इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (यूनेस्को),पेरिस
विश्व रंगमंच दिवस संदेश : 27 मार्च, 2011
मानवता की सेवा में रंगमंच
जेसिका ए. काहवा
नाट्य विशेषज्ञ, युगांडा
आज की सभा समुदायों को समूहबन्द करने और विभाजन पाटने की रंगमंच की असीम क्षमता का सच्चा प्रतिबिम्बन है।
क्या आपने कभी कल्पना की है कि रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार हो सकता है? दुनिया के हिंसक संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शान्ति रक्षा के लिए राष्ट्र भारी-भरकम रकम खर्च करते हैं लेकिन संघर्ष के रूपान्तरण और प्रबन्धन हेतु विकल्प के रूप में रंगमंच की ओर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। धरती मां के नागरिकों को कैसे सार्वभौमिक शान्ति की प्राप्ति हो सकती है, जब इसके औजार बाहरी हों और दिखावटी दमनकारी ताकतों से आ रहे हों?
रंगमंच लोगों की आत्म-छवि की पुर्नरचना कर मानव आत्मा में बारीकी से प्रवेश करता है और इस तरह व्यक्ति तथा परिणामतः समाज के लिए विकल्पों की दुनिया उद्घाटित करता है। अनिश्चित भविष्य की पहले से पहचान कर यह रोजमर्रा की वास्तविकता को अर्थ दे सकता है। यह सीधे-सादे तरीके से लोगों के हालात की राजनीति में शामिल हो सकता है। अपनी समावेशी विशेषता के कारण यह ऐसा अनुभव प्रस्तुत करता है, जो पहले की मिथ्या धारणाओं का अतिक्रमण करता हो।
साथ ही साथ रंगमंच ऐसे विचारों की तरफदारी करने और उन्हें आगे बढ़ाने का सिद्ध माध्यम है, जो सामूहिक रूप से हमारे हैं और उन पर हमला होने की दशा में हम उनके लिए लड़ने की इच्छा रखते हैं।
एक शान्तिपूर्ण भविष्य की प्रत्याशा में हमें उन माध्यमों का प्रयोग शुरू करना चाहिए, जो शान्ति के लिए तत्पर हर व्यक्ति के योगदान को सम्मान व महत्व दे सकें। रंगमंच वह सार्वभौमिक भाषा है, जिससे हम शान्ति और सामंजस्य के संदेश को अगो ले जा सकते हैं।
प्रतिभागियों को सक्रिय रूप से शामिल कर रंगमंच तमाम लोगों को पूर्व अवधारणाओं को विखण्डित करने के लिए प्रेरित कर सकता है और पुर्नअन्वेषित ज्ञान व वास्तविकता पर आधारित विकल्प प्रस्तुत कर व्यक्ति को नवोन्मेष का अवसर देता है। हमें अन्य कला रूपों की तरह रंगमंच की उन्नति के लिए इसे संघर्ष व शान्ति के नाजुक मुद्दों से जोड़कर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने को मज़बूत कदम उठाने चाहिए।
समुदायों के सामाजिक रूपान्तरण व पुर्नरचना के प्रति सम्बद्ध रंगमंच पहले से ही युद्धग्रस्त क्षेत्रों और दीर्घकालीन गरीबी व बीमारी से पीड़ित आबादियों के बीच मौजूद है। सफलता की दिन-दिन बढ़ती ऐसी कहानियां हैं, जो ये बताती हैं कि रंगमंच सजगता का निर्माण करने व युद्धोत्तर घावों से ग्रस्त लोगों की मदद करने में सक्षम रहा है। “इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मंच मौजूद हैं, जिनका लक्ष्य शान्ति और मित्रता के लिए जनता को एकजुट करना है।”
ऐसे में यह हास्यास्पद है कि हमारे जैसे समय में रंगमंच की शक्ति का ज्ञान होते हुए हम चुप रहें और बन्दूक-बमबाजों को अपनी दुनिया के शान्तिरक्षक बने रहने दें। अलगाव के हथियारों को कैसे शान्ति-सामंजस्य के उपकरणों के रूप में प्रोत्साहित करते रहें?
इस विश्व रंगमंच दिवस पर मैं आपसे आग्रह करती हूं कि इस परिप्रेक्ष्य पर विचार करें और संवाद, सामाजिक रूपान्तरण एवं सुधार का सार्वभौमिक उपकरण बनाने के लिए रंगमंच को आगे बढ़ायें। एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र संघ हथियारों के इस्तेमाल से दुनिया में शान्ति मिशनों पर अकूत धन खर्च कर रहा है, वहीं रंगमंच एक स्वतः स्फूर्त मानवीय, कम खर्चीला और अधिक सशक्त विकल्प है।
शान्ति लोगों के लिए रंगमंच ही अकेला उपाय नहीं लेकिन इसे निश्चित रूप से शान्ति रक्षा अभियानों में शामिल करना चाहिए।
(अनुवाद एवम् प्रस्तुति : जितेन्द्र रघुवंशी)
विश्व रंगमंच दिवस संदेश : 27 मार्च, 2011
मानवता की सेवा में रंगमंच
जेसिका ए. काहवा
नाट्य विशेषज्ञ, युगांडा
आज की सभा समुदायों को समूहबन्द करने और विभाजन पाटने की रंगमंच की असीम क्षमता का सच्चा प्रतिबिम्बन है।
क्या आपने कभी कल्पना की है कि रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार हो सकता है? दुनिया के हिंसक संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शान्ति रक्षा के लिए राष्ट्र भारी-भरकम रकम खर्च करते हैं लेकिन संघर्ष के रूपान्तरण और प्रबन्धन हेतु विकल्प के रूप में रंगमंच की ओर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। धरती मां के नागरिकों को कैसे सार्वभौमिक शान्ति की प्राप्ति हो सकती है, जब इसके औजार बाहरी हों और दिखावटी दमनकारी ताकतों से आ रहे हों?
रंगमंच लोगों की आत्म-छवि की पुर्नरचना कर मानव आत्मा में बारीकी से प्रवेश करता है और इस तरह व्यक्ति तथा परिणामतः समाज के लिए विकल्पों की दुनिया उद्घाटित करता है। अनिश्चित भविष्य की पहले से पहचान कर यह रोजमर्रा की वास्तविकता को अर्थ दे सकता है। यह सीधे-सादे तरीके से लोगों के हालात की राजनीति में शामिल हो सकता है। अपनी समावेशी विशेषता के कारण यह ऐसा अनुभव प्रस्तुत करता है, जो पहले की मिथ्या धारणाओं का अतिक्रमण करता हो।
साथ ही साथ रंगमंच ऐसे विचारों की तरफदारी करने और उन्हें आगे बढ़ाने का सिद्ध माध्यम है, जो सामूहिक रूप से हमारे हैं और उन पर हमला होने की दशा में हम उनके लिए लड़ने की इच्छा रखते हैं।
एक शान्तिपूर्ण भविष्य की प्रत्याशा में हमें उन माध्यमों का प्रयोग शुरू करना चाहिए, जो शान्ति के लिए तत्पर हर व्यक्ति के योगदान को सम्मान व महत्व दे सकें। रंगमंच वह सार्वभौमिक भाषा है, जिससे हम शान्ति और सामंजस्य के संदेश को अगो ले जा सकते हैं।
प्रतिभागियों को सक्रिय रूप से शामिल कर रंगमंच तमाम लोगों को पूर्व अवधारणाओं को विखण्डित करने के लिए प्रेरित कर सकता है और पुर्नअन्वेषित ज्ञान व वास्तविकता पर आधारित विकल्प प्रस्तुत कर व्यक्ति को नवोन्मेष का अवसर देता है। हमें अन्य कला रूपों की तरह रंगमंच की उन्नति के लिए इसे संघर्ष व शान्ति के नाजुक मुद्दों से जोड़कर रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने को मज़बूत कदम उठाने चाहिए।
समुदायों के सामाजिक रूपान्तरण व पुर्नरचना के प्रति सम्बद्ध रंगमंच पहले से ही युद्धग्रस्त क्षेत्रों और दीर्घकालीन गरीबी व बीमारी से पीड़ित आबादियों के बीच मौजूद है। सफलता की दिन-दिन बढ़ती ऐसी कहानियां हैं, जो ये बताती हैं कि रंगमंच सजगता का निर्माण करने व युद्धोत्तर घावों से ग्रस्त लोगों की मदद करने में सक्षम रहा है। “इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मंच मौजूद हैं, जिनका लक्ष्य शान्ति और मित्रता के लिए जनता को एकजुट करना है।”
ऐसे में यह हास्यास्पद है कि हमारे जैसे समय में रंगमंच की शक्ति का ज्ञान होते हुए हम चुप रहें और बन्दूक-बमबाजों को अपनी दुनिया के शान्तिरक्षक बने रहने दें। अलगाव के हथियारों को कैसे शान्ति-सामंजस्य के उपकरणों के रूप में प्रोत्साहित करते रहें?
इस विश्व रंगमंच दिवस पर मैं आपसे आग्रह करती हूं कि इस परिप्रेक्ष्य पर विचार करें और संवाद, सामाजिक रूपान्तरण एवं सुधार का सार्वभौमिक उपकरण बनाने के लिए रंगमंच को आगे बढ़ायें। एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र संघ हथियारों के इस्तेमाल से दुनिया में शान्ति मिशनों पर अकूत धन खर्च कर रहा है, वहीं रंगमंच एक स्वतः स्फूर्त मानवीय, कम खर्चीला और अधिक सशक्त विकल्प है।
शान्ति लोगों के लिए रंगमंच ही अकेला उपाय नहीं लेकिन इसे निश्चित रूप से शान्ति रक्षा अभियानों में शामिल करना चाहिए।
(अनुवाद एवम् प्रस्तुति : जितेन्द्र रघुवंशी)