दो भारत बन रहा है। एक ‘शाइनिंग इंडिया’ तो दूसरा ‘दरिद्र भारत’। इसी तरह श्रम के भी दो मानक हो गये हैं ‘आफिसर्स पर्क’ और ‘मजदूरों की दिहाड़ी’। कंपनी के सीइओ के वेतन करोडों में, लेकिन मजदूरों की दिहाड़ी मुश्किल से दो अंकों में। प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक देश में कारपोरेट जगत में सौ से अधिक अधिकारियों का मासिक वेतन एक करोड़ रुपए से अधिक है और यह संख्या शुरूआत भर है। भारत में कुल मिलाकर 4500 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियां हैं, जिनमें 175 ने अब तक अपने सीइओ तथा अन्य शीर्ष पदाधिकारियों के वेतन पैकेज का खुलासा किया है। इनमें 60 कंपनियों के शीर्ष कार्यकारियों को मासिक एक करोड़ रुपयों या अधिक वेतन मिलता है।
अब तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2010 या दिसंबर 2009 को समाप्त वित्त वर्ष में एक करोड़ रुपए या इससे अधिक सालाना वेतन पाने वाले अधिकारियों की संख्या 105 है। इस सूची में पहले स्थान पर मीडिया मुगल कलानिधि मारन तथा उनकी पत्नी कावेरी कलानिधि हैं, जिनका वेतन मार्च 2010 में 37 करोड़ रुपए से अधिक रहा अर्थात् 3.10 करोड़ मासिक। यों वे साल के लिए 94.8 करोड़ रुपए तक का वेतन पाने के हकदार थे, जो 780 करोड़ मासिक होता है।
सन टीवी नेटवर्क के प्रबंध निदेशक कावेरी ने 2009-2010 में अधिकतम 74.16 करोड़ रुपए का वेतन लेना तय किया था। इस सूची में रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी भी हैं। जिन्होंने स्वैच्छिक कटौती के बावजूद 15 करोड़ रुपए का सालाना वेतन लिया। उल्लेखनीय है कि कारपोरेट जगत के अधिकारियों को बेतहाशा वेतन पर काफी हंगामा मच चुका है। मुकेश अंबानी ने पिछले साल अक्टूबर में 2008-09 के लिए अधिकतम 15 करोड़ रुपये वेतन लेने का फैसला किया था। अपने अधिकारियों को करोड़ो रुपए वेतन देने वाली कंपनियों में जेएसडब्ल्यू स्टील, पाटनी कम्प्यूटर्स, रैनबैक्सी, हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन, एचडीएफसी बैंक, शोभा डेवलपर्स, इंफोसिस, इंडसाइड बैंक, ग्लेक्सोस्मिथक्लाइन, एसीसी, किसिल, रेमंड, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, डेवलपमेंट क्रेडिट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, नेस्ले इंडिया, यस बैंक तथा रैलीज इंडिया शामिल हैं, उल्लेखनीय है यह सूची सिर्फ शुरूआत भर कही जा सकती है। क्योंकि बहुत सारी प्रमुख कंपनियों की सालाना रपटें अभी आनी हैं। सरकार मोटे पगारवालों का वेतन भुगतान नहीं रोक सकती है तो क्या वह दिहाड़ी मजदूरों का न्यूनतम वेतन भुगतान गारंटी भी नहीं कर सकती हैं?
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