उत्तर प्रदेश के समस्त मतदाता भाइयों और बहिनों,
देश के सबसे बड़े और राजनैतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश की 16वीं विधान सभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है।
आप सभी जानते हैं कि केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा थोपे गये भ्रष्टाचार और महंगाई ने आप सभी की कठिनाईयां बेहद बढ़ा दी हैं। इन कठिनाइयों से उबरना है तो बेहद समझ-बूझकर मत का प्रयोग करना है।
मौजूदा सरकार से पहले समाजवादी पार्टी की राज्य सरकार प्रदेश में सत्तारूढ़ थी। वह सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम उपक्रमों को पूंजीपतियों के हाथों बेच रही थी। वह किसानों की जमीनों का जबरिया अधिग्रहण कर अपने चहेते और मददगार उद्योगपतियों को सौंप रही थी। विरोध करने पर किसानों पर दमनचक्र चला रही थी। भ्रष्टाचार चरम पर था, यहां तक कि पुलिस कांस्टेबिलों की भर्ती तक में भारी रकम डकारी गई थी। शिक्षा को परचूनी की दुकान बनाकर बेहद महंगी कर दिया गया था। नये विद्यालयों की मान्यता में भारी भ्रष्टाचार फैला था। राशन प्रणाली ध्वस्त पड़ी थी। शासन-प्रशासन और गुंडे मिल कर काम कर रहे थे जिससे कि कानून-व्यवस्था चरमरा कर रह गई थी।
इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिये 2007 के विधान सभा चुनावों में जनता ने बसपा के पक्ष में जनादेश दिया था और बहुत अर्से बाद प्रदेश में एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार वजूद में आई थी। हर किसी ने सोचा था कि नई सरकार उनकी इन सारी दिक्कतों को दूर करेगी। लेकिन हुआ ठीक इसके उलटा। मौजूदा बसपा सरकार ने भी हर मामले में अपनी पूर्ववर्ती सरकार के पदचिन्हों पर चलना शुरू कर दिया। केन्द्र सरकार और पिछली राज्य सरकार द्वारा चलाई जाती रही आर्थिक नव उदारवाद की नीतियों को धड़ल्ले से लागू किया जाने लगा। इससे किसानों, मजदूरों, युवाओं, छात्रों, कर्मचारियों, महिलाओं, दलितों, दस्तकारों, बुनकरों, अल्पसंख्यकों की बरबादी शुरू हो गई। इसके विरोध में आवाजें उठीं तो हर आवाज को राज्य सरकार ने लाठी और गोली से दबाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं बसपा सुप्रीमो और उनकी सरकार के तमाम मंत्री धन बटोरने में लगे रहे। पूरे पांच साल एक से एक बड़े घोटालों की पर्तें खुलती चलीं गईं। जनता लुटती रही और अफसर, दलाल और मंत्री मालामाल होते रहे। आज हालत यह है कि डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त की जांच के दायरे में हैं तो तमाम विधायकों की अकूत बढ़ती संपत्तियां जनता को भौचक बनाये हुये हैं। किसानों की जमीनें हड़प कर पूंजीपतियों को दे दी गईं। प्रतिरोध करने वाले किसानों पर गोलियां चलाई गईं जिनमें कई किसानों की जानें चली गईं।
मौजूदा शासक दल ने गत चुनाव में नारा दिया था कि चढ़ गुंडों की छाती पर वोट डाल दो हाथी पर। लेकिन सत्ता में आते ही सारे के सारे गुंडे माफिया हाथी पर सवार हो गये और अपराधों और अत्याचार की बाढ़ सी आ गई। सर्वाधिक अत्याचार दलितों और महिलाओं के ऊपर होते रहे। एक दलित वर्ग से आई महिला मुख्यमंत्री की इससे बड़ी असफलता और क्या हो सकती है? अनेकों महिलाओं के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की तमाम घटनायें हुईं तो कई की तो दुष्कर्म के बाद हत्या तक कर दी गई। इन सारे अपराधों की जड़ में शासक दल के नेता एवं मंत्री थे। हत्या, लूट, चोरी, दहेज हत्यायें, ऑनर किलिंग की तमाम वारदातें अखबारों की सुर्खियां बनती रहीं। खुद राजधानी लखनऊ में तीन-तीन स्वास्थ्य अधिकारियों की हत्यायें सरकार के माथे पर कलंक का टीका हैं। यह सारे कृत्य बसपा की उस कथित ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का परिणाम हैं जिसके तहत इसने तमाम अपराधियों, माफियाओं, दबंगों को टिकिट देकर सत्ता शिखर तक पहुंचाया।
लेकिन जब बसपा इनके कृत्यों से बदनाम होने लगी तो उन्हें पदों से हटाने या टिकिट काट देने का स्वांग रचा गया।
उत्तर प्रदेश की जनता ने यह सब कुछ सपा अथवा बसपा के राज में ही झेला हो ऐसी बात नहीं है। इससे पूर्व भाजपा और कांग्रेस के शासन काल में भी उत्तर प्रदेश की जनता ने ये सारी पीड़ायें झेली हैं।
लगभग ढाई साल पहले हुये लोकसभा के चुनावों के परिणामस्वरूप केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग-2 की सरकार बनी। प्रदेश में सत्तारूढ बसपा और विपक्षी दल सपा दोनों ही इस सरकार का समर्थन करते रहे हैं। महंगाई का सवाल हो या भ्रष्टाचार का मसला ये दोनों ही पार्टियां संसद में संप्रग-2 सरकार के साथ खड़ी दिखीं। इस समर्थन से ताकत हासिल कर केन्द्र सरकार निर्मम तरीके से अपनी आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों को चलाती रही है। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण निर्बाध रूप से जारी है। गरीब और गरीब हो रहे हैं तो अमीर और अमीर। भारी भरकम भ्रष्टाचारों में सरकार लगातार घिरी रही। बेरोकटोक बढ़ती महंगाई ने आम आदमी का जीना दूभर बना रखा है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम मनमाने तरीके से बढ़ाये जाते रहे हैं। किसानों की जरूरत की चीजें महंगी बना दी गई हैं जबकि उनके उत्पादों के उचित मूल्य नहीं दिये जा रहे। खाद के संकट ने किसानों को तबाह बनाये रखा। कर्ज और भुखमरी में डूबे बुन्देलखंड के किसान-मजदूर आत्महत्यायें करते रहे और कांग्रेस व बसपा के आका बुन्देलखंड की बर्बादी पर घड़ियाली आंसू बहाते रहे। केन्द्र की सरकार खुले तौर पर पूंजीपतियों, कार्पोरेट जगत के पक्ष में खड़ी है और गरीबों का खून चूसने का काम कर रही है। इस पाप पर पर्दा डालने के लिये एक युवराज दलितों की झोपड़ियों में जाने का नाटक करते रहते हैं।
यहां यह भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि जब संप्रग-1 सरकार वामपंथी दलों के समर्थन पर टिकी थी, वामपंथ के कड़े अंकुश के कारण वह यह सब जनविरोधी काम नहीं कर पाई थी। उलटे वामपंथ के दवाब में मनरेगा, सूचना का अधिकार, आदिवासी अधिनियम, घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण कानून बनवाये गये थे। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने से सरकार को बार-बार रोका गया था जिससे महंगाई पर अंकुश लगा था। भ्रष्टाचार और घपले होने नहीं दिये गये थे और सार्वजनिक क्षेत्र को बिक्री से बचाया गया था। देश की जनता इन तथ्यों से भलीभांति अवगत है।
केन्द्रीय स्तर पर विपक्ष की मुख्य पार्टी भाजपा है। परन्तु उसकी आर्थिक नीतियां वहीं हैं जो कांग्रेस की। अतएव प्रमुख सवालों पर संसद में वह सरकार से नूराकुश्ती करती नजर आती है। महंगाई और भ्रष्टाचार रोकने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं। भ्रष्टाचार में तो उसके तमाम नेता स्वयं डूबे हैं अतएव उसका भ्रष्टाचार विरोध बेमानी है। सांप्रदायिकता भड़काने वाले उसके तमाम मुद्दों को जनता ने ठुकरा दिया है अतएव अब छद्म तरीकों से साम्प्रदायिक दांव पेंच चलाती रहती है।
उत्तर प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदेश में कार्यरत चारों पूंजीवादी पार्टियां अपनी चमक और प्रासंगिकता खो बैठी हैं। सुरक्षित ठिकानों की तलाश में इनके तमाम नेता दलबदल कर रहे हैं। सभी नेताओं के बेटे-बेटियां एवं रिश्तेदार चुनाव मैदान में उतर कर वंशवाद की जड़े मजबूत कर रहे हैं। विधान सभा के पटल पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की सांठगांठ से जनता के अहम सवालों पर चर्चा तक नहीं होती। जातिवाद और साम्प्रदायिकता की इनकी नीतियों ने गरीबों का कोई हित नहीं किया। भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने इनकी बची-खुची जड़ें भी खोखली कर डाली हैं। ऐसे में जनता एक नई राह तलाश रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं वामपंथी दल जनता की इस नई राह के राही हो सकते हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पिछले पांच सालों में जनता के सवालों पर लगातार संघर्ष चलाये हैं। भाकपा ओर उसके कार्यकर्ता भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त हैं। यह सारा देश जानता है। अपनी इन सारी विशेषताओं के साथ भाकपा ने वामपंथी दलों से चुनावी तालमेल किया है। वाम दल प्रदेश में सौ सीटों पर विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हैं। खुद भाकपा 50-52 सीटों पर चुनाव मैदान में है। हम सरकार बनाने का दावा नहीं कर रहे हैं। लेकिन हम मतदाताओं को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि यदि वे भाकपा प्रत्याशियों को विजयी बनाते हैं तो विधान सभा के पटल पर जनता की आवाज बेलाग तरीके से गूंजेगी। जिस तरह हम निरंतर सड़कों पर उतर कर संघर्ष करते हैं वैसा ही संघर्ष विधान सभा के पटल पर भी किया जायेगा। हम संवेदनशील, संघर्षशील और सशक्त वामपंथी विकल्प का निर्माण चाहते हैं ताकि महंगाई और भ्रष्टाचार जैसी विडंबनाओं को पीछे धकेला जा सके। गरीबों को बचाना है और उत्तर प्रदेश को ऊंचा उठाना है तो वामपंथ को मजबूत बनाना ही होगा। भाकपा उत्तर प्रदेश के चहुंतरफा विकास के लिए संघर्ष करेगी, ऐसा हमारा दावा है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब आप सभी का बहुमत हमारे प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करेगा।
अतएव हम सभी मतदाताओं से अपील करते हैं कि साम्प्रदायिक, जातिवादी और वंशवादी ताकतों को परास्त करें। भ्रष्ट, अपराधी तथा माफिया सरगनाओं को विधान सभा में न पहुंचने दें। किसान, मजदूर एवं आम आदमी की बरबादी की जिम्मेदार - आर्थिक नवउदारवाद की ताकतों को पीछे धकेलने का काम करें। 16वीं विधान सभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में चुनकर भिजवायें। तथा हंसिया बाली वाले चुनाव निशान के आगे वाले बटन को जरूर दबायें।
देश के सबसे बड़े और राजनैतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश की 16वीं विधान सभा के चुनाव का बिगुल बज चुका है।
आप सभी जानते हैं कि केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा थोपे गये भ्रष्टाचार और महंगाई ने आप सभी की कठिनाईयां बेहद बढ़ा दी हैं। इन कठिनाइयों से उबरना है तो बेहद समझ-बूझकर मत का प्रयोग करना है।
मौजूदा सरकार से पहले समाजवादी पार्टी की राज्य सरकार प्रदेश में सत्तारूढ़ थी। वह सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम उपक्रमों को पूंजीपतियों के हाथों बेच रही थी। वह किसानों की जमीनों का जबरिया अधिग्रहण कर अपने चहेते और मददगार उद्योगपतियों को सौंप रही थी। विरोध करने पर किसानों पर दमनचक्र चला रही थी। भ्रष्टाचार चरम पर था, यहां तक कि पुलिस कांस्टेबिलों की भर्ती तक में भारी रकम डकारी गई थी। शिक्षा को परचूनी की दुकान बनाकर बेहद महंगी कर दिया गया था। नये विद्यालयों की मान्यता में भारी भ्रष्टाचार फैला था। राशन प्रणाली ध्वस्त पड़ी थी। शासन-प्रशासन और गुंडे मिल कर काम कर रहे थे जिससे कि कानून-व्यवस्था चरमरा कर रह गई थी।
इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिये 2007 के विधान सभा चुनावों में जनता ने बसपा के पक्ष में जनादेश दिया था और बहुत अर्से बाद प्रदेश में एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार वजूद में आई थी। हर किसी ने सोचा था कि नई सरकार उनकी इन सारी दिक्कतों को दूर करेगी। लेकिन हुआ ठीक इसके उलटा। मौजूदा बसपा सरकार ने भी हर मामले में अपनी पूर्ववर्ती सरकार के पदचिन्हों पर चलना शुरू कर दिया। केन्द्र सरकार और पिछली राज्य सरकार द्वारा चलाई जाती रही आर्थिक नव उदारवाद की नीतियों को धड़ल्ले से लागू किया जाने लगा। इससे किसानों, मजदूरों, युवाओं, छात्रों, कर्मचारियों, महिलाओं, दलितों, दस्तकारों, बुनकरों, अल्पसंख्यकों की बरबादी शुरू हो गई। इसके विरोध में आवाजें उठीं तो हर आवाज को राज्य सरकार ने लाठी और गोली से दबाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं बसपा सुप्रीमो और उनकी सरकार के तमाम मंत्री धन बटोरने में लगे रहे। पूरे पांच साल एक से एक बड़े घोटालों की पर्तें खुलती चलीं गईं। जनता लुटती रही और अफसर, दलाल और मंत्री मालामाल होते रहे। आज हालत यह है कि डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त की जांच के दायरे में हैं तो तमाम विधायकों की अकूत बढ़ती संपत्तियां जनता को भौचक बनाये हुये हैं। किसानों की जमीनें हड़प कर पूंजीपतियों को दे दी गईं। प्रतिरोध करने वाले किसानों पर गोलियां चलाई गईं जिनमें कई किसानों की जानें चली गईं।
मौजूदा शासक दल ने गत चुनाव में नारा दिया था कि चढ़ गुंडों की छाती पर वोट डाल दो हाथी पर। लेकिन सत्ता में आते ही सारे के सारे गुंडे माफिया हाथी पर सवार हो गये और अपराधों और अत्याचार की बाढ़ सी आ गई। सर्वाधिक अत्याचार दलितों और महिलाओं के ऊपर होते रहे। एक दलित वर्ग से आई महिला मुख्यमंत्री की इससे बड़ी असफलता और क्या हो सकती है? अनेकों महिलाओं के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की तमाम घटनायें हुईं तो कई की तो दुष्कर्म के बाद हत्या तक कर दी गई। इन सारे अपराधों की जड़ में शासक दल के नेता एवं मंत्री थे। हत्या, लूट, चोरी, दहेज हत्यायें, ऑनर किलिंग की तमाम वारदातें अखबारों की सुर्खियां बनती रहीं। खुद राजधानी लखनऊ में तीन-तीन स्वास्थ्य अधिकारियों की हत्यायें सरकार के माथे पर कलंक का टीका हैं। यह सारे कृत्य बसपा की उस कथित ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का परिणाम हैं जिसके तहत इसने तमाम अपराधियों, माफियाओं, दबंगों को टिकिट देकर सत्ता शिखर तक पहुंचाया।
लेकिन जब बसपा इनके कृत्यों से बदनाम होने लगी तो उन्हें पदों से हटाने या टिकिट काट देने का स्वांग रचा गया।
उत्तर प्रदेश की जनता ने यह सब कुछ सपा अथवा बसपा के राज में ही झेला हो ऐसी बात नहीं है। इससे पूर्व भाजपा और कांग्रेस के शासन काल में भी उत्तर प्रदेश की जनता ने ये सारी पीड़ायें झेली हैं।
लगभग ढाई साल पहले हुये लोकसभा के चुनावों के परिणामस्वरूप केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग-2 की सरकार बनी। प्रदेश में सत्तारूढ बसपा और विपक्षी दल सपा दोनों ही इस सरकार का समर्थन करते रहे हैं। महंगाई का सवाल हो या भ्रष्टाचार का मसला ये दोनों ही पार्टियां संसद में संप्रग-2 सरकार के साथ खड़ी दिखीं। इस समर्थन से ताकत हासिल कर केन्द्र सरकार निर्मम तरीके से अपनी आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों को चलाती रही है। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण निर्बाध रूप से जारी है। गरीब और गरीब हो रहे हैं तो अमीर और अमीर। भारी भरकम भ्रष्टाचारों में सरकार लगातार घिरी रही। बेरोकटोक बढ़ती महंगाई ने आम आदमी का जीना दूभर बना रखा है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम मनमाने तरीके से बढ़ाये जाते रहे हैं। किसानों की जरूरत की चीजें महंगी बना दी गई हैं जबकि उनके उत्पादों के उचित मूल्य नहीं दिये जा रहे। खाद के संकट ने किसानों को तबाह बनाये रखा। कर्ज और भुखमरी में डूबे बुन्देलखंड के किसान-मजदूर आत्महत्यायें करते रहे और कांग्रेस व बसपा के आका बुन्देलखंड की बर्बादी पर घड़ियाली आंसू बहाते रहे। केन्द्र की सरकार खुले तौर पर पूंजीपतियों, कार्पोरेट जगत के पक्ष में खड़ी है और गरीबों का खून चूसने का काम कर रही है। इस पाप पर पर्दा डालने के लिये एक युवराज दलितों की झोपड़ियों में जाने का नाटक करते रहते हैं।
यहां यह भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि जब संप्रग-1 सरकार वामपंथी दलों के समर्थन पर टिकी थी, वामपंथ के कड़े अंकुश के कारण वह यह सब जनविरोधी काम नहीं कर पाई थी। उलटे वामपंथ के दवाब में मनरेगा, सूचना का अधिकार, आदिवासी अधिनियम, घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण कानून बनवाये गये थे। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने से सरकार को बार-बार रोका गया था जिससे महंगाई पर अंकुश लगा था। भ्रष्टाचार और घपले होने नहीं दिये गये थे और सार्वजनिक क्षेत्र को बिक्री से बचाया गया था। देश की जनता इन तथ्यों से भलीभांति अवगत है।
केन्द्रीय स्तर पर विपक्ष की मुख्य पार्टी भाजपा है। परन्तु उसकी आर्थिक नीतियां वहीं हैं जो कांग्रेस की। अतएव प्रमुख सवालों पर संसद में वह सरकार से नूराकुश्ती करती नजर आती है। महंगाई और भ्रष्टाचार रोकने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं। भ्रष्टाचार में तो उसके तमाम नेता स्वयं डूबे हैं अतएव उसका भ्रष्टाचार विरोध बेमानी है। सांप्रदायिकता भड़काने वाले उसके तमाम मुद्दों को जनता ने ठुकरा दिया है अतएव अब छद्म तरीकों से साम्प्रदायिक दांव पेंच चलाती रहती है।
उत्तर प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदेश में कार्यरत चारों पूंजीवादी पार्टियां अपनी चमक और प्रासंगिकता खो बैठी हैं। सुरक्षित ठिकानों की तलाश में इनके तमाम नेता दलबदल कर रहे हैं। सभी नेताओं के बेटे-बेटियां एवं रिश्तेदार चुनाव मैदान में उतर कर वंशवाद की जड़े मजबूत कर रहे हैं। विधान सभा के पटल पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की सांठगांठ से जनता के अहम सवालों पर चर्चा तक नहीं होती। जातिवाद और साम्प्रदायिकता की इनकी नीतियों ने गरीबों का कोई हित नहीं किया। भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने इनकी बची-खुची जड़ें भी खोखली कर डाली हैं। ऐसे में जनता एक नई राह तलाश रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं वामपंथी दल जनता की इस नई राह के राही हो सकते हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पिछले पांच सालों में जनता के सवालों पर लगातार संघर्ष चलाये हैं। भाकपा ओर उसके कार्यकर्ता भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त हैं। यह सारा देश जानता है। अपनी इन सारी विशेषताओं के साथ भाकपा ने वामपंथी दलों से चुनावी तालमेल किया है। वाम दल प्रदेश में सौ सीटों पर विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हैं। खुद भाकपा 50-52 सीटों पर चुनाव मैदान में है। हम सरकार बनाने का दावा नहीं कर रहे हैं। लेकिन हम मतदाताओं को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि यदि वे भाकपा प्रत्याशियों को विजयी बनाते हैं तो विधान सभा के पटल पर जनता की आवाज बेलाग तरीके से गूंजेगी। जिस तरह हम निरंतर सड़कों पर उतर कर संघर्ष करते हैं वैसा ही संघर्ष विधान सभा के पटल पर भी किया जायेगा। हम संवेदनशील, संघर्षशील और सशक्त वामपंथी विकल्प का निर्माण चाहते हैं ताकि महंगाई और भ्रष्टाचार जैसी विडंबनाओं को पीछे धकेला जा सके। गरीबों को बचाना है और उत्तर प्रदेश को ऊंचा उठाना है तो वामपंथ को मजबूत बनाना ही होगा। भाकपा उत्तर प्रदेश के चहुंतरफा विकास के लिए संघर्ष करेगी, ऐसा हमारा दावा है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब आप सभी का बहुमत हमारे प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करेगा।
अतएव हम सभी मतदाताओं से अपील करते हैं कि साम्प्रदायिक, जातिवादी और वंशवादी ताकतों को परास्त करें। भ्रष्ट, अपराधी तथा माफिया सरगनाओं को विधान सभा में न पहुंचने दें। किसान, मजदूर एवं आम आदमी की बरबादी की जिम्मेदार - आर्थिक नवउदारवाद की ताकतों को पीछे धकेलने का काम करें। 16वीं विधान सभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में चुनकर भिजवायें। तथा हंसिया बाली वाले चुनाव निशान के आगे वाले बटन को जरूर दबायें।
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