Saturday, October 15, 2011

भाकपा की 21वीं कांग्रेस का महत्व

यों प्रत्येक कम्युनिस्ट के लिए तीन साल पर होने वाली हर पार्टी कांग्रेस महत्वपूर्ण होती है, पर पटना में अगले वर्ष होने वाली 21वीं कांग्रेस निश्चय ही विशिष्ट होंगी। इसकी विशिष्टता को भाकपा का राष्ट्रीय परिषद (18-19 जून, 2011) ने अपने प्रस्ताव में निम्नांकित शब्दों में प्रकट किया है।
    ”वामपंथ को स्वयं अपने नेतृत्व में राजनीतिक विकल्प पेश करना होगा, जिसका आधार होगा वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम और सम्प्रदाय निरपेक्ष लोकतंत्र के लिये प्रतिबद्धता, क्योंकि भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर भी, आर्थिक नव उदारवाद का समर्थन करती है।“
    यहांॅ उपर्युक्त उद्धरण की चार बातें ध्यातव्य हैं -
क.    नवउदारवादी आर्थिक नीति की समर्थक पार्टियों की पहचान,
ख.    सम्प्रदाय निरपेक्ष लोकतंत्र की रक्षा,
ग.    वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम का निर्माण, और
घ. वैकल्पिक राजनीति का वामपंथी नेतृत्व
    भारत के स्वातंत्रयोत्तर- कालीन युग में गैर कांग्रेस वाद और गैर संप्रदायवाद के आधार पर राजनीतिक धु्रवीकरण होता जा रहा है। प्रकटतः इसके व्यावहारिक परिणाम ने देश में द्विदलीय शासन प्रणाली का दस्तक दी है। इससे आर्थिक कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक धु्रवीकरण का प्रश्न पृष्ठिभूमि में ओझल हुआ है। यही कारण है कि केन्द्र में कमजोर सरकारों के अस्तित्व के बावजूद नवउदारवादी आर्थिक नीति का घोड़ा बेरोकटोक सरपट दौंड़ता गया है। इस परिस्थिति में वामपंथ के नेतृत्व में वैकल्पिक आर्थिक कार्यक्रम के आधार पर राजनीतिक विकल्प तैयार करने का प्रस्ताव वर्तमान अनिश्चित वातावरण में भरोसा पैदा करने वाला महत्वपूर्ण दिशा सूचक निर्णय है। इसका आवश्य ही सर्वत्र स्वागत किया जायेगा।
    बिहार के लिए पार्टी कांग्रेस आयोजित करने का यह तीसरा मौका है। पहला मौका 1968 में आठवीं कांग्रेस आयोजित करने का मिला था। इसे पटना के ऐतिहासिक मैदान में संपन्न किया गया। उस महाधिवेशन के समय बिहार में प्रथम गैर कांग्रेसी संविद सरकार थी, जिसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। कांग्रेस कुशासन के अंत में पूरे राज्य में जन उत्साह का माहौल था। इस महाधिवेशन में शामिल प्रतिनिधियों के बारे में प्रमाण समिति ने अपने प्रतिवेदन में दर्ज किया कि वे सभी के सभी जेल जीवन बिताये संघर्षों के तपे-तपाये नेता थे। इस
महाधिवेशन की विशेषता थी कि इसमें शामिल एक भी प्रतिनिधि ऐसा नहीं था, जिन्होंने अपने जीवन का एक भाग ब्रिटिश राज में अथवा आजाद भारत में जेल की सलाखों में नहीं बिताया हो। यह संपूर्ण पार्टी द्वारा चलाये गये जनसंघर्षों का इजहार था और साथ ही पार्टी कांग्रेस में उपस्थित प्रतिनिधियों की वर्ग निष्ठा और उनके जुझारूपन का प्रमाण भी।
    दूसरा मौका, 1987 में महाधिवेशन आयोजन का था। यह भी पटना में संपन्न हुआ। इस महाधिवेशन में चतुरानन मिश्रा द्वारा प्रस्तुत महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वालों के हितों की रक्षा करने का आह्वान किया गया।
    पार्टी कांग्रेस आयोजित करने का यह तीसरा अवसर बिहार की अपेक्षाकृत विपरीत परिस्थिति में मिला है। राज्य में भाजपा-जदयू की सरकार है। पार्टी को विगत विधान सभा में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। बंगाल और केरल के चुनाव परिणामों ने भी असर डाला है। बिहार के साथियों ने पार्टी कांग्रेस आयोजन को एक चुनौती के रूप में लिया है। पार्टी कांग्रेस आयोजन साथियों का प्रथम कर्तव्य बन गया है। इस टास्क को पूरा करने में साथी मुस्तौदी से लग गये हैं। सभी स्तर की कमेटियां कोष संग्रह में लग गयी हैं। साथियों में विश्वास है कि बिहार की गौरवशाली परंपरा के अनुरूप पार्टी कांग्रेस का आयोजन अवश्य ही कामयाब होगा।
निःसंदेह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की 21वीं कांग्रेस सफल होगी और इसके फैसले भारतीय राजनीति में वर्ग आधारित वामपंथी धु्रवीकरण को प्रारंभ करेंगे।
- सत्य नारायण ठाकुर

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