4 जून 2011
प्रिय श्री प्रणब बाबू,
आपका पत्र मिला।
आप चाहते हैं कि हमारी पार्टी, और अन्य दूसरी पार्टियां भी, जन लोकपाल बिल के सम्बंध में कतिपय बिन्दुओं पर अपने विचार 6 जून 2011 तक प्रेषित करें, क्योंकि जैसा कि आप कहते हैं, ”संयुक्त प्रारूपण समिति को निर्देश है कि वह अपना कार्य 30 जून 2011 तक पूर्ण कर ले।“
हमको यह जानकारी नहीं है कि किसने यह निर्देश संयुक्त प्रारूपण समिति को दिया है।
संयुक्त प्रारूपण समिति के गठन की प्रक्रिया के दौरान किसी भी स्तर पर न तो राजनैतिक पार्टियों को शामिल किया गया और न ही उनसे किसी प्रकार का सलाह-मशविरा किया गया। उन्हें जानबूझ कर नजरंदाज किया गया। हम एक राजनैतिक पार्टी की हैसियत से यह नहीं देख पा रहे हैं कि अब इस मुकाम पर संयुक्त प्रारूपण समिति में बहस के दौरान उठे कतिपय मुद्दों पर कैसे हमसे जवाब देने की अपेक्षा की जा रही है और वह भी ऐसी बहस जिसमें हमारी कोई पहुंच ही नहीं रही और न कोई जानकारी ही। आपके द्वारा जवाब भी ‘हां’ या ‘ना’ में मांगे गये हैं जैसे कोई वस्तुनिष्ठ टेस्ट लिया जा रहा हो। हमारी यह समझ है कि इतने जरूरी, संवदेनशील एवं महात्वपूर्ण मुद्दों पर हमसे इतने लापरवाह ढंग से राय मांगी जा रही है।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक असरदार लोकपाल बिल के हम समर्थक हैं। हम जोर देकर कह रहे हैं कि उसका प्रारूप लोकसभा के आसन्न मानसून सत्र में पेश किया जाये। उसमें और अधिक विलम्ब नहीं किया जाये। हम राजनैतिक पार्टी की हैसियत से निश्चित तौर पर अपने विचारों एवं सुझावों को संसद में होने वाली बहस के दौरान प्रस्तुत करेंगे, और हम आवश्यकता होने पर इसके बारे में लिखेंगे भी।
सादर,
भ व दी य
हस्ताक्षर
(ए. बी. बर्धन)
सेवा में
श्री प्रणब मुखर्जी
वित्त मंत्री
भारत सरकार
नई दिल्ली
1 comment:
आदरणीय वर्धन जी का जवाब प्रासंगिक है.सर्कार तो खानापूर्ती भी मात्र दिखावे ही के लिए कर रही थी.
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