6 फरवरी 2014
समक्ष
चौदहवां वित्त आयोग
भारत सरकार
कैम्प: लखनऊ
आयोग के सम्मानित सदस्यगण,
देश का सर्वाधिक आबादी वाला प्रान्त उत्तर प्रदेश आजादी के बाद अपेक्षित विकास नहीं कर पाया है। पिछले 25 सालों से यह अनेक क्षेत्रों में पिछड़ता चला जा रहा है। इसके लिए इन वर्षों में कार्यरत राज्य सरकारें तो दोषी हैं ही केन्द्र सरकारें भी बराबर की जिम्मेदार हैं। राज्य सरकारों ने यदि विकास की उपेक्षा की है तो केन्द्र सरकारों ने भी राज्य के प्रति सौतेलेपन से काम लिया है। वैसे तो पूरा प्रदेश ही पिछड़ा है परन्तु बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल के सभी जिले तथा मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भी कई जिले बेहद पिछड़े हैं।
कृषि: उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है लेकिन गत वर्षों में यहां की खेती काफी पिछड़ गयी है और किसान कर्ज के जाल में डूबे हुए हैं। हजारों किसानों ने पिछले सालों में आत्महत्यायें की हैं और इससे कहीं अधिक भूख से मरे हैं। कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल लगातार सिकुड़ता जा रहा है। कृषि भूमि किसानों के हाथों से निकल कर उद्योगपतियों, व्यापारियों, भू-माफियाओं और रिश्वतखोर राजनीतिज्ञों एवं अधिकारियों के हाथों में सिमटती जा रही है। इनके द्वारा कृषि उपकरणों के अधिकाधिक प्रयोग से खेतिहर मजदूर बेकार हो गये हैं।
विधान सभा चुनावों के दौरान वर्तमान सरकार द्वारा सभी किसानों का 50,000 रूपये तक का ऋण माफ करने का वायदा किया गया था परन्तु सरकार ने केवल भूमि विकास बैंक के ऋण ही माफ किये हैं जिसके कारण तमाम छोटे किसानों के खेत आदि नीलाम हो गये। कइयों को हवालात की हवा खानी पड़ी तो कइयों ने आत्महत्या कर ली।
कृषि के लिए सिंचाई बेहद जरूरी है लेकिन 25-30 सालों में प्रदेश में नहरों, बंबों, बांधों के निर्माण का कार्य बेहद धीमा है। कहा जाये तो यह पूरी तरह उपेक्षित है। निजीकरण के इस दौर में सरकारी ट्यूबवेल लगाये नहीं जा रहे हैं। भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। सिंचाई के अभाव और भूमि सुधार लागू न किये जाने के कारण खेती दम तोड़ रही है।
औद्योगिक क्षेत्र: उत्तर प्रदेश में भारी मात्रा में कपड़ा मिलें, सूत मिलें, जूट मिलें, चमड़ा उद्योग, तेल उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, चीनी मिलें, धातु उद्योग, दाल मिलें आदि थे। उनमें से बहुमत आज बन्द पड़े हैं और उद्योगपति खाली जमीनों पर कालोनियां बसा रहे हैं। अवस्थापना सुविधाओं के अभाव में औद्योगिक क्षेत्र बर्बाद हो चुका है और तमाम इकाईयां बीमार पड़ी हैं। केन्द्रीय उपक्रमों में स्कूटर इंडिया और इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज की हालत बहुत ही खराब चल रही है तो एनटीसी की सभी मिलें बन्द हैं। इसी तरह राज्य सरकार की तमाम इकाईयां बन्द हो चुकी हैं। सहकारी और सरकारी 21 चीनी मिलें पिछली सरकार ने बेच दी और गन्ना किसानों पर संकट आ गया।
कुटीर उद्योग: यहां भारी संख्या में कुटीर उद्योग थे जिनमें सबसे प्रमुख उद्योग बुनकरी रहा है। लेकिन सरकारों की कुटीर उद्योगों एवं दस्तकारी के प्रति उपेक्षा के कारण आज ये पूरी तरह बर्बादी की कगार पर हैं। लाखों-लाख बुनकर, बीड़ी मजदूर तथा अन्य दस्तकार बेरोजगारी से ग्रस्त होने के चलते भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। असंगठित मजदूरों का तो और भी बुरा हाल है।
सड़क एवं बिजली: प्रदेश में एक ओर तो एक्सप्रेस हाईवे बनाने की परियोजनाओं पर काम चल रहा है तो दूसरी ओर तमाम अन्य सड़कों की दशा बेहद दयनीय है। राज्य की जीवन रेखा कही जाने वाली जी.टी. रोड तक अत्यधिक खराब स्थिति में है। 27 सालों में प्रदेश में बिजली की कोई नई परियोजना नहीं लगी है। अब जो परियोजनायें निर्माणाधीन हैं या बन कर तैयार हो चुकी है, उनमें निजीकरण के कारण घपले ही घपले हैं। बिजली के अभाव में प्रदेश का उद्योग और कृषि व्यापार तो चौपट हो ही गया है, बिजली की समस्या कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है। आगरा की विद्युत वितरण प्रणाली को निजी हाथों में देने से वहां अनेक समस्यायें पैदा हुई हैं। पिछले 25 सालों में सार्वजनिक क्षेत्र का एक ही उद्योग प्रदेश में शुरू नहीं किया गया।
शिक्षा: शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रदेश बेहद पिछड़ चुका है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक महंगे निजी विद्यालयों की भरमार है, जिनमें पढ़ाई की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। सरकार नियंत्रित विद्यालयों में भ्रष्टाचार, कार्य संस्कृति की पंगुता तथा सरकार की उपेक्षा के चलते शिक्षा दयनीय हालत में है। प्रदेश के किसान, मजदूर तबकों एवं आम आदमी के घरों के बच्चे उच्च शिक्षा तो दूर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा तक से वंचित है। वर्तमान शिक्षण सत्र में मिड डे मील के अंतर्गत अनाज एवं भोजन बनवाने का धन अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है।
सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों पर प्रयोगशालायें और कम्प्यूटर कक्ष तक नहीं हैं और न ही कम्प्यूटर शिक्षक ही नियुक्त किये गये हैं। इन विद्यालयों में शिक्षकों की भी अतिशय कमी है। लगभग 20 वर्ष पूर्व शुरू किये गये विद्यालयों के वित्तविहीन उच्चीकरण के चलते इन विद्यालय के शिक्षकों को अति अल्प वेतन पर नौकरी पर रखा गया है। ऐसे शिक्षकों से क्या अपेक्षा की जा सकती है। स्वःवित्तपोषित कोर्सों के बारे में भी लगभग यही सत्य है।
इंटर पास करने वाले विद्यार्थियों को लैपटॉप बांटने के नाम पर आयोजित होने वाले आयोजनों पर अनाप-शनाप खर्चा किया गया और कई स्थानों पर आयोजनों पर हुआ खर्चा लैपटॉप बांटने के खर्चे से कहीं अधिक का था। उत्तर प्रदेश में राजनैतिक हितों के लिए सरकारी धन का दुरूपयोग लगभग सभी सरकारों द्वारा किया गया है।
बेरोजगारी: उद्योग शून्यता, कृषि के बेढ़ब संचालन तथा आधारभूत ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) के निर्माण में उदासीनता और पिछड़ेपन के चलते प्रदेश में भयंकर बेरोजगारी है और प्रदेश के तमाम नौजवान और मजदूर जीवनयापन के लिये पलायन करने को मजबूर हैं। पलायन से गांव खाली हो रहे हैं और शहरों पर आबादी का भार बढ़ रहा है, जिससे अन्य समस्यायें पैदा हो रहीं है। नरेगा जैसी योजनायें भ्रष्टाचार की जकड़ में हैं। ईमानदार निर्वाचित जन प्रतिनिधियों यथा ग्राम प्रधानों का जीवन तक संकट में है।
नागरिक सुविधायें: जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिनीवल मिशन चन्द बड़े शहरों में लागू किया गया है, जहां भीषण भ्रष्टाचार व्याप्त है। तमाम मध्यम एवं छोटे शहरों में सड़कों, नालियों, सफाई आदि की स्थिति बेहद दयनीय है। प्रदेश की राजधानी तक में सार्वजनिक सफाई के लिए जनता को स्थानीय ठेकेदारों को मासिक आधार पर भुगतान करना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में भी नागरिक सुविधायें हद दर्जे के निम्नतम स्तर पर हैं।
स्वास्थ्य: पूरे प्रदेश में राजकीय स्वास्थ्य सुविधायें चौपट पड़ी हैं। सरकारी अस्पतालों में से अधिकांश की इमारतें जर्जर अवस्था में हैं। अस्पतालों में पर्याप्त स्टाफ तक नहीं है। कई जिलों में एक भी महिला चिकित्सक नियुक्त नहीं है। दवाओं और उपकरणों का बेहद अभाव है। साफ सफाई और तीमारदारी की समुचित व्यवस्था तक नहीं है। निजी नर्सिंग होम्स एवं चिकित्सालय लूट के अड्डे बने हुये हैं। आम जनता स्वास्थ्य की एवज में भारी कीमत चुका रही है। ग्रामीण स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ अधिसंख्यक ग्रामीण जनता को नहीं मिल पा रहा है। उसकी एंबुलेंस गाडियां टैक्सी के रूप में चलाई जा रही हैं।
गरीब एवं असहाय तबके: प्रदेश में गरीबी की रेखा के नीचे गुजर करने वालों की संख्या बहुत अधिक है और यह प्रदेश की कुल आबादी का 70 प्रतिशत से कम नहीं है। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की गणना पहले योजना आयोग के दफ्तर में कर ली जाती है और फिर जिला एवं ब्लाक स्तरीय अधिकारियों को उतने ही बीपीएल परिवार चिन्हित करने के लिए निर्देश जारी कर दिये जाते हैं। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले अधिसंख्यक परिवारों के पास बीपीएल कार्ड नहीं हैं। नरेगा के अंतर्गत जॉब कार्ड देने में भी हीला हवाली की जाती है। नरेगा में काम करने के पूरे पैसे तक नहीं मिलते हैं। कहने को पैसा बैंक खातों में जमा किया जाता है परन्तु दबंगई के कारण बैंक खातों से पैसा निकालने के लिए विड्राल फार्मों पर घर-घर जाकर पहले से ही दस्तखत करवा लिये जाते हैं। गरीबों के लिए चल रही तमाम योजनायें भ्रष्टाचार में डूबी हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली: प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली चौपट पड़ी है। आम आदमी को जरूरत की खास चीजें बेहद महंगी मिलती हैं। मौजूदा महंगाई ने तो आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यापक तथा भ्रष्टाचार से मुक्त बनाने की जरूरत है।
विकास के धन का दुरूपयोग: राजनीतिक उद्देश्यों से वशीभूत होकर सरकारें विकास के लिये धन को स्मारकों, मूर्तियों और अपनी जन्मभूमियों को यादगार स्थल बनाने में जुटी रहीं और प्रदेश का विकास पिछड़ता चला गया है। उत्तर प्रदेश के समूचे विकास की उपेक्षा हुई है।
वित्त आयोग के सम्मानित सदस्यगण,
इन परिस्थितियों में प्रदेश के समग्र विकास के लिए हम निम्न मांगें आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं:
- प्रदेश में कृषि के विकास के लिए पर्याप्त धन आबंटित किया जाये। ये धन प्रदेश में सहकारी खेती विकसित करने, खेती को उपकरण एवं अन्य उपादान मुहैया कराने तथा भूमि सुधार के वास्ते दिया जाये।
- उत्तर प्रदेश के बन्द पड़े मिलों, उद्योगों - खासकर सार्वजनिक एवं सहकारी उद्योगों को चलवाने, बीमार उद्योगों को ठीक हालत में लाने तथा नये उद्योग खुलवाने को पर्याप्त मात्रा में धन मुहैया कराया जाये।
- बुनकरों तथा बुनकर उद्योग, अन्य कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने तथा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को रोजगार देने के लिए योजनायें चलाने हेतु भी पर्याप्त धन मुहैया कराया जाये।
- सार्वजनिक क्षेत्र में प्रदेश में सड़क निर्माण, विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए पर्याप्त धन दिया जाये।
- प्रदेश में नहरों के निर्माण, बांधों एवं चेकडैम्स के निर्माण तथा सरकारी ट्यूबवेलों को लगाने हेतु भी धन आबंटित किया जाये।
- प्रदेश के सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने तथा निजी स्कूलों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हें संचालित करने, माध्यमिक शिक्षा सभी को मुफ्त दिलाये जाने और उच्च शिक्षा को आम आदमी के लिए सुलभ तथा सस्ती बनाने को शिक्षा का ढांचा खड़ा करने हेतु भारी धनराशि राज्य को मुहैया कराई जाये।
- प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कुटीर एवं मध्यम उद्योग लगाने और पर्याप्त रोजगार सृजन कर उसे कार्यान्वित करने हेतु धन उपलब्ध कराया जाये।
- नरेगा का दायरा 200 दिन प्रतिवर्ष और मजदूरी रू. 300.00 रूपये प्रतिदिन बढ़ाई जाये और शहरी क्षेत्र के लिए भी शहरी रोजगार गारंटी कानून बनाया जाये।
- नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें, गलियां, खड़ंजे, नालियों एवं तालाबों आदि के निर्माण और सफाई को ध्यान में रखते हुए धन मुहैया कराया जाये।
- सभी गरीबों को बीपीएल कार्ड दिलाकर उनके लिए तमाम विकासकारी योजनायें चलाने, वृद्धों, विधवाओं, विकलांगों के लिए आश्रयस्थल बनाने को पर्याप्त धन मुहैया कराया जाये।
- आम आदमी को महंगाई और काला बाजारी से निजात दिलाने को सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करना जरूरी है जिसके लिए धन आबंटित किया जाये। खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने को भी धन की जरूरत होगी।
- प्रदेश के बुन्देलखंड, पूर्वांचल, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों के विकास के लिये पर्याप्त धन मुहैया कराया जाये।
- वन क्षेत्र के फैलाव एवं रखरखाव, वृक्षारोपण, झीलों, तालाबों-पोखरों के संरक्षण और उन्हें गहरा करने, जल संरक्षण के काम को अंजाम देने को भी धन की आवश्यकता है।
- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, गोबर गैस आदि से ऊर्जा दोहन के लिये पर्याप्त धनराशि भी आवश्यक है।
- सूखा, बाढ़ तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने को अतिरिक्त धनराशि आबंटित की जाये।
- अर्बन रिनीवल का कार्य 50,000 से अधिक आबादी वाले सभी नगरों तक लागू किया जाये, जिसमें प्रमुखता पेय जल की आपूर्ति एवं सीवरेज व्यवस्था स्थापित करने के साथ-साथ सड़कों के उच्चीकरण को दी जाये।
अतएव आपसे अनुरोध है कि प्रदेश के भौगोलिक एवं जन सांख्यकीय विस्तार तथा प्रदेश के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय की न्यूनता को देखते हुये प्रदेश के विकास के लिए उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए आप वसूल किये जाने वाले केन्द्रीय करों में से समान हिस्सा राज्य को प्रदान करें तथा केन्द्रीय निधियों में अधिकाधिक धन उत्तर प्रदेश के लिए आबंटित करने की संस्तुति करें। आबंटन के लिए 1971 की जनगणना के आंकड़ों के बजाय 2011 की वास्तविक संख्या को ध्यान में रखा जाये। विभाज्य अंश के वितरण के सिद्धान्त में वित्तीय अनुशासन के भार को बढ़ाया जाये।
सुझाव
- विकास का धन विकास में ही लगे अन्य मनमाने कामों में नहीं इसके लिए राज्य एवं जिलों के स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की एक निगरानी समिति बनाये जाने की सिफारिश केन्द्र सरकार से की जाये। उल्लेख आवश्यक होगा कि विधान मंडल की बैठकों की संख्या अत्यधिक घट चुकी है और पीएसी की कार्यपद्धति अंकुश लगाने में सफल साबित नहीं हुई।
- जन प्रतिनिधियों, राज नेताओं, अधिकारियों और दलालों के भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए केन्द्रीय एवं राज्य के स्तर पर पर्याप्त निगरानी व्यवस्था हो।
- कैग के अधिकार क्षेत्र को विस्तृत किया जाये और केन्द्रीय सहायता का कैग द्वारा आडिट अनिवार्य बनाया जाये।
- जिस धन को जिस कार्य के लिए दिया जाये उसे उसी कार्य में उपभोग किये जाने का प्रमाण लिये जाने को अनिवार्य किया जाये और उसके अन्यथा उपयोग पर यथोचित कार्यवाही के बारे में कानून बनाने पर विचार किया जाये।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप उपर्युक्त पर गहनता से विचार कर समुचित कार्यवाही करेंगे और उत्तर प्रदेश के विकास का रास्ता प्रशस्त करेंगे।
सादर,
भ व दी य
(डा. गिरीश)
राज्य सचिव
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