Friday, February 28, 2014

वीरप्पा मोइली का दांव खाली गया: सर्राफ बने ओएनजीसी के प्रमुख.

आखिर एक लम्बी जद्दोजहद के बाद ओएनजीसी(विदेश)के प्रमुख श्री सर्राफ को ओएनजीसी के सीएमडी पद पर नियुक्ति मिल ही गयी. कई माह पूर्व चयनबोर्ड ने इस महत्त्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने सारे कायदे कानूनों को ताक पर रख कर आज सेवा निवृत्त होने जारहे श्री वासुदेव को एक साल के लिये सेवा विस्तार देने की संस्तुति की थी. इससे ओएनजीसी का हित चाहने वालों में खलबली मच गयी थी, क्योंकि इस कार्यवाही में स्पष्टतः भ्रष्टाचार की गंध आरही थी. ठीक उसी तरह जैसे कि के.जी.बेसिन से निकाली जाने वाली गैस की कीमतों को ४.८ प्रति यूनिट से बड़ा कर ८.४ डालर प्रति यूनिट कर वीरप्पा ने रिलाइंस समूह के मुखिया श्री मुकेश अम्बानी को और भी मालामाल करने का रास्ता साफ कर दिया. ओएनजीसी सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण उद्योग है जिसकी गिनती नवरत्न उद्योगों में होती है. यदि इसके मुखिया की नियुक्ति भ्रष्ट तौर तरीकों से हो तो इसमें भारी भ्रष्टाचार की भारी सम्भावनायें पैदा हो जाती हैं. चूंकि गत माह भारी उद्योग मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल भेल के प्रमुख को सेवा विस्तार दिलाने में कामयाब हो गये थे, अतएव सार्वजनिक क्षेत्र के शुभ चिंतकों में यही कहानी ओएनजीसी में दोहराए जाने को लेकर काफी चिंता व्याप्त थी. लेकिन इन दोनों ही मामलों पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत सारी पार्टियाँ चुप्पी सादे रहीं. यहाँ तक कि ‘आप’ भी खामोश बनी रही. मामले को गंभीरता से लेते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे न केवल उजागर किया अपितु इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाया. भाकपा सांसद का. गुरुदास दासगुप्त ने मामलों को संसद में तो उठाया ही एक के बाद एक कई पत्र लिख कर प्रधानमन्त्री से हस्तक्षेप की मांग की. गैस घोटाले पर उन्होंने एक पुस्तिका भी प्रकाशित की और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होनी है. इन पंक्तियों के लेखक ने भी पेट्रोलियम मंत्रालय के इन घपलों की प्रभावी जांच की मांग की. लेकिन भाकपा के इन प्रयासों को कुछ समाचार पत्रों एवं न्यूज चेनल्स ने ही महत्त्व दिया. उन्हें बधाई. लेकिन शेष मीडिया ख़ामोशी अख्तियार किये रहा. लेकिन जब श्री केजरीवाल ने अपनी सरकार को शहीद करने के पहले कुछ मुद्दे खड़े करना जरूरी समझा तो उन्होंने के.जी. गैस मामले को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो में एफ़ाइअर दर्ज करा दी. सभी जानते हैं कि एसीबी इस मामले की जाँच करने का अधिकारी नहीं था. लेकिन सारा मीडिया उन्हें हीरो बनाने में जुट गया. मगर कई ने कहा कि यह मुद्दे तो भाकपा नेता ने उठाये थे. अब जब कि भारी शोर शराबे के चलते और सीवीसी द्वारा वासुदेव को सेवा विस्तार देने की संस्तुति न करने पर सरकार को श्री सर्राफ को नियुक्तिपत्र देना पड़ा तो मीडिया के कुछ हिस्से इन मुद्दों को भाकपा के हाथ से छीनने में जुट गये. भाजपा के एक अंध समर्थक अख़बार ने लिखा कि इस मामले को वामपंथी दलों और भाजपा ने उठाया था जबकि भाजपा के किसी नेता ने मामले पर आज तक मुहं नहीं खोला. कुछ ही दिनों से लखनऊ और आगरा से प्रकाशित हो रहे एक टटपूंजिया अख़बार के सम्पादकीय प्रष्ट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि गैस घोटाला केजरीवाल ने खोला. इस लेख के विद्वान् लेखक भूल गये या उन्होंने जानबूझ कर यह छिपाया कि इस मामले पर भाकपा पिछले ९ माह से अनवरत लड़ाई लड़ रही थी. सम्पादक महोदय ने भी निष्पक्षता जताने का कोई प्रयास नहीं किया. अब मीडिया ही इस स्थिति पर चर्चा करे तो अच्छा है कि वह कितना निष्पक्ष है. डॉ.गिरीश

ओला और बारिश से बरबाद फसल का मुआबजा दिये जाने को भाकपा ने लिखा मुख्यमंत्री को पत्र.

लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने हाल के दिनों में समूचे उत्तर प्रदेश में हुई बेमौसम बारिश एवं प्रदेश के कई भागों में हुई ओलावृष्टि से किसानों की फसल की बरबादी की एवज में हानि का सौफीसद मुआबजा देने की मांग राज्य सरकार से की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि पिछले दो माहों में प्रदेश में लगातार बारिश होती रही है, और दो दिन पहले झाँसी एवं ललितपुर जनपदों में भारी पैमाने पर ओलावृष्टि हुई है. प्रदेश के अन्य कई जिलों में भी इस माह अलग- अलग समय पर ओलावृष्टि हुई है. इससे झाँसी एवं ललितपुर में तो समूची फसल ही नष्ट होचुकी है और अन्य जिलों में भी फसल का काफी नुकसान हुआ है. पूरे प्रदेश में आलू, तिलहन. दलहन, हरी मटर और दूसरी फसलों को भारी क्षति पहुंची है और किसान बेहद संकट में आगये हैं. पीड़ित किसानों ने आज ललितपुर जिले में झाँसी- सागर राष्ट्रीय मार्ग पर जाम लगा दिया. अन्य जगहों पर भी किसान आन्दोलन की राह पकड़ रहे हैं. डॉ. गिरीश ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर इस समूची स्थिति से अवगत कराया है और मांग की है कि इस फसल हानि का शत- प्रतिशत मुआबजा किसानों को फौरन दिलाया जाये. उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्राकृतिक आपदा से पीड़ित किसानों को यथाशीघ्र राहत प्रदान नहीं की गयी तो भाकपा भी किसानों के साथ मिल कर आन्दोलन करने को बाध्य होगी. भाकपा ने अपनी समस्त जिला समितियों को निर्देश दिया है कि वे किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके हित की आवाज उठाएँ.

Monday, February 24, 2014

केजरीवाल का न दक्षिण न वाम - दक्षिणपंथ ही है.

केजरीवाल का न दक्षिण न वाम- दक्षिणपंथ ही है. आपात्काल के दिनों में स्व.श्री संजय गाँधी ने नारा दिया था- न वामपंथ न दक्षिणपंथ. तब हम वामपंथियों ने दो टूक कहा था कि जो वामपंथी नहीं है वह दक्षिणपंथी ही है. संजय गाँधी की इस लाइन का सार्वजनिक रूप से विरोध करने पर इन पंक्तियों के लेखक समेत कईयों को तत्कालीन शासन ने आपात्काल विरोधी घोषित कर दिया था, अतएव हमें भूमिगत होना पड़ा था. ऐसे ही नायाब विचार अब आम आदमी पार्टी(आप) के नेता अरविन्द केजरीवाल ने व्यक्त किये हैं. दिल्ली में कन्फेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज(सीआइआइ) की बैठक में केजरीवाल ने कहा कि वे न तो पूंजीवाद के खिलाफ हैं न निजीकरण के. कारोबार में सरकार का कोई काम नहीं है. ......यह सब निजी क्षेत्र के लिये छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्होंने इंस्पेक्टर राज एवं लाइसेंस राज के खिलाफ होने की घोषणा भी की. इससे पहले वे यह भी कह चुके हैं कि हम न तो पूंजीवादी हैं न समाजवादी या वामपंथी. हम तो बस आम आदमी हैं और किसी खास विचारधारा से जुड़े हुए नहीं हैं. अपनी समस्याएं हल करने के लिए चाहे दक्षिण हो या वाम, हम किसी भी विचारधारा से विचार उधार ले सकते हैं. केजरीवाल और उनके समर्थकों को यह बताया जाना जरूरी है कि पूंजीवाद का अस्तित्व और विकास आम आदमी के शोषण पर टिका है. आम आदमी का विकास और उत्थान समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है. और समाजवादी व्यवस्था का आधार सार्वजनिक क्षेत्र है निजीकरण नहीं. फिर पूंजीवाद और निजीकरण की वकालत करके केजरीवाल किस आम आदमी की बात कर रहे हैं? वैसे तो वे आम आदमी की परिभाषा भी गढ़ चुके हैं- “ग्रेटर कैलाश(दिल्ली के धनाढ्य लोगों की आबादी) से लेकर झुग्गी- झोंपड़ियों तक जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है वह आम आदमी है”. वे शेर और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाना चाहते हैं. यह पूंजीवाद का ही कानून है. केजरीवाल का यह कथन कि सरकार का कारोबार में कोई काम नहीं और तमाम कारोबार निजी क्षेत्र के लिये छोड़ दिया जाना चाहिए,उनके उस नवउदारवादी द्रष्टिकोण का ही परिचायक है जिसकी वकालत हूबहू इन्हीं तर्कों के साथ कांग्रेस और भाजपा दशकों से करती आरही हैं. इस नजरिये का तो सीधा अर्थ है कि सभी आर्थिक गतिविधियाँ और उनके सभी क्षेत्र बाजार से संचालित होने चाहिये. यहाँ तक कि बिजली पानी की आपूर्ति और सार्वजनिक परिवहन जैसी बुनियादी सेवायें भी. केजरीवाल ने कहा है कि इस बात की जरूरत है कि सरकार ऐसी अच्छी नियामक व्यवस्था कायम करे कि कारोबार और उद्यम खेल के नियमों के हिसाब से चलें. यह उनकी एक अच्छी कपोल-कल्पना है. अब तक के अनुभव तो यही बताते हैं कि कारोबारी और उद्यमी सरकारों की सदाशयता हासिल कर अपने मुनाफे और पूँजी का आकार बढ़ाते हैं और केजरीवाल जैसे दार्शनिक उनके फायदे के लिये वैचारिक प्रष्ठभूमि बनाने में जुटे रहते है. वैसे भी यह नव-उदारीकरण के मॉडल का ही हिस्सा है, जिसके तहत बड़ी पूँजी के हितों को आगे बढ़ाया जाता है. केजरीवाल ने दिल्ली की बिजली और पानी के निजीकरण के अपने विरोध को भी भुला दिया है. आखिर क्यों? केजरीवाल ने यह भी कहा कि वह केवल दरबारी पूंजीवाद के खिलाफ हैं, पूंजीवाद के खिलाफ नहीं.उन्होंने दिल्ली में अंबानी सन्चालित बिजली आपूर्ति कम्पनियों के खिलाफ और रिलायंस गैस मूल्य निर्धारण के मुद्दे पर अपनी लड़ाई को दरबारी पूंजीवाद के खिलाफ बताया. वे इस बात पर अनजान बने हुये हैं कि बड़े पैमाने पर दरबारी पूंजीवाद का पनपना नव-उदारवादी व्यवस्था की ही देन है, जो प्राक्रतिक संसाधनों की लूट को आसान बनाती है और पूरी तरह बड़े पूंजीपतियों के लिए मुनाफा बटोरने का रास्ता बनाती है. यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि केजरीवाल को एन आर आई, निर्यातकों तथा उद्योग घरानों से जो चंदा मिलता है वह यह जान कर ही मिलता है कि वे वामपंथी नहीं हैं. वे ही लोग वामपंथियों को फूटी आंखों नहीं देखना नहीं चाहते. अतएव आप भले ही न वामपंथ न दक्षिणपंथ कह कर अपने को तटस्थ और भोला साबित करने की कोशिश करे अब तक के उसके बयान एवं कारगुजारियां उसे पूंजीवाद और आज के नव-उदारवाद के हितैषी के रूप में ही पेश करती हैं. डॉ. गिरीश, राज्य सचिव भाकपा, उत्तर प्रदेश

Friday, February 21, 2014

राहुल गाँधी के चुनाव क्षेत्र में भाकपा का धरना.

मुसाफिरखाना(अमेठी)- गरीब और आम आदमी की ज्वलंत समस्यायों, कानून व्यवस्था की बिगडी हालात और भाकपा नेता का० शारदा पाण्डेय के विरुध्द कोतवाली मुसाफिरखाना में दलालों के दबाब में दर्ज किये गये फर्जी मुकदमे के विरुध्द भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय खेत मजदूर यूनियन, अ० भा० किसान सभा, अ० भा० नौजवान सभा एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के लगभग २५० कार्यकर्ताओं ने मुसाफिरखाना तहसील के प्रांगण में धरना दिया एवं एक आमसभा की. सभा के मुख्यवक्ता भाकपा के राज्य सचिव डॉ० गिरीश थे. सभा को सम्बोधित करते हुये डॉ० गिरीश ने कहाकि आज केंद्र की सरकार द्वारा चलाई जारही नीतियों से जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार आये दिन डीजल पेट्रोल एवं रसोई गैस के दाम बढ़ाती रहती है. इस कारण और सरकार के दुसरे कदमों के कारण महंगाई आसमान छू रही है. आम जनता का जीवन दूभर होगया है. इस सरके के नौ वर्ष के शासनकाल में घपलों-घोटालों और भ्रष्टाचार की तो मानो बाढ़ सी आगयी है. बेरोजगारी बढ़ी है और शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है,जिसके बेहद महंगा होजाने के कारण आमजन शिक्षा से वंचित रह जारहे हैं. सरकार की जनविरोधी नीतियों और कारगुजारियों के चलते जनता में भारी आक्रोश है जिसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में निश्चय ही भुगतना होगा, जनता के इस गुस्से को भाजपा अपने पक्ष में भुना कर सत्ता पर कब्जा करने की हर कोशिश में जुटी है. उसने देश और दुनियां के पूंजीपतियों, उद्योगपतियों एवं कार्पोरेट घरानों के सबसे चहेते नरेंद्र मोदी को चुनावों से पहले ही प्रधानमन्त्री पद का प्रत्याशी बना दिया है जबकि हमारे यहाँ संसदीय जनतंत्र है जिसमें चुनाव के बाद सांसदों के बहुमत द्वारा चुना गया व्यक्ति ही प्रधानमन्त्री बनता है. वे मोदी को चाय बेचनेवाले के रूप में प्रचारित कर रहे हैं ताकि गरीबों को बहकाया जासके और इस बात पर पर्दा डाला जासके कि मोदी की रैलियों और भाजपा के प्रचार अभियान में बहाया जारहा अरबों रुपया आखिर कहां से आरहा है. डॉ० गिरीश ने कहाकि सवाल यह नहीं है कि कोई चाय बेचता रहा है या चावल. सवाल यह है कि उसकी नीतियां चाय बेचने वाले जैसे गरीबों के पक्ष में खड़ी हैं या गरीबों को लूटने वाले धनपतियों के पक्ष में. ये मोदी नामक तत्व तो पूरी तरह धनपतियों का रक्षक है. डॉ० गिरीश ने कहाकि वैसे भी भाजपा की आर्थिक नीतियों और कांग्रेस की नीतियों में कोई फर्क नहीं हैं. भाजपा नाम की मुर्गी के पेट से भी वही अंडा निकलेगा जो आज कांग्रेस के पेट से बाहर आरहा है. यह पार्टी भी महंगाई, भ्रष्टाचार बढ़ाने एवं सांप्रदायिकता फेलाने के लिये सुविख्यात है. यह जो सत्ता पर कब्जा करने के मंसूबे बांध रही है वो धुल-धूसरित होकर रहेंगे. डॉ० गिरीश ने कहाकि आम जनता भ्रष्टाचार से बुरी तरह त्रस्त है और उसे पूरी तरह समाप्त करना चाहती है. वह कांग्रेस, भाजपा एवं दूसरी पूंजीवादी पार्टियों से भी बुरी तरह परेशान है और एक जन हितेषी राजनैतिक विकल्प की तलाश में है. अपनी इसी ख्वाहिश के चलते जनता ने दिल्ली विधानसभा के चुनावों में आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया. लेकिन सरकार बनाने के बाद वे न तो अपने चुनावी वायदे पूरे कर पाये न ही सत्ता में बने रह पाये. अब उद्योगपतियों की बैठक में जाकर उन्होंने यह भी ख डाला कि न तो वह पूंजीपतियों के खिलाफ हैं न ही निजीकरण के. उन्होंने अपना यह मन्तव्य भी उजागर कर दिया की वह सरकार के द्वारा उद्योग चलाये जाने के पक्ष में नहीं है. यह वही विचार है जिसे कांग्रेस और भाजपा अपनी विनाशकारी नई आर्थिक नीतियों को जायज ठहराने के लिये प्रकट करती रही हैं. उन्होंने स्पष्ट कियाकि कोई या तो पूँजीवाद का पैरोकार हो सकता है अथवा गरीबों का. कोई पूँजीवाद का समर्थक हो सकता है या समाजवाद का. आज यह स्पष्ट होगया है कि केजरीवाल और उनकी मंडली पूंजीवाद के पक्ष में खड़ी है और उन्हीं की पैरोकार है. भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि आज ऊतर प्रदेश की सरकार भी हर मोर्चे पर विफल होचुकी है. कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है. किसान-कामगार तवाह होरहे हैं. वे आर्थिक बदहाली के चलते आत्महत्यायें कर रहे हैं. मुजफ्फरनगर शामली एवं मेरठ के दंगों सहित १४० दंगे सपा के शासनकाल में होचुके हैं जिन्हें रोकने में सरकार पूरी तरह नाकमयाब रही है. प्रदेश की सत्ता मफियायों, दलालों और दबंगों के हाथों में कैद है. ऐसे ही लोगों के कहने पर भाकपा के जुझारू नेता का० शारदा पाण्डेय के खिलाफ फर्जी मुकदमे लिखे जारहे हैं और उनको गरीबों का साथ छोड़ने अथवा जान से हाथ धोने की धमकियां दी जारही है. डॉ० गिरीश ने चेतावनी देते हुए कहाकि यदि का० शारदा पांडे के खिलाफ कुछ भी हुआ तो उत्तर प्रदेश सरकार की चूलें हिला दी जायेंगी. भाकपा सुल्तानपुर के जिला सचिव का० शारदा पाण्डेय ने कहाकि आजादी के ६५ साल बाद भी किसान मजदूर गरीब मेहनतकश आवश्यक सुविधाओं से वंचित हैं. भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य, मजदूर को उसका सही हक मनरेगा के तहत काम, अत्यंत गरीबों को बीपीएल के तहत मिलने वाला अनाज, राशनकार्ड नहीं मिल रहा. नौजवानों को रोजगार और गरीबों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखा जारहा है. भाकपा आज ही नहीं अपने जन्म से ही इन सवालों पर संघर्ष करती रही है और करती रहेगी आज भाकपा को और मजबूती प्रदान करने की जरूरत है. सभा के बाद एक ९ सूत्रीय ज्ञापन जो मुख्यमंत्री को सम्बोधित था उपजिलाधिकारी को सौंपा गया. सभा को देव पाल सिंह एडवोकेट, जियालाल कोरी, रामदेव कोरी, रामप्यारे पांडे, रोशनलाल प्रधान, श्यामदेवी, नीलम, मीणा देवी, राम्सुधारे पासी, रामतीर्थ पासी, छितईराम पासी, बीडी रही, राकेश पासी, श्रीपाल पासी, एवं लल्लन पाल आदि ने सम्बोधित किया.

Thursday, February 13, 2014

के.जी. गैस के दाम बढ़ाने और ओ.एन.जी.सी. के चेयरमैन का कार्यकाल बढाने की कोशिशों की हो प्रभावी जाँच.

लखनऊ—१३, फरबरी- २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डॉ०गिरीश ने कहाकि के.जी. बेसिन में अम्बानी की कम्पनी रिलाइंस इण्डिया लिमिटेड के लिये गैस की कीमतें दो गुनी करने के मामले एवं चुनाव वर्ष में तेल एवं प्राक्रतिक गैस आयोग(ONGC) के मौजूदा चेयरमैन को सारे नियमों को ताक पर रख कर एक साल के लिये पुनर्नियुक्ति दिलाने के प्रयासों से यह साबित हो गया है कि पेट्रोलियम मंत्रालय भारी भ्रष्टाचार में डूबा है. डॉ० गिरीश ने इस मंत्रालय के साढ़े चार साल के क्रिया कलापों की प्रभावी, विश्वासप्रद एवं उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है. उन्होंने कहाकि दोनों ही सवाल अत्यधिक लोक महत्व के हैं और दोनों में लोकधन के अपव्यय एवं भारी भ्रष्टाचार की तमाम सम्भावनायें नजर आरही हैं अतएव भाकपा के वरिष्ठ सांसद एवं ए.आई.टी.यू.सी. के महासचिव का० गुरुदास दासगुप्त ने पिछले आठ माहों में इन मामलों को बार-बार उजागर किया. उन्होंने गैस के मुद्दे को लोक सभा में उठाया, कई बार प्रधान मंत्री को चिट्ठियां लिखीं, पूरे मसले पर एक पुस्तिका प्रकाशित की तथा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होना वांच्छित है. इसी तरह जब पेट्रोलियम मंत्री ने सारे कायदे कानूनों और स्थापित परम्पराओं को दरकिनार कर ओ.एन.जी.सी.के मौजूदा चेयरमैन के कार्यकाल को एक वर्ष आगे बढ़ाने और नियमानुसार गठित पैनल द्वारा नयी नियुक्ति के लिए की गई संसुति को निष्प्रभावी करने की कोशिश की तो का० गुरुदास ने इस मामले को भी पूरी शिद्दत से उठाया और एक नहीं दो-दो बार इस सम्बन्ध में भी प्रधानमंत्री को चिट्ठियां लिखीं. अब दिल्ली की सरकार द्वारा गैस मामले पर ऍफ़.आई.आर. दर्ज करा देने से मीडिया ने भी खासी कवरेज दी है और जनता पेट्रोलियम मंत्रालय के भीतर क्या कुछ चल रहा है, जानना चाहती है. डॉ० गिरीश ने कहाकि वैसे तो कांग्रेस अथवा भाजपा दोनों के ही शासनकाल में अधिकतर पेट्रोलियम मंत्री अम्बानी की पसंद के आधार पर ही बनते रहे हैं, लेकिन इस बार हस्तक्षेप कुछ अधिक ही है. अतएव जनता के सामने सच्चाई आनी ही चाहिये.

Tuesday, February 11, 2014

LATHI-CHARGE ON STUDENTS CONDEMNED

The Central Secretariat of the Communist Party of India has issued following statement to the press:

The Secretariat of the Communist Party of India severely condemns the lathi-charge and use of water cannons on the peaceful demonstration of All India Students Federation today afternoon at the Parliament Street. The students were organizing demonstration on the call of AISF, for proper steps to implement Right to Education, Free education from K.G. to P.G; against privatization and commercialization of Education, against foreign universities, scraping of Lyngdo Committee report and democratize elections to students unions etc.

Thousands of students gathered near the Parliament Street and wanted to submit a memorandum to Education Minister. They were prevented. Police tried to disperse them by using water cannons and later resorted to brutal Lati-Charge. Even girl students were not spared. AISF President Syed Vali Ullah Khadri and many other students were severely injured and admitted in different hospitals. CPI demands action on Police Officers responsible for lathi-charge should be suspended and action should be initiated.


(S.S.BHUSARI)

Office Secretary

Monday, February 10, 2014

सफल हड़ताल पर बैंक कर्मियों को भाकपा की बधाई

लखनऊ 10 फरवरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने वेतन पुनरीक्षण की मांग कर रहे बैंक कर्मियों की आज से शुरू हुई दो दिवसीय अखिल भारतीय हड़ताल पर बैंक कर्मचारी एवं अधिकारी संगठनों को सफल हड़ताल आयोजित करने के लिए बधाई दी है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि बैंक अधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन पुनरीक्षण की मांगें जायज हैं और केन्द्र सरकार एवं भारतीय बैंक संघ पांच प्रतिशत, साढ़े चार प्रतिशत और आधा प्रतिशत वेतन वृद्धि की बात कर यह साबित कर रहा है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता के साथ हल करना नहीं चाहते। बैंकों का आपरेटिंग मुनाफा लगातार बढ़ रहा है और नेट मुनाफे के कम बढ़ने का कारण बैंक के अधिकारी-कर्मचारी नहीं हैं बल्कि इंफ्रा सेक्टर के लिए जबरदस्ती दिलाये गये ऋण हैं जो सरकारी नीतियों के कारण एनपीए में तब्दील हो गये हैं। डा. गिरीश ने विश्वास जाहिर किया है कि वेतन कटवा कर हड़ताल करने वाली बैंक कर्मियों की क्रान्तिकारी जमात को इस बार भी सफलता मिलेगी।

लेखानुदान नहीं पूर्ण बजट पास कराये राज्य सरकार - भाकपा

लखनऊ 10 फरवरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल की एक बैठक डा. गिरीश, राज्य सचिव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक में राज्य सरकार से मांग की गई कि वह 19 फरवरी से प्रारम्भ हो रहे विधान मंडल के सत्र में पूर्ण बजट लाकर के उसे पास कराये। लेखानुदान लाने की कोई भी कोशिश न तो प्रदेश की जनता के हित में है और न ही स्वयं राज्य सरकार के हित में।
बैठक के बाद यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि ऐसी चर्चा है कि उत्तर प्रदेश सरकार विधान मंडल के आगामी सत्र में लेखानुदान लाने की कोशिश में है। चुनावों के पूर्व लेखानुदान पारित कराने की केन्द्र सरकार की तो मजबूरी होती है लेकिन राज्य सरकार के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। पूर्ण बजट पाना जनता का अधिकार है और राज्य सरकार को जनता के इस हक को नहीं छीनना चाहिए।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि इसका यह अर्थ लगाया जा रहा है कि राज्य सरकार लोकसभा चुनावों के पहले जनता के समक्ष अपनी नीतियों को घोषित करने से कतरा रही है और लेखानुदान पारित कराके अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाह रही है। जनता को भय है कि लोक सभा चुनाव के बाद सरकार निर्मम तरीके से जनविरोधी बजट लाने को स्वतंत्र होगी और जनता के ऊपर भारी भार थोपा जायेगा। विधान मंडल के वर्तमान सत्र के दौरान सरकार के पास बजट पेश करने और पास कराने के लिए पर्याप्त समय है, अतएव समयाभाव बता कर भी सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती है।
सचिव मंडल की बैठक में लोक सभा चुनावों की तैयारियों पर गम्भीरता से विचार हुआ और निर्णय लिया गया कि भाकपा इन चुनावों में वामपंथी दलों को एकजुट करने की कोशिश करेगी। अपनी चुनावी तैयारियों को गति देते हुए भाकपा ने जनता के ज्वलंत मुद्दों पर क्षेत्रीय रैलियों का आयोजन करने का निर्णय लिया है। अब तक गन्ना किसानों की समस्याओं और फिरकापरस्ती के खिलाफ 2 रैलियां आयोजित करने का निर्णय लिया जा चुका है। 15 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक रैली मेरठ के नौचंदी ग्राउन्ड पर आयोजित की जा रही है जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी भी भाग लेने के लिए आ रहे हैं। दूसरी रैली पूर्वांचल की 20 फरवरी को पड़रौना में आयोजित की जा रही है जिसमें राज्य सचिव एवं सहायक सचिव आदि नेतागण भाग लेंगे।


राज्य सचिव

Thursday, February 6, 2014

चौदहवें वित्त आयोग के समक्ष भाकपा द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन

6 फरवरी 2014
समक्ष
चौदहवां वित्त आयोग
भारत सरकार
कैम्प: लखनऊ

आयोग के सम्मानित सदस्यगण,
देश का सर्वाधिक आबादी वाला प्रान्त उत्तर प्रदेश आजादी के बाद अपेक्षित विकास नहीं कर पाया है। पिछले 25 सालों से यह अनेक क्षेत्रों में पिछड़ता चला जा रहा है। इसके लिए इन वर्षों में कार्यरत राज्य सरकारें तो दोषी हैं ही केन्द्र सरकारें भी बराबर की जिम्मेदार हैं। राज्य सरकारों ने यदि विकास की उपेक्षा की है तो केन्द्र सरकारों ने भी राज्य के प्रति सौतेलेपन से काम लिया है। वैसे तो पूरा प्रदेश ही पिछड़ा है परन्तु बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल के सभी जिले तथा मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भी कई जिले बेहद पिछड़े हैं। 
कृषि: उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है लेकिन गत वर्षों में यहां की खेती काफी पिछड़ गयी है और किसान कर्ज के जाल में डूबे हुए हैं। हजारों किसानों ने पिछले सालों में आत्महत्यायें की हैं और इससे कहीं अधिक भूख से मरे हैं। कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल लगातार सिकुड़ता जा रहा है। कृषि भूमि किसानों के हाथों से निकल कर उद्योगपतियों, व्यापारियों, भू-माफियाओं और रिश्वतखोर राजनीतिज्ञों एवं अधिकारियों के हाथों में सिमटती जा रही है। इनके द्वारा कृषि उपकरणों के अधिकाधिक प्रयोग से खेतिहर मजदूर बेकार हो गये हैं।
विधान सभा चुनावों के दौरान वर्तमान सरकार द्वारा सभी किसानों का 50,000 रूपये तक का ऋण माफ करने का वायदा किया गया था परन्तु सरकार ने केवल भूमि विकास बैंक के ऋण ही माफ किये हैं जिसके कारण तमाम छोटे किसानों के खेत आदि नीलाम हो गये। कइयों को हवालात की हवा खानी पड़ी तो कइयों ने आत्महत्या कर ली।
कृषि के लिए सिंचाई बेहद जरूरी है लेकिन 25-30 सालों में प्रदेश में नहरों, बंबों, बांधों के निर्माण का कार्य बेहद धीमा है। कहा जाये तो यह पूरी तरह उपेक्षित है। निजीकरण के इस दौर में सरकारी ट्यूबवेल लगाये नहीं जा रहे हैं। भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। सिंचाई के अभाव और भूमि सुधार लागू न किये जाने के कारण खेती दम तोड़ रही है।
औद्योगिक क्षेत्र: उत्तर प्रदेश में भारी मात्रा में कपड़ा मिलें, सूत मिलें, जूट मिलें, चमड़ा उद्योग, तेल उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, चीनी मिलें, धातु उद्योग, दाल मिलें आदि थे। उनमें से बहुमत आज बन्द पड़े हैं और उद्योगपति खाली जमीनों पर कालोनियां बसा रहे हैं। अवस्थापना सुविधाओं के अभाव में औद्योगिक क्षेत्र बर्बाद हो चुका है और तमाम इकाईयां बीमार पड़ी हैं। केन्द्रीय उपक्रमों में स्कूटर इंडिया और इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज की हालत बहुत ही खराब चल रही है तो एनटीसी की सभी मिलें बन्द हैं। इसी तरह राज्य सरकार की तमाम इकाईयां बन्द हो चुकी हैं। सहकारी और सरकारी 21 चीनी मिलें पिछली सरकार ने बेच दी और गन्ना किसानों पर संकट आ गया।
कुटीर उद्योग: यहां भारी संख्या में कुटीर उद्योग थे जिनमें सबसे प्रमुख उद्योग बुनकरी रहा है। लेकिन सरकारों की कुटीर उद्योगों एवं दस्तकारी के प्रति उपेक्षा के कारण आज ये पूरी तरह बर्बादी की कगार पर हैं। लाखों-लाख बुनकर, बीड़ी मजदूर तथा अन्य दस्तकार बेरोजगारी से ग्रस्त होने के चलते भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। असंगठित मजदूरों का तो और भी बुरा हाल है।
सड़क एवं बिजली: प्रदेश में एक ओर तो एक्सप्रेस हाईवे बनाने की परियोजनाओं पर काम चल रहा है तो दूसरी ओर तमाम अन्य सड़कों की दशा बेहद दयनीय है। राज्य की जीवन रेखा कही जाने वाली जी.टी. रोड तक अत्यधिक खराब स्थिति में है। 27 सालों में प्रदेश में बिजली की कोई नई परियोजना नहीं लगी है। अब जो परियोजनायें निर्माणाधीन हैं या बन कर तैयार हो चुकी है, उनमें निजीकरण के कारण घपले ही घपले हैं। बिजली के अभाव में प्रदेश का उद्योग और कृषि व्यापार तो चौपट हो ही गया है, बिजली की समस्या कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है। आगरा की विद्युत वितरण प्रणाली को निजी हाथों में देने से वहां अनेक समस्यायें पैदा हुई हैं। पिछले 25 सालों में सार्वजनिक क्षेत्र का एक ही उद्योग प्रदेश में शुरू नहीं किया गया।
शिक्षा: शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रदेश बेहद पिछड़ चुका है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक महंगे निजी विद्यालयों की भरमार है, जिनमें पढ़ाई की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। सरकार नियंत्रित विद्यालयों में भ्रष्टाचार, कार्य संस्कृति की पंगुता तथा सरकार की उपेक्षा के चलते शिक्षा दयनीय हालत में है। प्रदेश के किसान, मजदूर तबकों एवं आम आदमी के घरों के बच्चे उच्च शिक्षा तो दूर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा तक से वंचित है। वर्तमान शिक्षण सत्र में मिड डे मील के अंतर्गत अनाज एवं भोजन बनवाने का धन अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है।
सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों पर प्रयोगशालायें और कम्प्यूटर कक्ष तक नहीं हैं और न ही कम्प्यूटर शिक्षक ही नियुक्त किये गये हैं। इन विद्यालयों में शिक्षकों की भी अतिशय कमी है। लगभग 20 वर्ष पूर्व शुरू किये गये विद्यालयों के वित्तविहीन उच्चीकरण के चलते इन विद्यालय के शिक्षकों को अति अल्प वेतन पर नौकरी पर रखा गया है। ऐसे शिक्षकों से क्या अपेक्षा की जा सकती है। स्वःवित्तपोषित कोर्सों के बारे में भी लगभग यही सत्य है।
इंटर पास करने वाले विद्यार्थियों को लैपटॉप बांटने के नाम पर आयोजित होने वाले आयोजनों पर अनाप-शनाप खर्चा किया गया और कई स्थानों पर आयोजनों पर हुआ खर्चा लैपटॉप बांटने के खर्चे से कहीं अधिक का था।  उत्तर प्रदेश में राजनैतिक हितों के लिए सरकारी धन का दुरूपयोग लगभग सभी सरकारों द्वारा किया गया है।
बेरोजगारी: उद्योग शून्यता, कृषि के बेढ़ब संचालन तथा आधारभूत ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) के निर्माण में उदासीनता और पिछड़ेपन के चलते प्रदेश में भयंकर बेरोजगारी है और प्रदेश के तमाम नौजवान और मजदूर जीवनयापन के लिये पलायन करने को मजबूर हैं। पलायन से गांव खाली हो रहे हैं और शहरों पर आबादी का भार बढ़ रहा है, जिससे अन्य समस्यायें पैदा हो रहीं है। नरेगा जैसी योजनायें भ्रष्टाचार की जकड़ में हैं। ईमानदार निर्वाचित जन प्रतिनिधियों यथा ग्राम प्रधानों का जीवन तक संकट में है।
नागरिक सुविधायें: जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिनीवल मिशन चन्द बड़े शहरों में लागू किया गया है, जहां भीषण भ्रष्टाचार व्याप्त है। तमाम मध्यम एवं छोटे शहरों में सड़कों, नालियों, सफाई आदि की स्थिति बेहद दयनीय है। प्रदेश की राजधानी तक में सार्वजनिक सफाई के लिए जनता को स्थानीय ठेकेदारों को मासिक आधार पर भुगतान करना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में भी नागरिक सुविधायें हद दर्जे के निम्नतम स्तर पर हैं।
स्वास्थ्य: पूरे प्रदेश में राजकीय स्वास्थ्य सुविधायें चौपट पड़ी हैं। सरकारी अस्पतालों में से अधिकांश की इमारतें जर्जर अवस्था में हैं। अस्पतालों में पर्याप्त स्टाफ तक नहीं है। कई जिलों में एक भी महिला चिकित्सक नियुक्त नहीं है। दवाओं और उपकरणों का बेहद अभाव है। साफ सफाई और तीमारदारी की समुचित व्यवस्था तक नहीं है। निजी नर्सिंग होम्स एवं चिकित्सालय लूट के अड्डे बने हुये हैं। आम जनता स्वास्थ्य की एवज में भारी कीमत चुका रही है। ग्रामीण स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ अधिसंख्यक ग्रामीण जनता को नहीं मिल पा रहा है। उसकी एंबुलेंस गाडियां टैक्सी के रूप में चलाई जा रही हैं।
गरीब एवं असहाय तबके: प्रदेश में गरीबी की रेखा के नीचे गुजर करने वालों की संख्या बहुत अधिक है और यह प्रदेश की कुल आबादी का 70 प्रतिशत से कम नहीं है। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की गणना पहले योजना आयोग के दफ्तर में कर ली जाती है और फिर जिला एवं ब्लाक स्तरीय अधिकारियों को उतने ही बीपीएल परिवार चिन्हित करने के लिए निर्देश जारी कर दिये जाते हैं। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले अधिसंख्यक परिवारों के पास बीपीएल कार्ड नहीं हैं। नरेगा के अंतर्गत जॉब कार्ड देने में भी हीला हवाली की जाती है। नरेगा में काम करने के पूरे पैसे तक नहीं मिलते हैं। कहने को पैसा बैंक खातों में जमा किया जाता है परन्तु दबंगई के कारण बैंक खातों से पैसा निकालने के लिए विड्राल फार्मों पर घर-घर जाकर पहले से ही दस्तखत करवा लिये जाते हैं। गरीबों के लिए चल रही तमाम योजनायें भ्रष्टाचार में डूबी हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली: प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली चौपट पड़ी है। आम आदमी को जरूरत की खास चीजें बेहद महंगी मिलती हैं। मौजूदा महंगाई ने तो आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यापक तथा भ्रष्टाचार से मुक्त बनाने की जरूरत है।
विकास के धन का दुरूपयोग: राजनीतिक उद्देश्यों से वशीभूत होकर सरकारें विकास के लिये धन को स्मारकों, मूर्तियों और अपनी जन्मभूमियों को यादगार स्थल बनाने में जुटी रहीं और प्रदेश का विकास पिछड़ता चला गया है। उत्तर प्रदेश के समूचे विकास की उपेक्षा हुई है।
वित्त आयोग के सम्मानित सदस्यगण,
इन परिस्थितियों में प्रदेश के समग्र विकास के लिए हम निम्न मांगें आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं:

  • प्रदेश में कृषि के विकास के लिए पर्याप्त धन आबंटित किया जाये। ये धन प्रदेश में सहकारी खेती विकसित करने, खेती को उपकरण एवं अन्य उपादान मुहैया कराने तथा भूमि सुधार के वास्ते दिया जाये।
  • उत्तर प्रदेश के बन्द पड़े मिलों, उद्योगों - खासकर सार्वजनिक एवं सहकारी उद्योगों को चलवाने, बीमार उद्योगों को ठीक हालत में लाने तथा नये उद्योग खुलवाने को पर्याप्त मात्रा में धन मुहैया कराया जाये।
  • बुनकरों तथा बुनकर उद्योग, अन्य कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने तथा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को रोजगार देने के लिए योजनायें चलाने हेतु भी पर्याप्त धन मुहैया कराया जाये।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में प्रदेश में सड़क निर्माण, विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए पर्याप्त धन दिया जाये।
  • प्रदेश में नहरों के निर्माण, बांधों एवं चेकडैम्स के निर्माण तथा सरकारी ट्यूबवेलों को लगाने हेतु भी धन आबंटित किया जाये।
  • प्रदेश के सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने तथा निजी स्कूलों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हें संचालित करने, माध्यमिक शिक्षा सभी को मुफ्त दिलाये जाने और उच्च शिक्षा को आम आदमी के लिए सुलभ तथा सस्ती बनाने को शिक्षा का ढांचा खड़ा करने हेतु भारी धनराशि राज्य को मुहैया कराई जाये।
  • प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में कुटीर एवं मध्यम उद्योग लगाने और पर्याप्त रोजगार सृजन कर उसे कार्यान्वित करने हेतु धन उपलब्ध कराया जाये।
  • नरेगा का दायरा 200 दिन प्रतिवर्ष और मजदूरी रू. 300.00 रूपये प्रतिदिन बढ़ाई जाये और शहरी क्षेत्र के लिए भी शहरी रोजगार गारंटी कानून बनाया जाये।
  • नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें, गलियां, खड़ंजे, नालियों एवं तालाबों आदि के निर्माण और सफाई को ध्यान में रखते हुए धन मुहैया कराया जाये।
  • सभी गरीबों को बीपीएल कार्ड दिलाकर उनके लिए तमाम विकासकारी योजनायें चलाने, वृद्धों, विधवाओं, विकलांगों के लिए आश्रयस्थल बनाने को पर्याप्त धन मुहैया कराया जाये।
  • आम आदमी को महंगाई और काला बाजारी से निजात दिलाने को सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करना जरूरी है जिसके लिए धन आबंटित किया जाये। खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने को भी धन की जरूरत होगी।
  • प्रदेश के बुन्देलखंड, पूर्वांचल, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों के विकास के लिये पर्याप्त धन मुहैया कराया जाये।
  • वन क्षेत्र के फैलाव एवं रखरखाव, वृक्षारोपण, झीलों, तालाबों-पोखरों के संरक्षण और उन्हें गहरा करने, जल संरक्षण के काम को अंजाम देने को भी धन की आवश्यकता है।
  • सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, गोबर गैस आदि से ऊर्जा दोहन के लिये पर्याप्त धनराशि भी आवश्यक है।
  • सूखा, बाढ़ तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने को अतिरिक्त धनराशि आबंटित की जाये।
  • अर्बन रिनीवल का कार्य 50,000 से अधिक आबादी वाले सभी नगरों तक लागू किया जाये, जिसमें प्रमुखता पेय जल की आपूर्ति एवं सीवरेज व्यवस्था स्थापित करने के साथ-साथ सड़कों के उच्चीकरण को दी जाये।

अतएव आपसे अनुरोध है कि प्रदेश के भौगोलिक एवं जन सांख्यकीय विस्तार तथा प्रदेश के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय की न्यूनता को देखते हुये प्रदेश के विकास के लिए उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए आप वसूल किये जाने वाले केन्द्रीय करों में से समान हिस्सा राज्य को प्रदान करें तथा केन्द्रीय निधियों में अधिकाधिक धन उत्तर प्रदेश के लिए आबंटित करने की संस्तुति करें। आबंटन के लिए 1971 की जनगणना के आंकड़ों के बजाय 2011 की वास्तविक संख्या को ध्यान में रखा जाये। विभाज्य अंश के वितरण के सिद्धान्त में वित्तीय अनुशासन के भार को बढ़ाया जाये। 

सुझाव


  • विकास का धन विकास में ही लगे अन्य मनमाने कामों में नहीं इसके लिए राज्य एवं जिलों के स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की एक निगरानी समिति बनाये जाने की सिफारिश केन्द्र सरकार से की जाये। उल्लेख आवश्यक होगा कि विधान मंडल की बैठकों की संख्या अत्यधिक घट चुकी है और पीएसी की कार्यपद्धति अंकुश लगाने में सफल साबित नहीं हुई।
  • जन प्रतिनिधियों, राज नेताओं, अधिकारियों और दलालों के भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए केन्द्रीय एवं राज्य के स्तर पर पर्याप्त निगरानी व्यवस्था हो।
  • कैग के अधिकार क्षेत्र को विस्तृत किया जाये और केन्द्रीय सहायता का कैग द्वारा आडिट अनिवार्य बनाया जाये।
  • जिस धन को जिस कार्य के लिए दिया जाये उसे उसी कार्य में उपभोग किये जाने का प्रमाण लिये जाने को अनिवार्य किया जाये और उसके अन्यथा उपयोग पर यथोचित कार्यवाही के बारे में कानून बनाने पर विचार किया जाये।

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप उपर्युक्त पर गहनता से विचार कर समुचित कार्यवाही करेंगे और उत्तर प्रदेश के विकास का रास्ता प्रशस्त करेंगे।
सादर,

भ व दी य


(डा. गिरीश)
राज्य सचिव