Friday, February 20, 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ किसानों ने आन्दोलन का बिगुल फूंका. भाकपा ने समर्थन प्रदान किया.

लखनऊ- २० फरबरी २०१५ – मोदी सरकार द्वारा ३० दिसंबर २०१४ को लागू किये गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को वापस लेने और उपजाऊ जमीनों की संरक्षा की मांग को लेकर वामपंथी किसान संगठनों द्वारा २४ फरबरी को किये जा रहे संसद मार्च को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना समर्थन प्रदान कर दिया है. भाकपा ने अपनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिला इकाइयों को निर्देश दिया है कि वे इस आन्दोलन को बल प्रदान करने को २४ फरबरी को प्रातः बढ़ी संख्या में किसानों को लेकर जंतर मंतर दिल्ली पहुंचें. यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि भाकपा और वाम दल इस अध्यादेश के जारी किये जाने के दिन से ही इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं. इस अध्यादेश के जरिये मोदी सरकार ने २०१३ में संसद द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण अधिनियम की जान ही निकाल दी है. इस अध्यादेश में किये गये प्रावधानों के जरिये सरकार किसानों की उपजाऊ जमीनों को बेरोकटोक अधिगृहीत कर सकती है और उसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों, उद्योगपतियों और बिल्डरों को सौंप सकती है. इससे खेती, किसान और ग्रामीण मजदूरों और दस्तकारों को बड़े संकटों का सामना करना पड़ेगा. अतएव भाकपा इसका पुरजोर विरोध करती है और इसको वापस लेने की मांग करती है. डा.गिरीश ने बताया कि वामपंथी किसान संगठनों खासकर अ. भा. किसान सभा ने ३० जनवरी को सारे देश में धरने/प्रदर्शन कर इसका प्रबल विरोध किया था और अब किसान सभा की पहल पर २४ फरबरी को संयुक्त संसद मार्च का आयोजन किया जा रहा है. स्वागत योग्य है कि अब इस आन्दोलन में कई अन्य किसान संगठन, सामाजिक संगठन एवं अन्ना हजारे जैसी हस्तियाँ भी शामिल होरही हैं. भाकपा सभी किसान हितैषी संगठनों और शखसियतों से अपील करती है कि वे इस आन्दोलन को अपना समर्थन प्रदान करें और मोदी सरकार को इस अध्यादेश को वापस लेने को बाध्य करें. डा.गिरीश

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