भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के 21 वें राष्ट्रीय महाधिवेशन की
शुरुआत विशाल रैली से हुई। गांधी मैदान में कार्यकर्ता करीब नौ बजे ही
अपने-अपने जिलों के बैनर के पीछे कतारबद्ध हो गये थे। रैली गांधी मैदान से
निकलती रही है और कार्यकर्ता लाल झंडा हाथ में थामे गाजे बाजे के साथ आते
रहे। भाकपा की रैली गांधी मैदान से करीब 12 बजे निकली। 21 घोड़ों पर लाल
झंडा लिए जनसेवा दल का सबसे आगे चल रहे थे। उसके पीछे 21 मोटरसाइकिलों पर
63 लाल वर्दीधारी जवान मार्च कर रहे थे। इनके जन सेवा दल के कई टुकड़ियां
मार्च कर रही थी, जिसमें एक हजार युवक और युवतियां थीं। रैली का नेतृत्व
भाकपा के राष्ट्रीय उप महासचिव एस सुधाकर रेड्डी, राष्ट्रीय सचिव अमजीत
कौर, अतुल कुमार अंजान, गुरुदास दास गुप्ता, भाकपा के राज्य सचिव
बद्रीनारायण लाल, पूर्व विधायक रामनरेश पांडेय, पूर्व विधान पाषर्द संजय
कुमार सहित कई राष्ट्रीय नेताओं ने किया। इन नेताओं के पीछे-पीछे विभिन्न
जिलों का जत्था मार्च कर रहा था। जन सेवा दल के जवान राज्य कमांडर चंदेरी
प्रसाद सिंह और विद्या सिंह के नेतृत्व में पैदल मार्च कर रहे थे। वहीं
पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह घोड़े पर सवाड़ जनसेवा दल के का नेतृत्व कर रहे
थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एबी बर्धन ने पार्टी
के 21 वें राष्ट्रीय महाधिवेशन का झंडोत्तोलन किया। इस मौके पर जनसेवा दल
के सैकड़ों युवक युवतियों ने झंडे की सलामी दी और 21 बम पटाखे भी फोड़े
गये। महासचिव श्री बर्धन और राज्य सचिव बद्रीनारायण लाल ने 21 लाल गुब्बारे
हवा में उड़ाये। इस मौके पर भाकपा के उप महासचिव एस सुधाकर रेड्डी,
राष्ट्रीय सचिव डी राज, अतुल कुमार अंजान, अमरजीत कौर, सचिव मंडल सदस्य
जितेंद्रनाथ, पूर्व विधायक रामनरेश पांडेय, राज्य कार्यकारिणी सदस्य चंदेरी
प्रसाद सिंह आदि मौजूद थे। भाकपा नेताओं ने झंडोत्तोलन के बाद शहीद वेदी
पर माल्यार्पण भी किया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने रैली शुरू
होने से पहले भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों की प्रतिमा और शहीद
स्मारकों पर माल्यापर्ण भी किया। इनमें वीर कुवंर सिंह, शहीस स्मारक, करगिल
शहीदों की याद में बनाये गये शहीद स्मारक, पीर अली, शहीदे आजम भगत सिंह और
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा शामिल है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की
राष्ट्रीय परिषद की बैठक मंगलवार को हुई। बैठक में 21 वें राष्ट्रीय
महाधिवेशन के संचालन को लेकर योजना बनायी गयी। महाधिवेशन का संचालन 31
सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी करेगी। साथ ही चार दिवसीय प्रतिनिधि सत्र की
अध्यक्षता की जिम्मेवारी नौ सदस्यीय अध्यक्ष मंडली को दी गयी है। अध्यक्ष
मंडल का संयोजक अमरजीत कौर को बनाया गया है।
Wednesday, March 28, 2012
धरनास्थल बहाल होने पर पेट में दर्द क्यों?
प्रदेश की नई सरकार ने विधान सभा के सामने स्थित धरनास्थल को यह कहते हुए बहाल कर दिया कि विरोध के स्वर सत्ता की चौखट पर ही मुखर होने चाहिए। खैर यह फैसला और फैसले के पीछे बताया गया कारण राजनीतिक है और इसकी मीमांसा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। लेकिन मीडिया के एक तबके के पेट में सरकार के इस फैसले से पता नहीं क्यों दर्द होने लगा है। कई अखबारों में पत्रकारों का दर्द कुछ यूं उभरा है कि विधान सभा के सामने धरनास्थल पर होने वाले धरना-प्रदर्शनों से प्रदेश की राजधानी की जीवन रेखा ”विधान सभा मार्ग“ पर जाम लगता है, स्कूलों के छोटे-छोटे बच्चे जाम में भूखों प्यासे घंटों फंसे रहते हैं, मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाते, कर्मचारी दफ्तर नहीं पहुंच पाते और लोगों की ट्रेन छूट जाती है, आदि-आदि। एक अखबार में एक फीचर छपा जिसे अंत में निदा फाजली का एक शेर दिया गया - ”मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन? आवाजों के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन?“ यह शेर बहुत कुछ कह जाता है।
जिस दर्द को मीडिया उभारने की कोशिश करता दिख रहा है, वह एक मध्यमवर्गीय दर्द है। वह दिल में नहीं दिमाग में होता है। दिमाग में होता है, इसलिए कागजों पर उभरता है और अखबारों में छपता है। लेकिन जो दर्द भूखे पेट में होता है, वह आज-कल उत्तर प्रदेश में मुखर नहीं होता, मुखर होता तो निदा फाजली के शब्दों के अनुसार उसे सुना जाता। उन भूखे पेटों का प्रतिनिधित्व करने वाले अगर कुछ ज्यादा संख्या में कभी-कभार प्रदेश की राजधानी पहुंच जाते हैं, धरनास्थल से निकल कर प्रदेश की राजधानी की जीवन रेखा विधान सभा मार्ग पर ठीक विधान सभा के सामने आ जाते हैं, तो निश्चित रूप से कभी-कभार जाम की समस्या होती है। तेज रफ्तार से इस रोड पर चलता ट्रैफिक कुछ समय के लिए थम सा जाता है, तो उसमें समस्या क्या है? यह रास्ता कोई ऐसा रास्ता नहीं है जिसके दायें-बायें होकर गंतव्य तक पहुंचा न जा सकता हो।
हाल में अपदस्थ हुई मायावती के कार्यकाल में इस धरनास्थल को पहले शहीद स्मारक पहुंचा दिया गया था। प्रदेश के कोने-कोने से आये प्रदर्शनकारियों को कई बार पुलिस पीटती हुई गोमती के छोर तक ले गयी कि उन्हें गोमती नदी में फांद कर अपनी जान बचानी पड़ी। यह मध्यमवर्गीय सोच उस वक्त भी अखबारों में चीख रही थी जाम की समस्या को लेकर। धरनास्थल को फिर गोमती नदी के दूसरे किनारे झूलेलाल पार्क पहुंचा दिया गया। फिर वही लाठी-चार्ज और गोमती में कूदने की घटनायें। तब भी वही मध्यमवर्गीय सोच अखबारों में चीख रही थी कि जाम की समस्या को लेकर। हमारे इन स्वरों को अखबारों में जगह नहीं मिली कि बर्बर पुलिसिया युग में नदी के किनारे धरनास्थल कितना असुरक्षित है? इन जगहों पर जाम लगता था तो दायंे-बायें होकर भी निकला नहीं जा सकता था।
प्रदेश की राजधानी के तमाम मार्गों पर जाम की समस्या लगातार बनी रहती है। अखबार चुप रहते हैं। इस मध्यमवर्ग को वे जाम दिखाई नहीं देते। बच्चों और मरीजों का दर्द उसे महसूस नहीं होता। जब कोई राजनेता प्रदेश की सड़कों से गुजरता है, तब भी ट्रैफिक रोक कर जाम लगा दिया जाता है। सरकारी मशीनरी द्वारा लगाया गया जाम इस मध्यमवर्ग को नहीं दिखता। बच्चों और मरीजों का दर्द महसूस नहीं होता।
हमारी यही सलाह है कि मीडिया का मध्यमवर्ग भूखे पेटों से निकलने वाली आवाज और उसके कारण लगने वाले जाम को भी बर्दाश्त करने की आदत डाल ले क्योंकि यह आवाज प्रदेश की राजधानी में कभी कभार ही सुनाई देती है, बाकी वक्त तो प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में यह आवाज दिलों में, करोड़ों दिलों में डूबी रहती है, जिसे कोई नहीं सुनता।
जिस दर्द को मीडिया उभारने की कोशिश करता दिख रहा है, वह एक मध्यमवर्गीय दर्द है। वह दिल में नहीं दिमाग में होता है। दिमाग में होता है, इसलिए कागजों पर उभरता है और अखबारों में छपता है। लेकिन जो दर्द भूखे पेट में होता है, वह आज-कल उत्तर प्रदेश में मुखर नहीं होता, मुखर होता तो निदा फाजली के शब्दों के अनुसार उसे सुना जाता। उन भूखे पेटों का प्रतिनिधित्व करने वाले अगर कुछ ज्यादा संख्या में कभी-कभार प्रदेश की राजधानी पहुंच जाते हैं, धरनास्थल से निकल कर प्रदेश की राजधानी की जीवन रेखा विधान सभा मार्ग पर ठीक विधान सभा के सामने आ जाते हैं, तो निश्चित रूप से कभी-कभार जाम की समस्या होती है। तेज रफ्तार से इस रोड पर चलता ट्रैफिक कुछ समय के लिए थम सा जाता है, तो उसमें समस्या क्या है? यह रास्ता कोई ऐसा रास्ता नहीं है जिसके दायें-बायें होकर गंतव्य तक पहुंचा न जा सकता हो।
हाल में अपदस्थ हुई मायावती के कार्यकाल में इस धरनास्थल को पहले शहीद स्मारक पहुंचा दिया गया था। प्रदेश के कोने-कोने से आये प्रदर्शनकारियों को कई बार पुलिस पीटती हुई गोमती के छोर तक ले गयी कि उन्हें गोमती नदी में फांद कर अपनी जान बचानी पड़ी। यह मध्यमवर्गीय सोच उस वक्त भी अखबारों में चीख रही थी जाम की समस्या को लेकर। धरनास्थल को फिर गोमती नदी के दूसरे किनारे झूलेलाल पार्क पहुंचा दिया गया। फिर वही लाठी-चार्ज और गोमती में कूदने की घटनायें। तब भी वही मध्यमवर्गीय सोच अखबारों में चीख रही थी कि जाम की समस्या को लेकर। हमारे इन स्वरों को अखबारों में जगह नहीं मिली कि बर्बर पुलिसिया युग में नदी के किनारे धरनास्थल कितना असुरक्षित है? इन जगहों पर जाम लगता था तो दायंे-बायें होकर भी निकला नहीं जा सकता था।
प्रदेश की राजधानी के तमाम मार्गों पर जाम की समस्या लगातार बनी रहती है। अखबार चुप रहते हैं। इस मध्यमवर्ग को वे जाम दिखाई नहीं देते। बच्चों और मरीजों का दर्द उसे महसूस नहीं होता। जब कोई राजनेता प्रदेश की सड़कों से गुजरता है, तब भी ट्रैफिक रोक कर जाम लगा दिया जाता है। सरकारी मशीनरी द्वारा लगाया गया जाम इस मध्यमवर्ग को नहीं दिखता। बच्चों और मरीजों का दर्द महसूस नहीं होता।
हमारी यही सलाह है कि मीडिया का मध्यमवर्ग भूखे पेटों से निकलने वाली आवाज और उसके कारण लगने वाले जाम को भी बर्दाश्त करने की आदत डाल ले क्योंकि यह आवाज प्रदेश की राजधानी में कभी कभार ही सुनाई देती है, बाकी वक्त तो प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में यह आवाज दिलों में, करोड़ों दिलों में डूबी रहती है, जिसे कोई नहीं सुनता।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा पुलिस आयुक्त प्रणाली का विरोध
लखनऊ 28 मार्च। राज्य सरकार द्वारा राज्य के बड़े जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली की स्थापना की घोषणा पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना विरोध प्रकट करते हुए कहा है कि प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली, उसकी मानसिकता और उसका मौजूदा ढांचा पुलिस आयुक्त प्रणाली के लिए उपयुक्त नहीं है। पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने से जिला पुलिस और अधिक निरंकुश, अमानवीय तथा नियंत्रणविहीन हो जायेगी।
यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि प्रदेश की नई सरकार यह जताने की कोशिश कर रही है कि वह प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र में आमूल-चूल सुधार करना चाहती है लेकिन इस तरह के बिना सोचे समझे किये गये परिवर्तन जनता के लिए नए संकटों और परेशानियों को जन्म देने वाले साबित हो सकते हैं। भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि बेहतर होगा कि राज्य सरकार जल्दबाजी में कोई कदम उठाने के बजाय राष्ट्रीय एवं राज्य के राजनीतिक दलों से विमर्श कर पुलिस कानून 1861 को निरस्त कर उसके स्थान पर राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों तथा सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुरूप लोकतांत्रिक कानून बनाने, आवश्यक पुलिस सुधारों को लागू करने, पुलिस को जनता के साथ मित्रवत मित्रवत बनाने, पुलिस हिरासत में मौतों को रोकने और इस तरह की किसी भी घटना पर कठोर तथा त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करने, अपराधों पर रोक के लिए पुलिस की जांच को पुख्ता करने के लिए अपराध विज्ञान प्रयोगशालाओं की जिला स्तर पर स्थापना करने जिससे अपराधियों को पकड़ने में पुलिस सक्षम हो सके और मुकदमों में सजा सुनिश्चित हो सके, पुलिस द्वारा निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ किसी भी कार्यवाही पर सख्त कार्यवाही के लिए तंत्र विकसित करने और एफआईआर दर्ज करने से जांच तक हर स्तर पर रिश्वतखोरी को समाप्त करने आदि की दिशा में आगे बढ़े जिससे कानून-व्यवस्था की हालत में सुधार हो सके तथा जनता राहत की सांस ले सके।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि पुलिस के प्रशासनिक तंत्र में परिवर्तन करने से स्थितियां सुधारने वाली नहीं है, ज्यादा जरूरी है पुलिस की मानसिकता एवं उसके कार्य करने के तौर तरीकों में आमूल-चूल सुधार की और नई राज्य सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
कार्यालय सचिव
यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि प्रदेश की नई सरकार यह जताने की कोशिश कर रही है कि वह प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र में आमूल-चूल सुधार करना चाहती है लेकिन इस तरह के बिना सोचे समझे किये गये परिवर्तन जनता के लिए नए संकटों और परेशानियों को जन्म देने वाले साबित हो सकते हैं। भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि बेहतर होगा कि राज्य सरकार जल्दबाजी में कोई कदम उठाने के बजाय राष्ट्रीय एवं राज्य के राजनीतिक दलों से विमर्श कर पुलिस कानून 1861 को निरस्त कर उसके स्थान पर राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों तथा सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुरूप लोकतांत्रिक कानून बनाने, आवश्यक पुलिस सुधारों को लागू करने, पुलिस को जनता के साथ मित्रवत मित्रवत बनाने, पुलिस हिरासत में मौतों को रोकने और इस तरह की किसी भी घटना पर कठोर तथा त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करने, अपराधों पर रोक के लिए पुलिस की जांच को पुख्ता करने के लिए अपराध विज्ञान प्रयोगशालाओं की जिला स्तर पर स्थापना करने जिससे अपराधियों को पकड़ने में पुलिस सक्षम हो सके और मुकदमों में सजा सुनिश्चित हो सके, पुलिस द्वारा निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ किसी भी कार्यवाही पर सख्त कार्यवाही के लिए तंत्र विकसित करने और एफआईआर दर्ज करने से जांच तक हर स्तर पर रिश्वतखोरी को समाप्त करने आदि की दिशा में आगे बढ़े जिससे कानून-व्यवस्था की हालत में सुधार हो सके तथा जनता राहत की सांस ले सके।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि पुलिस के प्रशासनिक तंत्र में परिवर्तन करने से स्थितियां सुधारने वाली नहीं है, ज्यादा जरूरी है पुलिस की मानसिकता एवं उसके कार्य करने के तौर तरीकों में आमूल-चूल सुधार की और नई राज्य सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
कार्यालय सचिव
Thursday, March 22, 2012
कामरेड सी. के. चन्द्रप्पन दिवंगत
लखनऊ 22 मार्च। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सचिव एवं पार्टी की केरल राज्य परिषद के सचिव कामरेड सी. के. चन्द्रप्पन का केरल की राजधानी स्थित तिरूअनन्तपुरम अस्पताल में आज दोपहर में निधन हो गया। वे केवल 67 वर्ष के थे। उनके शव को जनता के दर्शनार्थ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केरल राज्य मुख्यालय पर रखा गया है, जहां से उसे व्यालार ले जाया जायेगा जहां उनका अंतिम संस्कार कल दोपहर में होगा।
कामरेड चन्द्रप्पन पुन्नप्रा व्यालार जनसंघर्ष के अप्रतिम योद्धा सी. के. कुमार पनिक्कर तथा अम्मुकुट्टी की संतान थे जो अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गये थे। 11 नवम्बर 1936 को जन्मे कामरेड चन्द्रप्पन 1956 में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) के केरल राज्य के अध्यक्ष चुने गये थे। बाद में वे आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईवॉयएफ) तथा अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लम्बे समय तक रहे। वे तीन बार 1971, 1977 तथा 2004 में लोकसभा के सदस्य चुने गये तथा एक बार केरल विधान सभा के भी सदस्य रहे। वनवासियों को वन उपजों का अधिकार देने वाले कानून को ड्राफ्ट करने में तथा उसे संसद में पास करवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।
कामरेड चन्द्रप्पन की शुरूआती शिक्षा चेरथला और थिरूपुंथुरा में हुई। बाद में उन्होंने चित्तूर राजकीय कालेज से स्नातक की उपाधि ली तथा परास्नातक स्तर की शिक्षा थिरूअनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कालेज में ग्रहण की।
उन्होंने बहुत कम उम्र में गोवा की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में हिस्सा लिया था। वे कई बार जनता के लिए संघर्ष करते हुए गिरफ्तार किये गये और जेल भेज गये। जनसंघर्षों में उन्हें दिल्ली की तिहाड़ तथा कोलकाता की रेजीडेंसी जेल में लम्बे समय तक रहना पड़ा।
1970 में वे भाकपा की राष्ट्रीय परिषद के लिए चुने गये और लम्बे समय तक उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी और सचिव मंडल के सदस्य रहे। मृत्युपर्यन्त वे राष्ट्रीय परिषद के सचिव तथा केरल के राज्य सचिव रहे। जनसंघर्षों के योद्धा कामरेड चन्द्रप्पन के निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को बड़ा आघात लगा है। उनकी मृत्यु से उत्पन्न शून्य को निकट भविष्य में भरा नहीं जा सकेगा।
उनके निधन का समाचार मिलते ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय पर उनके सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। राज्य कार्यालय पर आयोजित एक शोक सभा में भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र, प्रदीप तिवारी, आशा मिश्रा, शमशेर बहादुर सिंह, मुख्तार अहमद तथा ओ. पी. अवस्थी आदि ने उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये।
कामरेड चन्द्रप्पन पुन्नप्रा व्यालार जनसंघर्ष के अप्रतिम योद्धा सी. के. कुमार पनिक्कर तथा अम्मुकुट्टी की संतान थे जो अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में आ गये थे। 11 नवम्बर 1936 को जन्मे कामरेड चन्द्रप्पन 1956 में आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) के केरल राज्य के अध्यक्ष चुने गये थे। बाद में वे आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईवॉयएफ) तथा अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लम्बे समय तक रहे। वे तीन बार 1971, 1977 तथा 2004 में लोकसभा के सदस्य चुने गये तथा एक बार केरल विधान सभा के भी सदस्य रहे। वनवासियों को वन उपजों का अधिकार देने वाले कानून को ड्राफ्ट करने में तथा उसे संसद में पास करवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।
कामरेड चन्द्रप्पन की शुरूआती शिक्षा चेरथला और थिरूपुंथुरा में हुई। बाद में उन्होंने चित्तूर राजकीय कालेज से स्नातक की उपाधि ली तथा परास्नातक स्तर की शिक्षा थिरूअनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कालेज में ग्रहण की।
उन्होंने बहुत कम उम्र में गोवा की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में हिस्सा लिया था। वे कई बार जनता के लिए संघर्ष करते हुए गिरफ्तार किये गये और जेल भेज गये। जनसंघर्षों में उन्हें दिल्ली की तिहाड़ तथा कोलकाता की रेजीडेंसी जेल में लम्बे समय तक रहना पड़ा।
1970 में वे भाकपा की राष्ट्रीय परिषद के लिए चुने गये और लम्बे समय तक उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी और सचिव मंडल के सदस्य रहे। मृत्युपर्यन्त वे राष्ट्रीय परिषद के सचिव तथा केरल के राज्य सचिव रहे। जनसंघर्षों के योद्धा कामरेड चन्द्रप्पन के निधन से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को बड़ा आघात लगा है। उनकी मृत्यु से उत्पन्न शून्य को निकट भविष्य में भरा नहीं जा सकेगा।
उनके निधन का समाचार मिलते ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय पर उनके सम्मान में पार्टी का ध्वज झुका दिया गया। राज्य कार्यालय पर आयोजित एक शोक सभा में भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र, प्रदीप तिवारी, आशा मिश्रा, शमशेर बहादुर सिंह, मुख्तार अहमद तथा ओ. पी. अवस्थी आदि ने उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये।
Tuesday, March 20, 2012
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस की 50वीं वर्षगाँठ - 27 मार्च, 2012 - पर जॉन मायकोविच अभिनेता व निर्देशक सयुंक्त राज्य अमरीका का सन्देश
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (यूनेस्को), पेरिस
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस की 50वीं वर्षगाँठ - 27 मार्च, 2012 - पर जॉन मायकोविच अभिनेता व निर्देशक सयुंक्त राज्य अमरीका का सन्देश
“अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आई टी आई) ने मुझसे यूनेस्को में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच की 50वीं वर्षगाँठ पर बधाई सन्देश देने का आग्रह किया है, मेरे लिए ये बड़े सम्मान का विषय है। मैं साथी रंगकर्मियों, सहकर्मियों और कामरेड्स के समक्ष अपनी बात संक्षिप्त में कहूँगा।
आपका का काम मौलिक, अकाट्य व विचलित करने वाला हो। संवेदनशील, गहन, विचारशील और विशिष्ट हो। वो हमें इस प्रश्न पर विचार करने के लिए प्रेरित करे कि मनुष्य होने का तात्पर्य क्या है, और यह विचार निष्कपट हो, स्पष्ट हो, सच्चाई, संवेदना व गरिमा से परिपूर्ण हो। आप तंगहाली, सेंसरशिप, ग़रीबी और अंधेरों को पराजित करें - जो आप में बहुत से लोग निश्चित रूप से करना चाहेंगे। आप प्रतिभा संपन्न व दृढ़ निश्चयी हों और हमें अपनी पूरी जटिलताओं के साथ धड़कते मानव हृदय के बारे बताएं - आपमें वो विनम्रता और उत्सुकता हो जो इस पथ को आपके जीवन का उद्देश्य बनाये। और आप में जो कुछ भी सबसे अच्छा है - क्योंकि वह केवल आप ही का सबसे अच्छा पक्ष होगा - और केवल तब बिरले और सूक्ष्मतम क्षणों में - आपको उस मूलभूत प्रश्न को चिन्हित करनें में सफल करे, “हम कैसा जीवन जियें / हमारा जीवन कैसा हो?” आपकी यात्रा सफल हो!”
- जॉन मायकोविच
हिंदी अनुवाद: अखिलेश दीक्षित
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस की 50वीं वर्षगाँठ - 27 मार्च, 2012 - पर जॉन मायकोविच अभिनेता व निर्देशक सयुंक्त राज्य अमरीका का सन्देश
“अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आई टी आई) ने मुझसे यूनेस्को में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच की 50वीं वर्षगाँठ पर बधाई सन्देश देने का आग्रह किया है, मेरे लिए ये बड़े सम्मान का विषय है। मैं साथी रंगकर्मियों, सहकर्मियों और कामरेड्स के समक्ष अपनी बात संक्षिप्त में कहूँगा।
आपका का काम मौलिक, अकाट्य व विचलित करने वाला हो। संवेदनशील, गहन, विचारशील और विशिष्ट हो। वो हमें इस प्रश्न पर विचार करने के लिए प्रेरित करे कि मनुष्य होने का तात्पर्य क्या है, और यह विचार निष्कपट हो, स्पष्ट हो, सच्चाई, संवेदना व गरिमा से परिपूर्ण हो। आप तंगहाली, सेंसरशिप, ग़रीबी और अंधेरों को पराजित करें - जो आप में बहुत से लोग निश्चित रूप से करना चाहेंगे। आप प्रतिभा संपन्न व दृढ़ निश्चयी हों और हमें अपनी पूरी जटिलताओं के साथ धड़कते मानव हृदय के बारे बताएं - आपमें वो विनम्रता और उत्सुकता हो जो इस पथ को आपके जीवन का उद्देश्य बनाये। और आप में जो कुछ भी सबसे अच्छा है - क्योंकि वह केवल आप ही का सबसे अच्छा पक्ष होगा - और केवल तब बिरले और सूक्ष्मतम क्षणों में - आपको उस मूलभूत प्रश्न को चिन्हित करनें में सफल करे, “हम कैसा जीवन जियें / हमारा जीवन कैसा हो?” आपकी यात्रा सफल हो!”
- जॉन मायकोविच
हिंदी अनुवाद: अखिलेश दीक्षित
समस्त बेरोजगारों को भत्ता देने के लिए नौजवान सभा चलायेगी अभियान
लखनऊ 20 मार्च। सपा सरकार द्वारा 35 वर्ष से कम उम्र के बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता न देने के निर्णय के खिलाफ नौजवान सभा की आज यहां सम्पन्न राज्य कौंसिल की बैठक में प्रदेशव्यापी आन्दोलन चलाने का फैसला किया गया। बैठक में निर्णय लिया गया कि पूरे प्रदेश में नौजवान सभा 6 अप्रैल से 12 अप्रैल तक युवा जागरण अभियान चलायेगी और सरकार द्वारा 18 वर्ष से 35 वर्ष के नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता देने की मांग पर लामबंद करेगी। युवा जागरण अभियान के तहत जनसम्पर्क, साईकिल अथवा पैदल मार्च, हस्ताक्षर अभियान, सभायें तथा नुक्कड़ सभायें आयोजित की जायेंगी। अभियान का मुख्य नारा होगा - ”समस्त बेरोजगारों को भत्ता! वरना नहीं चलेगा सत्ता!!“ तत्पश्चात् 13 अप्रैल को हर जनपद के रोजगार कार्यालयों अथवा जिलाधिकारी कार्यालयों पर धरने, प्रदर्शन तथा आम सभायें कर राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन प्रेषित कर प्रदेश के सभी बेरोजगार युवकों को बेरोजगारी भत्ता देने की मांग की जायेगी।
नौजवान सभा की राज्य कौंसिल बैठक ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार से मांग की कि 18 से 35 वर्ष तक की उम्र के सभी बेरोजगार युवकों को भत्ता दिया जाये जो रोजगार न मिलने पर स्वतः समाप्त हो जाये। साथ ही मनरेगा कार्ड धारक अथवा अन्य रोजगार योजनाओं के अंतर्गत नामित युवाओं को यदि रोजगार मुहैया नहीं कराया जा रहा है तो उन्हें भी बेरोजगारी भत्ता दिया जाये और उसकी धनराशि बढ़ाये जाने की भी मांग की गयी।
नौजवान सभा की राज्य कौंसिल ने प्रदेश भर की अपनी ईकाईयों का आह्वान किया कि वे 23 मार्च को पूरे प्रदेश में शहीदे आजम भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरू के बलिदान दिवस पर व्यापक तौर पर आयोजन करें और नौजवानों को भगत सिंह के स्वप्नों का भारत बनाने के लिए संघर्ष करने का संकल्प करायें।
बैठक की अध्यक्षता विनय पाठक ने की तथा संचालन महामंत्री नीरज यादव ने किया। बैठक में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश विशेष रूप से मौजूद थे और उन्होंने मजबूत नौजवान सभा की जरूरत बताते हुए उपस्थित नौजवानों से प्रदेश भर में संगठन को फैलाने की दिशा में अनथक परिश्रम करने का अनुरोध किया।
(नीरज यादव)
महामंत्री
नौजवान सभा की राज्य कौंसिल बैठक ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार से मांग की कि 18 से 35 वर्ष तक की उम्र के सभी बेरोजगार युवकों को भत्ता दिया जाये जो रोजगार न मिलने पर स्वतः समाप्त हो जाये। साथ ही मनरेगा कार्ड धारक अथवा अन्य रोजगार योजनाओं के अंतर्गत नामित युवाओं को यदि रोजगार मुहैया नहीं कराया जा रहा है तो उन्हें भी बेरोजगारी भत्ता दिया जाये और उसकी धनराशि बढ़ाये जाने की भी मांग की गयी।
नौजवान सभा की राज्य कौंसिल ने प्रदेश भर की अपनी ईकाईयों का आह्वान किया कि वे 23 मार्च को पूरे प्रदेश में शहीदे आजम भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरू के बलिदान दिवस पर व्यापक तौर पर आयोजन करें और नौजवानों को भगत सिंह के स्वप्नों का भारत बनाने के लिए संघर्ष करने का संकल्प करायें।
बैठक की अध्यक्षता विनय पाठक ने की तथा संचालन महामंत्री नीरज यादव ने किया। बैठक में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश विशेष रूप से मौजूद थे और उन्होंने मजबूत नौजवान सभा की जरूरत बताते हुए उपस्थित नौजवानों से प्रदेश भर में संगठन को फैलाने की दिशा में अनथक परिश्रम करने का अनुरोध किया।
(नीरज यादव)
महामंत्री
Saturday, March 17, 2012
Tuesday, March 13, 2012
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव परिणाम
जनता के दुर्दिन अभी जारी रहेंगे.......
6 मार्च को पांच राज्यों - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के चुनाव परिणाम आ गये। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों की ओर पूरे देश की नजर लगी हुई थी। परिणाम मूलतः चुनावों के दौरान के हमारे आंकलन के अनुरूप ही हैं। बसपा और सपा ने आपस में पाला बदल लिया है। सपा को पहली बार प्रदेश में पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया है और अगले सप्ताह उसकी सरकार शपथ ग्रहण कर लेगी।
आंकड़ों की बात की जाये तो 2007 के विधान सभा चुनावों में सपा को प्राप्त 25.4 प्रतिशत मतों में 3.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 29.2 प्रतिशत मत पाकर 225 सीटों पर विजय प्राप्त कर ली। इस प्रकार सपा ने पिछले चुनाव की तुलना में 128 अधिक सीटों पर विजय प्राप्त की। बसपा ने 2007 के चुनावों में प्राप्त 30.4 प्रतिशत मतों में 4.5 प्रतिशत की कमी के साथ 25.9 प्रतिशत मत पाकर 79 सीटों पर विजय दर्ज की जोकि पिछले चुनाव की तुलना में 127 सीटें कम हैं। पिछले दो दशकों से प्रदेश में साम्प्रदायिक खतरे के रूप में प्रोजेक्ट की जाने वाली भाजपा दो कदम और पीछे हटी है। पिछले चुनाव में उसे 16.9 प्रतिशत वोट प्राप्त हुये जिसमें 1.9 प्रतिशत की और गिरावट आई है। भाजपा को इस चुनाव में केवल 15 प्रतिशत मत प्राप्त हुये और विधान सभा में उसकी सीटें 51 से घटकर 47 रह गयीं। महंगाई और भ्रष्टाचार के संगीन आरोप झेल रही कांग्रेस को पिछले विधान सभा चुनावों में प्राप्त 8.6 प्रतिशत वोट 3 प्रतिशत बढ़कर 11.6 प्रतिशत हो गये और उसे 6 सीटों के फायदे के साथ 28 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। हालांकि ध्यान दिये जाने वाला तथ्य है कि तीन साल पहले हुए लोकसभा चुनावों के उसे प्राप्त मतों की संख्या तथा विधान सभा क्षेत्रों में उसकी बढ़त की तुलना में जनता ने उसे काफी पीछे धकेल दिया है और कांग्रेस सदमे की स्थिति में हैं। अन्य दलों तथा निर्दलियों को प्राप्त वोटों में 0.4 प्रतिशत की कमी आयी है और उन्हें पिछले चुनाव की तुलना में 2 सीटों का नुकसान हुआ है।
जिक्र जरूरी है कि मतगणना के अंतिम चरणों में जब सपा लगभग 185 सीटों पर बढ़त की ओर अग्रसर थी, सपा के हार रहे उम्मीदवारों ने कई स्थानों पर गुण्डागर्दी कर चुनाव अधिकारियों पर मतगणना में हेरफेर कर जितवाने का दवाब बनाया। पूरी रिपोर्टें अभी प्राप्त नहीं हैं परन्तु समाचारपत्रों के अनुसार झांसी में बबीना से सपा उम्मीदवार चन्द्र पाल सिंह ने ईवीएम की सील टूटे होने का बहाना बनाते हुए जम कर पत्रकारों की धुनाई की और मतगणना स्थल पर उपस्थित हजारों सुरक्षाकर्मी इस गुंडई को मूकदर्शक बने देखते रहे। फिरोजाबाद में भाजपा उम्मीदवार मनीष कुमार को सपा कार्यकर्ताओं ने पत्थरबाजी कर घायल कर दिया तो सम्भल में 12 वर्षीय दानिश की विजयी सपा उम्मीदवार इकबाल महमूद ने जीत की खुशी में हत्या कर दी। प्रतापगढ़ में पुलिस वालों द्वारा पत्रकारों की जम कर ठुकाई के अपुष्ट समाचार हैं। अम्बेडकरनगर में बसपा के मंत्री राम अचल राजभर की राईस मिल को जलाकर खाक कर दिया गया तो सीतापुर में बसपा समर्थकों के घरों को जला दिया गया। समय बीतने के साथ-साथ कहां-कहां क्या-क्या हुआ पता चलेगा। वैसे इन घटनाओं ने पांच साल पहले चुनावों में लगे नारे - ”जिस गाड़ी पर सपा का झंडा, समझो उस पर बैठा गुंडा“ की याद जनता को ताजा करवा दी।
सरकार बदल गयी परन्तु नई सरकार से जनता के बहुमत को कोई उम्मीद नहीं है। समाजवादी पार्टी अब लोहिया की पार्टी नहीं है बल्कि मुलायम की पार्टी है जिसमें सहारा और अम्बानियों के हित साधन का एजेंडा है। सपा उन्हीं विनाशकारी आर्थिक नीतियों की समर्थक रही है जिसे केन्द्र में मनमोहन सिंह ने चालू किया तो उत्तर प्रदेश में भाजपा और बसपा भी चलती रही हैं। उत्तर प्रदेश के किसान अगर दादरी को नहीं भूले हैं तो बुनकर भी मुलायम के पिछले राज में अपनी बर्बादी के घटनाक्रम को भी। अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने की बात चल रही है जोकि कारपोरेट कल्चर पर ज्यादा विश्वास करते हैं और राजनीति में अभी भी अपरिपक्व हैं। उत्तर प्रदेश की जनता के दुर्दिन अभी जारी रहने हैं।
कई दशकों के बाद भाकपा प्रत्याशी लगभग 1/8 विधान सभा क्षेत्रों में मैदान में थे। हालांकि 75 जिलों में से केवल 40 जिलों में भाकपा प्रत्याशी मैदान में थे। पिछले चुनावों की विधान सभा क्षेत्र वार तुलना उचित नहीं होगी क्योंकि परिसीमन के बाद विधान सभा क्षेत्रों का आकार बदल गया है। फिर भी पिछली बार केवल एक चुनाव क्षेत्र में 5000 से अधिक वोट प्राप्त हुये थे जबकि केवल 2 विधान सभा क्षेत्रों में मतों की संख्या तीन हजार से साढ़े तीन हजार के बीच थी और 11 क्षेत्रों में दो हजार से तीन हजार के बीच। इस बार तीन विधान सभा क्षेत्रों में मत चार हजार से अधिक प्राप्त हुये हैं जबकि पांच विधान सभा क्षेत्रों में तीन हजार से चार हजार के मध्य मत प्राप्त हुये हैं। 13 विधान सभा क्षेत्रों में प्राप्त मतों की संख्या दो हजार से तीन हजार के बीच है।
चुनावों में भाकपा के कार्यनिष्पादन की समीक्षा नीचे से लेकर ऊपर तक होगी और किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जायेगा। मुद्दे की अति सरलीकरण से बचा जाना चाहिए और भविष्य में बेहतर कार्यनिष्पादन की रणनीति सरलीकरण के रास्ते पर चल कर नहीं बनाई जा सकती। दो साल बाद लोकसभा चुनाव हैं। हमें अभी से उसके लिए रणनीति बनानी होगी और उस पर गम्भीरता से अमल करना होगा।
चुनावों में पैसा भी बांटा गया, शराब भी बांटी गयी, जनता को जांति-पांति और धर्मों में भी बांटा गया। मीडिया को भी खरीदा गया। पेड न्यूज भी छपती और प्रसारित होती रही। भारत निर्वाचन आयोग केवल दिखावा करता रह गया। यथार्थ में कोई सुधारात्मक कदम उसके द्वारा नहीं उठाये गये। जो कदम उठाये गये, उनसे हमारे लिए समस्यायें खड़ी हुईं। मसलन आयोग का कहना था कि चुनाव सामग्री भेजने के लिए तीन-चार ट्रक महीने भर के लिए हम किराए पर ले लें जिनका परमिट वे जारी कर देंगे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि तीन-चार ट्रकों का महीने भर का किराया हमारे जैसे ईमानदार छोटे राजनीतिक दल कहां से लायेंगे।
हमें चुनाव सुधारों पर चर्चा को भी तेज करना चाहिए जिससे भ्रष्टाचार और जनता के तल्ख संकीर्ण विभाजनों से लोकतंत्र को बचाया जा सके।
जब तक प्रदेश की जनता के सामने हम चारों प्रमुख राजनीतिक दलों के बरक्स कोई विकल्प प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं आते, जिन चंद सीटों से हम चुनाव लड़ रहे होते हैं, उन क्षेत्रों में जनता के मध्य हमारे पक्ष में झुकाव की उम्मीद हमें नहीं करनी चाहिए क्योंकि जनता चुनावों के दौरान अपनी पसन्द की सरकार बनाने के लिए मत देने के लिए निकलती है।
सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि अधिसंख्यक साथियों में कोई निराशा नहीं है बल्कि लड़ने की तमन्ना और अधिक बलवती होती दिख रही है। साथियों का यह टेंपरामेन्ट हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
- प्रदीप तिवारी
सवालों में घिरती चुनाव प्रणाली
भारत निर्वाचन आयोग यह दावा कर सकता है कि उसने पांच राज्यों में चुनावों को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष तरीके से सम्पन्न करा दिया। परन्तु वास्तविकता यह है कि पैसा, जाति और धर्म के घिनौने खेल ने एक बार फिर चुनावों को मखौल बना दिया।
जुलूस निकालने, झंडा लहराने, समूह में निकलने, पोस्टर-झंडिया लगाने, वाल-राईटिंग करने आदि पर पाबंदी लगाकर निर्वाचन आयोग ने अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। इस बार शराब एवं पैसों की जब्ती के लिए उसके द्वारा चलाये गये अभियान के बावजूद जितना काला धन इन चुनावों में खर्च हुआ, शायद ही इसके पहले किसी भी राज्य के विधान सभा चुनावों में उतना धन खर्च हुआ हो। काले धन की बड़े मात्रा में कहीं बरामदगी नहीं हुई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जैसी ईमानदार छोटी पार्टियों के लिए चुनाव आयोग के निर्देश समस्या खड़ी करने वाले रहे हैं। मसलन कोई छोटा राजनीतिक दल अगर दस-बीस हजार की चुनाव सामग्री किसी चुनाव क्षेत्र में भेजना चाहें तो उसे पसीना निकल आयेगा। एक ट्रक किराए पर लीजिए। उसे अपने दफ्तर में खड़ा रखिए। राज्य निर्वाचन आयोग से उस ट्रक का परमिट मांगिये। परमिट मिलने के बाद ही चुनाव सामग्री भेजी जा सकती है। दस-बीस हजार की चुनाव सामग्री भेजने के लिए उससे ज्यादा खर्च कीजिए।
गरीब उम्मीदवार वालराईटिंग कर अपना चुनाव प्रचार नहीं कर सकता परन्तु तमाम समाचार पत्रों में और न्यूज चैनलों पर लगातार विज्ञापन और पेड न्यूज का सिलसिला चलता रहा। हेलीकाप्टर उड़ते रहे। चुनावों की पूर्व संध्या पर रूपये और शराब के पाउच बांटे जाते रहे। जाति और मजहब के नाम पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए रोज भाषण होते रहे। चुनाव आयोग निरीह बना देखता रहा।
चुनाव आयोग ने कुछ करोड़ रूपये और शराब से लदे कुछ ट्रकों को जब्त किया लेकिन यह पूंजीवादी दलों तथा उनके उम्मीदवारों द्वारा खर्च किए गए धन का एक प्रतिशत भी नहीं है।
चुने जाने के लिए इतना अधिक पैसा लगाने वाले उम्मीदवार और राजनीतिक दल कहीं न कहीं से तो इसकी उगाही करेंगे और यह उगाही अंततः गरीब की जेब से ही होती है।
आदर्श आचार संहिता लागू होने के बावजूद कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा के नेता उसका सरेआम उल्लंघन करते रहे। चुनाव आयोग नोटिस जारी करता रहा, नेताओं की पेशी करता रहा और बिना किसी कार्यवाही के उनको छोड़ता रहा। तमाम राजनीतिज्ञों ने आचार संहिता को ठेंगा दिखाने में कोई कोताही नहीं की। एक मामले में चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख डाली। चिट्ठी लिखने का मंतव्य क्या था, यह साफ नहीं हो सका।
चुनावों के पहले चुनाव आयोग चुनाव सुधारों की बात कर रहा था। “राईट टू रेजेक्ट” समस्या का हल नहीं है। चुनाव सुधारों के लिए अभियान चलना चाहिए और इस बात की बहस होनी चाहिए कि इन चुनावों को धनबल, बाहुबल, जाति-मजहब से कैसे छुटकारा दिलाया जा सकता है। लोकतंत्र को बचाने के लिए फौरी तौर पर इसकी जरूरत है।
- प्रदीप तिवारी
जुलूस निकालने, झंडा लहराने, समूह में निकलने, पोस्टर-झंडिया लगाने, वाल-राईटिंग करने आदि पर पाबंदी लगाकर निर्वाचन आयोग ने अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। इस बार शराब एवं पैसों की जब्ती के लिए उसके द्वारा चलाये गये अभियान के बावजूद जितना काला धन इन चुनावों में खर्च हुआ, शायद ही इसके पहले किसी भी राज्य के विधान सभा चुनावों में उतना धन खर्च हुआ हो। काले धन की बड़े मात्रा में कहीं बरामदगी नहीं हुई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जैसी ईमानदार छोटी पार्टियों के लिए चुनाव आयोग के निर्देश समस्या खड़ी करने वाले रहे हैं। मसलन कोई छोटा राजनीतिक दल अगर दस-बीस हजार की चुनाव सामग्री किसी चुनाव क्षेत्र में भेजना चाहें तो उसे पसीना निकल आयेगा। एक ट्रक किराए पर लीजिए। उसे अपने दफ्तर में खड़ा रखिए। राज्य निर्वाचन आयोग से उस ट्रक का परमिट मांगिये। परमिट मिलने के बाद ही चुनाव सामग्री भेजी जा सकती है। दस-बीस हजार की चुनाव सामग्री भेजने के लिए उससे ज्यादा खर्च कीजिए।
गरीब उम्मीदवार वालराईटिंग कर अपना चुनाव प्रचार नहीं कर सकता परन्तु तमाम समाचार पत्रों में और न्यूज चैनलों पर लगातार विज्ञापन और पेड न्यूज का सिलसिला चलता रहा। हेलीकाप्टर उड़ते रहे। चुनावों की पूर्व संध्या पर रूपये और शराब के पाउच बांटे जाते रहे। जाति और मजहब के नाम पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए रोज भाषण होते रहे। चुनाव आयोग निरीह बना देखता रहा।
चुनाव आयोग ने कुछ करोड़ रूपये और शराब से लदे कुछ ट्रकों को जब्त किया लेकिन यह पूंजीवादी दलों तथा उनके उम्मीदवारों द्वारा खर्च किए गए धन का एक प्रतिशत भी नहीं है।
चुने जाने के लिए इतना अधिक पैसा लगाने वाले उम्मीदवार और राजनीतिक दल कहीं न कहीं से तो इसकी उगाही करेंगे और यह उगाही अंततः गरीब की जेब से ही होती है।
आदर्श आचार संहिता लागू होने के बावजूद कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा के नेता उसका सरेआम उल्लंघन करते रहे। चुनाव आयोग नोटिस जारी करता रहा, नेताओं की पेशी करता रहा और बिना किसी कार्यवाही के उनको छोड़ता रहा। तमाम राजनीतिज्ञों ने आचार संहिता को ठेंगा दिखाने में कोई कोताही नहीं की। एक मामले में चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख डाली। चिट्ठी लिखने का मंतव्य क्या था, यह साफ नहीं हो सका।
चुनावों के पहले चुनाव आयोग चुनाव सुधारों की बात कर रहा था। “राईट टू रेजेक्ट” समस्या का हल नहीं है। चुनाव सुधारों के लिए अभियान चलना चाहिए और इस बात की बहस होनी चाहिए कि इन चुनावों को धनबल, बाहुबल, जाति-मजहब से कैसे छुटकारा दिलाया जा सकता है। लोकतंत्र को बचाने के लिए फौरी तौर पर इसकी जरूरत है।
- प्रदीप तिवारी
Sunday, March 4, 2012
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने की 9 मार्च को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में अवकाश घोषित करने की मांग
लखनऊ 5 मार्च। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस वर्ष निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के अंतर्गत प्रदेश सरकार द्वारा जारी अवकाश की सूची में होली के लिए केवल एक दिवस 8 मार्च को अवकाश घोषित करने की निन्दा करते हुए कहा है कि प्रदेश में होली का अवकाश लम्बे समय से दो दिनों का होता रहा है। 9 मार्च को सार्वजनिक अवकाश होने के कारण सभी कार्यालय एवं बाजार बन्द रहेंगे लेकिन कोषागार, बैंक एवं इंश्योरेन्स कम्पनियों के कर्मचारियों को ड्यूटी पर उपस्थित रहना है, जो इन क्षेत्रों के कर्मचारियों के साथ अन्याय है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में प्रदेश सरकार से 9 मार्च को होली के अवकाश को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के अंतर्गत भी अवकाश घोषित करने की मांग की है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में प्रदेश सरकार से 9 मार्च को होली के अवकाश को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के अंतर्गत भी अवकाश घोषित करने की मांग की है।
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