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Sunday, June 9, 2013

लखनऊ इप्टा ने मनाया 70वां स्थापना दिवस



 सेंसेक्स के मायाजाल में गोते लगाता आदमी, किसान क्रेडिट कार्ड तथा लुभावने कृषि ऋण में उलझता भोला किसान, इलेक्ट्रानिक मीडिया की चकाचौंध में भ्रमित नव युवतियां, सुबह से शाम तक मेहनत करता संविदा कर्मी, भविष्य के सुनहरे सपने देखता नव युवक यह  सभी फंसे हैं फन्दों में जिनका संचालन अपने को सर्वशक्तिमान मानने वाली शक्तियों द्वारा होता है। इन सभी को जाग्रत  करता है समाज का प्रगतिशील नौजवान। एक फंदे से छूटने के बाद यही वर्ग फंसता है जाति-धर्म के फंदे में, जहां केवल समस्याएँ हैं समाधान कोई नहीं। यह भाव है नाटक ‘मकड़जाल’ का, जिसका लेखन एवं निर्देशन इप्टा उत्तर प्रदेश के महामंत्री का.राकेश ने किया. इसका मंचन इप्टा की 70वी वर्षगाँठ पर 25 मई 2013 को इप्टा प्रांगण, कैसर बाग़, लखनऊ में दर्शकों की भारी भीड़ के मध्य हुआ. इसमें विभिन्न पात्रों को सशक्त रूप से राजू पांडे, देवाशीष, इच्छा शंकर, श्रद्धा, अनुज,विकास मिश्र, अनुराग तथा राकेश दिवेदी ने अभिनीत किया।इसके पूर्व एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था ”मूल्य हीनता के दौर में प्रतिबद्धता एवं व्यापक सांस्कृतिक एकता की ज़रुरत“। विषय प्रवर्तन करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी तथा सुपरिचित आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि २५ मई १९४३ को जब इप्टा की स्थापना हुई थी तब कोई लेखक,साहित्यकार,संगीतकार या बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बद्ध ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो इप्टा से जुड़ा न हो, लेकिन आज इसका दायरा कुछ लोगों तक ही सीमित है। आज साहित्य की कसौटी से लेकर सामाजिक आन्दोलन में कोई भी खरा नहीं उतर रहा है। हम न आंदोलनों से न ही विचारों से कोई बड़ी मुहिम खड़ा कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इप्टा को आत्मालोचना व बदलाव की ज़रुरत है। गोष्ठी में भाग लेते हुए जन संस्कृति मंच के कौशल किशोर ने कहा कि जो संगठन जन-सांस्कृतिक आन्दोलनों का उद्देश्य लेकर बनाए गए थे उनका इतिहास बेहद शानदार रहा है, लेकिन अब यह औपचारिकता भर रह गए हैं। प्रो. रूप रेखा वर्मा का विचार था कि इस तरह की विचारधारा वाले सभी संगठनों को अपनी असमानताओं के बजाये समानताओं को ध्यान में रखते हुए आगे बढना होगा। डॉ. रमेश दीक्षित की चिंता थी कि जनता के किसी वर्ग के साथ किसी संगठन का जीवंत सम्पर्क नहीं है। सारे वामपंथी कार्यक्रम केवल माध्यम वर्ग तक ही सीमित हैं. गोष्ठी में सर्वश्री शकील सिद्दीकी, अनीता श्रीवास्तव, सुशीला पुरी, सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ,दीपक कबीर ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि मूल्य हीनता के इस दौर में आम लोगों को बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति यह हो गयी है कि कार्य पालिका पर सवाल तो उठाये जाते रहे हैं लेकिन मौजूदा समय में कुछ मामले ऐसे आये कि न्यायपालिका पर भी लोगों को भरोसा करना मुश्किल हो गया है। अब इस स्थिति में आम जन जाए तो कहाँ जाए। इस मुश्किल दौर में व्यापक सांस्कृतिक एकता की ज़रुरत है जिसमें आम लोगों की समस्या पर संघर्ष किया जा सकता है।
गोष्ठी का सन्चालन करते हुए का. राकेश ने कहा कि आज के समय में लोगों के पास रंगमंच के अतिरिक्त भी मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं और दूसरी तरफ रंगकर्मी भी जल्द सफल होने की कामना रख रहे हैं। यही कारण है कि सामाजिक चेतना को बनाए रखने के लिए किया जाने वाला रंगकर्म कुछ कमज़ोर हुआ है। यात्राओं के नाम पर लोगों को जुटाया जाएगा और उनमें मानवीय मूल्यों को बचाने की कोशिश होगी. प्रयास किया जाएगा कि आपसी भाई-चारा कायम रहे।
इस आयोजन में इप्टा के जुगल किशोर, अखिलेश दीक्षित, ओ.पी अवस्थी, प्रदीप घोष, सुखेन्दु मंडल, ज्ञान चन्द्र शुक्ल, राजीव भटनागर, मुख्तार अहमद, विपिन मिश्रा, शैलेन्द्र आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।
(प्रस्तुति - ओ.पी अवस्थी )