जन-जीवन पर ही नहीं शासन और प्रशासन पर भी भारी पड़ते हैं।
इस बीच स्वच्छ प्रशासन देने की गरज से बड़ी संख्या में आईएएस, पीसीएस, आईपीएस तथा पीपीएस अधिकारियों के तबादले किये जा चुके हैं। तबादलों का यह क्रम अब भी जारी है और जून अंत तक जारी रहने की संभावना है। लेकिन अभी भी लाभ के तमाम स्थानों पर बसपा सरकार के अफसर जमे बैठे हैं और मंत्रीगण तक इस पर खुला विरोध जताते रहे हैं। पूर्व सरकार में मजे लूटने वाले तमाम अफसरों को पहले कम महत्वपूर्ण जगहों पर भेजा गया और फिर चन्द दिनों के भीतर ही उनको अच्छे पदों पर पुनः बैठा दिया गया। अन्य विभागों में भी तबादलें की मारामारी मची है तथा निहित स्वार्थों के चलते मंत्रियों और संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव के बीच रस्साकशी चल रही है। नीचे से ऊपर तक प्रशासन में कोई सुधार दिखाई नहीं देता। इसके पीछे जरूर ही कोई कारण है।
सपा के घोषणापत्र में तथा चुनाव अभियान के दौरान किसानों से तमाम लुभावने वायदे किये गये थे। लेकिन किसानों के सम्बंध में पहले इम्तिहान में सपा सरकार अनुत्तीर्ण हो गई। इस बार प्रदेश के किसानों ने गेहूं की बम्पर फसल पैदा की है और न्यूनतम निर्धारित मूल्य भी 1285 रूपये प्रति क्विंटल है। सरकार ने गेहूं खरीद की पर्याप्त व्यवस्थाओं की घोषणायें की थी लेकिन साथ-ही-साथ व्यापारियों के माध्यम से भी खरीद कराने का निर्णय भी ले डाला। सरकार के तमाम दावों और वायदों के बावजूद तमाम सरकारी खरीद केन्द्रों पर ताले लटके हैं। यदि खरीद केन्द्र खुल भी गया है तो उस पर बोरे नहीं हैं। यों तो बोरों की कमी राष्ट्रीय स्तर पर है परन्तु उत्तर प्रदेश में सरकारी मशीनरी ने तमाम बोरे निजी व्यापारियों को सौंप दिये हैं। निजी व्यापारी किसानों से 1100 रूपये से लेकर 1150 रूपये के बीच प्रति क्विंटल गेहूं खरीद रहे हैं और 1285 रूपये क्विंटल में सरकार को दे रहे हैं। बीच के धन का बंदरबांट व्यापारी और अफसरों के बीच हो रहा है। जो किसान खरीद केन्द्रों पर गेहूं लेकर पहुंचे उनका गेहूं तौल तो लिया गया लेकिन बोरों की अनुपलब्धता बताकर खुले में डाल दिया गया। किसान दिन रात उसकी चौकीदारी कर रहे हैं। उन्हें भुगतान भी नहीं किया जा रहा। सपा के तमाम कार्यकर्ताओं पर से मुकदमें हटाये जा रहे हैं पर पूर्ववर्ती सरकार के शासनकाल में जमीन बचाने के लिये आन्दोलन करने वाले तमाम किसानों पर से अभी मुकदमें वापस नहीं लिये गये। यहां तक कि भट्टा-पारसौल के किसान अभी तक जेल में बन्द हैं। अब मुख्यमंत्री ने उनकी रिहाई का वायदा किया है। खेती के लिये 18 घंटे बिजली देने का वायदा भी पूरा नहीं हो पा रहा। खराब पड़े नलकूपों की मरम्मत और नहर-बंबों की सफाई का काम भी अभी तक प्रारम्भ नहीं हुआ। 6 किसान तथा बुनकर इस बीच आत्महत्यायें कर चुके हैं।
हम और हमारे छात्र-युवा संगठन ‘समस्त बेरोजगारों को रोजगार या बेरोजगारी भत्ता दिलाने’ को आन्दोलन करते रहे हैं। सपा ने भी अपने घोषणापत्र में भत्ता देने का वायदा किया था। लेकिन अब इस वायदे को काट-छांट कर सीमित किया जा रहा है। पहले 35 वर्ष के ऊपर की उम्र वालों को भत्ता देने की बात कही तो इसका विरोध हुआ। अब तीस वर्ष तक के उन बेरोजगारों को भत्ता देने की बात की जा रही है जिनके नाम 15 मार्च 2012 तक रोजगार कार्यालय में दर्ज हो चुके थे। अन्य कई प्राविधानों के जरिये कम से कम बेरोजगारों को भत्ता देने की रणनीति पर सरकार चल रही है। यही हाल छात्रों को लैपटाप और टैबलेट देने के मामले में चल रहा है। सरकारी विभागों में हजारों स्थान रिक्त हैं जिन्हें भरे जाने को कदम उठाने चाहिये।
इस बीच प्रदेश में तमाम नये-पुराने घोटालों की परतें उघड़ रहीं हैं। खाद्यान्न घोटाला, जिसको हमारी पार्टी ने उजागर किया था, की सीबीआई जांच चल रही है और तमाम अफसर-कर्मचारी जेल जा रहे हैं। एनआरएचएम घोटाले की जांच में भी मंत्री और अफसर जेल जा चुके हैं और अन्य अनेकों के जाने की संभावना है। सपा सरकार के पूर्व खाद्य एवं रसद मंत्री और वर्तमान सरकार के जेल मंत्री पर भी खाद्यान्न घोटाले में लिप्त होने के आरोपों के बावजूद उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया है। कई अन्य मौजूदा मंत्री खाद्यान्न घोटाले की जद में आ रहे हैं। आयुर्वेद घोटाले में भी एक मंत्री के लिप्त होने की खबर सभी को है। पुलिस भर्ती घोटाले में तो मुख्य मंत्री के परिवार के तमाम लोगों पर ही घोटाले के आरोप लगे थे।
अब बसपा शासन में हुये तमाम घपले-घोटालों और भ्रष्टाचार के खुलासे हो रहे हैं। 21 चीनी मिलों की बिक्री में हो रही धांधली का हमने खुद अक्टूबर 2010 में खुलासा किया था। अब सीएजी रिपोर्ट से इस महाघोटाले की पुष्टि हो चुकी है। मीडिया से लेकर राजनैतिक हलकों में इस मसले पर तूफान खड़ा हो गया है। यहां तक कि मामला उच्च न्यायालय में पहुंच गया है।हमने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इन चीनी मिलों की बिक्री निरस्त करने और घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है लेकिन सरकार अभी तक कोरी बयानबाजी कर रही है। इसका एक खास कारण यह है कि ये सारी मिलें कई कंपनियों के नाम से उद्योगपति पोंटी चढ्ढा ने खरीदी हैं और पोंटी चढ्ढा सपा सुप्रीमो के खासमखास रहे हैं। बसपा के शासनकाल में वे बसपा सुप्रीमो के खासमखास हो गये थे। अब वे पुनः सपा सरकार के सबसे करीबी उद्योगपतियों में गिने जाते हैं। शराब का थोक और खुदरा कारोबार आज फिर से उन्हीं के हाथों पहुंच गया है। चीनी मिल बिक्री में धांधली पर त्वरित कार्यवाही में सरकार की ऊहापोह का यही कारण है।
सपा ने अपने घोषणापत्र और चुनाव अभियान के दरम्यान भ्रष्टाचार पर कारगर अंकुश लगाने और लोकायुक्त संस्था को मजबूत करने के तमाम वायदे किये थे और आज भी इसके मुख्यमंत्री एवं प्रमुख मंत्रीगण भ्रष्टाचारियों, यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री को दोषी पाये जाने पर जेल के सीखचों के पीछे पहुंचाने की बात कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में लोकायुक्त ने बसपा सरकार के पांच पूर्व मंत्रियों की आय से अधिक सम्पत्ति मामले की जांच की और उन्हें दोषी पाया। लोकायुक्त ने उनकी जांच सीबीआई तथा प्रवर्तन निदेशालय से कराने की अनुशंसा सरकार से की है। लेकिन उनकी इस अनुशंसा पर अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है। पूर्व ऊर्जा मंत्री ने तो लोकायुक्त को ही सार्वजनिक तौर पर धमकी दे डाली और सरकार ने उनके खिलाफ कोई कानूनी कदम नहीं उठाया।
इसी तरह छात्रवृत्ति एवं शिक्षण शुल्क प्रतिपूर्ति घोटाला, नहरों के निर्माण का घोटाला, मनरेगा घोटाला, मिड डे मील, शौचालय निर्माण घोटाला, वाणसागर परियोजना घोटाला, सड़क और पुल निर्माण के घोटाले, नोएडा प्लाट आबंटन घोटाला और अब पूर्व मुख्यमंत्री के आवास की सजधज पर खर्च किये 86 करोड़ रूपये की बात उजागर हो चुकी है। अभी दर्जनों घोटाले हैं जिन्हें खोला जाना बाकी है। सरकार की सदाशयता की परीक्षा होने वाली है।
स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्त करने को सरकार ने कई कदम उठाये हैं। लेकिन अभी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को और चुस्त-दुरूस्त तथा व्यापक बनाने की जरूरत है ताकि प्राईवेट स्वास्थ्य सेवाओं से मरीजों की लूट को बचाया जा सके और उन्हें बेहतर इलाज सुलभ कराया जा सके। इस बीच रायबरेली में एम्स खोले जाने की बहस ने काफी जोर पकड़ा और नई राज्य सरकार ने जमीन मुहैया कराने को कदम उठाये हैं। परन्तु भाकपा ने मांग की है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को चार एम्स और मिलने चाहिये। पूर्वांचल, बुन्देलखंड, मध्य तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले इस विशालकाय सूबे को चार एम्स मिलने की मांग सर्वथा न्यायोचित है।
नई सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिये कुछ घोषणायें की हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन तमाम गरीबोंकी लड़कियों को भी आर्थिक सहायता तथा उनके श्मशानों की चहारदीवारी कराने का उचित निर्णय लेना ही होगा। गरीबों और असहायों के उत्थान के कार्यक्रमों में राजनीति नहीं हो तो बेहतर है।
धरनास्थल पुनः विधानसभा के समक्ष लाने के लिये सरकार साधुवाद की पात्र है। कालीदास मार्ग को आम जनता के लिये खोल देना भी उचित है। जनता दरबार की पुनर्वापसी की भी सराहना की जानी चाहिये। लेकिन इन दरबारों में उमड़ने वाली भीड़ जिनमें महिलाओं की तादाद भी अच्छी-खासी होती है, चौकाने वाली है। जिन समस्याओं से प्रदेशवासी जूझ रहे हैं और जनता दर्शन के माध्यम से जो खबरे बाहर आ रहीं हैं, वे काफी भयावह हैं। ये स्थितियां एक दो दिन में नहीं बनी हैं। गत कई सरकारों ने जनता के ज्वलंत सवालों पर घनघोर उदासीनता का रवैया अपनाया है। प्रशासनिक मशीनरी का जातिवादीकरण और राजनीतिकरण हो चुका है और प्रशासन में बैठे लोग बेहद संवेदनाहीन, स्वार्थी और भ्रष्ट हो चुके हैं। सरकार में परिवर्तन के साथ आस्था परिवर्तन भी हो जाता है। अतएव कार्य संस्कृति में कोई परिवर्तन नहीं होता। यदि स्थानीय तौर पर लोगों की समस्याओं का निदान हो जाता तो बेहद कष्ट और खर्च उठाकर निरीह जनता राजधानी का रूख शायद ही करती।
विगत सपा सरकार और गत बसपा सरकार की आर्थिक और औद्योगिक नीति समान थी जिसके अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र को बेचा जा रहा था और निजी क्षेत्र को पनपाया जा रहा था। इसके लिये पीपीपी मॉडल की ईजाद की गई थी। अब सरकार बड़े शहरों की बिजली आपूर्ति की व्यवस्था को निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी कर रही है। सड़कों और पुलों के निर्माण का काम भी पीपीपी मॉडल के तहत कराने का निर्णय लिया जा चुका है।
हम प्रदेश में उद्योग और कृषि के चौतरफा विकास के पक्षधर हैं। परन्तु हम मानते हैं कि प्रदेश का स्थाई विकास सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत ही हो सकता है। सरकार को औद्योगिक व कृषि विकास की योजनायें बनाते वक्त किसान, खेतिहर मजदूर, मजदूर और आम जनता के हितों को ध्यान में रखना चाहिये, चन्द उद्योगपति और औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने से समस्या का समाधान होने वाला नहीं है।
प्रदेश की राजनीति में हो रही इस उथल-पुथल के बीच सरकारी पक्ष की ओर से तमाम बयान आ रहे हैं कि सरकार को 6 माह का समय दिया जाये और सरकार के कामकाज की समीक्षा अथवा आलोचना न की जाये। हम भी ऐसा ही चाहते हैं। परन्तु स्थितियां हमें मौन तोड़ने को बाध्य कर रही हैं। अतः अपने को राम मनोहर लोहिया के अनुयायी कहने वालों को हम लोहिया जी के इस कथन की याद दिलाना चाहते हैं - ‘जिन्दा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।’ अतएव जब किसान-कामगारों और आमजनों के तमाम सवालात उभर कर सतह पर आ गये हों तो परिस्थिति का तकाजा है कि हम जनता के सवालों पर जनता के बीच जायें।
- किसानों से सरकारी रेट पर गेहूं तत्काल खरीदा जाये तथा उन्हें तत्काल पूरा भुगतान किया जाये। आढ़तियों के द्वारा खरीद पर रोक लगाई जाये।
- युवा बेरोजगारों को रोजगार दिया जाये। सरकारी विभागों में रिक्त पड़े स्थानों पर तत्काल भर्ती शुरू की जाये। समस्त बेरोजगारों को रोजगार हासिल होने तक भत्ता दिया जाये।
- कानून व्यवस्था को पटरी पर लाया जाये। दलितों, कमजोरों एवं महिलाओं पर की जा रही उत्पीड़नात्मक कारगुजारियों को रोका जाये।
- भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाये जायें। लोकायुक्त द्वारा पूर्व मंत्रियों के खिलाफ सीबीआई तथा प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच कराने की अनुशंसा को बिना विलम्ब किये लागू किया जाये। लोकायुक्त संस्था को और व्यापक और मजबूत बनाया जाये।
- चीनी मिलों की बिक्री को रद्द किया जाये। बिक्री में हुये घोटाले की सीबीआई से जांच कराई जाये।
- प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया जाये। प्रदेश में चार नये एम्स खोले जाने को राज्य और केन्द्र सरकार कार्यवाही करे।
- गरीबों के उत्थान की भेदभावरहित योजनायें बनाई जायें तथा अमल में लाई जायें। समस्त गरीबों की शिक्षित लड़कियों को अनुग्रह राशि रू. 30,000/- दी जाये तथा गरीबों के श्मशानों को चहारदीवारी बनाकर सुरक्षित किया जाये।
- बिजली वितरण के निजीकरण के किन्ही भी प्रयासों को बन्द किया जाये और आगरा की बिजली वितरण व्यवस्था को पुनः पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम को सौंपा जाये।
- जून माह में प्रस्तावित निकाय चुनावों में तैयारी के साथ अधिक से अधिक संख्या में भाग लिया जाये।
- तीन दिवसीय धन एवं अनाज संग्रह अभियान प्रदेश भर में चलाया जाये।
- जिलों में विस्तारित काउंसिल बैठकें आहूत कर राष्ट्रीय महाधिवेशन की रिपोर्टिंग और चुनाव समीक्षा का काम पूरा कर लिया जाये।
- निकाय चुनाव के बाद जिलों-जिलों में पार्टी शिक्षा हेतु स्कूल लगाये जाये।
कृत कार्य
राज्य सम्मेलन के तत्काल बाद विधान सभा चुनावों की घोषणा हो गई और हम 51 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे। इसके तत्काल बाद राष्ट्रीय महाधिवेशन में नेतृत्व की टीम एवं अन्य प्रतिनिधियों को जाना था।
इस बीच हमने जिला कमेटियों को निर्देश दिया था कि वे राज्य नेतृत्व को आमंत्रित कर उनकी उपस्थिति में जिला काउंसिल बैठक कर चुनाव समीक्षा करें। साथ ही राष्ट्रीय महाधिवेशन की रिपोर्टिंग करायें। अब तक राज्य नेतृत्व के पास जिन जिलों में बैठक होने की सूचना है - वे हैं बुलन्दशहर, मऊ, पडरौना, अलीगढ़, हाथरस, आगरा, मथुरा, फैजाबाद, कानपुर नगर और कानपुर देहात।
राज्य सम्मेलन के तत्काल बाद विधान सभा चुनावों की घोषणा हो गई और हम 51 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे। इसके तत्काल बाद राष्ट्रीय महाधिवेशन में नेतृत्व की टीम एवं अन्य प्रतिनिधियों को जाना था।
इस बीच हमने जिला कमेटियों को निर्देश दिया था कि वे राज्य नेतृत्व को आमंत्रित कर उनकी उपस्थिति में जिला काउंसिल बैठक कर चुनाव समीक्षा करें। साथ ही राष्ट्रीय महाधिवेशन की रिपोर्टिंग करायें। अब तक राज्य नेतृत्व के पास जिन जिलों में बैठक होने की सूचना है - वे हैं बुलन्दशहर, मऊ, पडरौना, अलीगढ़, हाथरस, आगरा, मथुरा, फैजाबाद, कानपुर नगर और कानपुर देहात।
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