Sunday, August 21, 2011
Friday, August 12, 2011
आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन का प्लेटिनम जुबली समारोह शुरू
लखनऊ 12 अगस्त। भारत के प्रथम अखिल भारतीय संगठन - आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ पर प्लेटिनम जुबली समारोह आज यहां ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में शुरू हो गया। देश के कोने-कोने से आये एआईएसएफ के प्रतिनिधियों तथा देश के तमाम हिस्सों से आये एआईएसएफ के पुराने कार्यकर्ताओं से खचाखच भरे गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में प्लेटिनम जुबली समारोह का औपचारिक उद्घाटन करते हुए एआईएसएफ की उत्तर प्रदेश इकाई के पूर्व महासचिव रहे न्यायमूर्ति हैदर अब्बास रज़ा ने एआईएसएफ की गौरवशाली परम्पराओं, संघर्षों और उपलब्धियों को याद करते हुए छात्रों की वर्तमान पीढ़ी का आह्वान किया कि वे दोहरी शिक्षा नीति, शिक्षा के बाजारीकरण, गरीबों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने वाली शिक्षा नीतियों तथा काले साहबों को पैदा करनी वाली शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ एआईएसएफ के झण्डे़ के नीचे एकताबद्ध होकर सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा सुधारों के लिए संघर्ष को तेज करें और आने वाले वक्त के लिए नागरिकों और राजनीतिज्ञों की ऐसी क्रान्तिकारी पीढ़ी तैयार करें जो देश को सही दिशा में ले जा सके। न्यायमूर्ति रज़ा ने 1953 के अपने छात्र जीवन को याद करते हुए कहा कि उस दौर में लखनऊ में एक महान छात्र आन्दोलन ने जन्म लिया था जिससे भयभीत तत्कालीन सरकार के निर्देशों पर स्थानीय पुलिस ने पुरानी नजीराबाद रोड़ पर डा. गयेन्द्र की हत्या कर दी थी।
न्यायमूर्ति रज़ा ने कहा कि इस समय हम एक अशान्त दौर से गुजर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद अंतिम सांसें ले रहा है। वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद दम तोड़ रहा है। इस वक्त एआईएसएफ की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जिसे वर्तमान पीढ़ी को निभाना ही होगा। न्यायमूर्ति रज़ा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे वर्तमान आन्दोलन के चेहरों एवं मंतव्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को नेतृत्व देने को कहा।
स्वागत समिति के अध्यक्ष एवं भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने अपने स्वागत भाषण में सभी आगन्तुकों का स्वागत करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के दौर से लेकर आज तक उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक अवदानों एवं योगदानों का स्मरण करते हुए कहा कि वर्तमान दौर में हम हर क्षेत्र में भूमंडलीकरण और कारपोरेटाइजेशन द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नई व्यवस्था ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक को अपनी चपेट में ले लिया है। आम आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए या तो कर्ज ले रहा है, या गहने-जेवर, बर्तन और सम्पत्ति बेच रहा है अन्यथा उसके बच्चे शिक्षा के अधिकार से ही वंचित हो जा रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिक्षा के साथ-साथ देश के भविष्य पर भी खतरा पैदा कर दिया जिसके हम मूक दर्शक बने नहीं रह सकते। उन्होंने आह्वान किया कि छात्रों की वर्तमान पीढ़ी को डा. अम्बेडकर की सीख - ”शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो“ को अमल में लाते हुए शिक्षा को हासिल करने के संघर्ष को खड़ा करना होगा। (स्वागत भाषण की प्रतिलिपि संलग्न है)।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने एआईएसएफ के गौरवशाली अवदानों तथा सत्तर के दशक के मध्य में एआईएसएफ के संविधान में किये गये संशोधनों का जिक्र करते हुए कहा कि एआईएसएफ लगातार वैज्ञानिक समाजवाद के लिए संघर्षरत रहा है परन्तु आज जब देश की नीतियां प्रतिगामी दिशा में चल रहीं हैं, छात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से फैसलाकुन संघर्षों को संगठित करने का आह्वान किया।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ की पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में एटक की सचिव अमरजीत कौर ने देश के असंख्य मजदूरों की ओर से समारोह को बधाई देते हुए कहा कि 1936 में इसी ऐतिहासिक हाल में सम्पन्न होने वाले स्थापना सम्मेलन से कहीं बहुत पहले से छात्रों ने पहलकदमी लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने उसके पहले के तमाम आजादी के संघर्षों के छात्रों में अवदान को याद करते हुए कहा कि देश में स्वाधीनता संग्राम का कोई युग रहा हो अथवा सुधारों का कोई आन्दोलन रहा हो, उसे गति तभी मिली जब छात्रों ने उसमें हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि सती प्रथा के खिलाफ आन्दोलन तभी शुरू हुआ जब एक छात्र ने चुनौती दी कि वह अपनी बहन को सती नहीं होने देगा, विधवा विवाह को तभी गति मिली जब एक छात्र ने एक विधवा से विवाह करने का साहस दिखाया। उन्होंने कहा कि लिंग समानता तथा महिला सशक्तीकरण के आन्दोलन को गति भी छात्रों ने ही उन्हें एआईएसएफ की महासचिव बनाकर दिया। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी का आवाह्न किया कि वे अपने घोषित नारों - ”शान्ति, प्रगति, वैज्ञानिक समाजवाद को बदले बिना परिवर्तित वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अपने काम करने के तरीकों को बदलें, अधिक से अधिक छात्रों को एआईएसएफ की ओर आकर्षित करें और जुझारू संघर्षों के जरिए छात्र आन्दोलन को गति तथा देश की राजनीति को देशा दें।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल कुमार अंजान ने देश के करोड़ों किसानों की ओर से समारोह का अभिनन्दन करते हुए अपने संस्मरणों के जरिये नई पीढ़ी को संघर्षों के लिए प्रेरित किया।
समारोह के औपचारिक उद्घाटन के पहले छेदी लाल धर्मशाला में एक चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया तथा झंडोत्तोलन प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा एआईएसएफ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरसिम्हा रेड्डी ने किया।
समारोह में ”लोक संघर्ष“ पत्रिका के एआईएसएफ पर केन्द्रित अंक का विमोचन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया।
समारोह के दूसरे सत्र में एआईएसएफ की विभिन्न पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले देश की विभिन्न हिस्सों से आये तमाम राजनीतिज्ञों, न्यायविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शिक्षकों, वकीलों, शिक्षाशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, कलाकारों, साहित्यकारों तथा मजदूर नेताओं आदि का अभिनन्दन किया गया।
सायंकाल सांस्कृतिक समारोह आयोजित होगा जिसकी शुरूआत लखनऊ इप्टा के कलाकार ”किस्सा एक लाश का“ नाटक प्रस्तुत कर करेंगे। तत्पश्चात् विभिन्न राज्यों से आये छात्र अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे।
न्यायमूर्ति रज़ा ने कहा कि इस समय हम एक अशान्त दौर से गुजर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद अंतिम सांसें ले रहा है। वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद दम तोड़ रहा है। इस वक्त एआईएसएफ की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जिसे वर्तमान पीढ़ी को निभाना ही होगा। न्यायमूर्ति रज़ा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे वर्तमान आन्दोलन के चेहरों एवं मंतव्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को नेतृत्व देने को कहा।
स्वागत समिति के अध्यक्ष एवं भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने अपने स्वागत भाषण में सभी आगन्तुकों का स्वागत करते हुए स्वतंत्रता संग्राम के दौर से लेकर आज तक उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक अवदानों एवं योगदानों का स्मरण करते हुए कहा कि वर्तमान दौर में हम हर क्षेत्र में भूमंडलीकरण और कारपोरेटाइजेशन द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नई व्यवस्था ने प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक को अपनी चपेट में ले लिया है। आम आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए या तो कर्ज ले रहा है, या गहने-जेवर, बर्तन और सम्पत्ति बेच रहा है अन्यथा उसके बच्चे शिक्षा के अधिकार से ही वंचित हो जा रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार ने शिक्षा के साथ-साथ देश के भविष्य पर भी खतरा पैदा कर दिया जिसके हम मूक दर्शक बने नहीं रह सकते। उन्होंने आह्वान किया कि छात्रों की वर्तमान पीढ़ी को डा. अम्बेडकर की सीख - ”शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो“ को अमल में लाते हुए शिक्षा को हासिल करने के संघर्ष को खड़ा करना होगा। (स्वागत भाषण की प्रतिलिपि संलग्न है)।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने एआईएसएफ के गौरवशाली अवदानों तथा सत्तर के दशक के मध्य में एआईएसएफ के संविधान में किये गये संशोधनों का जिक्र करते हुए कहा कि एआईएसएफ लगातार वैज्ञानिक समाजवाद के लिए संघर्षरत रहा है परन्तु आज जब देश की नीतियां प्रतिगामी दिशा में चल रहीं हैं, छात्रों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी से फैसलाकुन संघर्षों को संगठित करने का आह्वान किया।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ की पूर्व महासचिव तथा वर्तमान में एटक की सचिव अमरजीत कौर ने देश के असंख्य मजदूरों की ओर से समारोह को बधाई देते हुए कहा कि 1936 में इसी ऐतिहासिक हाल में सम्पन्न होने वाले स्थापना सम्मेलन से कहीं बहुत पहले से छात्रों ने पहलकदमी लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने उसके पहले के तमाम आजादी के संघर्षों के छात्रों में अवदान को याद करते हुए कहा कि देश में स्वाधीनता संग्राम का कोई युग रहा हो अथवा सुधारों का कोई आन्दोलन रहा हो, उसे गति तभी मिली जब छात्रों ने उसमें हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि सती प्रथा के खिलाफ आन्दोलन तभी शुरू हुआ जब एक छात्र ने चुनौती दी कि वह अपनी बहन को सती नहीं होने देगा, विधवा विवाह को तभी गति मिली जब एक छात्र ने एक विधवा से विवाह करने का साहस दिखाया। उन्होंने कहा कि लिंग समानता तथा महिला सशक्तीकरण के आन्दोलन को गति भी छात्रों ने ही उन्हें एआईएसएफ की महासचिव बनाकर दिया। उन्होंने एआईएसएफ की वर्तमान पीढ़ी का आवाह्न किया कि वे अपने घोषित नारों - ”शान्ति, प्रगति, वैज्ञानिक समाजवाद को बदले बिना परिवर्तित वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अपने काम करने के तरीकों को बदलें, अधिक से अधिक छात्रों को एआईएसएफ की ओर आकर्षित करें और जुझारू संघर्षों के जरिए छात्र आन्दोलन को गति तथा देश की राजनीति को देशा दें।
समारोह को सम्बोधित करते हुए एआईएसएफ के पूर्व अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल कुमार अंजान ने देश के करोड़ों किसानों की ओर से समारोह का अभिनन्दन करते हुए अपने संस्मरणों के जरिये नई पीढ़ी को संघर्षों के लिए प्रेरित किया।
समारोह के औपचारिक उद्घाटन के पहले छेदी लाल धर्मशाला में एक चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया तथा झंडोत्तोलन प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा एआईएसएफ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरसिम्हा रेड्डी ने किया।
समारोह में ”लोक संघर्ष“ पत्रिका के एआईएसएफ पर केन्द्रित अंक का विमोचन भाकपा के उप महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने किया।
समारोह के दूसरे सत्र में एआईएसएफ की विभिन्न पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले देश की विभिन्न हिस्सों से आये तमाम राजनीतिज्ञों, न्यायविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शिक्षकों, वकीलों, शिक्षाशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, कलाकारों, साहित्यकारों तथा मजदूर नेताओं आदि का अभिनन्दन किया गया।
सायंकाल सांस्कृतिक समारोह आयोजित होगा जिसकी शुरूआत लखनऊ इप्टा के कलाकार ”किस्सा एक लाश का“ नाटक प्रस्तुत कर करेंगे। तत्पश्चात् विभिन्न राज्यों से आये छात्र अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे।
Saturday, August 6, 2011
ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत च युद्धं करोति
हालांकि बराक ओबामा ने रेटिंग तय करने की प्रक्रिया पर ही सवालिया निशान लगा दिया है परन्तु यह सवालिया निशान तब क्यों नहीं लगाया गया जब इसी प्रक्रिया के तहत अमरीका को ट्रिपल ए रेटिंग मिली थी जिसके सहारे वह दुनियां भर के तमाम देशों से ऋण लेकर अमरीकी पूंजीपतियों को सहायता प्रदान कर रहा था और दुनियां के तमाम देशों के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए सैनिक अभियान चला रहा था।
अनीश्वरवादी प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक चार्वाक के दर्शन को तत्कालीन राजव्यवस्था के सिपहसालार दार्शनिकों ने विकृत करते हुए जिन कल्पित उक्तियों को चार्वाक के विचार बता कर बहुत तेजी से भारतीय जनमानस के दिमागों में बैठाने की कोशिश की थी उनमें से एक प्रसिद्ध उक्ति थी - ‘ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत’। चार्वाक की न होते हुए भी जिन उक्तियों को जनमानस के मध्य फैलाया गया, उसका प्रमुख उद्देश्य था चार्वाक और उनके अनुयाईयों की छवि को धूमिल करना। इस उक्ति के पीछे का मंतव्य था कि चार्वाक उद्यमितता को समाप्त कर ऋण लेकर ऐश करने की शिक्षा देते हैं। पहले विश्वयुद्ध के समय से ही अमरीकी प्रशासन ने इस उक्ति को अंगीकार ही नहीं बल्कि इसका विस्तार कर दिया था - ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत च युद्धं करोति। पता नहीं क्यों दुनिया भर की सरकारें अमरीकी सरकार के पास ट्रिलियन अमरीकी डालरों को ऋण एवं बांड निवेश के जरिये सौंपे हुए हैं और उसके बावजूद भी उसके वर्चस्व को स्वीकार करने के लिए व्याकुल रहती हैं? इन कर्जों के सहारे ही अमरीकी अर्थव्यवस्था फलती फूलती ही नहीं रही है बल्कि दूसरे देशों पर प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की जंग भी लड़ती रही है।
रविवार 7 अगस्त के भारतीय अखबारों ने अति प्रमुखता के साथ इस समाचार को छापते हुए तमाम काल्पनिक संकटों का जिक्र किया है। सही है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी हमेशा की तरह इस अवसर को भी मुनाफा वसूली के लिए प्रयोग करेगी जिससे दुनिया भर के शेयर बाजारों में निवेशकों का लुटना तय है। संभव है कि शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिले। हो सकता है कि सोने की दाम पहले बढ़ाये जायें और दुनिया के निवेशक जब उसमें निवेश करने लगें तो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी वहां भी मुनाफा वसूली कर सोने के भावों को भी औकात दिखा दे। हो सकता है कि अमरीकी डालर का अवमूल्यन भी आने वाले वक्त में हो जिससे तमाम देशों के पास अमरीकी डालरों के विदेशी मुद्रा भंडार की कीमत कम हो जाये। हो सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी जिंसो के वायदा बाजार यानी सट्टा बाजार में भी उठा-पटक करे। जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी को पूरे भूमंडल में स्वच्छंदता से तेज गति से भ्रमण करने का मौका मुहैया कराया गया है, उसमें बार-बार ऐसा होना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह भी संभव है कि भारतीय जनमानस के पैसे पर शिक्षा प्राप्त कर अमरीकी पूंजीवाद की चाकरी कर रहे तमाम भारतीय बेरोजगार होकर अपने देश लौटने को विवश हों और यहां आकर वे यहां के बेरोजगारी के संकट को और तीव्र और गहरा कर दें।
इस घटना ने एक बार फिर पूंजीवाद के अंतर्निहित संकटों को उभार कर यह साबित कर दिया है कि पूंजीवाद का अंतिम विकल्प मार्क्सवाद के जरिये ही प्राप्त किया जा सकता है। इन संकटों का जिक्र पूंजीवाद के पैदा होते ही मार्क्स ने कर लिया था और उनका जिक्र अपनी तमाम रचनाओं में किया है। तमाम लातिन अमरीकी तथा एशियाई देश अगर चाहें तो इन परिस्थितियों का उपयोग कर भूमंडल पर अमरीका के वर्चस्व को समाप्त कर सकते हैं। वे केवल अमरीका के पास रखे अपने पैसे का भुगतान जितनी जल्दी संभव हो वापस लेने का निर्णय लें क्योंकि कर्ज के सहारे चल रही अमरीकी अर्थव्यवस्था और अमरीकी पूंजीवाद से निजात पाने का इस समय एक अच्छा मौका है। ऋणों के सहारे किसी अर्थव्यवस्था को दीर्घावधि तक नहीं चलाया जा सकता।
- प्रदीप तिवारी
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