Wednesday, July 31, 2013

महिला अधिकारी का निलम्बन वापस होगया होता तो एक अन्य की हत्या न हुयी होती.भाकपा.

आज एक बात पर बेहद आश्चर्य हो रहा है.अपने एक साल से अधिक के शासन काल में मुख्यमंत्री,उ.प्र.श्री अखिलेश यादव ने एक से एक शातिर और कुख्यात अधिकारी को मलाईदार पदों पर स्थापित किया है और वे अपने कुक्र्त्यों के चलते बेनकाब हो गए तो उनको दिखाबे के तौर पर स्थानांतरित या बुझे मन से निलंबित कर तो दिया लेकिन शीघ्र से शीघ्र उन्हें पुनर्स्थापित कर दिया.भले ही इन बे-ईमानों के पक्ष में चुहिया भी न आई हो.लेकिन दुर्गाशक्ति नागपाल जिसके निलम्बन पर समूचा समाज उद्वेलित है,उसके निलम्बन को आज तक वापस न लेना उत्तर प्रदेश सरकार के माफिया प्रेम को उजागर कर देता है.अखिलेश के इस माफिया प्रेम की भारी कीमत उस परिवार को चुकानी पड़ गयी जिस परिवार के पुरुष सदस्य की हत्या आज नॉएडा में उस समय कर दी गयी जब वह अपने घर में था.उसका कसूर बस इतना था कि वह खनन मफियायों की शिकायत समय-समय पर अधिकारियों से करता रहा था.इसीको कहते हैं उज्जवल छवि का युवा नेता. डॉ.गिरीश.

Monday, July 29, 2013

खनन माफिया के दबाब में किया गया महिला अधिकारी का निलम्बन.भाकपा ने की वापस लेने की मांग.

लखनऊ - २७जुलाई – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने राज्य सरकार द्वारा एक ईमानदार और कर्मठ आई ए एस अधिकारी और गौतमबुध्द नगर की एस.डी.एम .सुश्री दुर्गाशक्ति नागपाल के निलम्बन को बेहद अनैतिक बताते हुये इसको तत्काल निरस्त करने की मांग की है. यहाँ जारी एक प्रेस बयान में पार्टी के राज्य सचिव डॉ.गिरीश ने कहा कि इस नौजवान महिला अधिकारी ने खनन माफिया के खिलाफ अभियान चला कर राज्य और जनता के हितों को तरजीह दी थी. लेकिन इन्हीं माफियायों के प्रभाव में आकर सरकार ने इस अधिकारी का निलंबन कर दिया. इस निलम्बन से जनता बेहद कुपित है और वह सरकार के इस फैसले को निरस्त देखना चाहती है. यह भी देखने में आया है कि इस बीच राज्य सरकार ने कई अच्छे अफसरों को प्रताड़ित किया है और रिश्वतखोर तथा भ्रष्ट अफसरों को महिमामंडित किया है. जनता इससे से भी खफा है. डॉ.गिरीश.

Sunday, July 28, 2013

मोनाकाडा क्रांति की 60 वीं जयंती पर गोष्ठी


लखनऊ,28 जूलाई 2013 : आज अपरान्ह दो बजे 22-क़ैसर बाग में विश्व शांति एवं एकजुट्टता संगठनके तत्वावधान में एक गोष्ठी का आयोजन क्यूबा के मोनाकाडा में 26 जूलाई 1953 को घटित क्रांति की 60 वीं जयंती के उपलक्ष्य में किया गया। प्रारम्भ में कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने इस क्रांति और बाद की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
अपने उदघाटन सम्बोधन में लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ रमेश दीक्षित नें बताया कि 26 जूलाई 1953 की क्रांति विफल तो हो गई थी किन्तु इसने जनता को शिक्षित करके उसके सहयोग से पुनः क्रांति की तैयारी का मार्ग प्रशस्त किया। 1956 और 1957 में भी क्रांति के छिट-पुट प्रयास हुये किन्तु सफलता 1 जनवरी 1959 को मिली जब फिडेल कास्तरो ने क्यूबा की सत्ता पर अधिकार कर लिया। 1961 में उन्होने खुद को मार्क्स वाद के प्रति समर्पित कर दिया और रूस के साथ मिल कर साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में अपना सहयोग दिया।
डॉ वीरेंद्र यादव ने साहित्यकारों के क्रांति के प्रति योगदान को रेखांकित किया एवं उनके और अधिक सक्रिय होने की अपेक्षा की। शकील सिद्दीकी साहब ने याद दिलाया कि 1952 में भाकपा संसद में मुख्य विपक्षी दल था अब फिर वही गौरव प्राप्त करना चाहिए।
पूर्व पी सी एस अधिकारी पी सी तिवारी जी नें बताया कि क्यूबा की तरक्की का कारण वहाँ साक्षरता का होना है। उन्होने अपेक्षा की कि AIPSO  के माध्यम से जनता को जाग्रत करके क्रांति के लिए तैयार किया जाये। कामरेड आशा मिश्रा ने क्यूबा और फिडेल कास्तरो से प्रेरणा ग्रहण करने की आवश्यकता पर बल दिया।
जनवादी लेखक संघ के डॉ गिरीश चंद्र श्रीवास्तव ने साहित्यकारों का आव्हान किया कि वे जनोन्मुखी क्रान्ति से उत्प्रेरित साहित्य का सृजन करें तभी जनता को जाग्रत करके विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।  
डॉ गिरीश ने कहा कि 35 वर्ष पूर्व अलीगढ़ विश्वविद्यालय में जब उन्होने क्यूबा की क्रांति की 25 वीं वर्षगांठ मनाई थी तब युवाओं में क्रांति के प्रति झुकाव था आज की गोष्ठी में युवाओं की अनुपस्थिति उपभोकतावाद का दुष्परिणाम है। फिर भी उन्होने संतोष जताया कि युवतियों ने उपस्थित होकर इस कमी को दूर कर दिया है। उन्होने देश की वर्तमान परिस्थितियों को वांम- पंथ के अनुकूल बताया और क्यूबा आदि देशों की क्रांतियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ्ने का आव्हान किया।
एप्सो के सेक्रेटरी जनरल आनंद तिवारी जी ने विद्वानों आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुये सफलता की आशा प्रकट की। कामरेड कल्पना पांडे जिंनका इस गोष्ठी के आयोजन में सक्रिय योगदान रहा का भी यही विचार था कि स्थिति निराशाजनक नहीं है और हम अवश्य ही अपने उद्देश्य में सफल रहेंगे।
अंत में कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने उत्तर प्रदेश में AIPSO     संगठन को पुनः सक्रिय करने की काना करते हुये ऐसे आयोजन आगे भी करते रहने का आश्वासन दिया।


Tuesday, July 23, 2013

CPI Wants Judicial Probe into Ramban Killings; Demands AFSPA to go


New Delhi: The Communist Party of India (CPI) today demanded a judicial probe into the recent killings of four civilians in Jammu and Kashmir, saying the “unprovoked action” was alienating large populace of the state from the mainstream.
The Left party also demanded immediate withdrawal of the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) from the hilly state.
“It is necessary that a judicial enquiry be ordered and the Armed Forces Special Powers Act be withdrawn at the earliest,” CPI general secretary S Sudhakar Reddy said here.
He said it was very unfortunate that four people were killed and 15 injured in the firing. The firing was allegedly carried out by the BSF. The firing was unnecessary, he said, adding that the BSF camp had been closed in the area after the incident, but accountability had to be fixed for the deaths.

हाय रे पैसे ---मोहम्मद ख़ालिक़

हाय रे पैसे,हाय रे पैसे 
कहें तो क्या कहें?किस से 
सभी हैं एक ही के हिस्से 
कोई है नहीं जुदा हमसे
क्या कार वाले क्या जहाज वाले 
क्या जो चलाते हैं रिक्शे 
सभी की आँखों मे हैं,एक ही नक्शे 
हाय रे पैसे,हाय रे पैसे 
जीवन मे पैसे,पैसे हैं 
फिर भी हैं कम,पैसे 
दौलत भरी हो खान मे फिर भी कम हैं पैसे 
पैसे से चिपक जाएंगी जब ज़िंदगी ऐसे 
होगा मनुष्य का कल्याण फिर कैसे?
हाय रे पैसे,हाय रे पैसे । ।  

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कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़

(कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ इस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , लखनऊ के ज़िला मंत्री हैं। उन्होने एक साक्षात्कार मेअपने उपरोक्त उद्गारों को व्यक्त करते हुये बताया कि जब वह छ्ठवी /सातवी कक्षा मे पढ़ते थे तब एक गरीब सहपाठी की उपेक्षा देख कर उनके मन मे ये विचार आए थे जिनको अक्सर वह लोगों से साझा करते रहते हैं।) उन्होने पार्टी को एक यह नारा भी दिया है-

निशान हो हँसिया बाली 

और झण्डा हो लाल 

खुशहाली से हम भी जिये 

जिये हमारे लाल । ।

Sunday, July 21, 2013

बिजली का निजीकरण जनहित में नहीं - भाकपा

लखनऊ- २१ जुलाई, २०१३. निजी क्षेत्र कितना निर्दयी, लुटेरा और झूठा होता है,यह जानना हो तो आगरा में बिजली कंपनी टोरंट पावर के क्रिया-कलापों से आसानी से समझा जा सकता है. इस कंपनी ने आगरा में उपभोक्ताओं को जिस तरह तबाह कर रखा है उससे वहां जनता में भारी आक्रोश है और वहां आये दिन इस कंपनी के क्रिया-कलापों के खिलाफ लोग सडकों पर उतर रहे हैं. फिर भी अपने को समाजवादी कहने वाली उत्तर प्रदेश की सरकार मेरठ, गाजियाबाद, कानपुर तथा वाराणसी की बिजली सप्लाई को निजी कंपनियों के हाथों सौंपने का दुस्साहस करने जा रही है. उनके इस सपने को साकार नहीं होने दिया जायेगा तथा कर्मचारियों, आमजनता तथा अन्य दलों के साथ मिल कर निर्णायक संघर्ष किया जायेगा. उपर्युक्त चेतावनी यहाँ एक प्रेस बयान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने दी. भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि आगरा में जब से बिजली सप्लाई टोरंट पावर को सौंपी गयी है वहां के उपभोक्ता और विद्युत् कर्मी इस कंपनी के क्रिया कलापों, मनमानी और ठगी से आजिज आगये हैं. बिजली की सप्लाई तो कम है ही फाल्ट होने पर जल्दी ही बिजली ठीक नहीं कराई जाती. विरोध करने पर कंपनी के गुर्गे मारपीट पर उतारू हो जाते हैं. मनमाने बिल भेज दिए जाते हैं और बार-बार फरियाद करने पर भी उन्हें सही नहीं किया जाता और दबाब बना कर उपभोक्ताओं से बढ़े हुए बिल बसूले जाते हैं. विद्युत् कर्मचारी ठेके पर रखे जा रहे हैं जहाँ उन्हें न तो पूरा वेतन मिलता है और न ही उनको ड्यूटी के दौरान कोई सुरक्षा ही दी जाती है. आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं के चलते कई कर्मचारी मर चुके हैं अथवा घायल होते रहते हैं, लेकिन न तो उन्हें मुआबजा दिया जाता है और नही उनका इलाज ही कराया जाता है. इस स्थिति के चलते आगरा में आये दिन जाम एवं उग्र प्रदर्शन होते रहते हैं और टोरंट का कार्य व्यवहार वहां कानून एवं व्यवस्था की समस्या खड़ी किये हुए है. डॉ.गिरीश ने कहा कि हमारे नीति निर्माताओं ने बहुत सोच समझ कर ऊर्जा जैसे बुनियादी क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत रखा था लेकिन आज भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण को समर्पित केंद्र और कई राज्यों की सरकारें ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण पर आमादा हैं. इनमें उत्तर प्रदेश की सरकार भी है जो दाबा तो समाजवादी होने का करती है, पर पूँजीवाद को आगे बढाने का कोई मौका नहीं छोडती. भाकपा की दृढ़ राय है कि ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण जनता की संपत्तियों को पूंजीपतियों को सौंपे जाने का उपक्रम मात्र है, जन हित से इसका कोई लेना देना नहीं. यह जनता की समस्या है, खाली विद्युत् कर्मियों की नहीं. इसलिए इसका विरोध भी जनता को संगठित करके ही किया जायेगा, जिसमें कर्मचारी और मजदूरों को भी शामिल किया जायेगा. डॉ.गिरीश, राज्य सचिव, भाकपा-उत्तर प्रदेश

Friday, July 19, 2013

वामपंथी दलों के राष्ट्रीय कन्वेंशन का घोषणा-पत्र (उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में)


देश को आज़ाद हुए ६६ वर्ष हो रहे हैं लेकिन अभी भी हम विकसित, समृद्ध और सबको समान अधिकार लक्ष्य से कोसों दूर हैं. इसका कारण है देश का पूंजीवादी विकास जो अमीरों को मालामाल कर रहा है और गरीबों को और गरीबी के गर्त में धकेल रहा है. सरकारों की नीतियां बड़े उद्योगपतियों, अमीरों और  ताकतवर लोगों के हितों को पूरा करने के लिए तय होती हैं. नतीजतन जनता का बड़ा हिस्सा गरीबी,भूख,बीमारी,अशिक्षा,बेरोजगारी और उत्पीडन जैसी समस्याओं से जूझ रहा है और दुनिया के एक तिहाई लोग भारत में रहते हैं. दलितों,महिलाओं,अल्प-संख्यकों एवं आदिवासियों पर भारी अत्याचार हो रहे हैं तथा उनके सामाजिक और जनवादी अधिकारों का बुरी तरह हनन हुआ है. साम्प्रदायिक और विभाजनकारी ताकतों को खुली छूट मिली हुई है. एक स्वतंत्र विदेश नीति और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा के साथ समझौता किया गया है. उत्तर प्रदेश सहित उन तमाम सूबों में जहाँ क्षेत्रीय अथवा जातिवादी पार्टियों की सरकारें हैं, वे भी उन्ही आर्थिक नव उदारवाद की नीतियों पर चल रही हैं जिन पर केंद्र की सरकारें चलती आ रही हैं. वामपंथी दलों की सरकारें अपवाद रही हैं.
कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के शासन काल में खाने-पीने की आवश्यक वस्तुओं सहित हर चीज़ के दामों में भारी वृद्धि हुई है. मंहगाई की मार से जनता त्राहि-२ कर उठी है. किसान हितों के विपरीत नीतियों के चलते उनकी आर्थिक हालत जर्जर है और बड़ी संख्या में किसानों ने आत्म-हत्याएं की हैं. जमीनों पर बिल्डरों, खनन माफियाओं और कार्पोरेट घरानों का कब्जा होता जा रहा है. बेरोजगारी की दर में हैरान करने वाली वृद्धि हुई है. पांच साल से कम के ४५ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. शिक्षा,इलाज,पेय जल और यहाँ तक कि पर्याप्त भोजन आबादी के बड़े हिस्से को मिल नहीं पा रहा है.
एक ओर जनता जहाँ इस कदर तंग हाल है वहीं संप्रग सरकार ने कार्पोरेट समूहों और बड़े,करोबारियों को भूमि,खनिज, गैस तथा स्पैकट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की खुली छूट दे दी है. क्षेत्र की विशालकाय संपदाओं को धीरे-२ इन्हीं के हवाले किया जा रहा है. पिछले बजट में इन पर ५ लाख करोड़ रूपये के टैक्स को छोड़ दिया गया. जबकि पेट्रोलियम उत्पादों और उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती कर दी गयी. सरकार ने हर क्षेत्र में बड़े-२ घोटालों और भ्रष्टाचार को खुला प्रश्रय दिया है और जनता की अपार संपत्ति उसके हाथों से छिन कर घोटालेबाजों की तिजोरियों में चली गयी. यह सरकार विदेशी वित्तीय पूंजी को लाभ पहुंचाने के लिए खुदरा बाजार में  विदेशी निवेश को बढ़ावा दे रही है, परिणाम स्वरूप हमारे लगभग ४ करोड़ खुदरा व्यापारियों की आजीविका संकट में है.
महिलाओं को भोग की वस्तु बना कर रख दिया है अतएव उनके प्रति यौन हिंसा में वृद्धि हुई है. समाज में बराबरी के दर्जे से उन्हें वंचित किया जा रहा है. दलितों पर उत्पीडन बढ़ा है और उन्हें उनके बुनियादी हकों और आर्थिक उत्पादन की गतिविधियों में उनकी भागीदारी से वंचित रखा जा रहा है. मुस्लिम अल्पसंख्यकों की हालत सच्चर कमेटी ने उजागर कर दी है लेकिन इन हालातों में सुधार लाने को बहुत कुछ नहीं किया गया है, आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर अक्सर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को निशाना बनाया जाता है.
कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने हमारी घोषित विदेश नीति को पलट कर एक ऐसी विदेश नीति को अपनाया है जो हमारे घरेलू हितों की परवाह किये बिना हमें अमेरिकी हितों के पक्ष में खड़ी कर रही है. सीरिया में बढ़ते अमेरिकी –नाटो हस्तक्षेप के साथ भारत की गुप-चुप सहमति और अमेरिकी दबाव में ईरान से तेल की आपूर्ति में लगातार कटौती इसके ताजा उदाहरण हैं.
स्पष्ट है कि संप्रग सरकार की नीतियां जनविरोधी एवं जनवाद विरोधी हैं. वैकल्पिक नीतियों को आगे बढाने को कांग्रेस और संप्रग का न केवल विरोध करना होगा अपितु उन्हें सत्ता से हटाना होगा.
भाजपा की आर्थिक नीतियाँ पूरी तरह वही हैं जो कांग्रेस और संप्रग की. ऊपर से भाजपा घनघोर सम्प्रदायवादी है और समाज का बंटवारा कर मुक्त बाजार की लूट की व्यवस्था को मौका मुहैय्या कराती है. भावी लोकसभा चुनाव में अपनी जीत के लिए उसने मोदी का चेहरा आगे किया है. मोदी के गुजरात माडल का एक ही अर्थ है –मुस्लिम अल्पसंख्यकों का कत्ले आम और कारपोरेट समूहों की पौ बारह. इसीलिये पूंजीवादी तत्व मोदी का गुणगान कर रहे हैं. इस बात को सरासर छिपाया जा रहा है कि गुजरात में ग्रामीणों, गरीबों,आदिवासियों की हालत बेहद खराब है और सबसे ज्यादा कुपोषण गुजरात में है.
भाजपा संप्रग सरकार के भ्रष्टाचार पर कितनी भी हाय-तौबा करे लेकिन उसका भी दामन घपलों-घोटालों की गन्दगी से अटा पड़ा है. कर्नाटक की उसकी सरकार ने अवैध खनन से हजारों करोड़ की लूट की और विधान सभा चुनावों में उसे भारी हार का सामना करना पड़ा.
आर .एस.एस.और भाजपा ने पिछले एक-डेढ़ साल में उत्तर प्रदेश के कई शहर-कस्बों में साम्प्रदायिक तनाव और हिंसा फैलाने का काम किया है. अब वे पुनः अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दों को पुनर्जीवित कर रहे हैं और जम्मू व कश्मीर के सम्बन्ध में संविधान की धारा ३७० को हटाये जाने के अपने ऐजेंडे को आगे बढाने के लिए मौके का इन्तजार कर रहे हैं.
नीतियों और कार्यक्रम के सन्दर्भ में भाजपा,कांग्रेस का विकल्प नहीं है. अतएव सभी धर्म निरपेक्ष,देश भक्त और जनवादी ताकतों का यह कर्तव्य है कि भाजपा को कदापि सत्ता में न आने दें.
यह बहुत ही खतरनाक है कि देश की राजनीति में पैसे की ताकत और व्यापारिक प्रतिष्ठानों का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है. चुनावों में बड़े पैमाने पर धन के इस्तेमाल से राजनीतिक व्यवस्था दूषित हो रही है. जनादेश में जनता की आकांक्षा की जगह धन की ताकत परिलक्षित हो रही है. इसे रोकना होगा. पैसे की ताकत को रोकने के लिए चुनाव सुधारों की फौरी जरूरत है. बुनियादी सुधार के तौर पर आंशिक सूची व्यवस्था के साथ समानुपातिक प्रतिनिधित्व को लागू करने की जरूरत है. इससे एक हद तक धन बल और बाहु बल के दुरूपयोग पर रोक लगेगी.
देश को और अधिक संघीय व्यवस्था की जरूरत है. शक्तियों और संसाधनों का  केंद्र के हाथों में संकेन्द्रण को कम किया जाना चाहिए. राज्यों की शक्तियों और अधिकारों को बढ़ाना होगा. जहाँ तक संसाधनों के हस्तांतरण का सम्बन्ध है तो पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए. इसके लिए केंद्र राज्य संबंधों के पुनर्गठन की आवश्यकता है.
कांग्रेस नीत यूं.पी.ए.और भाजपा नीत एन. डी. ए. दोनों ही अंतर्विरोधों में फंसे हुए हैं और उनका दायरा सिकुड़ रहा है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि दोनों ही प्रमुख दल उन नीतियों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते रहे हैं जो जनता के हितों में न होकर एक छोटे से दौलतमंद तबके के हित में है. वाम दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को छोड़ कर अन्य राज्य सरकारों ने भी आर्थिक नव उदारवाद के ढाँचे को ही आगे बढ़ाया है. अतएव ये सरकारें केंद्र सरकार के गर्भ से पैदा हो रही जनविरोधी और जनतंत्र विरोधी कार्यवाहियों से मुक्त नहीं हैं. उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियां भी कार्पोरेट समूहों,बड़े उद्योग समूहों तथा दलाल-माफियाओं के हित में काम कर रही हैं और किसान,कामगार,दस्तकार और आम आदमी की कठिनाइयाँ बढ़ा रही हैं. यह सरकार अपने चुनावी वायदों को भी पूरा करने से मुकर रही है. किसानों के कर्जे माफ़ नहीं किये गए,समस्त बेरोजगारों को भत्ता देने का वायदा अधूरा पड़ा है,किसानों की जमीनों का बड़े पैमाने पर अधिग्रहण जारी है,बिजली की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी कर दी गयी है,पेट्रोल,डीजल,गैस के ऊपर वैट की दरें कम करने को सरकार तैयार नहीं है,मंहगाई को रोकने में सरकार की कोई  भूमिका नहीं है,शिक्षा एवं चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में निजी पूंजी का फैलाव आम आदमी की कठिनाइयों में इजाफा कर रहा है. शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार एवं क़ानून व्यवस्था की बदतर हालत लोकजीवन और सामाजिक सौहार्द पर भारी पड़ रही है. प्रदेश का मुख्य विपक्षी पार्टी बसपा है जो जनता के हित में कभी बोलती तक नहीं. शासक दल और मुख्य विपक्षी दल दोनों ही चुनावी मकसद से जातीय एजेंडे को ही आगे बढ़ा रहे हैं.
आज की जरूरत है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों की नीतियों और उनके राजनीतिक मंचों को खारिज किया जाये. उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी कारगुजारियों के विरुद्ध आवाज उठाई जाए तथा बसपा जैसे दलों की मौक़ा परस्ती का पर्दाफ़ाश किया जाए.
देश को एक विकल्प की जरूरत है. ऐसा विकल्प केवल वैकल्पिक नीतियों के आधार पर ही उभर सकता है. एक वैकल्पिक नीति मंच होना चाहिए जिसके इर्द-गिर्द एक राजनीतिक विकल्प बनाया जा सकता है.
देश और प्रदेशों में चल रही आर्थिक नीतियों की जगह वैकल्पिक आर्थिक नीतियां, धर्म निरपेक्ष और सामजिक न्याय की हिफाजत,संघीय ढाँचे की मजबूती और एक स्वतंत्र विदेश नीति,ये तमाम एक वैकल्पिक नीति मंच की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं.
वामपंथी दलों ने आर्थिक,राजनीतिक और सामजिक क्षेत्र में एक ऐसे वैकल्पिक नीति मंच को सामने रखा है. इस वैकल्पिक मंच की मुख्य विशेषताएं हैं:
१.भूमि सुधार के क़दमों को लागू करना. अतिरिक्त जमीन का भूमिहीनों के बीच वितरण. हर एक भूमिहीन परिवार को घर बनाने के लिए जमीन सुनिश्चित करना. जबरन भूमि अधिग्रहण की समाप्ति. लखनऊ आगरा हाईवे जैसे गैर जरूरी मार्गों के निर्माण की योजना को रद्द करना. स्वामीनाथन आयोग की रपट के आधार पर किसानों को वाजिब मूल्य और सस्ता ऋण.
२.अधिक रोजगार के लिए आधारभूत ढाँचे और विनिर्माण व दूसरे उद्योगों हेतु सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना . खनन व तेल संसाधनों का राष्ट्रीयकरण. उत्तर प्रदेश में रिक्त पड़े सभी प्रकार के पदों को भरा जाना, बंद पड़ी मिलों को पुनः चलाना.
३.टैक्स संबंधी उपायों में चोर दरवाजों को बंद करना और क़ानून सम्मत टैक्सों की उगाही सुनिश्चित करना. देश में सट्टेबाज वित्तीय पूंजी के प्रवेश पर नियंत्रण. वित्तीय क्षेत्र को निजी धनपतियों के लिए खोले जाने पर रोक. खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं. प्रदेश में पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट कम करना.
४.सार्वजनिक जन वितरण प्रणाली को लागू करना जिसमें सभी परिवारों को हर महीने अधिकतम २ रूपये किलो की दर से ३५ किलो अनाज मिले,इसे सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा क़ानून को पारित किया जाना चाहिए संप्रग द्वारा बनाया मौजूदा क़ानून खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ है. प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे खाद्यान घोटालों पर कारगर रोक तथा दोषियों को कड़ी सजा दिया जाना.
५.धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत के रूप में धर्म और राज्य को एक दूसरे से अलग रखने को संविधान में प्राविधान स्थापित करना. साम्प्रदायिक ताकतों पर लगाम लगाने के लिए ठोस कारवाई हो तथा उत्तर प्रदेश में हुए दंगों की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों के विरुद्ध ठोस कार्यवाही की जाए.
६.शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए  धन आबंटन में बढ़ोत्तरी. स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं के निजीकरण पर रोक. शिक्षा का अधिकार क़ानून में अमल की गारंटी. प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में हुए घोटालों के दोषियों को सजा.
७.उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार पर नकेल के लिए ठोस कदम. जांच करने की स्वतंत्र शक्तियों वाला लोकपाल क़ानून बने. चुनाव सुधार हों. उत्तर प्रदेश की पूर्व सरकार के कार्यकाल में हुए घोटालों के दोषियों को कड़ी सजा. मौजूदा शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार पर रोक.
८.महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबर अधिकार. संसद और विधायिकाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण :दलितों के हकों की हिफाजत और एस सी/एस टी के लिए आरक्षण का निजी क्षेत्र तक विस्तार. अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण पर रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट को लागू करना.आतंकवाद के नाम पर निर्दोषों को प्रताड़ित किये जाने पर रोक.  आदिवासियों के लिए पांचवी व छठी अनुसूची के अधिकारों की रक्षा. उत्तर प्रदेश में महिलाओं,दलितों,अल्पसंख्यकों एवं आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों पर कारगर रोक.
९.मेहनतकश वर्गों के अधिकार –जायज न्यूनतम वेतन और सामजिक सुरक्षा उपायों का कडाई से अनुपालन, श्रम की ठेकेदारी और अनियमित काम की समाप्ति. उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों का पालन हो. न्यूनतम वेतनमान रूपये ११०००/-प्रतिमाह हो.
१०.स्वतंत्र विदेश नीति अपनाओ. अमेरिका परस्ती एवं साम्राज्यवाद परस्ती छोडो.
११.उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था बेहद खराब है. यहाँ माफिया-पुलिस-गुंडाराज चल रहा है. प्रदेश में क़ानून के राज की स्थापना की जाए.
      वामपंथी दल सभी जनवादी ताकतों,जनवादी दलों और जनसंगठनों से इस वैकल्पिक राजनीतिक मंच को समर्थन देने की अपील करते हैं. वामपंथी दल इस मंच के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए एक राजनीतिक अभियान चला रहे हैं. आइये और इस अभियान में जुटिये ताकि  हम सब एक ताकतवर राजनीतिक विकल्प के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकें और आम आदमी के जीवन को बेहतर बना सकें.