भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के दौर पर तमाम तरह लूट और घोटाले समय-समय पर सामने आते रहे हैं। हाल में कैग की एक रिपोर्ट ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर चल रहे घोटालों का भंडाफोड़ किया है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) स्थापित करते समय बड़े-बड़े वायदे किये गये थे। दावा किया गया था कि विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़) स्थापित करने से निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, देश में उत्पादन बढ़ेगा, रोजगार सृजित होगा और व्यापार संतुलन में मदद मिलेगी। इसी तर्क पर वहां लगने वाली औद्योगिक इकाईयों के लिए ढ़ेर सारी रियायतों की घोषणा की गई थी। विस्थापन और दूसरे स्थानों पर लगने वाले उद्योगों से भेदभाव के सवालों को विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़) के तथाकथित संभावित लाभों का हवाला देकर दबा दिया गया था।
हाल में कैग की एक रिपोर्ट में इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) से क्या हासिल हुआ, इसका खुलासा हुआ है। कैग की रिपोर्ट बताती है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) गठित करने से रोजगार और निर्यात बढ़ाने में कोई मदद हासिल नहीं हुई है बल्कि कर रियायतों के कारण सरकारी खजाने को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक 2007 से 2013 के मध्य 83,000 करोड़ रूपये का राजस्व विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) को दिये जाने वाली रियायतों की भेट चढ़ गया है। इसमें कई तरह के केन्द्रीय कर और स्टाम्प शुल्क शामिल नहीं हैं। यानी यह आंकडा कई गुना ज्यादा भी हो सकता है। कई ऐसी कंपनियों ने भी कर रियायतें हासिल कीं, जिन्होंने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) में आबंटित जमीन का इस्तेमाल अपनी स्वीकृत परियोजना के लिए नहीं किया और किसी और को वह जमीन दे दी।
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर आबंटित जमीन में से आधी जमीन का उपयोग अभी तक नहीं किया गया है जबकि आबंटन 8 साल पहले हुआ था। यह विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर जमीन की जमाखोरी के अलावा और कुछ नहीं है। तमाम कंपनियों ने वास्तविक जरूरत से ज्यादा जमीन हड़प ली।
इसका एक अर्थ यह भी है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर जो हुआ विस्थापन और कृषि योग्य जमीन में आई कमी आवश्यता से कहीं अधिक थी। संप्रग और राजग अब भी यह समीक्षा करने को नहीं तैयार है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर जमीन और राजस्व की भेट देने के बदले आखिर देश को और उसकी जनता को मिला क्या है। निर्यात के मोर्चे पर आज भी स्थिति बदहाल है और व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है।
जमीन और राजस्व की यह लूट केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) के नाम पर ही नहीं की गई बल्कि और भी बहुत योजनाओं के तहत ऐसा किया गया। केवल उड़ीसा में खेती का रकबा 2005 से 2010 के मध्य 1,17,000 हेक्टेयर कम हो गया। यही कहानी पूरे देश में दोहराई गई है। उत्तर प्रदेश में लाखों हेक्टेयर जमीन एक्सप्रेस वे और उनके साथ विकसित किए जाने वाली टाउनशिप और इंडस्ट्रियल एरिया के नाम पर हड़प ली गई। इस बात का कोई आकलन नहीं किया गया कि ऐसे एक्सप्रेस वे स्थापित करने से क्या लाभ हासिल हो सकेगा।
विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) से संबंधित कैग की रिपोर्ट संसद के वर्तमान सत्र में पेश की जाने वाली है। इस पर उठने वाले स्वर दबा दिये जायेंगे। हमें पूरा विश्वास है कि संसद इस रिपोर्ट में उठाये गये मुद्दों पर कोई विचार नहीं करेगी। अंततः जनता को ही सड़कों पर उतर कर सवाल खड़े करने होंगे।
. प्रदीप तिवारी
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